×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

इंदर गुजराल का सौंवा साल

श्री इंदर गुजराल आज जिंदा होते तो हम उनका सौंवा जन्मदिन मनाते। वे मेरे घनिष्ट मित्र थे। वे भारत के प्रधानमंत्री रहे, सूचना मंत्री रहे और मुझे याद पड़ता है कि वे दिल्ली की नगरपालिका के भी सदस्य रहे।

Shreya
Published on: 5 Dec 2019 10:02 AM IST
इंदर गुजराल का सौंवा साल
X
इंदर गुजराल का सौंवा साल

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

श्री इंदर गुजराल आज जिंदा होते तो हम उनका सौंवा जन्मदिन मनाते। वे मेरे घनिष्ट मित्र थे। वे भारत के प्रधानमंत्री रहे, सूचना मंत्री रहे और मुझे याद पड़ता है कि वे दिल्ली की नगरपालिका के भी सदस्य रहे। उनसे मेरा परिचय अब से लगभग 50 साल पहले हुआ, जब वे इंदिराजी की सरकार में मंत्री थे। सोवियत रुस का सांस्कृतिक दूतावास बाराखंभा रोड के कोने पर हुआ करता था।

वहां गुजराल साहब का भाषण था। मैं उन दिनों बाराखंभा रोड स्थित सप्रू हाउस में रहता था और अंतराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. कर रहा था। मैं भी पहुंचा वहां। देखा कि रुसी कामरेड लोग रुसी भाषा में भाषण दे रहे हैं लेकिन गुजराल साहब अंग्रेजी में बोलने लगे। मैंने खड़े होकर कहा कि वे अपनी राष्ट्रभाषा में बोल रहे हैं। आप अपनी राष्ट्रभाषा में क्यों नहीं बोलते ? उसी दिन उनसे मेरा परिचय हो गया।

धीरे-धीरे यही परिचय दोस्ती में बदल गया। गुजराल साहब एक दिन अपनी फिएट कार में बिठाकर मुझे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ले गए। मेरी अनिच्छा के बावजूद उन्होंने मुझे ‘सटेरडे लंच ग्रुप’ का सदस्य बनवा दिया। इस ग्रुप में देश और विदेश की ज्वलंत समस्याओं पर इतना गहरा विचार-विमर्श होता है कि किसी भी सरकार के मंत्रिमंडल को इससे ईर्ष्या हो सकती है। इसका कारण है इसमें विभिन्न विषयों के उत्कृष्ट विशेषज्ञों के अलावा हमारे कई मंत्री, नेता, सेवा-निवृत्त सेनापति, राजदूत, नौकरशाह, प्रोफेसर, पत्रकार आदि होते हैं।

इसमें होनेवाले विचार-विमर्श को गोपनीय रखा जाता है। इस ग्रुप की पहली सीट गुजराल साहब के लिए और उसके पासवाली मेरे लिए लगभग आरक्षित-सी ही रहती थी। उनकी पत्नी शीलाजी अच्छी लेखिका थी। वे आर्यसमाजी परिवार की थी। उनके भाई प्रेस एनक्लेव में मेरे पड़ौस में ही रहते थे। इंदरजी और शीलाजी, दोनों ही शिष्टता की प्रतिमूर्ति थे। इंदरजी मास्को में हमारे राजदूत भी रहे।

नरसिंहरावजी के जमाने में मैं अपने मित्र पूर्व अफगान प्रधानमंत्री बबरक कारमल से मिलने मास्को गया। गुजराल साहब बाहर थे लेकिन उन्होंने और शीलाजी ने मेरे लिए सारी सुविधाएं जुटा दीं। जब वे देवगौड़ाजी के साथ विदेश मंत्री थे, तब देवेगौड़ाजी मुझे अपने साथ ढाका ले गए थे। गुजराल साहब ने आगे होकर सभी बांग्लादेशी नेताओं से मेरा परिचय करवाया।

जब गुजराल साहब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मुझे राजदूत पद लेने के लिए भी कहा। उस दौरान ‘दूरदर्शन’ पर सप्ताह में दो-तीन बार राजनीतिक विश्लेषण के लिए मुझे नियमित बुलाया जाता रहा। मैंने एक-दो बार उनकी विदेश नीति की आलोचना भी की लेकिन उन्होंने उसका कभी बुरा नहीं माना। उनसे हर मुद्दे पर हमेशा खुलकर विचार-विमर्श होता था। उनके और शीलाजी के व्यवहार में मैने रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं देखा।

जिस दिन उन्होंने इस्तीफा दिया, उसी दिन प्रधानमंत्री निवास भी खाली कर दिया। वे मूलतः बुद्धिजीवी थे। वे हमारे नेताओं की तरह नेता नहीं थे। वे प्रधानमंत्री भी अचानक ही बने थे। यदि वे लंबे समय तक टिक जाते तो हमारे पड़ौसी देशों के साथ हमारे संबंध शायद बहुत अच्छे हो जाते। उनके सौवें जन्मदिन पर उन्हें मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।



\
Shreya

Shreya

Next Story