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भारत-पाकः दो मुस्लिम सम्मेलन

India Pakistan: पिछले सप्ताह एक ही समय में दो सम्मेलन हुए। एक भारत में और दूसरा पाकिस्तान में। दोनों सम्म्मेलन मुस्लिम देशों के थे।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Chitra Singh
Published on: 21 Dec 2021 3:12 AM GMT
भारत और पाकिस्तान के बीच नाटकीय अंदाज में बढ़ते दोस्ताना संबंधों के पीछे एक रहस्य गहराया हुआ है।
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भारत पाकिस्तान के बीच नाटकीय अंदाज में बढ़ते दोस्ताना संबंधों के पीछे एक रहस्य गहराया हुआ है।

India Pakistan: पिछले सप्ताह एक ही समय में दो सम्मेलन हुए। एक भारत में और दूसरा पाकिस्तान में। दोनों सम्म्मेलन मुस्लिम देशों के थे। पाकिस्तान में जो सम्मेलन हुआ, उसमें दुनिया के 57 देशों के विदेश मंत्रियों और प्रतिनिधियों के अलावा अफगानिस्तान, रूस, अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया जबकि भारत में होने वाले सम्मेलन में मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम गणतंत्रों के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया। इन विदेश मंत्रियों ने इस्लामाबाद जाने की बजाय नई दिल्ली जाना ज्यादा पसंद किया। यों भी इस्लामाबाद के सम्मेलन में इस्लामी देशों के एक-तिहाई विदेश मंत्री पहुंचे।

पाकिस्तानी सम्मेलन का केंद्रीय विषय सिर्फ अफगानिस्तान था जबकि भारतीय सम्मेलन में अफगानिस्तान पर पूरा ध्यान दिया गया । लेकिन उक्त पांचों गणतंत्रों— कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिज़स्तान के साथ भारत के व्यापारिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक सहकार के मुद्दों पर भी संवाद हुआ। इस तरह का यह तीसरा संवाद है। इन पांचों विदेश मंत्रियों के पाकिस्तान न जाने को भारत की जीत मानना तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि इस सम्मेलन की तारीखें पहले से तय हो चुकी थीं। इस समय तो खेद की बात यह है कि इस्लामाबाद के सम्मेलन में भारत को नहीं बुलाया गया । जबकि चीन, अमेरिका और रूस आदि को भी बुलाया गया था।

याद रहे कि भारत ने जब अफगानिस्तान पर पड़ौसी देशों के सुरक्षा सलाहकारों का सम्मेलन बुलाया था तो उसमें पाकिस्तान और चीन, दोनों निमंत्रित थे । लेकिन दोनों ने उसका बहिष्कार किया। अफगान-संकट के इस मौके पर मैं पाकिस्तान से थोड़ी दरियादिली की उम्मीद करता हूं। पाकिस्तान भी भारत की तरह कह रहा है कि अफगानिस्तान में सर्वसमावेशी सरकार बननी चाहिए, उसे आतंकवाद का अड्डा नहीं बनने देना है और दो-ढाई करोड़ नंगे-भूखे लोगों की प्राण-रक्षा करना है। भारत ने 50 हजार टन अनाज और डेढ़ टन दवाइयां काबुल भिजवा दी हैं। उसने यह खिदमत करते वक्त हिंदू-मुसलमान के भेद को आड़े नहीं आने दिया। पाकिस्तान चाहे तो इस अफगान-संकट के मौके पर भारत-पाक संबंधों को सहज बनाने का रास्ता निकाल सकता है।

57 देशों के इस अफगान-सम्मेलन में भी इमरान खान कश्मीर का राग अलापने से नहीं चूके । लेकिन क्या वे यह नहीं समझते कि कश्मीर को भारत-पाक खाई बनाने की बजाय भारत-पाक सेतु बनाना दोनों देशों के लिए ज्यादा फायदेमंद है? यदि भारत-पाक संबंध सहज हो जाएं तो अफगान-संकट के तत्काल हल में तो मदद मिलेगी ही, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के राष्ट्रों के बीच अपूर्व सहयोग का एतिहासिक दौर भी शुरु हो जाएगा।

Chitra Singh

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