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Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात में कमल खिलाने की तैयारी

Gujarat Assembly Election 2022: भाजपा के जिन बड़े नेताओं को टिकट से हाथ धोना पड़ा है, उनमें बाग़ी के तौर पर खड़े होने या भीतरघात करने की हैसियत में कोई नहीं है।

Yogesh Mishra
Published on: 11 Nov 2022 4:14 PM IST (Updated on: 11 Nov 2022 4:15 PM IST)
Gujarat Assembly Election 2022
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भाजपा ने गुजरात में केंद्रीय मंत्रियों की फौज उतारी (photo: social media )

Gujarat Assembly Election 2022: लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता है कि चुनावी नतीजे आने के पहले ही सरकार व मुख्यमंत्री बनाने के 'वोकल' फ़ैसले के साथ जनता खड़ी दिखे। पर इन दिनों गुजरात चुनाव में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। भाजपा जहां अपने जीत के कील काँटे दुरुस्त करती दिख रही है, वहीं जाने अनजाने सभी दल व सभी सियासी समीकरण भाजपा को लाभ पहुँचाते नज़र आ रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी कांग्रेस के बहुत ज़्यादा वोट काटती नज़र आ रही है। अहमद पटेल की अनुपस्थिति में यह पहला चुनाव कांग्रेस लड़ रही है। हालांकि अहमद पटेल नरेंद्र मोदी के बतौर मुख्यमंत्री दूसरे कार्यकाल के समय से ही गुजरात में कांग्रेस के लिए बड़ी लायबिलिटी बन गये थे। उनके होने का लाभ कांग्रेस को कम भाजपा को ज़्यादा मिलता रहा है। इसकी भरपाई अरविंद केजरीवाल व ओवैसी करते दिख रहे हैं। भाजपा के जिन बड़े नेताओं को टिकट से हाथ धोना पड़ा है, उनमें बाग़ी के तौर पर खड़े होने या भीतरघात करने की हैसियत में कोई नहीं है। 38 विधायकों के टिकट कटे हैं। इनमें 9 मंत्री भी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनावी रण का ऐसा जुझारू योद्धा माना जाता है जो फ्रंट से न केवल अपनी सेना की अगुवाई करता है, बल्कि युद्ध जीतने के लिए सब कुछ झोंकने को तैयार भी रहता है। फिर बात अगर गुजरात के चुनावी रण की हो तो मोदी के लिए इस लड़ाई में जीत हासिल करने के खास मायने हैं। इसीलिए उन्होंने इस लड़ाई को जीतने के लिए काफी पहले ही तैयारी शुरू कर दी थी। मोदी खुद लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं। यहीं से उन्होंने प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया है।

पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण गुजरात चुनाव को लेकर भाजपा काफी ज्यादा सतर्क नजर आ रही है। पार्टी नेतृत्व को इस बात की बखूबी जानकारी है कि गुजरात से निकलने वाला सियासी संदेश काफी अहम होगा। यूं तो हर चुनाव में भाजपा के लिए पीएम मोदी का चेहरा ही सबसे अहम होता है। मगर गुजरात के नतीजों का अलग सियासी मायने होगा। इस लिए भाजपा का फ़ोकस भी गुजरात पर ज़्यादा है। भाजपा यहां एक नया इतिहास रचना चाहती है। तैयारियाँ बताती हैं कि गुजरात में भाजपा अपने पुराने 127 के आँकड़े को इस बार पार कर जाये तो कोई हैरत नहीं होना चाहिए। आप पार्टी खाता खोलने में कामयाब होगी। कांग्रेस को पचास सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है।

गुजरात के 2017 के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो 182 सीटों वाली विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए 13 और अनुसूचित जनजाति के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं। इस चुनाव में भाजपा को 99 सीटें मिलीं। उसको मिले कुल वोटों की संख्या 14724031 थी , जो 49.05 फ़ीसदी बैठती है। कांग्रेस ने 177 उम्मीदवार उतारे। उसके हाथ 77 सीटें लगीं। एक सीट पर उसकी ज़मानत ज़ब्त हो गई। कांग्रेस को 12437661 वोट मिले, जो तक़रीबन 41.44 फ़ीसदी बैठती है।

जबकि 2012 के चुनाव में भाजपा को 115 सीटें मिली थीं। उसे 47.85 फ़ीसदी वोट हाथ लगे थे। कांग्रेस को 61 सीटों व 38.93 फ़ीसदी वोट पर संतोष करना पड़ा था। भाजपा को 13115579 और कांग्रेस को 10674767 वोट मिले थे।

