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हिमंत और शुभेंदु की ताजपोशी कर बीजेपी ने नई रणनीति का दिया संकेत

BJP ने असम में हिमंत बिस्वा तथा पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी की ताजपोशी कर अपने नेताओं को दो बड़ा संदेश दिया है।

Ritu Tomar
Written By Ritu TomarPublished By Shreya
Published on: 14 May 2021 9:02 PM IST (Updated on: 14 May 2021 9:15 PM IST)
हिमंत और शुभेंदु की ताजपोशी कर बीजेपी ने नई रणनीति का दिया संकेत
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अमित शाह- नरेंद्र मोदी- जे.पी.नड्डा (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: असम में बीजेपी ने पूर्व कांग्रेसी नेता हिमंत बिस्वा सरमा को सूबे की कमान सौंप तथा पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी को विपक्ष का नेता बनाकर उस मिथक पर पूर्ण विराम लगा दिया है, जिसके तहत कहा जाता था कि कांग्रेस अथवा बाहर से आये बागी, बीजेपी में विधायक, सांसद, मंत्री तो बन सकते हैं, मगर किसी भी हालत में कांग्रेसी या बाहरी नेता को सीएम की कुर्सी नहीं मिल सकती। लेकिन अब नई भाजपा ने अपनी रणनीति में परिवर्तन करते हुए बीजेपी में शामिल होने वाले बागी नेताओं को पार्टी अब सूबे का मुखिया भी बना सकती है, कोई बड़ा पद दे सकती है।

असम में हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने इसके साफ संकेत भी दे दिए हैं कि दूसरे राज्यों में यदि कोई पूर्व कांग्रेसी बीजेपी की सत्ता में वापसी कराता है तो पार्टी उसे मुख्यमंत्री पद से नवाज भी सकती है। इसके लिए भाजपा हाई कमान पार्टी कैडर के अपने सीटिंग सीएम को हटाने के निर्णय से गुरेज नहीं करेगी।

भाजपा हाई कमान ने अपने नेताओं को दिए दो बड़े संकेत

सच तो यह है कि असम में हिमंत बिस्वा सरमा की ताजपोशी कर भाजपा हाई कमान ने अपने नेताओं को दो बड़े संकेत दिए हैं। पहला, अब कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये नेता बाहरी नहीं रहे। अगर काबिलियत है तो उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है। दूसरा, राज्यों के चुनाव भले ही भाजपा मौजूदा सीएम के नेतृत्व में लड़े, लेकिन जीत के बाद नई सरकार में मुख्यमंत्री कोई दूसरा भी बनाया जा सकता है। इसमें पूर्व बाहरी दलों के नेताओं को भी पूरी तरजीह दी जाएगी। बीजेपी के इस नए रणनीति से पार्टी में भविष्य तलाश रहे कांग्रेस सहित दूसरे दलों के बागी नेता इसे अपने लिए शुभ संकेत मान रहे हैं।

हालांकि बीजेपी को यह निर्णय असम में सहयोगी दल असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल की सहमति अथवा अंदर खाने दबाव में ली गई होगी। पार्टी के अलग हट कर लिए गए निर्णय से दूसरे राज्यों को भी संदेश दे दिया है कि अगर काबिलियत है तो कोई भी दूसरे दल का बागी भाजपा में मुख्यमंत्री जैसे बड़े पदों पर भी जा सकता है। बागियों के आगे अब कम से कम मूल कैडर की समस्या नहीं आने वाली। भाजपा के राजनीति में एक नई लकीर खींची गई। इन फैसलों से देश की राजनीति में सबको सोचने को मजबूर कर दिया। यह घटना राजनीतिक गलियारों में हिलोरें लेने लगे कि क्या अब भाजपा का कांग्रेसी करण हो गया,या भाजपा सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं में नाराजगी

चर्चा-ए-आम है कि यदि भाजपा ने प्रजा के हित में काम किया है, तो कांग्रेसी नेताओं के आयात की क्या आवश्यकता थी? इससे भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। कई ऐसे हैं, जिन्होंने बरसों तक जमीन से जुड़े रहकर पार्टी का झंडा डंडा ढ़ोया है। पार्टी के लिए जिया और मरा है। वे विधायक और सांसद भी बनें हैं। पर अब जब सत्ता का स्वाद चखने की बारी आई तो बाहरी लोगों को तरजीह दी गयी, उनको सीधे मंत्री या कोई बड़ा पद दिया जा रहा है। ऐसे में जमीनी कार्यकर्ता और बरसों से पार्टी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता उपेक्षित हो रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण ज्योतिरादित्य सिंधिया, गिरिराज सिंह के, रीता बहुगुणा, जगदम्बिका पाल, जो दूसरे दल से आकर भी बीजेपी में खुद को साबित करने में सफल रहे हैं। ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है।

दूसरी ओर बीजेपी ने हिमंत बिस्वा सरमा को आगे कर तमाम राज्यों में विपक्ष के उन संभावनाशील चेहरों को एक संदेश दिया है, जो अपनी पार्टी में छटपटा रहे हैं। बीजेपी में आओ बड़ा पद पाओ। मसलन, सचिन पायलट जैसे नेताओं को एक तरह से संदेश दिया गया है कि आप हमारे साथ आइए। खुद को साबित करिए और नेतृत्व की भूमिका लेकर जाइए। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले जब तृणमूल कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आने की भगदड़ मची थी, तब शायद ही किसी ने ये अंदाजा लगाया था कि बीजेपी का राज्य में आने वाले समय में चेहरा टीएमसी से आया नेता होगा।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि 2014 के बाद बीजेपी ने कई धारणाओं को तोड़ा है। राष्ट्रीय राजनीतिक फलक पर मोदी-शाह के उदय के बाद से वह हर चुनाव एक युद्धनीति की तरह लड़ती दिखी है। बीजेपी की नई सोच वाली पार्टी ने अब मन बना लिया है कि किसी भी स्थिति परिस्थिति में सत्ता की अपने पास रखनी है। इसने भारतीय राजनीति के समीकरण और मायने उलट-पलट कर रख दिए हैं। हिमंत बिस्वा सरमा को मजबूर होकर ही सही, मुख्यमंत्री बनाने का फैसला बीजेपी की दूरगामी रणनीतियों का हिस्सा लगता है - मान कर चलना होगा मोदी-शाह-नड्डा आने वाले चुनावों के लिए नया एक्शन प्लान तैयार करेंगे और उस लक्ष्य पर काम करेंगे कि हर हाल में सत्ता तक पहुचना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सहारा समय न्यूज चैनल में वरिष्ठ एंकर हैं)

Shreya

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