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भारत के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है ग्वालियर का किला
ग्वालियर। ग्वालियर शहर के सबसे सुन्दर और प्रमुख स्मारकों में से एक है ग्वालियर किला। लाल बलुए पत्थर से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता है। इस किले में पहुंचने के लिए आपको पैदल ही जाना होगा। क्योंकि यह किला एक ऊंचे पठार पर बना है जिस कारण वहां पैदल ही जाया जा सकता है। किले तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक ग्वालियर गेट कहलाता है और दूसरा गाडियां ऊरवाई गेट नामक रास्ते से चढ़ सकते हैं। यहां के रास्ते सकरें हैं।
इन रास्तों के आसपास बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की अतिविशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से गढ़ी गई हैं। किले की तीन सौ पचास फीट ऊंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं।
बहुत समृद्ध है ग्वालियर के किले का इतिहास
इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने किया जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था। इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है। किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया। इसके बाद इसपर प्रतिहार वंश ने राज किया। 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। 1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपनी अधीन किया लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया।
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गूजरी महल
पन्द्रहवीं शताब्दी में निर्मित गूजरी महल उनमें से एक है जो राजा मानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी के अमर प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है किन्तु आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती ईस्वी की हैं। ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं।
पिछले 1000 वर्षों से अधिक समय से यह किला ग्वालियर शहर में मौजूद है। भारत के सर्वाधिक दुर्भेद्य किलों में से एक यह विशालकाय किला कई हाथों से गुजरा। इसे बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर निर्मित किया गया है और यह मैदानी क्षेत्र से 100 मीटर ऊंचाई पर है।
किले की बाहरी दीवार लगभग 2 मील लंबी है और इसकी चौड़ाई 1 किलोमीटर से लेकर 200 मीटर तक है। किले की दीवारें एकदम खड़ी चढ़ाई वाली हैं।
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यह किला उथल-पुथल के युग में कई लड़ाइयों का गवाह रहा है साथ ही शांति के दौर में इसने अनेक उत्सव भी मनाए हैं। इसके शासकों में किले के साथ न्याय किया, जिसमें अनेक लोगों को बंदी बनाकर रखा। किले में आयोजित किए जाने वाले आयोजन भव्य हुआ करते हैं किन्तु जौहरों की आवाजें कानों को चीर जाती है।