2007 के चुनाव में भाजपा को 117 सीटें, 49.12 फ़ीसदी वोट यानी कुल 10739972 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 59 सीटें, कुल 8309449 यानी 38 प्रतिशत वोट मिले थे।

2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को 127 सीटें मिली थीं। 49.85 प्रतिशत यानी कुल 10194353 वोट हाथ लगे थे। इस चुनाव में कांग्रेस के 51 विधायक जीते, उसके कुल 39.28 प्रतिशत यानी 8033104 वोट मिले।

1995 से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। पार्टी की ओर से जारी प्रत्याशियों की पहली सूची से इस बात को समझा जा सकता है कि पार्टी नेतृत्व की ओर से कितनी अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। सूची जारी होने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी समेत कई वरिष्ठ नेताओं का चुनाव लड़ने से इनकार करना, बड़े पैमाने पर मंत्रियों और विधायकों का टिकट काटना और नए युवा व महिला चेहरों पर भरोसा करना कुछ ऐसे कदम हैं जिनके जरिए पार्टी एक बार फिर गुजरात की सत्ता पर कब्जा बनाए रखना चाहती है। अमित शाह की नारानपुरा में छोटे से कार्यकर्ता को टिकट दे दिया गया।

इसी के साथ भाजपा ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेसी दिग्गजों को चुनाव से बहुत पहले भाजपा के पाले में लाकर मंत्री पद तक दे रखा है। इनमें कुंवर जी बावलिया, जवाहर चावड़ा, भगवान भाई बारोट का नाम शामिल है। कांग्रेस से दस बार विधायक और नेता प्रतिपक्ष रहे मोहन सिंह राठवा को न केवल भाजपा में लाया गया बल्कि उनके बेटे को टिकट दे दिया गया। कांग्रेस से आने वाले हार्दिक पटेल, प्रद्युमन सिंह जडेजा, अश्विन कोटवाल, भगवान भाई बारोट, जीतू चौधरी और हर्षद रिबाडिया आदि भी टिकट पाने में कामयाब रहे। राठवा ने तो दो दिन पहले ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है।

इस बार बदला हुआ है चुनावी समीकरण

इस बार के विधानसभा चुनाव में गुजरात का चुनावी समीकरण थोड़ा बदला हुआ नजर आ रहा है। अभी तक के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में जोरदार टक्कर हुआ करती थी । मगर इस बार आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी समीकरण बदल दिए हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल लगातार गुजरात का दौरा करने में जुटे हुए हैं। पंजाब की तरह उन्होंने गुजरात में भी तमाम लुभावने वादे कर डाले हैं।

पंजाब के चुनाव नतीजों से उत्साहित केजरीवाल को गुजरात में अच्छी चुनावी संभावनाएं नजर आ रही हैं। इसी कारण उन्होंने हिमाचल प्रदेश की अपेक्षा गुजरात में चुनाव प्रचार को ज्यादा महत्व दिया है। पंजाब की तर्ज पर उन्होंने गुजरात में भी सीएम चेहरे के रूप में युवा इसुदान गढ़वी का नाम घोषित करके चुनावी माहौल आप के पक्ष में बनाने का प्रयास किया है। ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले 40 वर्षीय गढ़वी को सीएम चेहरा बनाकर केजरीवाल ने राज्य के 52 फीसदी ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। हालाँकि आप भाजपा की बी टीम से ऊपर नहीं उठ पा रही है। वह जिन वोटों में सेंध लगा रही है, उसका अस्सी फ़ीसदी हिस्सा कांग्रेस वोटों का ही है।

टिकट बांटने में काफी सतर्कता

भाजपा गुजरात के विधानसभा चुनावों को लेकर कितनी गंभीर है, इसकी झलक पार्टी की ओर से जारी प्रत्याशियों की पहली सूची से ही मिल गई है। राज्य की 182 सीटों में से 160 सीटों पर पार्टी ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। पिछली बार चुनाव लड़ने वाले 182 प्रत्याशियों में से 85 के टिकट काट दिए गए हैं। यदि इनमें से जीतने वालों की बात की जाए तो पार्टी ने सत्ता विरोधी रुझान और क्षेत्रीय लोगों की नाराजगी से बचने के लिए 38 विधायकों का टिकट काटने में कोई संकोच नहीं किया है। पार्टी प्रत्याशियों का नाम तय करने के लिए नेतृत्व की ओर से काफी होमवर्क किया गया है। नाम तय करने में जीत की गारंटी को ही एकमात्र आधार बनाया गया है।

