TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

प्यार के लिए लवजिहादः मुस्लिम लड़का क्यों नहीं बन जाता हिन्दू, लड़की ही क्यों

यह एक उदाहरण है कि निकाह के स्थान पर पाणिग्रहण करके और समझा-बुझाकर वर को हिन्दू बनाकर ही हल निकाला जा सकता है। बशर्तें युवक अपनी प्रियतमा से सच्चे प्रेम के खातिर अकीदत की कुर्बानी दे। प्रश्न है कि उसे क्या प्रिय है? मजहब अथवा महबूबा?

Newstrack
Published on: 29 Nov 2020 7:41 PM IST
प्यार के लिए लवजिहादः मुस्लिम लड़का क्यों नहीं बन जाता हिन्दू, लड़की ही क्यों
X
In Love Zihaad, why Muslim boy does not become Hindu, why only girl

के. विक्रम राव

लव जिहाद को, बजाय कानून द्वारा नियंत्रित करने के, मान-मनौव्वल, समझाने-बुझाने और धीरज-ढांढस द्वारा संभाला जा सकता है। आखिर वे युगल तो युवा होते है, वयस्क और जानकार भी। यदि धर्मांतरण की दुरूहता को कम करना है तो युवक को रजामन्द करने का प्रयास हो कि वह हिन्दू बन जाये। अर्थात लड़की ही कलमा पढ़ने के लिए मजबूर न हो। प्रेम तो दोतरफा होता है। उत्सर्ग कोई भी कर सकता है। वर भी क्यों नहीं? वर्ना विच्छेद कर दे। अब बहाना आसान है कि इस्लाम में मुस्लिम युवती की शादी किसी अन्य मतावलम्बी से हो तो वह अवैध होती है।

बीच-बिचौव्वल वाला उपाय कारगर हुआ था

विजयलक्ष्मी नेहरू वाली घटना के संदर्भ में, जब उनके पिता मोतीलाल नेहरू और अग्रज जवाहरलाल उनका विवाह सैय्यद हुसैन से करने पर सहमत नहीं थे। अंततः हल मिला, जब हुसैन ने हिन्दू बनने का आग्रह नकार दिया था। तब दम्पति (विजया और हुसैन) में तत्काल तलाक हो गया और रास्ते जुदा हो गये।

पिता और भाई को राहत मिली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1919 में एक विकराल आंतरिक संकट से बच गयी। हुसैन के कुटुंबीजन में जिन्नावादी मुस्लिम लीग के पुरोधा ए.के. फजलुल हक तथा हसन शहीद सुहरावदी थे। एक पूर्वी पाकिस्तान का मुख्यमंत्री बना, तो दूसरा प्रधानमंत्री।

विजयलक्ष्मी और हुसैन की यह ऐतिहासिक घटना कई लेखकों द्वारा वर्णित हुई है। बांग्लादेश के ख्यातिप्राप्त इतिहासकार डा. मोहम्मद वकार खान (फोरम फार हेरिटेज स्टडीज) के अध्यक्ष ने विस्तार में इसका उल्लेख किया है। संबंधित दस्तावेज प्रमुख पुस्तकालयों में भी उपलब्ध हैं।

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव ओ. मथाई द्वारा भी अपनी आत्मकथा में वर्णित है। स्टेनली वालपोर्ट की रचना ‘‘नेहरू, एक ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी‘‘, (प्रकाशक आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1996) में भी विशद विवरण सप्रमाण मिलते हैं।

घटना है 1919 की।

नेहरू परिवार के आनन्द भवन, इलाहाबाद, हुई थी। मोतीलाल नेहरू ने एक अंग्रेजी दैनिक ‘‘इन्डिपेन्डेन्ट‘‘ शुरू किया। प्रतिस्पर्धा थी ब्रिटिश-समर्थक उदारवादी दैनिक ‘‘दि लीडर‘‘ से, जिसका विधायक सर सी.वाई. चिन्तामणि संपादन करते थे।

मोतीलाल नेहरू ने एक ब्रिटेन-शिक्षित युवा सैय्यद हुसैन को संपादक तैनात किया। पूर्वी बंगाल (ढाका) के नवाबी कुटुम्ब का यह सुन्दर युवक नेहरू परिवार के समीप आया। बत्तीस वर्ष की आयु वाले हुसैन की आनन्द भवन में उन्नीस वर्षीया विजयलक्ष्मी नेहरू से दोस्ती हुई। इश्क होना स्वाभाविक था।

एक दिन पता चला कि दोनों ने मौलवी को गुपचुप बुलवा कर निकाह कर लिया। विजयलक्ष्मी ने कलमा भी पढ़ लिया। नेहरू पिता-पुत्र क्रोधित हुये। पर हल क्या था? तब उन्होंने बापू (महात्मा गांधी) की सहायता मांगी। हिन्दू महासभा के अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने सुझाया कि युवक हिन्दू बन जाये।

हुसैन ने साफ इन्कार कर दिया। प्रस्ताव था कि यदि प्रेम सच्चा है तो आत्म-उत्सर्ग की कोई सीमा नहीं होती। राय मिली कि ‘‘यदि तुम इस नेहरू युवती से सच्चा प्यार करते हो तो उसके खातिर, उसी के धर्म को अपना लो।‘‘

