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Drug Addiction in India: कहाँ जाएगा ये ‘उड़ता समाज’?

India Drug Addiction Rate: इस चुनावी मौसम में जनता के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया पर रील्स और शॉर्ट्स के बीच आम युवा शक्ति की राजनीतिक जागरूकता की हालत का भी मंजर देखने को मिला है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 21 May 2024 7:00 AM GMT
Drug Addiction in India
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Drug Addiction in India

Drug Addiction in India: देश के सबसे बड़े चुनाव का मौसम चरम पर आने के बाद अब अवसान पर है। इस बार के चुनावी मौसम में तरह तरह के विस्मयकारी रंग दिखे, सोचने को मजबूर करने वाले भी और चिंता उत्पन्न करने वाले भी, सब कुछ दिखा। जो इन रंगों को देख न पाया, समझ न पाया उसके बारे में भी सोचने को मजबूर होने वाली बात है।

इस चुनाव में लोगों, खासकर युवाओं की समझ का अच्छा शाहकार हुआ। उस सोशल मीडिया पर जिसे अभिजात या जानकार या जागरूक यूजर्स वाला माना जाता है। वहां डाली गयी सामग्री और उन पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं और विचार देखने को मिले वह भी एक नई अंतर्दृष्टि रही है।

Photo- Social Media

वहीं, जनता के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया पर रील्स और शॉर्ट्स के बीच आम युवा शक्ति की राजनीतिक जागरूकता की हालत का भी मंजर देखने को मिला है। सोशल मीडिया से परे सड़कों पर युवाओं की समझ का पैमाना भी गलगोटिया यूनिवर्सिटी के छात्रों के एक हैरानी भरे प्रदर्शन से उजागर हुआ जो हास्य कम और विद्रूप ज्यादा था।

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राजनीतिक बयान – भाषण बाजी और घिसेपिटे राजनीतिक विश्लेषणों से लबरेज़ मीडिया में इन साइड – शो का उल्लेख बस आता-जाता सा रहा।

एक और महत्वपूर्ण बात भी बस सूचना के रूप में आ कर चली गयी। यह थी चुनाव के दौरान वोटों की खरीद-फरोख्त के लिए लगाये गए विभिन्न प्रकार के आईटमों की पकड़ा-पकड़ी। भारत के चुनाव आयोग ने शान से बताया है कि चुनाव का मौसम आने के दो महीनों के बीच करीब नौ हजार करोड़ रुपये कीमत की तरह तरह की चीजें पकड़ी गईं। इसे आयोग और उसके संग लगी सरकारी एजेंसियों की मुस्तैदी का प्रमाण बताया गया है, जोकि है भी। नौ हजार करोड़ की जब्ती वह भी सिर्फ दो महीनों में! हैरान करने वाली बात है। एक गरीब देश के लिए बहुत बड़ी रकम है। और अभी तो अंतिम आंकड़ा आना बाकी है क्योंकि अभी चुनाव खत्म नहीं हुआ है।

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इस जब्ती के अन्दर भी एक अलग हैरतअंगेज तथ्य है जो बस चार लाइनों में दब कर रह गया। वह है ड्रग्स की जब्ती। थोड़ी-मोड़ी नहीं बल्कि चार हजार करोड़ के करीब। कुल जब्ती का आधा हिस्सा सिर्फ ड्रग्स के खाते में है। शराब की जब्ती अलग है। वो तो सिर्फ 815 करोड़ रुपए की पकड़ी गई।

सो, बड़ा मुफीद सवाल बनता है कि क्या चुनाव में ड्रग्स की भी भूमिका है? क्या वोट के लिए लोगों को ड्रग्स के नशे का लालच दिया जाता है? उन्हें नशे में डुबो दिया जाता है? सवाल यह भी है कि क्या ड्रग्स के नशे में गिरफ्त इंसान ढंग से ईवीएम का बटन भी पहचान पायेगा?

तो फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि चुनाव के समय जांच, धरपकड़ और तलाशी बढ़ने की वजह से वो चीजें भी पकड़ी जा रही हैं जिनकी आमद लगातार होती है और अब मौसमी सतर्कता के चलते इत्तेफाकन पकड़ ली गईं हैं?

