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यदि ममता कहीं पीएम बन गयीं तो ?
ममता बनर्जी जो कभी भागीरथी जैसी थीं, अब हुगली जैसी हो गईं हैं। मलिन, गर्हित राजनीति की मानिन्द। भ्रष्ट और मौकापरस्त। इसलिए उनकी प्रधानमंत्री बनने वाली आकांक्षा भी विकृत हो गई है। ममता परिवारवाद की घोर विरोधी थीं।
गोमुख से निकलते वक्त गंगा निर्मल तथा अविरल रहती हैं। काशी में तनिक मटमैली। मगर हुगली (हावड़ा) आने तक एकदम गंदली हो जाती है। आज वहीं की निवासिनी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) जो कभी भागीरथी जैसी थीं, अब हुगली जैसी हो गईं हैं। मलिन, गर्हित राजनीति की मानिन्द। भ्रष्ट और मौकापरस्त। इसलिए उनकी प्रधानमंत्री बनने वाली आकांक्षा भी विकृत हो गई है। उनके शत्रु नरेंद्र मोदी की हसरत है कि भारत कांग्रेस मुक्त हो जाए। प्रधानमंत्री से सात साल छोटी ममता की कामना है कि सोनिया-मुक्त कांग्रेस का नजारा दिखे। दोनों दावा करते हैं कि दूसरे से खुद उनके परिधान ज्यादा बेदाग हैं, सफेद हैं। मगर फर्क गंभीर है।
मोदी (PM Modi) मानते है कि परिवार से सटोगे तो देश से हटोगे। ठीक विपरीत हैं ब्रह्मचारिणी ममता। वे अपने सगे भतीजे अभिजीत बनर्जी को बढ़ा रहीं हैं। वामपंथी लोकसभाई सीट रही डायमंड हार्बर (2004) एक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट के कब्जे में रही थी। अब बुआ ने भतीजे को दिलवा दी। वे उसे क्रमश: प्रोन्नत कर रहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस (TMC) की इस आजीवन अध्यक्षा ने भतीजे को राष्ट्रीय महासचिव नामित किया है। वे सांसद भी हैं। ''एक व्यक्ति एक पद'' का सिद्धांत बनाया था टीएमसी ने। अपवाद केवल बुआ और भतीजा हैं। बस सियासी उत्तराधिकारी घोषित होने का इंतजार है। हालांकि सोनिया की दोनों संतानों का पार्टी पदारुढ़ होने की राजीव के समय से ही ममता कांग्रेस की आलोचक रहीं। सोच अपनी - अपनी है।
भाजपा की गतवर्ष बंगाल विधानसभा में सत्ता पाने में रही विफल
अभिजीत आज के हीरो हैं। उनका वर्णन पहले। कल ही (21 मार्च 2022) नई दिल्ली ईडी मुख्यालय (New Delhi ED Headquarters) में अभिजीत की पेशी थी। वे आर्थिक अपराधी हैं। हालांकि वरिष्ट पार्टी पुरोधा सुब्रत मुखर्जी ने अभिजीत को तृणमूल कांग्रेस (TMC) का शतप्रतिशत सफल नेता करार दिया है। भाजपा (BJP) की गतवर्ष बंगाल विधानसभा में सत्ता पाने में विफल रहने का श्रेय दूसरे आला नेता पार्थ चटर्जी अभिजीत को ही देते हैं। बुआ की तरह ये सभी पार्टी अगुवा पूर्णतया विप्र वर्ण के हैं। सभी का उपाध्याय उपनाम है।
ममता परिवारवाद की थीं घोर विरोधी
ममता (Mamata Banerjee) को जानने वाले लोग अचंभे में रहे। एकदा ममता परिवारवाद की घोर विरोधी थीं। दिल्ली के एक जानकार पत्रकार ने दैनिक ''नया इंडिया'' में अपने स्तंभ (16 मार्च 2015) में लिखा था। ''एक समय ऐसा भी था जब ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) खुलकर परिवारवाद की आलोचना किया करती थीं। अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में न आने देने की बात करती थीं। ''आप पार्टी'' की तरह राजनीति में नया बदलाव लाए जाने की पैरवी करती थीं। सबसे अहम बात तो यह है कि वे खुद अभिषेक को ज्यादा महत्व दिया जाना पसंद नहीं करती थीं। उसने भले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में सोमेन मित्रा को पराजित किया हो पर यह सच भी किसी से छिपा नहीं कि महज एक साल पहले ही ममता उत्तर 24 परगना की एक रैली में भतीजे को अहमियत दिये जाने से बेहद नाराज हो गयी थीं।
