×

यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम जिंदा कैसे हैं

Unseen Hero of India: आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि भारतवासियों ने लड़ाई तो की। लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से। क्या वास्तव में ऐसा ही है ?

Kanchan Singh
Published on: 28 Jun 2023 2:04 PM GMT
यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम जिंदा कैसे हैं
X
Unseen Hero of India v(Pic: Newstrack)

Unseen Hero of India: आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि भारतवासियों ने लड़ाई तो की। लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से। क्या वास्तव में ऐसा ही है ? यहां तक कि समाज में भी ऐसे कईं राजपूत हैं, जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि योद्धाओं को महान तो कहते हैं। लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं।

महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :-
"जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो"
कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते है। असल बात यह है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं। मेवाड़ के राणा सांगा ने 100 से अधिक युद्ध लड़े। जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनिया जानती है। उसी युद्ध से राणा सांगा का इतिहास शुरु किया जाता है और उसी पर ख़त्म।

राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार, अहमदनगर, बाड़ी, गागरोन, बयाना, ईडर, खातौली जैसे युद्धों की बात आती है तो शायद हम बता नहीं पाएंगे और अगर बता भी पाए तो उतना नहीं जितना खानवा के बारे में बता सकते हैं। भले ही खातौली के युद्ध में राणा सांगा अपना एक हाथ व एक पैर गंवाकर दिल्ली के इब्राहिम लोदी को दिल्ली तक खदेड़ दे, तो वो मायने नहीं रखता। बयाना के युद्ध में बाबर को भागना पड़ा हो तब भी वह गौण है।

मायने रखता है तो खानवा का युद्ध जिसमें मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया। सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात आती है तो, तराईन के दूसरे युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया। तराईन का युद्ध तो पृथ्वीराज चौहान द्वारा लडा गया आखिरी युद्ध था। उससे पहले उनके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में कितना जानते हैं हम ? इसी तरह महाराणा प्रताप का ज़िक्र आता है तो हल्दीघाटी नाम सबसे पहले सुनाई देता है। हालांकि इस युद्ध के परिणाम शुरु से ही विवादास्पद रहे, कभी अनिर्णित माना गया, कभी अकबर को विजेता माना तो हाल ही में महाराणा को विजेता माना। बहरहाल, महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा, चावण्ड, मोही, मदारिया, कुम्भलगढ़, ईडर, मांडल, दिवेर जैसे कुल 21 बड़े युद्ध जीते व 300 से अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त किया।

महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग 50 दुर्ग थे। जिनमें से तकरीबन सभी पर मुगलों का अधिकार हो चुका था व 26 दुर्गों के नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखे गए, जैसे उदयपुर बना मुहम्मदाबाद, चित्तौड़गढ़ बना अकबराबाद। फिर कैसे आज उदयपुर को हम उदयपुर के नाम से ही जानते हैं ? ये हमें कोई नहीं बताता।

असल में इन 50 में से 2 दुर्ग छोड़कर शेष सभी पर महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त की थी व लगभग सम्पूर्ण मेवाड़ पर दोबारा अधिकार किया था। दिवेर जैसे युद्ध में भले ही महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने अकबर के काका सुल्तान खां को भाले के प्रहार से कवच समेत ही क्यों न भेद दिया हो। लेकिन हम तो सिर्फ हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास पढ़ेंगे, बाकी युद्ध तो सब गौण हैं इसके आगे।

महाराणा अमरसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर से 17 बड़े युद्ध लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं। लेकिन हमें सिर्फ यह पढ़ाया जाता है कि 1615 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से संधि की ये कोई नहीं बताएगा कि 1597 ई. से 1615 ई. के बीच क्या क्या हुआ।

महाराणा कुम्भा ने 32 दुर्ग बनवाए, कई ग्रंथ लिखे, विजय स्तंभ बनवाया। यह हम जानते हैं, पर क्या आप उनके द्वारा लड़े गए गिनती के 4-5 युद्धों के नाम भी बता सकते हैं ? महाराणा कुम्भा ने आबू, मांडलगढ़, खटकड़, जहांजपुर, गागरोन, मांडू, नराणा, मलारणा, अजमेर, मोडालगढ़, खाटू, जांगल प्रदेश, कांसली, नारदीयनगर, हमीरपुर, शोन्यानगरी, वायसपुर, धान्यनगर, सिंहपुर, बसन्तगढ़, वासा, पिण्डवाड़ा, शाकम्भरी, सांभर, चाटसू, खंडेला, आमेर, सीहारे, जोगिनीपुर, विशाल नगर, जानागढ़, हमीरनगर, कोटड़ा, मल्लारगढ़, रणथम्भौर, डूंगरपुर, बूंदी, नागौर, हाड़ौती समेत 100 से अधिक युद्ध लड़े व अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात आती है तो सिर्फ 3 युद्धों की चर्चा होती है :-

1- अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को पराजित किया।

2- बहादुरशाह ने राणा विक्रमादित्य के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता।

3-अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार किया।
क्या इन तीन युद्धों के अलावा चित्तौड़गढ़ पर कभी कोई हमले नहीं हुए ?
इस तरह राजपूतों ने जो युद्ध हारे हैं, इतिहास में हमें वही पढ़ाया जाता है।
बहुत से लोग हमें नसीहत देते हैं कि तुम राजपूतों के पूर्वजों ने सही रणनीति से काम नहीं लिया, घटिया हथियारों का इस्तेमाल किया इसीलिए हमेशा हारे हो।

अब उन्हें किन शब्दों में समझाएं कि उन्हीं हथियारों से हमने अनगिनत युद्ध जीते हैं, मातृभूमि का लहू से अभिषेक किया है, सैंकड़ों वर्षों तक विदेशी शत्रुओं की आग उगलती तोपों का अपनी तलवारों से सामना किया है। साथ ही सभी भाइयों से निवेदन करूंगा कि आप अपने महापुरुषों के बारे में वास्तविक इतिहास पढिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां हमें वही समझे, जो वास्तव में हम थे।

Kanchan Singh

Kanchan Singh

Next Story