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भारत कैसे रोक सकता है दूसरी लहर के आर्थिक प्रभाव को..?

कोरोना वायरस की चेन तोड़ने के लिए एक बेहद संगठित देशव्यापी लॉकडाउन की जरूरत है।

Vikrant Nirmala Singh
Written By Vikrant Nirmala SinghPublished By Chitra Singh
Published on: 8 May 2021 8:40 AM GMT
भारत कैसे रोक सकता है दूसरी लहर के आर्थिक प्रभाव को..?
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भारतीय अर्थव्यवस्था (फोटो- सोशल मीडिया)

कोविड-19 (Covid-19) की दूसरी सुनामी स्वास्थ्य ढांचे के साथ-साथ आर्थिक ढांचे के लिए भी बेहद नकारात्मक होने जा रही है। जैसे भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था दूसरी कोविड-19 की सुनामी को रोकने में अपर्याप्त साबित हो रही है, ठीक वैसे ही इसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधारों पर भी पड़ने वाला है। कोविड-19 की पहली लहर को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक गहरी मंदी की तरफ ढकेल दिया था। 20 लाख करोड़ का बड़ा आर्थिक पैकेज भी भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए नाकाफी साबित हो रहा था। परिणामस्वरूप 2020-21 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 24% की दर से सिकुड़ गई थी।

एक लंबे लॉकडाउन (Lockdown) के बाद जब भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः गतिमान हुई तब भी भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) को लेकर सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिले थे। सितंबर महीने में भी अर्थव्यवस्था के सिकुड़न की दर 7.5% रही थी। लेकिन सितंबर महीने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार दिखने लगा था। इस वित्त वर्ष के आखिरी में भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ सकारात्मक परिणाम देखने को भी मिले थे। उदाहरण के लिए फरवरी और मार्च महीने में जीएसटी कलेक्शन 1 लाख करोड़ से अधिक का हुआ था। फरवरी महीने में जहां जीएसटी का कलेक्शन कुल 1,13,145 करोड़ रुपए का था, वहीं मार्च महीने में यह सर्वाधिक 1,23,902 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। पीएमआई ( परचेसिंग मैनेजर इंडेक्स) में भी तेजी के सुधार देखने को मिल रहा था। जनवरी से लेकर अप्रैल तक पीएमआई 50 से ऊपर रही है जो कि अर्थव्यवस्था के विस्तार का संकेत करता है। इसका आशय यह हुआ कि अर्थव्यवस्था में निर्माण क्षेत्र सुधार के संकेत मिल रहे थे। जनवरी में पीएमआई 57.7 और फरवरी में 57.5 थी। लेकिन मार्च के अंत में कोविड-19 की दूसरी सुनामी के साथ ही यहां भी हल्की गिरावट देखने को मिल रही है। अप्रैल में पीएमआई इंडेक्स घटकर 55.5 हो गया है।

वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने दो सबसे प्रमुख चुनौतियां मौजूद हैं। पहला राज्यों के जरिए कोविड-19 की रोकथाम हेतु लगाए जा रहे लॉकडाउन और दूसरा भारतीय उपभोक्ता का अर्थव्यवस्था में घटता भरोसा। लॉकडाउन वर्तमान समय की जरूरत है। वायरस की चेन तोड़ने के लिए एक बेहद संगठित देशव्यापी लॉकडाउन की जरूरत है। निश्चित ही इससे अर्थव्यवस्था नकारात्मक प्रभाव रहेगा लेकिन वर्तमान में लोगों जीवन ज्यादा जरूरी है। लेकिन दूसरी सबसे बड़ी समस्या 'अर्थव्यवस्था में भरोसे' का है। यह वह पहलू है, जहां सरकार अगर सही तरीके से निर्णय ले तो अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सकता है। असल में किसी भी अर्थव्यवस्था की बुनियाद उपभोक्ताओं का भरोसा होता है। जब उपभोक्ताओं को अर्थव्यवस्था में भरोसा होता है तो वह कर्ज लेकर भी खर्च करने से नहीं संकोच करता है। क्योंकि उसे उम्मीद होती है कि निकट भविष्य में आय सृजन के अवसरों का निर्माण होगा और वह आसानी से उपभोग की प्रक्रिया को जारी रख सकेगा। लेकिन अगर वह अर्थव्यवस्था को लेकर आशंकित हैं तो वह अपनी जमा पूंजी भी खर्च करने से डरता है। उसे लगता है कि अभी का समय खर्च करने का नहीं बल्कि संचित करने का है। यदि स्थिति अर्थव्यवस्था के लिए बेहद नकारात्मक साबित होती है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था का उपभोक्ता भरोसा सूचकांक गिरा हुआ है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का भरोसा सूचकांक मार्च 2021 में घटकर 53.1 हो गया है जो कि जनवरी में 55.5 था। इसका आशय यह है कि कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद से एक बार पुनः उपभोक्ताओं का भरोसा अर्थव्यवस्था में टूट रहा है।

अर्थव्यवस्था और लॉकडाउन (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव कम करने के लिए क्या करें?

वर्तमान समय में एक देशव्यापी लॉकडाउन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह जानते हुए भी कि इसके गहरे आर्थिक परिणाम होंगे। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर दूसरी लहर के आर्थिक प्रभाव को कम कर सकती है। यही सुनियोजित आर्थिक पैकेज के जरिए किया जा सकता है। इस बार एक ऐसे आर्थिक पैकेज की जरूरत है जो मांग आधारित हो और बाजार में उपभोक्ता को खर्च करा सकने में सक्षम हो। पिछली 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज कि सबसे बड़ी कमी थी कि वह आपूर्ति आधारित पैकेज था, जबकि अर्थव्यवस्था में समस्या मांग आधारित समस्या थी। इस पैकेज में ध्यान रखना होगा कि यह सीधे उपभोक्ता को प्रभावित करता हो। इसमें निश्चित रूप से कोई बड़ी नकद स्थानांतरण की योजना होनी चाहिए। अर्थव्यवस्था का जो सबसे कमजोर तबका है, उसको एक निश्चित राशि एक निश्चित समय के लिए अभी दी जानी चाहिए। जब सरकार लोगों के हाथ में सीधा पैसा देगी तो लोगों का भरोसा अर्थव्यवस्था में बना रहेगा। लोग बाजार में खर्च करेंगे और इससे मांग बनी रहेगी। हमें हमेशा याद रखना होगा कि अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा टॉनिक "भरोसा" होता है। अगर यह मजबूत बना रहे तो निवेशक निवेश करते हैं, उपभोक्ता खर्च करते हैं और अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है।

Chitra Singh

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