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India-Bangladesh Relations: क्यों भारत चाहता है बांग्लादेश में शेख हसीना की वापसी ?

India-Bangladesh Relations: भारत ने शेख हसीना को विगत सितंबर के महीने में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में मित्र देश के रूप में आमंत्रित किया था। हालांकि बांग्लादेश जी-20 का सदस्य देश तो नहीं है, पर भारत ने बांग्लादेश को मेजबान तथा जी-20 के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित करके साफ संकेत दे दिया था कि वह पड़ोसी मित्र देश को बहुत अहमियत देता है।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 22 Nov 2023 12:42 PM IST (Updated on: 22 Nov 2023 12:44 PM IST)
India Bangladesh Relations Story PM Sheikh Hasina Political History
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India Bangladesh Relations Story PM Sheikh Hasina Political History

India-Bangladesh Relations: पड़ोसी देश बांग्लादेश में 12वां संसदीय चुनाव 7 जनवरी, 2024 को होगा और जाहिर तौर पर भारत की इन चुनावों पर करीबी नजर रहने वाली है। बांग्लादेश में नई संसद के चुनाव की घोषणा के साथ ही स्वाभाविक रूप से राजनीतिक तनाव और उपद्रव भी शुरू हो गए हैं। प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी ने मांग की है कि चुनाव एक गैर-पार्टी अंतरिम सरकार की निगरानी में हों। इसके नेता और कार्यकर्ता प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के इस्तीफे की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं। शेख हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग ने विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया है और कहा है कि चुनाव शेख हसीना के नेतृत्व में ही होंगे। इस बीच, भारत की तो चाहत होगी कि अगले चुनाव में भी अवामी पार्टी को सफलता मिले। इसमें कोई शक नहीं है कि शेख हसीना भारत के प्रति कृतज्ञता का भाव रखती हैं और भारत भी उन्हें हर संभव सहयोग देता रहता है। शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से दोनों देशों के बीच बहुआयामी संबंध मजबूत हो रहे हैं, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों और आपसी विश्वास और समझ पर आधारित है।

भारत ने शेख हसीना को विगत सितंबर के महीने में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में मित्र देश के रूप में आमंत्रित किया था। हालांकि बांग्लादेश जी-20 का सदस्य देश तो नहीं है, पर भारत ने बांग्लादेश को मेजबान तथा जी-20 के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित करके साफ संकेत दे दिया था कि वह पड़ोसी मित्र देश को बहुत अहमियत देता है।


बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हमेशा इस तथ्य को माना है कि भारत ने बांग्लादेश की आजादी में महत्वपूर्ण रोल निभाया था। शेख हसीना के लिए भारत की राजधानी नई दिल्ली तो अपने दूसरे घर की तरह की है। उन्होंने यहां सन 1975 से 1981 के दौरान निवार्सित जीवन गुजारा था। तब उनके साथ उनके पति डॉ.एम.ए.वाजेद मियां और उनके दोनों बच्चे भी थे। दरअसल शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक बंग बंधु शेख मुजीब-उर-रहमान, मां और तीन भाइयों का 15 अगस्त, 1975 को कत्ल कर दिया गया था ढाका में। उस भयावह कत्लेआम के समय शेख हसीना अपने पति और बच्चों के साथ जर्मनी में थीं। इसलिए उन सबकी जान बच गई थीं।

शेख हसीना के परिवार के कत्लेआम ने उन्हें बुरी तरह से झंझोड़ कर रख दिया था। वे टूट चुकी थी। तब भारत ने उन्हें राजनीतिक शऱण दी थी। बेशक, शेख हसीना के जीवन में दिल्ली का बहुत महत्व रहा है। यहां पर उनके पिता शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर एक सड़क भी है।