भाजपा की निगाहें पूरी तरह चुनाव जीतने पर ही टिकी हुई हैं और इसी कारण कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से आए 20 से अधिक चेहरों को कमल के निशान पर चुनाव मैदान में उतारा गया है।

जातीय समीकरण साधने की कोशिश

भाजपा की पहली सूची में 14 महिला प्रत्याशियों के नाम हैं जिनमें क्रिकेटर रविंद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा जडेजा भी शामिल हैं। उन्हें जामनगर नॉर्थ सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया है। रिवाबा ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी और इसके बाद वे पार्टी के कार्यक्रमों में लगातार सक्रिय दिखी हैं।

भाजपा की पहली सूची में अनुसूचित जाति के 13 और अनुसूचित जनजाति के 24 उम्मीदवार शामिल हैं। हर बार की तरह पाटीदार उम्मीदवारों पर विशेष फोकस किया गया है। पार्टी की ओर से 39 पाटीदार चुनाव मैदान में उतारे गए हैं। इनमें पाटीदार आंदोलन के सबसे चर्चित चेहरे हार्दिक पटेल भी शामिल हैं जिन्हें उनकी मनचाही सीट विरमगाम से टिकट दिया गया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को घाटलोढ़िया सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया है।

मोरबी में कांतिलाल को मिला इनाम

मोरबी के पूर्व विधायक कांतिलाल अमृतिया को भी चुनाव मैदान में उतारा गया है। पार्टी नेतृत्व ने सिटिंग विधायक बृजेश मेरजा का टिकट काटकर अमृतिया को चुनाव मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में मेरजा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। कांतिलाल ने मोरबी पुल हादसे के दौरान जान की परवाह किए बगैर नदी में छलांग लगा दी थी। उन्हें कई लोगों की जान बचाने का इनाम दिया गया है। हादसे के बाद पीएम मोदी ने कांतिलाल को फोन कर के पूरे घटनाक्रम की जानकारी भी ली थी। पटेल समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कांतिलाल ने 1995 से 2012 तक पांच बार मोरबी सीट से चुनाव जीता है।

भाजपा के कई प्रमुख चेहरों ने किया किनारा

गुजरात के विधानसभा चुनाव इस बार यह भी दिलचस्प होगा कि भाजपा के कई बड़े चेहरे इस बार चुनावी रण में नहीं दिखेंगे। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी समेत आठ प्रमुख नेताओं ने इस बार चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। इसे राज्य में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है और इसके जरिए पार्टी सरकार विरोधी रुझान का असर कम करने की कोशिश में जुटी हुई है।

विजय रुपाणी के अलावा राज्य के एक अन्य प्रमुख नेता नितिन पटेल भी इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। जिन अन्य नेताओं ने इस बार चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है उनमें प्रदीप सिंह जडेजा, भूपेंद्र सिंह चूड़ासामा, सौरभ पटेल, विभावरी दवे, बल्लभ काकड़िया और आरसी फलदू का नाम शामिल है।

इसलिए किया चुनाव न लड़ने का ऐलान

इनमें से कई नेताओं ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सी आर पाटिल को पत्र लिखकर अपने फैसले की जानकारी दे दी है। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से पहले नेताओं की ओर से चुनाव न लड़ने के ऐलान का भी अलग मतलब निकाला जा रहा है। दरअसल भाजपा नेतृत्व की और से इन नेताओं को चुनाव मैदान में न उतारे जाने का संकेत पहले ही दे दिया गया था। ऐसे में इन नेताओं ने सम्मानजनक विदाई का रास्ता चुनते हुए पहले ही चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया।

वैसे भाजपा सूत्रों का यह भी कहना है कि बाद में पार्टी नेतृत्व की ओर से इन नेताओं को सम्मानजनक तरीके से कोई और जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। हालांकि यह तो साफ हो गया है कि गुजरात में भाजपा की सियासत में अब इन नेताओं की कोई भूमिका नहीं होगी।