इस रैली में अभिषेक मुख्य वक्ता था। वहां जो पोस्टर व बैनर लगाये गये थे उन पर ममता बनर्जी के साथ उसकी भी तस्वीर छापी गयी थी। उन दोनों के ही बड़े-बड़े कटआउट भी लगाये गये थे। हवाई अड्डे जाते समय जब ममता की नजर उन पर पड़ी, तो वे बौखला उठीं। उन्होंने अपनी कार रुकवायी और साथ चल रहे पार्टी नेताओं व सुरक्षा कर्मियों को उन्हें फाड़ डालने की हिदायत दी। उन्हें इस बात की नाराजगी थी कि अभिषेक को इतनी अहमियत क्यों दी जा रही है? उन्होंने सारे पोस्टर फड़वाए। वह रैली रद्द करवायी और उसके बाद पार्टी की ओर से लिखित निर्देश जारी किये गये कि भविष्य में किसी भी पोस्टर, बैनर पर ममता बनर्जी के अलावा किसी और का फोटो नहीं छपेगा। उनके अलावा किसी और नेता का कटआउट नहीं लगाया जायेगा।''
नरसिम्हा राव की मंत्री परिषद शिक्षा राज्य मंत्री थीं ममता
ममता जो ढाई तीन सौ रुपये वाली नीले बार्डर की सफेद साड़ी और हवाई चप्पल के लिये विश्व विख्यात रहीं, अब एकदम बदल गयीं हैं। समय तथा अवसर के साथ। अरबों रुपये के ''नारद'' तथा ''शारदा'' घोटाले में लिप्त पायीं गयीं। मगर उनका का दावा है कि उनके दुश्मनों ने उन्हें फंसाया है। ठीक जैसे उनके गुरु रहे पीवी नरसिम्हा राव कहा करते थे। राव की मंत्री परिषद में ममता शिक्षा राज्य मंत्री थीं। बात 1991—95 की है। तब तक ममता की नैतिकता उभार पर थीं। जब वे मुख्यमंत्री बनी तो उनके कभी सहयोगी रहे सांसद कुणाल घोष तथा डीजीपी रजत मजूमदार घोष ने मांग की थी कि मुख्यमंत्री को कैद किया की जाये क्योंकि वे भी भ्रष्टाचार में आकण्ठ लिप्त है।
गत वर्षों से ममता का नया अवतार दिखता है। वे अब मोदी का पद चाहती हैं। उन्होंने पूछा है कि ''क्या संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा जिन्दा है?'' हालांकि इसकी अध्यक्षा सोनिया गांधी स्वस्थ हैं, जीवित है। ममता ने पूछा था कि राहुल गांधी हमेशा विदेश में क्यों रहते हैं? ममता ने अब सुझाया कि सभी विपक्षी दल एकजुट होकर सलाहकार परिषद का गठन कर भाजपा को हरायें। नारीसुलभ प्रवृत्ति के कारण सोनिया गांधी ने अनसुनी कर दी। उनका मानना है कि उनकी राष्ट्रव्यापी स्वीकार्यता अत्यधिक है।
ममता पर भाजपाईयों ने, विशेषकर योगी आदित्यनाथ ने तोहमत लगाया था कि : ''वे मुस्लिम तुष्टिकरण की प्रवृत्ति से ओतप्रोत है।'' ममता का प्रत्युत्तर आक्रामक था। तभी ममता दहाड़ी थी : ''मैं ब्राह्मणी हूं। मुझे न समझाइये कि हिन्दू कौन है?'' फिर कहा : ''मैं कट्टर हिन्दू हूं। नित्य चण्डी का पाठ करतीं हूं।'' वे दो बार अटलजी की काबीना में मंत्री रहीं हैं। ममता ने (11 मार्च 2021) नंदीग्राम के शिव मंदिर में पूजा अर्चना किया था। पैर में चोट भी यहीं खाई थी। नामांकन के पूर्व। मगर हार गयीं थीं। उनके भाजपाई प्रतिद्वंदी विजेता शुभेन्दु अधिकारी ने टोका : ''ममता ने पूजा गलत रीति में की थी। उन्हें कलमा पढ़ना चाहिये था।''
गत माह अखिलेश यादव ने समर्थन में लखनऊ और वाराणसी रैलियों में ममता पधारीं थीं। उन्होंने कहा था :''मैं लड़ाकू हूं। भाजपायी श्रीराम कहते हैं सीता का नाम नहीं पुकारते।'' उन्होंने मुसलमानों से अपील की थी कि अपने वोट बंटने मत दो। सिर्फ साईकिल को दो। किन्तु हिन्दुओं से कहा था : '' धर्म के नाम पर वोट मत देना''
धमाका तुरन्त बाद किया। बोली : ''यूपी में भाजपा को हराये। देश से मैं उसे हटा दूंगी।''मगर यूपी के वोटरों ने बात उलटी कर दी।
ममता द्वारा विषय पलट देना कदापि नया नहीं है। उन्होंने अवैध बांग्लादेशियों को ''आपदा'' बनाया था। बात 2008 की है (नवभारत टाइम की रपट) एक महाशय हैं मार्कण्डेय काटजू जो ममता के घनिष्ठ प्रशंसक हैं। उच्चतम न्यायालय के जज तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। देश की अर्थव्यवस्था सुधारने हेतु वे ममता का नाम सुझाते है। उच्चतम न्यायालय ने इन काटजू साहब को दण्डित किया था क्योंकि वे बोले थे कि ''महात्मा गांधी ब्रिटिश राज के एजेंट थे। सुभाष बोस जापान के गुर्गे थे।'' तो ऐसे है ममता के समर्थक ! यूपी के वोटर भली भांति जान गये थे। इसीलिए उनके समर्थकों को नहीं जिताया। पास ही पलट गया।
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