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वैंकय्या का साहस अनुकरणीय, देश के नाम दिया सही संदेश

Venkaiah Naidu Ka Bayan: पिछले हफ्ते जब कुछ हिंदू साधुओं ने घोर आपत्तिजनक भाषण दिए थे, तब मैंने लिखा था कि वे सरकार और हिंदुत्व, दोनों को कलंकित करने का काम कर रहे हैं। हमारे शीर्ष नेताओं और हिंदुत्ववादी संगठनों को उनकी कड़ी भर्त्सना करनी चाहिए। मुझे प्रसन्नता है कि हमारे उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने हिम्मत दिखाई और देश के नाम सही संदेश दिया।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shreya
Published on: 6 Jan 2022 5:44 AM GMT
वेंकैया का साहस अनुकरणीय, देश के नाम दिया सही संदेश
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वेंकैया नायडू (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Venkaiah Naidu Ka Bayan: पिछले हफ्ते जब कुछ हिंदू साधुओं ने घोर आपत्तिजनक भाषण दिए थे, तब मैंने लिखा था कि वे सरकार और हिंदुत्व, दोनों को कलंकित करने का काम कर रहे हैं। हमारे शीर्ष नेताओं और हिंदुत्ववादी संगठनों को उनकी कड़ी भर्त्सना करनी चाहिए। मुझे प्रसन्नता है कि हमारे उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू (M. Venkaiah Naidu) ने हिम्मत दिखाई और देश के नाम सही संदेश दिया। वे केरल में एक ईसाई संत एलियास चावरा के 150 वीं पुण्य-तिथि समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ घृणा फैलाना भारतीय संस्कृति, परंपरा और संविधान के विरुद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने धर्म के पालन की पूरी छूट है।

उन्होंने बहुत संयत भाषा में उन तथाकथित साधु-संतों की बात को रद्द किया है, जिन्होंने गांधी-हत्या को सही ठहराया था और मुसलमानों के कत्ले-आम की बातें कही थीं। उन्होंने गांधीजी के लिए अत्यंत गंदे शब्दों का प्रयोग भी किया था। अपने आप को हिंदुत्व का पुरोधा कहनेवाले कुछ सिरफिरे युवकों ने गिरजाघरों पर हमले (Church Par Hamla) भी किए थे और ईसा मसीह की मूर्तियों को भी डहा दिया था।

ऐसे लोगों के चलते भारत होती है बदनामी

इस तरह के उत्पाती लोग भारत में बहुत कम है लेकिन उनके कुकर्मों से दुनिया में भारत की बहुत बदनामी होती है। भारत की तुलना पाकिस्तान और अफगानिस्तान- जैसे देशों से की जाने लगती है। यह ठीक है कि भारत के ज्यादातर लोग ऐसे कुकर्मों से सहमत नहीं होते हैं लेकिन यह भी जरुरी है कि वे इनकी भर्त्सना करें। ऐसे कुत्सित मामलों को भाजपा और कांग्रेस की क्यारियों में बांटना सर्वथा अनुचित है। देश के सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे ऐसे राष्ट्रविरोधी और विषैले बयानों के खिलाफ अपनी दो-टूक राय जाहिर करें। यह संतोष का विषय है कि उन कुछ तथाकथित संतों के विरुद्ध पुलिस ने प्रारंभिक कार्रवाई शुरु कर दी है लेकिन वह कोरा दिखावा नहीं रह जाना चाहिए। ऐसे जहरीले बयानों के फलस्वरुप ही खून की नदियां बहने लगती हैं।

यह राष्ट्रतोड़क प्रवृत्ति सिर्फ कानून के जरिए समाप्त नहीं हो सकती। इसके लिए जरुरी है कि सभी मजहबी लोग अपने-अपने बच्चों में बचपन से ही उदारता और तर्कशीलता के संस्कार पनपाएं। यदि हमारे नागरिकों में तर्कशीलता विकसित हो जाए तो वे धर्म के नाम पर चल रहे पाखंड और पशुता को छुएंगे भी नहीं। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने कहा था कि मजहब जनता की अफीम है। यदि लोग तर्कशील होंगे तो वे इस अफीम के नशे से बचने की भी पूरी कोशिश करेंगे।

यदि लोग तर्कशील होने के साथ उदार भी होंगे तो वे अपने धर्म या धर्मग्रंथ या धर्मप्रधान की आलोचना से विचलित और क्रुद्ध भी नहीं होंगे। भारत में शास्त्रार्थों की अत्यंत प्राचीन और लंबी परंपरा रही है। गौतम बुद्ध, शंकराचार्य और महर्षि दयानंद की असहमतियों में कहीं भी किसी के प्रति भी दुर्भावना या हिंसा लेश-मात्र भी दिखाई नहीं पड़ती।

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Shreya

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