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Nargis Safi Mohammadi: ईरानी जेल में रहते नोबेल जीती मानवाधिकार योद्धा नरगिस

Nargis Safi Mohammadi: नोबेल पुरस्कार विजेता नरगिस सफी-मोहम्मदी ने साबित कर दिया कि आत्मा अजर है। दो दशकों से वे तेहरान जेल में हैं। उस पर 150 कोड़े भी पड़े थे। तन्हा कोठरी की यातना के अलावा।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 7 Oct 2023 7:30 PM IST
Human rights warrior Nargis won Nobel while in Iranian jail
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ईरानी जेल में रहते नोबेल जीती मानवाधिकार योद्धा नरगिस: Photo-Newstrack

Nargis Safi Mohammadi: नोबेल पुरस्कार विजेता नरगिस सफी-मोहम्मदी ने साबित कर दिया कि आत्मा अजर है। दो दशकों से वे तेहरान जेल में हैं। उस पर 150 कोड़े भी पड़े थे। तन्हा कोठरी की यातना के अलावा। अपने दोनों जुड़वा बच्चों को इस मां ने आठ बरसों से देखा नहीं। पिता के साथ पेरिस में शरणार्थी हैं। नरगिस की खमभरी उलझी लटें, लालित्यपूर्ण चेहरा, गंभीर, गहरी झील सी आंखें उसकी निडरता का प्रतीक हैं। वर्ना बलात्कार, हत्या, शारीरिक यंत्रणा के लिए बदनाम ईरानी कैदखानें में तो अभौतिक अंश भी बिखर जाता है। अंगों के साथ। नरगिस का सत्ता से विरोध क्यों है ? उसकी मांग थी कि इस्लामी हुकूमत में स्त्रीसुलभ गरिमा और मर्यादा से वंचित न किया जाए। हिजाब न थोपा जाए, न बुर्का भी।

नरगिस सफी-मोहम्मदी की कहानी

महसी अमीना की हत्या (16 सितंबर 2022) पर नरगिस ने जेल के पीछे रहकर आंदोलन चलाया था। ईरानी नारी की मांग रही : “ज़िंदगी-आजादी।” नरगिस का संघर्ष इन्हीं की दास्तां है। वैचारिक प्रतिबद्धता भी। नरगिस आजकल राज्य-विरोधी अवमानना के आरोप में कैद हैं। पति मोहम्मदी और उनका परिवार तकरीबन ईरानी क्रांति के दौर से ही राजनीतिक प्रदर्शनों में शामिल होता रहा है। ईरान में राजतंत्र 1979 के अंत में खत्म हुआ। उसके साथ ही ईरान इस्लामिक गणतंत्र बना। नरगिस ने इसी साल “न्यूयॉर्क टाइम्स” को बताया था कि उनके बचपन की दो यादों ने उन्हें एक्टिविज्म के रास्ते की ओर मोड़ दिया। इसमें उनकी मां का उनके भाई को देखने के लिए जेल का दौरा। इसके साथ ही फांसी पर प्रतिदिन कैदियों के चढ़ाने की घोषणाएं सुनने के लिए उनका घड़ी देखना। नरगिस तब न्यूक्लियर फिजिक्स की पढ़ाई कर रहीं थीं। काजिवन शहर में उसके भावी साथी ताघी रहमानी से मुलाकात हुई। वे भी खुद राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं। ईरान में उन्हें भी 14 साल की जेल हुई थी। वह फ्रांस में अपने दो बच्चों के साथ निर्वासित जीवन जी रहे हैं।

नरगिस अपनी साहसी युवतियों की श्लाघा करती हैं। इन जुझारू लड़कियों और महिलाओं ने स्वतंत्रता और समानता के लिए अपनी बहादुरी से पूरी दुनिया को आकर्षित कर लिया। नरगिस हमेशा कहती हैं : “जीत आसान नहीं है, लेकिन यह निश्चित तो है।”

अपनी किशोरावस्था में नरगिस ईरानी महिलाओं के अधिकारों, मृत्युदंड के खात्मे और राजनीतिक कैदियों को कड़ी सज़ाओं के खिलाफ अखबारों में लिखती रहीं। पति के तेहरान स्थित कार्यस्थल से ही वह लाइव वीडियो प्रसारण करती थीं। इंजीनियर थीं। वह दो दशकों से ईरान में सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स में शामिल थीं, जो मृत्युदंड को खत्म करने के लिए ईरानी वकील शिरीन इबदी द्वारा स्थापित किया गया था। इबदी को 2003 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था। नरगिस को पहली बार 2011 में गिरफ्तार किया गया। “द न्यूयॉर्क टाइम्स” की रपट के मुताबिक: “न्यायपालिका नरगिस को पांच बार सजा दे चुकी है। इस साल उनके खिलाफ तीन और न्यायिक मामले खोले गए जो अतिरिक्त सजा का कारण बन सकते हैं।”

