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Hindi Readers: हिंदी भाषा के पाठकों को भी चाहिए एक नया बौद्धिक आकाश
Hindi Readers: अपनी भाषा किसी भी समाज, सभ्यता, देश का सबसे मूल्यवान प्रतीक होती है जो कि मानव और पशु में विभेद करती है। यह भाषा ही होती है जो कि मानव अस्तित्व का, उसके विकास का इतिहास लिखती है।
Hindi Readers: दो दिवसीय G-20 सम्मेलन देश की राजधानी नई दिल्ली में चल रहा है, जहां विभिन्न राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष सम्मिलित होने के लिए आए हुए हैं। G-20 सम्मेलन से पर्यटन उद्योग को तो अवश्य ही लाभ मिलेगा, साथ ही साथ पर्यटन उद्योग का यह लाभ कहीं न कहीं हिंदी भाषा को भी अपरोक्ष रूप से लाभान्वित करेगा, ऐसा मेरा मानना है। प्रत्येक वर्ष का 14 सितंबर औपचारिक हिंदी दिवस होता है । हिंदी भाषा के महत्व को याद करने का दिवस। यह याद करने का कि किस तरह से हिंदी विभिन्न विश्वविद्यालयों, विद्यालयों और विदेशों में भी पढ़ाई जाने लगी है। कि यह सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, तकनीक के नए-नए क्षेत्रों में अपना पैर रखती जा रही है।
भाषा, मानव और पशु में विभेद करती है
अपनी भाषा किसी भी समाज, सभ्यता, देश का सबसे मूल्यवान प्रतीक होती है जो कि मानव और पशु में विभेद करती है। यह भाषा ही होती है जो कि मानव अस्तित्व का, उसके विकास का इतिहास लिखती है। जब देश स्वराज की चाह लिए विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और देशी वस्तुओं के उपयोग का नारा बुलंद कर रहा था, उन्हीं दिनों महान साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी 'मातृभाषा के स्वराज की आवश्यकता' पर लेख लिख रहे थे। क्या द्विवेदी जी की यह विचारधारा आज स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी सिरे चढ़ सकी है?
राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर का कहना था, 'किन्तु सांस्कृतिक गुलामी का इन सबसे भयानक रूप वह होता है, जब कोई जाति अपनी भाषा को छोड़कर दूसरों की भाषा को अपना लेती है और उसी में तुतलाने को अपना परम गौरव मानने लगती है। यह गुलामी की पराकाष्ठा है, क्योंकि जो जाति अपनी भाषा में नहीं सोचती, अपनी भाषा में अपना साहित्य नहीं लिखती, अपनी भाषा में अपना दैनिक कार्य सम्पादित नहीं करती, वह अपनी परम्परा से छूट जाती है, अपने व्यक्तित्व को खो बैठती है और उसके स्वाभिमान का प्रचंड विनाश हो जाता है।' साथ ही अव्यवस्थित व्याकरण, हल्की भाषा कभी भी एक अच्छे साहित्य का सृजन नहीं कर सकते। कोई भी भाषा मर जाएगी अगर वह एक जैसे ही ढर्रे पर चलती रहेगी। उसे अपने सर्वांगीण विकास के लिए नित- नूतन और आदर्श प्रयोग करते रहने की आवश्यकता है। किसी भी भाषा का व्याकरण उसकी रीढ़ होती है, जो कि उसके अनगढ़पन को दूर करती है और उसे एक सुंदर आकार देती है। नई चेतना का विकास करना है तो हमें अपनी पुरानी भाषा संस्कृति के प्रति भी सकारात्मक रहना होगा और अपनी मौलिकता को सिद्ध करना होगा। अतः हिंदी के उत्थान के लिए पथ का निर्माण करना भी आवश्यक है और पथ प्रदर्शक बनना भी।
भाषा सीखना
कोई भी भाषा सिर्फ इसलिए नहीं सीखनी चाहिए कि उसे जानना हमारे लिए आवश्यक है बल्कि कोई भी भाषा अपने समाज का, अपनी सभ्यता का, अपने क्षेत्र का प्रतिबिंब होती है। हिंदी भाषा भी अपने बोलने वालों की, अपने लिखने वालों की महक और गमक बताती है। उसके साथ यह भी सच है कि हिंदी भाषा जितने लोगों द्वारा अपनाई जा रही है उससे कहीं अधिक लोगों द्वारा बिसराई भी जा रही है। वह जितना ऊपर प्रतिष्ठित की जाती है , उतनी ही उसके प्रति घृणा, ईर्ष्या की भावनाएं भी बढ़ती जा रही है। हिंदी का स्तर इतना अधिक गिर गया है कि उसके शब्दों की सुंदरता, उनकी अभिव्यक्ति सब पर प्रश्नवाचक चिन्ह तो नहीं लगाए गए हैं बल्कि उसके स्तर को गिराने के लिए एक तरह के भाषिक प्रदूषण का सहारा लिया जा रहा है । आप किसी बहते, स्वच्छ पानी की नदी का प्रवाह नहीं रोक सकते हैं और न ही उसमें से उसका पानी निकाल कर उसे खाली कर सकते हैं। तो सबसे अच्छा तरीका यह है कि उसमें गंदे पानी को डाल दो, उसमें मिलावट कर दो। देखिएगा कितनी जल्दी वह स्वच्छ, सुंदर नदी प्रदूषित हो जाएगी। इस तरह से हिंदी भाषा को खत्म करने के लिए उसकी भद्र और सुसंस्कृत भाषा में विकृतियां पैदा कर देना भी उसे भाषा को अपने अंत की ओर मोड़ना होता है।
