×

बहुत सह चुकी है अब और न सह पाएगी हक की लड़ाई अभी और आगे बढ़ाएगी

सावन की घनघोर घटाएं तथा मेघों से अच्छादित उस दोपहर में शहर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में एक जिंदगी आकार लेती हैi अस्पताल.

Shweta
Published on: 31 March 2021 11:29 AM GMT (Updated on: 31 March 2021 2:51 PM GMT)
बहुत सह चुकी है अब और न सह पाएगी हक की लड़ाई अभी और आगे बढ़ाएगी
X

नारी(फोटो-सोशल मीडिया)


नूपुर श्रीवास्तव

सावन की घनघोर घटाएं तथा मेघों से अच्छादित उस दोपहर में शहर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में एक जिंदगी आकार लेती है। अस्पताल के लेबर रूम से निकलती हुई नर्स बताती है कि कन्या का जन्म हुआ है। अस्पताल में मौजूद पिता जो पुत्री की आकांक्षा लिए हुए थे वह समस्त परिवार के साथ खुशी से झूम उठते हैं।

प्रसन्नता के साथ बड़े लाड प्यार से उस कन्या का शैशव काल गुजरता है और फिर एक दिन वह शहर के सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय में दाखिला कराई जाती है I अच्छे अंको से पास होती हुई वह कन्या पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों में नित नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए व शैशवस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करती है।

जीवन के सोपान चढ़ते हुए उसे मालूम ना था कि क्रूर काल उसके पिता को घेर रहा हैI जनवरी की कड़ाके की ठंड का वह मनहूस दिन उसके सर से पिता का साया ले चला। कहते हैं कि समय किसी का नहीं होता और जीवन की कठिन परेशानियां अभी बाकी थी। पिता की मृत्यु के उपरांत मां पाषाण प्रतिमा बन चुकी थी। जिन्हें बच्चों का लालन-पालन के अतिरिक्त कोई इच्छा नहीं रह गई थी I

समय के साथ रिश्ते नातेदार भी शायद अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त होते गए और उस महंगे स्कूल की फीस ना भर सकने के कारण उस किशोरी को एक अन्य औसत स्कूल में दाखिला लेना पड़ा I शहर के इतने अच्छे स्कूल से निकल कर अन्य स्कूल में प्रवेश की पीड़ा अभी कम भी न हुई थी की नियति ने फिर प्रहार किया I किराए के जिस पुराने मकान में बाप दादों के जमाने से रिहाइश थी उसे खाली करना पड़ा । अत्यंत कम पेंशन से कोई बड़ा मकान लेना संभव नहीं था और जिंदगी की खुशियां अब एक कमरे के घर में सिमट कर रह गई। वह भी कहां मानने वाली थी। जीवन से संघर्ष करते हुए दसवीं पास करते ही आय का साधन ढूंढने लगीI घर से कई किलोमीटर पैदल जाकर ट्यूशन भी पढ़ाने लगी और डाटा फीडिंग का कार्य भी किया। इंटर पास करने के बाद जब साथ के बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी कर रहे थे तब वह दयाधार नियुक्ति की परीक्षा के लिए पढ़ रही थी I सरकारी विभाग में होने के कारण 18 वर्ष के होते ही उसे लिपिक के तौर पर दयाधार नियुक्ति मिल गईI कितनी खुश थी वह, हवा में उड़ रही थी। एक लंबे कठिन समय के बाद खुशियों की ब्यार आनंदित कर रही थीI समय अपनी चाल चल रहा था और प्राइवेट पढ़ाई करते हुए वह अब वह पोस्ट ग्रेजुएट हो चुकी थी और तभी निरीक्षक पद के लिए विभागीय परीक्षा पास कर वह निरीक्षक पद पर पदोन्नत हो गई।

शायद जीवन का कठिन समय बीत रहा था और उस उत्साही ललना ने अपने पुरुषार्थ से रहने के लिए एक स्थाई मकान भी खरीद लियाI वह हर माह अपनी बचत से उस मकान को सजाती और उसके चित्र साझा करतीI जो भी देखता वह उसकी सृजनशीलता की उनमुक्त कंठ से प्रशंसा करता। जीवन सुचारु चल रहा था परंतु नियति का पहिया शायद फिर विपरीत धुरी की तरफ घूम रहा था और एक बड़ा व्यवधान निरंतर उस ललना को अपनी वक्र दृष्टि से नुकसान पहुंचाने के लिए उत्प्रेरित था I और फिर नए साल के पहले दिन उसके स्थानांतरण आदेश गृह स्थान के लिए जारी हो गए और वह भी पूर्व के उस आवेदन पर जिसे वह वापिस ले चुकी थीI घर जाने की ख़ुशी थी परन्तु दुःख इस बात का था की यहां पदोन्नति शीघ्र संभावित थी और नए स्थान पर पदोन्नति में देर थीI

जब महकमे में सुनवाई ना हुई तो उसने कोर्ट का सहारा लियाI स्वयं गई थी वह 24 वर्ष की अल्पायु में वकील की सहायक बनकर, प्रतिद्वंदी वकील के कटाक्ष भी सुने और फिर सूबे के सबसे बड़े न्यायालय ने दिए सकारात्मक आदेश जिसके आधार पर सकारात्मक कार्यवाही हुई भी परंतु पता नहीं क्यों उसे ज्वाइन नहीं कराया I कई माह से तनख्वाह नहीं मिली थी और फिर कोविड महामारी के चलते न्यायालय बंद थे। क्या करती वह ? वही किया जो प्रशासन चाहता था, दे दिया लिख कर के स्थानांतरण पर जाएगी।समझ नहीं आता कि वह व्यवस्था के आगे हारी थी अथवा जीती थी पर सत्य है कि वह टूटी नहीं थी।

शक्तिशाली प्रशासन से फिर उसने गुहार की, कि अवरुद्ध वेतन अवमुक्त किया जाए, पर शायद यहां भी नियति में व्यवधान लिखा था फिर वही परेशान करने की नियत, कई माह की अवधि बीत जाने के बाद भी सकारात्मक जवाब नहीं। अनंत विचार दिमाग में उमड़ पड़ते हैं क्या यह भ्रम है कि आज की नारी शोषित नहीं है ? क्या करेगी वह ? टूट जाएगी , हथियार डाल देगी और चरितार्थ होगी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की वह कृति जो कहती है " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी "I

पर वह डरी नहीं है I वह वीर ललना है, हारना जिसकी फितरत नहीं I वह अपना हक चाहती है और उसे पाने की जिजीविषा अभी बाकी हैI

" बहुत सह चुकी है अब और न सह पाएगी हक की लड़ाई अभी और आगे बढ़ाएगी"

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Shweta

Shweta

Next Story