संवाद के बाद बनेगा विकास का रोडमैप

गुजरात में विभिन्न वर्गों से संवाद स्थापित करने के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों की फौज उतार दी है। इन केंद्रीय मंत्री को विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में लक्षित समूहों के साथ संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दरअसल पार्टी अपने विजन डॉक्यूमेंट अग्रसर गुजरात के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों का सुझाव लेना चाहती है। इसीलिए भाजपा के केंद्रीय नेताओं को विभिन्न जिलों में प्रवास करने का निर्देश दिया गया है। केंद्रीय नेताओं का यह प्रवास 15 नवंबर तक चलेगा। इसके जरिए राज्य के एक करोड़ लोगों का विजन डॉक्यूमेंट के लिए सुझाव लेने की तैयारी है।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, महेंद्र नाथ पांडेय, स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर, पुरुषोत्तम रुपाला, गिरिराज सिंह और पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को लोगों से संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और गुजरात के भाजपा सांसदों को भी लोगों की राय जानने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। गुजरात के प्रवासियों का सुझाव लेने की भी तैयारी है।

समाज के विभिन्न वर्गों से मिले सुझाव घोषणापत्र टीम को सौंपे जाएंगे। इन सुझावों के आधार पर ही घोषणा पत्र टीम गुजरात के विकास के लिए पार्टी के वादों का ऐलान करेगी। लोगों के सुझाव लेने के लिए विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में आकांक्षा पेटी भी रखी गई है। विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में लगाए गए कैनवास पर भी लोग अपने सुझाव दे सकते हैं।

गुजरात का जातीय समीकरण

वैसे गुजरात के बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि राज्य में सत्ता की कुंजी ओबीसी और आदिवासी मतदाताओं के हाथों में है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल प्रत्याशियों का फैसला करने में जातीय समीकरण का भी पूरा ध्यान रख रहे हैं। गुजरात का जातिगत समीकरण दूसरे राज्यों से अलग है क्योंकि यहां अन्य पिछड़ा वर्ग यांनी ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब 52 फ़ीसदी है। यही कारण है कि गुजरात में सत्ता का फैसला करने में ओबीसी समुदाय सबसे प्रभावी भूमिका निभाता है। ओबीसी वर्ग में कुल 146 जातियां शामिल हैं और सभी राजनीतिक दलों की ओर से ओबीसी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है।

आदिवासी मतदाता भी चुनाव में प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। राज्य में आदिवासी मतदाताओं की संख्या करीब 11 फ़ीसदी है। यदि अन्य जातियों के वोट देखे जाएं तो राज्य में पाटीदार 16 प्रतिशत, क्षत्रिय 16 प्रतिशत, आदिवासी 11 प्रतिशत, मुस्लिम नौ प्रतिशत और दलित वर्ग के मतदाता करीब सात प्रतिशत हैं। यदि कायस्थ, बनिया और ब्राह्मण वर्ग के मतदाताओं को जोड़ दिया जाए तो करीब पांच फ़ीसदी मतदाता प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने में भूमिका निभाते हैं।

राज्य के जातीय समीकरण का विश्लेषण किया जाए तो सबसे बड़ी भूमिका ओबीसी वर्ग के मतदाता ही निभाते हैं। ओबीसी वर्ग के 52 फ़ीसदी मतदाताओं का झुकाव जिस सियासी दल की ओर होता है, वह सत्ता की बाजी जीतने में कामयाब होता है। यदि इसके साथ आदिवासी वर्ग के मतदाताओं को जोड़ दिया जाए तो कुल प्रतिशत करीब 63 फ़ीसदी होता है।

पाटीदार वोटों के लिए कड़ी सियासी जंग

गुजरात के विधानसभा चुनाव में पाटीदार समुदाय का वोट हासिल करने के लिए जबर्दस्त जंग छिड़ी हुई है। भाजपा, कांग्रेस और आप की ओर से इस बिरादरी को लुभाने की कोशिशें की जा रही है। राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर पाटीदार बिरादरी के वोट काफी अहम माने जाते हैं। पाटीदार मतदाताओं के रुख से ही इन सीटों पर जीत और हार का फैसला होता है। इस कारण पाटीदार बिरादरी का रुख सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण है।

वैसे तो गुजरात के लगभग हर जिले में पाटीदार बिरादरी से जुड़े मतदाता हैं । मगर उत्तरी गुजरात के सौराष्ट्र में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। गुजरात में पाटीदार बिरादरी से जुड़े मतदाताओं की संख्या करीब 16 फ़ीसदी है और वे हर विधानसभा चुनाव में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। सौराष्ट्र के 11 जिलों के अलावा सूरत में भी पाटीदार मतदाता प्रभावी स्थिति में है।

