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लोभ और लालच प्रभावी होगा तो नहीं मिटाया जा सकता नदी जल संकट

tiwarishalini
Published on: 24 Sept 2017 5:04 PM IST
लोभ और लालच प्रभावी होगा तो नहीं मिटाया जा सकता नदी जल संकट
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Rajendra Singh

गंगा, यमुना सिंध, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी आदि नदियों को हम अपने राष्ट्रीय गान में नित्य ही गाते हैं, लेकिन इनकी सेहत का ख्याल नहीं करते। हम भूल गए हैं कि नदियों की सेहत और हमारी सेहत एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई है। नदी की सेहत खराब होगी तो भारत की राजनीति, सभ्यता, संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक दशा खराब होगी। इस खराबी को रोकने का उपाय हमें करना चाहिए। हम इस उपाय से बचेंगे तो नदियां हमारे उपायों को बिगाड़ देंगी।

नीर, नदी और नारी का सम्मान करने वाला देश आज भटकाव के रास्ते पर है। इस भटकाव के रास्ते में नदी के सदाचार को मानव सदाचार के साथ जोडऩा अत्यंत आवश्यक है। हम नदी की आवश्यकता की ओर नहीं मुड़ रहे हैं। हमें अपने लक्ष्य को समझना होगा और नदियों को हमें अपनी मां की तरह प्यार और सम्मान के साथ समझना होगा।

नदियों का संकट हमारा ही संकट है। इस बात को समझने वाले लोग अपने और नदियों के संकट मुक्ति के उपायों पर विचार नहीं कर रहे हैं। आज इस विचार को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इस विचार के अनुरूप जहां-जहां नदियों पर काम हुए हैं, वहां नदियों का संकट मिटा है। इस संकट को मिटाने के लिए भारत में बहुत सारी कोशिशें हुई हैं, उन कोशिशों को सफलता भी मिली है।

महाराष्ट्र के सांगली जिले में अग्रणी नदी, राजस्थान के करौली जिले में महेश्वरा नदी, इसी जिले की दूसरी सैरनी नदी, उत्तर प्रदेश के ललिपुर जिले की बंडई नदी, महाराष्ट्र के वीड़ जिले की अम्बेजोगई की होरप्पा और वरणा नदी तमिलनाडु में भी इस वर्ष कई नदियों पर नई कोशिशें शुरू हुई हैं। कर्नाटक राज्य की ईचनहल्ला आदि नदियों पर भी इस प्रकार से बहुत से काम हुए हैं, जिन्होंने नदियों को सम्मान देकर पुनर्जीवित किया है।

इस काम से केवल नदियां ही पुनर्जीवित नहीं हुई हैं, पूरा समाज ही पुनर्जीवित हुआ है। जल और नदी के संकट से उजड़ा हुआ समाज पुन: आकर बस गया। हमें इसी तरह से देशभर की सभी नदियों के संकट का समाधान करने के लिए नदी साक्षरता का अभियान चलाने की जरूरत है। नदी साक्षरता समाज समाज को नदियों से जोडक़र नदियों का संकट मिटा सकती है।

आज नदियों का सबसे बड़ा संकट भूजल शोषण से जन्मा है। जब भूजल भंडार खाली होते हैं तो नदियों का जल प्रभावित नहीं होता। नदियों का जल प्रवाह बनाना और उसको प्रदूषण, अतिक्रमण और शोषणमुक्त बनाना अति आवश्यक है।

नदियों को संकट मुक्त बनाने हेतु नदियों के साथ सदाचार अत्यंत आवश्यक है। यह सदाचार ही नदियों की अविरलता और निर्मलता का रास्ता है। इस रास्ते पर हम सबको चलना ही होगा। इस रास्ते को भूलने से ही भारत का संकट बढ़ा है। अभी भी समय है, जब भारत अपने जल संकट से मुक्त हो सकता है।

भारत के गांवों-शहरों में बढ़ता जल संकट, आज के नदी जल संकट का जन्मदाता है। भारत की नदियों की अविरलता और निर्मलता की कल्पना गांव और शहरों के परंपरागत जल प्रबंधन से ही संभव है। राजस्थान के एक बहुत बड़े भूभाग में, अलवर, जयपुर, दौसा, करौली और सवाई माधोपुर के लोगों ने ऐसा कर दिखाया है। परंपरागत जल प्रबंधन से दस हजार आठ सौ चालीस वर्ग किमी. क्षेत्र जो बेपानी था, उसे पानीदार बनाया गया है।

छोटी-छोटी आठ नदियों को पानीदार बना दिया है। राजस्थान इस देश का सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र है, फिर भी यहां कार्य करके जब राजस्थान की आठ नदियों का जल संकट दूर किया जा सकता है तो इसी तरह के कार्य करके पूरे भारत की नदियों का जल संकट भी मिटाया जा सकता है।

नदियों का जल संकट मिटाने में यदि लोभ और लालच प्रभावी होगा तो यह नदी जल संकट नहीं मिटाया जा सकता। आज नदियों के लोभ-लालच बढ़ाने वाले कार्यक्रम ही चालू हैं। यह सरकारी कार्यक्रम लोगों के पानी को उद्योगपतियों और ठेकेदारों को लाभ पंहुचाने वाले ही हैं। आज भारतीय समाज और सृष्टि के साझे हित और पुण्य करने वाले लोग नहीं हैं, इसीलिए सारी शासकीय योजनाओं मेें नदियों पर बैराज और बांध बनाकर उनकी हत्या की जा रही है।

सिंचाई बढ़ाने के नाम पर हम नित्य नया जल संकट बढ़ा रहे हैं। नदियों का संरक्षण, संवर्धन करके नदियों का पुनर्जीवन करना आवश्यक है, इस आवश्यकता का अहसास करने की सबसे पहली जरूरत है। हमें आज जरूरत है नदियों में तैरने वाले समाज को पुन: जाग्रत करने की।

(लेखक मैग्सेसे पुरस्कार विजेता हैं)

tiwarishalini

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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