चुनाव तो पूरे देश में हैं । लेकिन ड्रग्स की ज्यादातर जब्ती खासकर गुजरात, राजस्थान और पंजाब में ही हुई है। तीनों सीमावर्ती राज्य हैं। पाकिस्तान से लगती हुई सीमा है। गुजरात में तो सिर्फ तीन दिनों में 892 करोड़ रुपये की तीन हाई वैल्यू वाली ड्रग्स को जब्त किया गया है।

मामला गंभीर है। चार हजार करोड़ की ड्रग्स सिर्फ दो महीनों में! यानी औसतन एक दिन में 66 करोड़ से ज्यादा की ड्रग्स। साल भर का अनुमान निकालें तो 24 हजार करोड़ से ज्यादा! और जो पकड़ में नहीं आ सकी उसका क्या? उसका तो कोई अंदाज़ा ही नहीं, कुछ भी आंकड़ा सोच सकते हैं।

एशिया में ड्रग्स का कारोबार रिकॉर्ड लेवल पर

साल भर पहले, संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी की रिपोर्ट में बताया गया था कि एशिया में ड्रग्स का कारोबार रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया है और सिंथेटिक ड्रग्स की सप्लाई इतनी ज्यादा हो गई है कि इनकी कीमतें गिर गई हैं। 2021 में तो पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में सिंथेटिक ड्रग्स की एक अरब से ज्यादा टैबलेट पकड़ी गईं। इससे कई गुना ज्यादा तो पकड़ में ही नहीं आई होंगी।

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संयुक्त राष्ट्र के सपोर्ट वाले इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की 2018 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया था कि सदियों पुरानी भांग से लेकर ट्रामाडोल जैसी नई सिंथेटिक ओपिओइड और मेथामफेटामाइन जैसी डिजाइनर ड्रग्स तक, भारत अवैध ड्रग्स व्यापार के प्रमुख केंद्रों में से एक है। रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि एक जगह से दूसरी जगह ड्रग्स भेजने के लिए भारत एक प्रमुख जरिया बन चुका है।

तभी तो, खबरों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि पुडुचेरी से लेकर जम्मू कश्मीर, राजस्थान से लेकर असम, मिज़ोरम तक, जगह जगह से ड्रग्स की धरपकड़ की खबरें आती रहती हैं। सरकार ने तो साल भर पहले कहा था कि सन 47 तक भारत को ड्रग्स मुक्त कर दिया जाएगा। चिंता बहुत बड़ी है, तभी तो पंजाब की ड्रग्स समस्या एक राजनीतिक मसला बनता है और राज्य की स्थिति पर बॉलीवुड की ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म भी बनती – सराही जाती है। अब तो पंजाब से सटे हरियाणा के इलाकों को ‘उड़ता हरियाणा’ नाम दिया जाने लगा है।

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नशे की सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। स्मैकिये, गंजेड़ी, जैसी शब्दावली भी पुरानी पड़ चुकी है । अब तो मुम्बई के क्लबों, क्रूज़ जहाजों, फ़िल्मी पार्टियों, दिल्ली के फार्म हाउसों की रेव पार्टियों, गोवा के बीच रेस्तराओं वगैरह में नए नए नामों वाली सिंथेटिक ड्रग्स चलती हैं। कौन क्या कर रहा है, किस धंधे में है कुछ कहा नहीं जा सकता।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की एक पुरानी रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा था कि भारत में बढ़ती जनसंख्या और एकल परिवारों का सिस्टम देश के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में भी बदलाव ला रहा है। किसी भी तरह का नशा छोटे बच्चों और महिलाओं में भी बहुत तेजी से फैल रहा है।

सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि प्रत्येक 1000 में से 15 लोग नशीली ड्रग्स का सेवन करते हैं। लेकिन असली संख्या कहीं ज्यादा होने की आशंका है। यह संख्या बढती ही जा रही है।

दुनिया में नशा ऐसी समस्या बन चुका है जिसका समाधान अमीर से अमीर और विकसित देश तक नहीं ढूंढ पा रहे हैं। भारत में सरकार ने सन 2047 तक देश को नशा मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। कैसे हासिल होगा ये टारगेट? क्या जगह जगह कैंसर के अस्पताल खोल कर कैंसर को समाप्त करने की तर्ज पर नशा मुक्ति पाई जायेगी या बीमारी की जड़, उसके कारणों को ही खत्म करने की जुगत लगाई जायेगी? यह तो आयुर्वेद का देश हैं जिसमें लक्षणों की जगह समस्या को ही मूल से ख़त्म करने का सिद्धांत समाहित है, तो नशे की बीमारी में भी वही अप्रोच अपना पाएंगे? अभी तक तो उसकी शुरुआत नजर नहीं आती। चुनावी मौसम के करवट लेते ही ड्रग्स की धरपकड़ के ऐलान भी समाप्त हो जायेंगे।

ये हमारे – आपके परिवार, आस-पड़ोस, समाज की समस्या है। समाधान हमें ही निकलना पड़ेगा। राजनीतिक बहसों से फुर्सत मिले तो इस बारे में खुद सोचिये और अपने इर्दगिर्द विमर्श करिए। ये हमारे ही भविष्य का सवाल है।

(लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार।)

Shashi kant gautam

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