रंजीत पंडित से पाणिग्रहण

हुसैन ने अपने इस्लाम मजहब को सर्वोपरि माना। फिर युवती को मनाया गया। सौराष्ट्र (गुजरात के काठियावाड) के ब्राह्मण परिवार के बैरिस्टर रंजीत पंडित से पाणिग्रहण करा दिया गया। निकाह को तलाक से तोड़ डाला गया।

विजयलक्ष्मी को बैरिस्टर पंडित से तीन पुत्रियां (इन्दिरा गांधी की फुफेरी बहनें) हुईं। रंजीत पंडित का लखनऊ जिला जेल (ऐतिहासिक कारागार जिसे मायावती ने अंबेडकर स्मारक हेतु जमींदोज कर डाला था) में 1944 में निधन हो गया।

इसे भी पढ़ें के. विक्रम राव का इंटरव्यू: पत्रकारिता कैसे जिया है?

ढाई दशक बाद आजादी के प्रथम वर्ष में ही हुसैन और विजयलक्ष्मी के रिश्ते दिल्ली में फिर जुड़ गये। इस तार को काटने के लिए 1947 में प्रधानमंत्री ने हुसैन को काहिरा में और बहन को मास्को में राजदूत बनाकर भेज दिया। मगर हुसैन का 25 फरवरी 1949 को काहिरा में इन्तकाल हो गया। विजयलक्ष्मी उनकी मजार पर काहिरा जातीं रहीं।

यह एक उदाहरण है कि निकाह के स्थान पर पाणिग्रहण करके और समझा-बुझाकर वर को हिन्दू बनाकर ही हल निकाला जा सकता है। बशर्तें युवक अपनी प्रियतमा से सच्चे प्रेम के खातिर अकीदत की कुर्बानी दे। प्रश्न है कि उसे क्या प्रिय है? मजहब अथवा महबूबा?

एक और सवाल उठा है।

‘‘लवजिहाद‘‘ पर बहस के दौरान न्यायालय ने टिप्पणी कि थी की स्पेशियल मैरिज एक्ट, 1955, के तहत भी अन्तरधार्मिक शादी संभव है। यह पद्धति मुफीद है क्योंकि मजिस्ट्रेट को तीस दिन का समय मिलता है विवाह संपन्न कराने हेतु। मगर कलमा पढ़वाकर, मुसलमान बनावाकर पुरूष द्वारा शार्टकट अपनाना धोखा हो सकता है। इस संभावना पर विशेषज्ञों द्वारा विचार करने की आवश्यकता है।

इसे भी पढ़ें लखनऊ यूनिवर्सिटी के वो दिनः वानर सेना से बिगड़ी थी पीएम की सभा, बातें हैं कई

हिन्दुओं में गोत्र, जाति, उपजाति, कुण्डली आदि में सामंजस्य होने पर ही विवाह किया जाता है। किन्तु यहां तो एकदम विपरीत मजहबी-धार्मिक रिश्ते बनाये जायें बिना सोचे-विचारे। तो कितनी स्थिरता होगी? रिश्ते टिकाउ कैसे होंगे? वासना का प्रभाव कितने परिमाण रहता है?

इन सबका परीक्षण किये बिना गांठ बांधा जाये तो दोषी कौन होगा? समाज का यह दायित्व है क्योंकि ऐसे बेमेल रिश्तों से सामाजिक अराजकता उपजती है। तनाव बढ़ता। वातावरण उग्र होता है। फिर पुलिस का हस्तक्षेप? समाधान कैसे तय होगा।

एक और भ्रम पर गौर कर लें

विवाह कभी भी केवल दो व्यक्तियों की निजी रस्म नहीं होती। दो परिवारों का भी उनसे सरोकार होता है। अगर तनाव पनपे तो कैसा संस्कार, प्यार? मस्जिद के सामने से गुजरते हुये बाराती संगीत बजाते है तो दंगे की स्थिति पैदा हो जाती है। जबकि शादी तो सामान्य मसला है। सामूहिक नहीं है।

इसे भी पढ़ें कौन है ऊपर? पार्टी या देश! : के. विक्रम राव

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुन्दरतम परिभाषा है कि हर नागरिक को हवा में अपनी छड़ी घुमाने की आजादी है। मगर वहीं तक जहां दूसरे नागरिक की नाक शुरू हो जाती है। अन्तर्धार्मिक विवाह इसी वर्ग में आते हैं। बहुसंख्यक जन प्रश्न पूछते है कि केवल हिन्दू वधू ही कलमा क्यों पढ़े? मुस्लिम वर गायत्री का उच्चारण क्यों न करें?

इस प्रश्न का समुचित समाधान आवश्यक है क्योंकि न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की एक सीमा है। जानमाल की हानि होती है हर दंगे में, नागरिक झड़प में, सिविल संघर्ष में। यह विवशता उजागर हो जाती है। हाल ही में दिल्ली के दंगें और शाहीनबाग इसके सबूत हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। अकेला नहीं। वर्ना वनवास करे। समाज से दूर रहे।

K Vikram Rao

Mobile : 9415000909

E-mail: k.vikramrao@gmail.com



\
Newstrack

Newstrack

Next Story