सभी दलों की लुभाने की कोशिश

भाजपा हार्दिक पटेल और खोडलधाम संस्थान के दूसरे बड़े पाटीदार नेता परेश गजेरा के जरिए पाटीदार बिरादरी में पैठ बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राजकोट में एक बड़े अस्पताल का उद्घाटन करके पाटीदार बिरादरी को लुभाने की कोशिश की थी। दूसरी ओर कांग्रेस नेता पाटीदार समाज की तीन कुलदेवियों के मंदिर की यात्रा निकाल चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने पिछले दिनों पाटीदार समुदाय से जुड़े दो बड़े चेहरों अल्पेश कथेरिया और धार्मिक मालवीय को तोड़कर पाटीदार बिरादरी में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है।

2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 पाटीदारों को चुनाव मैदान में उतारा था जिनमें से 36 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 99 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और पार्टी के 28 पाटीदार विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। दूसरी ओर कांग्रेस के 20 पाटीदार विधायक चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे।

चुनौतियों में घिरी हुई है कांग्रेस

गुजरात चुनाव में कांग्रेस विभिन्न चुनौतियों से जूझती नजर आ रही है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो एकजुटता और कार्यकर्ताओं का हौसला बनाए रखने की है। चुनाव प्रचार के मामले में भी पार्टी भाजपा और आप के मुकाबले पिछड़ती हुई नजर आ रही है। भाजपा और आप के बड़े नेताओं ने गुजरात में पूरी ताकत झोंक रखी है तो दूसरी ओर कांग्रेस का चुनाव प्रचार बहुत धीमा और सुस्त नजर आ रहा है। चुनाव प्रचार से अभी तक गांधी परिवार की दूरी भी पार्टी को महंगी पड़ती दिख रही है। इसीलिए गुजरात के पार्टी नेताओं की ओर से राहुल गांधी से भारत जोड़ो यात्रा से ब्रेक लेकर गुजरात के चुनाव में सक्रिय होने की मांग की जा रही है।

पिछला विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को लगातार झटके लगते रहे हैं। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल समेत कई प्रमुख चेहरे पार्टी से किनारा कर चुके हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद अभी तक 20 विधायक पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। हालत यह है कि पिछले तीन दिनों में तीन विधायकों मोहन सिंह राठवा, भावेश कटारा और भगा बारड ने पार्टी से इस्तीफा दिया है। इसी कारण पार्टी की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा में भी सतर्कता बरती जा रही है। पार्टी की ओर से अभी तक दो सूचियों में 89 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए गए हैं।

पार्टी के कुछ नेता भी दबी जुबान से इस बात को स्वीकार करते हैं कि पार्टी के चुनाव प्रचार से यह नहीं लगता कि वह चुनाव को लेकर गंभीर है। दूसरी ओर पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अरविंद केजरीवाल ने पूरी ताकत लगा रखी है। कांग्रेस ने इस बार परिवर्तन संकल्प यात्रा के जरिए राज्य के सभी विधानसभा क्षेत्रों के करीब पांच करोड़ लोगों से सीधा संपर्क साधने का लक्ष्य रखा है। पार्टी ने प्रदेश को पांच हिस्सों में बांटा है और यात्रा के दौरान 145 जनसभाएं और 95 बड़ी रैलियां आयोजित करने का कार्यक्रम तय किया गया है। इस यात्रा के जरिए पार्टी अपने आठ संकल्पों को गुजरात के लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करेगी।

ओवैसी की एंट्री का क्या होगा असर

आप के अलावा गुजरात की मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी भी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। राज्य की 117 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 10 फ़ीसदी से अधिक है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का रुख काफी महत्वपूर्ण हो गया है।

ओवैसी राज्य की 30 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस कारण इस बार गुजरात का चुनावी परिदृश्य पिछले चुनावों से बदला हुआ नजर आ रहा है। वैसे सियासी जानकारों के मुताबिक ओवैसी के चुनावी अखाड़े में कूदने से मुस्लिम मतों का बंटवारा होगा जो भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