शब्दों का प्रयोग
हिंदी भाषा के शब्दों में ऊटपटांग शब्दों का, निर्लज्ज शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग हिंदी भाषा को अवनति की ओर ही धकेलेगा। हिंदी भाषा की कुरुपता आपको अपने व्हाट्सएप ग्रुप के संदेशों या रचनाओं में मिल जाएगी, जहां हिंदी भाषा की रचनाओं के नाम पर हिंदी भाषा का उपहास बना दिया जाता है। संचार क्रांति के इस युग में भाषा अधिक शक्तिशाली हो गई है लेकिन हिंदी भाषा में इतना घटियापन, उसका इतना विध्वंस इस भाषा को आगे ले जाने की जगह उसकी असहायता को ही बढ़ा रहा है। हिंदी भाषा का स्तर कितना गिर गया है या गिरा दिया गया है उसका एक और जीता जागता उदाहरण हमारे तमाम हिंदी मीडिया के न्यूज़ चैनल भी हैं , जहां हम उनकी प्रोपेगेंडा वाली हिंदी भाषा रोज सुनते हैं। कई अहिंदीभाषी प्रदेशों में हिंदी भाषी प्रदेशों की तुलना में अधिक अच्छी हिंदी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है, बोली जाती है, कही और समझी जाती है। लेकिन राजनीतिक पचड़ो का शिकार हो हिंदी आज तक भी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। हमें अपनी भाषा पर गर्व करना आवश्यक है। लेकिन हम यह गर्व करें तो कैसे करें?
हिंदी भाषा में काम करना
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नए -नए एप्स के इस युग में हिंदी भाषा के प्रयोग को लेकर भी नई तकनीकों का आविष्कार हो रहा है। हिंदी भाषा में काम करना पहले से भी अधिक सहज और सुग्राही हो रहा है। हिंदी अब तकनीक की भाषा भी बनती जा रही है। देश से उखड़ते पैरों के बावजूद विदेशों में यह अपने पैर जमा रही है। लेकिन जब तक हम यह स्वीकार नहीं करेंगे कि हिंदी भाषा सिमटती और सिकुड़ती जा रही है, अपने ही देश में इसका स्तर ऊपर उठने की जगह गिरता ही जा रहा है, उसके नाम पर कई संस्थाएं अचानक कुकुरमुत्ते जैसी उगती हैं और मौसमी बीमारी की तरह , बारिश के जाते ही ये अल्पजीवी संस्थाएं अपनी दुकान समेट कर रफु- चक्कर हो जाती हैं, तब तक इन पर अंकुश नहीं लगा सकते हैं। जब तक यह नहीं होगा, तब तक हम हिंदी भाषा की अपेक्षित प्रगति की कामना कैसे कर सकते हैं?
हिंदी भाषा का सम्मान
वैश्वीकरण का सपना देखिए लेकिन अपनी हिंदी भाषा को पैरों के नीचे का गलीचा मत बनने दीजिए। हिंदी भाषा को न तो साहित्य और साहित्यकारों तक सीमित रहना चाहिए और न ही साहित्य और साहित्यकारों को हिंदी भाषा तक ही सीमित हो जाना चाहिए। हिंदी साहित्य सिर्फ कुछ कहानियों, कविताओं , कुछ कामचलाऊ उपन्यासों को पढ़ लेना या कुछ करने के नाम पर कुछ भी लिख लेने तक ही सीमित नहीं है। महज स्व लिखित किताबों की संख्या किसी भी साहित्यकार की योग्यता का पैमाना नहीं होती कभी भी। हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य का अपना एक विशेष स्थान है, जिसका उत्थान और विकास आवश्यक है। वह भाषा अच्छी तरह से अपनाई जाती है, जिसमें विचारों का स्वातंत्र्य हो, जो विविध विषयों के विवेचन का माध्यम बन सके और यही हिंदी की प्रगति की कूंजी भी है। हिंदी के लेखक और संपादक सार्थक और रचनात्मक भूमिका का निर्वहन कर हिंदी समाज को खत्म होने से बचा सकते हैं। हिंदी के कवियों का भी यह कर्तव्य है कि वह सहज भाषा में लेकिन अर्थपूर्ण काव्य रचना करें। हिंदी के नाम पर कुछ भी लिख देने से बचे, जिससे हिंदी भाषा के पाठकों को एक नया बौद्धिक आकाश मिल सके।
अंशु सारडा अन्वी' ( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं)