Health Special : भारत में शारीरिक निष्क्रियता का बढ़ना चिन्ताजनक

Health Special : भारत में बढ़ती शारीरिक अकर्मण्यता एवं आलसीपन एक समस्या के रूप में सामने आ रहा है, लोगों की सक्रियता एवं क्रियाशीलता में कमी आना एवं वयस्कों में शारीरिक निष्क्रियता का बढ़ना चिन्ता का सबब है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 1 July 2024 10:09 AM GMT
Health Special : भारत में शारीरिक निष्क्रियता का बढ़ना चिन्ताजनक
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Health Special : भारत में बढ़ती शारीरिक अकर्मण्यता एवं आलसीपन एक समस्या के रूप में सामने आ रहा है, लोगों की सक्रियता एवं क्रियाशीलता में कमी आना एवं वयस्कों में शारीरिक निष्क्रियता का बढ़ना चिन्ता का सबब है। इस दृष्टि से प्रतिष्ठित लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल की वह हालिया रिपोर्ट आईना दिखाने वाली है जिसमें पचास फीसदी भारतीयों के शारीरिक श्रम न करने का उल्लेख है। महिलाओं की स्थिति ज्यादा चिंता बढ़ाने वाली है। उनकी निष्क्रियता का प्रतिशत 57 है। वैसे अकेले पुरुषों की निष्क्रियता का प्रतिशत 42 है। इस अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि अगर वर्तमान में तेजी से पसर रहा आलसीपन एवं शारीरिक निष्क्रियता इसी तरह जारी रहा तो 2030 तक भारत में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता वाले वयस्कों की संख्या बढ़कर साठ प्रतिशत तक पहुंच जायेगी, जो चिन्ताजनक है।

लैंसेट ग्लोबल हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आधी वयस्क आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शारीरिक गतिविधि संबंधी मानदंडों को पूरा नहीं कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के वयस्कों में अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता का पैमाना 2000 में 22.3 फीसदी से बढ़कर 2022 में 49.4 फीसदी हो गई है, साथ ही इसमें बताया गया है कि देश में महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा शारीरिक रूप से ज्यादा निष्क्रिय हुई हैं। इस निष्क्रियता, आलसीपन एवं उदासीनता का कारण बढ़ते उपभोक्तावाद एवं शहरीकरण से उपजी सुविधावादी एवं आरामदायक जीवनशैली है। इसके कारण बीमारियां भी बढ़ रही है। क्योंकि जब व्यक्ति को सुस्त, निढ़ाल एवं निस्तेज देखा जाता है तो इसका सीधा अर्थ यही लगाया जाता है कि शायद उसकी तबीयत ठीक नहीं है। विडम्बना यह भी है कि समय के साथ विस्तृत होने दायरे के बीच ज्यादातर लोगों की व्यस्तता तो बढ़ी है, मगर उनकी शारीरिक सक्रियता, उत्साह एवं जोश में तेजी से कमी आई है, जो नये बनते भारत एवं सशक्त भारत के निर्माण के संकल्प के सामने एक बड़ी चुनौती है।


भविष्य के भारत को लेकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की साठ प्रतिशत आबादी अगर शारीरिक रूप से पर्याप्त सक्रिय नहीं रहे तो आने वाले वक्त में यहां की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रूप से कैसी तस्वीर बनेगी। जिस देश की अधिकांश आबादी के सामने रोजी-रोटी की समस्या जटिल एवं अहम है, वहां के लोगों को जीवन चलाने के लिये शारीरिक रूप से जरूरत से ज्यादा सक्रिय रहते हुए श्रम करना पड़ता है। इन स्थितियों में बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि भारत में ऐसे हालात कैसे पैदा हो रहे हैं कि यहां इतनी बड़ी आबादी सुस्त एवं आलसी होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित शोधकर्ताओं का मानना है कि भारत एशिया प्रशांत में उच्च आय वर्ग वाले देशों में निष्क्रियता के क्रम में दूसरे स्थान पर है।

निस्संदेह, लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल की हालिया रिपोर्ट आंख खोलने वाली है, रिपोर्ट गंभीर चिन्तन-मंथन की आवश्यकता को भी उजागर कर रही है।। यह जानते हुए भी कि भारत लगातार मधुमेह और हृदय रोग जैसी बीमारियों में जकड़ता हुआ बीमार राष्ट्र बनता जा रहा है। इन असाध्य बीमारियों का कारण कहीं-न-कहीं श्रम की कमी एवं सुविधावादी जीवनशैली ही है। दरअसल, आजादी के बाद देश में आर्थिक विकास को गति मिली है। अब हम दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। औसत भारतीय के जीवन स्तर में सुधार जरूर आया है तो आम नागरिक का जीवन सुविधावादी भी बना है। इस संकट की वजह शहरीकरण और जीवन के लिये जरूरी सुविधाओं का घर के आस-पास उपलब्ध हो जाना भी है, आनलाइन प्रचलन भी बड़ा कारण बन रहा है। पहले देश की साठ फीसदी से अधिक आबादी कृषि व उससे जुड़े श्रमसाध्य कार्यों में सक्रिय थी। लेकिन अब मेहनतकश किसान को कोई शारीरिक श्रम करने की जरूरत नहीं पड़ती है, कृषि की ही तरह अन्य श्रम से जुड़े कार्यों में भी मेहनत एवं श्रम पहले ही तुलना में कम करना पड़ता है क्योंकि धीरे-धीरे कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में आधुनिक यंत्रों व तकनीकों ने शारीरिक श्रम की महत्ता को कम किया है।


कृषि-क्रांति से बड़ी संख्या में निकले लोगों ने शहरों को अपना ठिकाना बनाया, लेकिन वे शारीरिक सक्रियता को बरकरार नहीं रख पाये। इन स्थितियों ने भी व्यक्ति को आलसी, अकर्मण्य एवं सुस्त बनाया है। इस शारीरिक निष्क्रियता के मूल में भारतीय पारिवारिक संरचना व सांस्कृतिक कारण भी हैं। घर-परिवार संभालने वाली महिलाओं में भी बढ़ते सुविधा के साधनों के कारण श्रमशीलता कम हुई है। कुछ दूर पर सब्जी-फल लेने जाने पर भी हम वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि शहरों में स्वास्थ्य चेतना का विकास नहीं हुआ, लेकिन इसके बावजूद शहरों के पार्कों में सुबह गिने-चुने लोग ही नजर आते हैं। व्यक्तियों में प्रातः भ्रमण, योग, ध्यान, व्यायाम की गतिविधियों में भी कमी देखने को मिल रही है।

इस जटिल से जटिलतर होती समस्या से मुक्ति के लिये हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। खुद को छोटी-मोटी असुविधाओं के लिए तैयार करना होगा। कभी-कभार थोड़ा कम नींद लेने, कम खाने या फिर ज्यादा देर काम कर लेने की मानसिकता को बल देना होगा। जरा सी चुनौती सामने आने पर बेचैन न हों, उसे नया सीखने के मौके व नए अनुभव के रूप में देखना होगा। अक्सर जब कुछ नया करने के लिए कदम बढ़ाते हैं, तो पुरानी आदतें एवं आराम की मानसिकता तुरंत परीक्षा लेने आ जाती हैं। हमें ललचाती हैं या फिर खुद को थोड़ा ढील देने के लिए कहती हैं। मन भी खुद को बड़ी आसानी से समझाने लगता है कि कुछ देर और सो जाने, और मीठा खा लेने, फोन पर बात करने या काम को कल पर टालने से कुछ गड़बड ़नहीं होगा। कुल मिलाकर हम मन के बहकावे में आने लगते हैं और खुद को छूट देने लगते हैं जो हमें सुस्त, आलसी एवं निस्तेज बनाता है।

विचित्र स्थिति यह भी है कि लोगों में व्यस्तता में एक अजीब किस्म की बढ़ोतरी हुई, जीवन व्यस्त से ज्यादा अस्त-व्यस्त हुआ है। जरूरी कामों को छोड़कर तमाम लोग रोजाना पांच से सात घंटे या इससे भी ज्यादा समय अपने स्मार्टफोन या अन्य तकनीकी संसाधनों, सोशल मीडिया एवं अन्य आभासी मंचों पर समय बर्बाद करते हैं। कोरोना महामारी के दौरान वर्क फरोम हॉम का प्रचलन बढ़ा, उसने भी लोगों को ज्यादा शिथिल होने में भूमिका निभाई है। देर राज तक जगना एवं सुबह देर तक सोना, इस तरह बिगड़ती दिनचर्या एवं शरीर की प्राकृतिक घड़ी का चक्र बिगड़ने से दिन भर आलस्य बना रहता है। ताजा अध्ययन में पता चला कि 195 देशों में भारत अपर्याप्त शारीरिक सक्रियता के मामले में 12वें स्थान पर है।


इसके अलावा, लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर एक तिहाई वयस्क लगभग 1.8 बिलियन लोग 2022 में अनुशंसित शारीरिक सक्रियता को पूरा करने में विफल रहे। जिसके कारण मधुमेह एवं हृदय रोग का खतरा मंडरा रहा है। भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में महिलाओं में अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि चिंता का विषय बनी हुई है। क्योंकि वे पुरुषों की तुलना में 14-20 फीसदी से अधिक पीछे हैं। अध्ययन के अनुसार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में महिलाएं अधिक सक्रिय हैं। भारत में बढ़ती शारीरिक निष्क्रियता, आलसीपन एवं सुस्ती को दूर करने के लिये समग्र जन-चेतना को जगाना होगा। सरकार को भी शारीरिक श्रम की योजनाओं को बल देना होगा। शारीरिक सक्रियता में कमी की वजहों और नतीजों पर अगर गौर नहीं किया गया तो इन सबका समुच्चय आखिर व्यक्ति को विचार, कर्म, शरीर से कमजोर ही नहीं बल्कि बीमार बनायेगा, जो आजादी के अमृतकाल को धुंधलाने का बड़ा कारण बन सकता है।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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