शेख मुजीब उर रहमान बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में केंद्रीय शख्सियत रहे थे। वे 10 जनवरी , 1972 को दिल्ली आए थे। तब उनका पालम हवाई अड्डे पर भव्य स्वागत हुआ था। उस दिन राजधानी में कड़ाके की सर्दी पड़ रही थीं। उन्होंने बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में भारत के सहयोग देने के लिए आभार व्यक्त किया था। उनका हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी सारी कैबिनेट ने स्वागत किया था। हवाई अड्डे पर दोनों देशों के राष्ट्रगान हुए। पालम हवाई अड्डे से लेकर राष्ट्रपति भवन तक के मार्ग पर हजारों दिल्ली वाले उनका हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे। उन्होंने कोलकाता के मौलाना आजाद कॉलेज से कानून की पढ़ाई की थी और वहां पर ही वे छात्र राजनीति में शामिल हुए थे।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत-बांग्लादेश संबंध वर्तमान समय में ठीक दिशा में बढ़ रहे हैं। सन 1947 में धर्म के नाम पर पाकिस्तान बना और 1972 में पाकिस्तान टूटा। उस टूट से निकला बांग्लादेश। पाकिस्तान में एक वर्ग बांग्लादेश से इस आधार पर नाराज रहता है कि उसने ‘टू नेशन थ्योरी’ को गलत साबित कर दिया। जो कभी एक थे, उनमें से एक की राह अलग है, शेष दो से। वर्तमान में पाकिस्तान के भारत और बांग्लादेश दोनों से ही संबंध बेहद ही तनावपूर्ण चल रहे हैं। कमोबेश सांकेतिक राजनयिक संबंधों के अलावा भारत और बांग्लदेश ने पाकिस्तान से दूरियां बनाई हुई हैं। बांग्लादेश फूटी नजर से भी नहीं देखता पाकिस्तान को। बांग्लादेश ने 1971 के नरसंहार के गुनाहगार और जमात-ए-इस्लामी के नेता कासिम अली को कुछ साल पहले फांसी पर लटकाया था। इस पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई। बांग्लादेश ने दो टूक शब्दों में सुना दिया था कि वह पाकिस्तान की ओर से उसके आतंरिक मसलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। दोनों मुल्कों के संबंधों में तल्खी को समझने के लिए गुजरे दौर के पन्नों को पलटना ठीक रहेगा।

शेरे-ए-बंगाल कहे जाने वाले मुस्लिम लीग के मशहूर नेता ए.के.फजल-उर- हक ने 23 मार्च, 1940 को लाहौर में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में पृथक राष्ट्र पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा था। उस तारीखी सम्मेलन में संयुक्त बंगाल के नुमाइंदों की बड़ी भागेदारी थी। वे सब भारत के मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र की मांग कर रहे थे।


सात साल के बाद 1947 में पाकिस्तान बना और फिर करीब 25 बरसों के बाद खंड-खंड हो गया। ईस्ट पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में दुनिया के मानचित्र पर सामने आया। यानी पाकिस्तान से एक और मुल्क निकला। अब दोनों एक-दूसरे की जान के प्यासे हो गए हैं। 1971 में जिस नृंशसता से पाकिस्तानी फौजों ने ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लाखों लोगों का कत्लेआम किया था, उसको लेकर ही दोनों मुल्क लगातार आमने-सामने रहते हैं। युद्ध संवाददाता के रूप में स्वयं नृशंसता का साक्षी रहा हूँ I शेख हसीना बांग्लादेश में उस कत्लेआम के गुनाहगारों को लगातार दंड दे रही हैं। कासिम को फांसी उसी कत्लेआम में शामिल होने के चलते मिली। जरा देखिए कि यह बात पाकिस्तान को गले नहीं उतर रही। याद रख लें कि शेख हसीना के रहते तो पाकिस्तान को बांग्लादेश घास डालने वाला नहीं है।

बहरहाल, भारत की चाहत है कि शेख हसीना बांग्लादेश में हिन्दुओं पर होने वाले हमलों पर भी रोक लगाए। उन्हें भी सम्मान पूर्वक स्वतंत्र जीवन यापन का अधिकार सुरक्षित करवायें I आपको याद होगा कि बांगलादेश में पिछले आम चुनावों में शेख हसीना की विजय के बाद भी अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गए थे। राजशाही, जौसोर, दीनाजपुर वगैरह शहरों में हिन्दुओं पर बहुत हमले हुए थे। शेख हसीना का आगामी आम चुनाव के बाद भी देश का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। उन्हें भारत के साथ संबंधों को मजबूती देते हुए अपने देश के हिन्दुओं के हितों का ध्यान देना होगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)



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