दैनिक भास्कर पर IT के छापे, किसका फायदा?

IT Raid At Dainik Bhaskar Group: दैनिक भास्कर पर आयकर विभाग ने छापे मारे, जिससे देश के करोड़ों पाठक और हजारों पत्रकार सन्न रह गए। लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इस रेड से फायदा किसे होगा?

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shreya
Published on: 24 July 2021 5:33 AM GMT
भास्कर पर छापे: किसका फायदा?
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भास्कर ऑफिस पहुंचे आईटी ऑफिसर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

IT Raid At Dainik Bhaskar Group: हिंदी के सबसे बड़े और सबसे प्रामाणिक अखबार, भास्कर, पर छापों की खबर ने देश के करोड़ों पाठकों और हजारों पत्रकारों को हतप्रभ कर दिया है। जो नेता और पत्रकार भाजपा और मोदी के भक्त हैं, वे भी सन्न रह गए। ये छापे मारकर क्या सरकार ने खुद का भला किया है या अपनी छवि चमकाई है? नहीं, उल्टा ही हुआ है। एक तो पेगासस से जासूसी के मामले (Pegasus Hacking Case) में सरकार की बदनामी पहले से हो रही है और अब लोकतंत्र के चौथे खंभे खबरपालिका पर हमला करके सरकार ने नई मुसीबत मोल ले ली है। देश के सभी निष्पक्ष अखबार, पत्रकार और टीवी चैनल इस हमले से परेशान हैं l

दैनिक भास्कर पर आयकर विभाग ने छापे मारे, जिससे देश के करोड़ों पाठक और हजारों पत्रकार सन्न रह गए। लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इस रेड से फायदा किसे होगा?

सरकारी सूत्रों का कहना है कि सरकार ने 'भास्कर' पर छापे इसलिए मारे हैं कि उसने अपनी अकूत संपत्तियों को विदेशों में छिपा रखा है ताकि उसे आयकर न देना पड़े। इसके अलावा उसने पत्रकारिता के अलावा कई धंधे चला रखे हैं। उन सबकी अनियमितता को अब सप्रमाण पकड़ा जाएगा। यदि ऐसा है तो यहां सरकार से मेरे तीन सवाल हैं।

सरकार से ये तीन सवाल

पहला, ये छापे अभी ही क्यों डाले गए? पिछले 6-7 साल से मोदी सरकार क्या सो रही थी? अभी ही उसकी नींद क्यों खुली? उसका कारण क्या है?

दूसरा, यह छापा सिर्फ भास्कर पर ही क्यों डाला गया? क्या देश के सारे नेतागण, व्यापारी और व्यवसायी वित्तीय-कानूनों का पूर्ण पालन कर रहे हैं? क्या देश के अन्य बड़े अखबार और टीवी चैनलों पर भी इस तरह के छापे डाले जाएंगे?

तीसरा, अखबार के मालिकों के साथ-साथ संपादकों और रिपोर्टरों के भी फोन जब्त क्यों किए गए? उन्हें दफ्तरों में लंबे समय तक बंधक बनाकर क्यों रखा गया? उन्हें डराने और अपमानित करने का उद्देश्य क्या था?

इन छापों का क्या है उद्देश्य

इन छापों का एकमात्र उद्देश्य है, स्वतंत्र पत्रकारिता के घुटने तोड़ना। भास्कर देश का सबसे लोकप्रिय और शक्तिशाली अखबार इसीलिए बन गया है कि वह निष्पक्ष है और प्रामाणिक है। यदि उसने कोरोना के दौरान सरकारों की लापरवाहियों को उजागर किया है तो ऐसा करके उसने सरकार का भला ही किया है। उसने उसे सावधान करके सेवा के लिए प्रेरित ही किया है। यदि उसने गुजरात की भाजपा सरकार की पोल खोली है तो उसने राजस्थान की कांग्रेस सरकार को भी नहीं बख्शा है।

भास्कर के पत्रकार और मालिक अपनी प्रखर पत्रकारिता के लिए विशेष सम्मान के पात्र हैं। संत कबीर के शब्दों में 'निदंक नियरे राखिए, आंगन-कुटी छबाय'! भास्कर के साथ उल्टा हुआ। भाजपा सरकारों ने उसे विज्ञापन देने बंद कर दिए। मैं भास्कर को सरकार का अंध विरोधी या अंध-समर्थक अखबार नहीं मानता हूं। पिछले 40 साल से मेरे लेख भास्कर में नियमित रुप से छप रहे हैं लेकिन आज तक किसी संपादक ने एक बार भी मुझसे नहीं कहा कि आप सरकार की किसी नीति का समर्थन या विरोध क्यों कर रहे हैं।

भास्कर में यदि कांग्रेस के बुद्धिजीवी नेताओं के लेख छपते हैं तो भाजपा के नेताओं को भी उचित स्थान मिलता है। भास्कर पर डाले गए इस सरकारी छापे से सरकार को नुकसान और भास्कर को फायदा ही होगा। भास्कर की पाठक-संख्या में अपूर्व वृद्धि हो सकती है।

(लेखक, नवभारत टाइम्स और पीटीआई 'भाषा' के लंबे समय तक संपादक रह चुके हैं।)

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Shreya

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