हार्दिक,अल्पेश और जिग्नेश पर होंगी सबकी निगाहें

नई दिल्ली: गुजरात की सियासत में हाल के वर्षों में तीन युवा चेहरों की खूब चर्चा होती रही है। गुजरात में साल 2015 से 2017 तक इन युवा चेहरों की जबर्दस्त धमक दिखी थी। यही कारण था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर तीनों युवा नेता काफी चर्चाओं में रहे थे। मजे की बात है कि ये तीनों युवा नेता अलग-अलग वर्गों से जुड़े हुए हैं।

हार्दिक पटेल ने पाटीदार आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाई तो अल्पेश ठाकोर ओबीसी नेता के रूप में उभरे। जिग्नेश मेवाणी उना में दलित उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन के बाद राज्य के प्रमुख दलित चेहरों में शुमार होने लगे। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी इन तीनों नेताओं पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

हार्दिक पटेल

गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा में हार्दिक पटेल ही थे। पाटीदार आंदोलन से निकले हार्दिक पटेल ने पिछले चुनाव के दौरान भाजपा पर जमकर हमला बोला था। हालांकि वे उस समय कांग्रेस में शामिल नहीं थे मगर उनके हमलावर रुख का कांग्रेस को बड़ा फायदा मिला था। भाजपा और हार्दिक के बीच छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण उनके खिलाफ कई मुकदमे भी दर्ज हुए । मगर उनकी आक्रामकता में तनिक भी कमी नहीं आई। बाद में 2020 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। कांग्रेस नेतृत्व की ओर से उन्हें गुजरात में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया । मगर हार्दिक की कांग्रेस के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं निभ सकी।

उन्होंने पार्टी के नेताओं के खिलाफ ही हमलावर रुख अपना लिया। उनका आरोप था कि पार्टी के नेता ही नहीं चाहते कि वे पार्टी में बने रहें। उन्होंने राज्य इकाई के नेताओं पर पार्टी नेतृत्व को गुमराह करने का आरोप भी लगाया। उनका कहना था कि पार्टी के कार्यक्रमों और फैसलों के संबंध में उनसे कोई सलाह नहीं ली जाती। बाद में उनकी कांग्रेस के साथ मतभेद की खाई काफी चौड़ी हो गई और उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें विरमगाम विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में भी उतारा है। हार्दिक के जरिए भाजपा पाटीदार बिरादरी का समीकरण साधने की कोशिश में जुटी हुई है।

अल्पेश ठाकोर

पिछड़े समुदाय के दमदार नेता माने जाने वाले अल्पेश ठाकोर 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उस दौरान वे भाजपा पर जमकर हमला किया करते थे। वे कांग्रेस के टिकट पर राधनपुर सीट से विधायक बनें । मगर बाद में उन्होंने पाला बदलते हुए भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। वैसे उनका यह फैसला गलत साबित हुआ क्योंकि उनकी राधनपुर सीट पर कराए गए उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में जिन 22 सीटों पर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, उनमें राधनपुर सीट भी शामिल है। इस सीट से अल्पेश ठाकोर के चुनाव लड़ने की चर्चा थी मगर फिर बाद में उनके गांधीनगर दक्षिण सीट से चुनाव लड़ने की बात सामने आई। इस चुनाव क्षेत्र में अल्पेश के खिलाफ कई पोस्टर लगाए गए। इसी कारण भाजपा ने अभी तक दोनों सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं घोषित किए हैं।

जिग्नेश मेवाणी

गुजरात के प्रमुख दलित चेहरों में गिने जाने वाले जिग्नेश मेवाणी की दलित समुदाय पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। 2016 में वे पहली बार उस समय चर्चा में आए थे जब उन्होंने उना में दलित उत्पीड़न के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ दिया था। उना में कुछ दलित युवाओं की पिटाई के बाद उन्होंने बीजेपी सरकार को घेरते हुए बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया था। इस आंदोलन के दौरान लोग सड़कों पर उतर आए थे और मेवाणी को दलितों का व्यापक समर्थन मिला था। मेवाड़ी गुजरात सरकार और केंद्र सरकार की मुश्किलें हमेशा बढ़ाते रहे हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में मेवाड़ी गुजरात की बडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरे थे। कांग्रेस और आप ने उन्हें समर्थन दिया था। चुनाव में जीत हासिल करने के बाद मेवाणी पिछले साल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। मेवाणी को पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई मगर मौजूदा समय में मेवाणी कांग्रेस के लिए ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाते नजर नहीं आ रहे हैं।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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