ह्वाइट टार्चर

नरगिस जेल में भी दूसरे कैदियों के साथ प्रदर्शन आयोजित करती रहीं। उनकी किताब ‘ह्वाइट टार्चर’ 2002 उस समय प्रकाशित हुई जब दिल की सर्जरी के बाद कुछ दिनों के लिए घर पर थीं। नरगिस की व्यथाकथा पढ़कर, सुनकर यकीन हो जाता है कि इस्लामी ईरान आज भी सोलहवीं सदी में जी रहा है। तब सफाविद बादशाह तहमास्प ने मुगल भगोड़े मिर्जा मुहम्मद नसीरूद्दीन हुमायूं को तेहरान में पनाह दी थी। सम्राट शेरशाह सूरी से चौसा और कन्नौज में हारकर हुमायूं ईरान आया था। शिया बन गया था। फिर दिल्ली का राज पा लिया।

ईरान में इन पांच सदियों में स्त्री जीवन में कोई प्रगतिवादी बदलाव नहीं आया। शरीयत कानून के तले महिलाएं जीती रहीं। नरगिस को यही शिकायत रही। उसके संघर्ष का यही आधार है। नरगिस जब कोड़ों की मार सह रही थी तो उसी समय इस्लाम की जन्मस्थली सऊदी अरब में कोड़ों की सजा पर रोक लगा दी गई थी। कोड़े मारने की सजा को जेल या जुर्माने में बदला गया है। इस निर्देश को शाह सलमान और उनके बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की ओर से मानवाधिकार सुधारों को विस्तार देने के लिए उठाया गया था।

तेहरान की नारकीय कारागार (जेंडिन-ए-एविन), जहां नरगिस कैद हैं, का भी इतिहास है। भारत के पांच केंद्रीय जेलों में तेरह माह (1976-77) बिताने के कारण मेरी विविध कैदखानों से दिलचस्पी स्वाभाविक है। तेहरान में इस इविन जेल में कई श्रमजीवी पत्रकारों ने दम तोड़ा। पहलवी बादशाह रजा शाह के दौरान गुप्तचर संस्था सावाक के कई शिकार हुए। मगर खुमैनी शासन में तो अखबारनवीसों को बेरहमी से मारा गया। नरगिस तो जीवित शहीद हैं। इस जेल में 15,000 कैदी हैं। सौ के करीब लोगों को तन्हा कोठरी में बंद किया गया है। ज़्यादातर लोग मीडियाकर्मी और जनांदोलनकारी हैं।

ईरान-विरोधी किताब लिखने पर सजा

मसलन एक स्कूल अध्यापिका थी मरीना नेमत उसे यातना देकर मुल्लों ने मार डाला। कनाडा की फोटो-पत्रकार थी जाहरा काजमी जिसने जेल में यातना की चित्र खींची थी। उसे तड़पा कर मारा। संगीतकार हांगी ताबकीली को तन्हा कोठरी में मानसिक पीड़ा दी। मर गयी। अमेरिका से ईशा मोंटेनी ईरान में नारी अधिकार की अध्ययन करने आई थीं। उसे (11 नवंबर 2008) को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कैद रखा। अमरीकी-ईरानी पत्रकार रुक्साना सबेरी को जासूसी में पकड़ा। कनाडियन पत्रकार माजीर बहारी को ईरान-विरोधी किताब लिखने पर सजा दी।

ईरान के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार (3 अगस्त 2009) महमूद अहमद निजाद ने तो कहा था : “जेल में बलात्कार हुए हैं पर शत्रु ही उसका दोषी है।” उस वक्त विपक्ष के प्रत्याशी मेहंदी करौबी ने आरोप लगाया था कि “जांचकर्ता पुलिसवाले बलात्कार को तहकीकात का सरल तरीका बनाते हैं।” तो ऐसी जेल व्यवस्था में नरगिस की आंखों के नूर की हिफाजत केवल खुदा ही कर सकता है। इन हैवानों से।



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Shashi kant gautam

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