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Indian Population: जनसंख्या अच्छी भी-बुरी भी, फर्क सिर्फ नजरिए का

India Population 2022 Live: जनसंख्या भारत के लिए वरदान है या अभिशाप, यह धारणा और सवाल भी समानांतर रूप से चलते रहते हैं

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 6 Dec 2022 2:50 PM IST
India Population
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India Population (Photo - Social Media) 

Indian Population: # असम के आईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल ने एक भाषण में हिंदुओं को कम उम्र में शादी का मुस्लिमों वाला फार्मूला अपनाने की सलाह दी है। अजमल का कहना है कि मुसलमानों में जल्दी शादी हो जाती है, सो उनके ज्यादा बच्चे होते हैं। हिन्दू भी ऐसा करें तो उनके भी ज्यादा बच्चे होंगे।

विभाजन के लिए जनसंख्या असंतुलन जिम्मेदार

# राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बीते विजयादशमी के मौके पर कहा कि धर्म आधारित जनसंख्या के 'असंतुलन' का मामला नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमा में भी बदलाव होता है। ईस्ट तिमोर, दक्षिण सूडान तथा कोसोवो जनसंख्या में असंतुलन के कारण ही नए देश बने। जनसंख्या 'असंतुलन' की वजह से भारत ने गंभीर परिणाम भुगते हैं। संघ प्रमुख ने 1947 में भारत विभाजन के लिए धर्मों के बीच जनसंख्या में कथित असंतुलन को जिम्मेदार ठहराया।

जनसंख्या भारत के लिए वरदान या अभिशाप?

जनसंख्या को लेकर ये दो विचार हैं। इसी के साथ जनसंख्या भारत के लिए वरदान है या अभिशाप, यह धारणा और सवाल भी समानांतर रूप से चलते रहते हैं। कुछ कहते हैं कि भारत की जनसंख्या सभी समस्याओं की जड़ है। देश की ढेरों समस्याएं जो खत्म होने की बजाए बढ़ती ही जा रही हैं, उनके लिए जनसंख्या को ही जिम्मेदार मान लिया गया है। इस मत की विडंबना है कि लोग, जो खुद इसी वृहद आबादी का हिस्सा हैं, वे ही आबादी से नफरत करने लगे हैं। दूसरी ओर हम जनसंख्या को मानव संसाधन के दृष्टि से देखने की धारणा पर भी चले हैं। बहुत से एक्सपर्ट्स की राय रही है कि बड़ी आबादी समस्या नहीं, बल्कि मजबूती होती है। जनसंख्या का घनत्व देखें तो भारत का प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी का औसत 464 है। इजरायल का 426, जापान का 346, कोरिया का 531, सिंगापुर का 7919 है। इन देशों की प्रगति और विकास सबके सामने है। यहां जिक्र कर दें कि चीन सबसे बड़ी आबादी वाला देश है लेकिन लैंड एरिया विशाल होने के कारण जनसंख्या घनत्व 148.53 है।


बढ़ती आबादी का धार्मिक एंगल

पर इन सब के अलावा, इत्तेफाक से, आबादी का धार्मिक एंगल भी है। वह यह कि मुस्लिम बढ़ते जा रहे हैं, जबकि हिन्दू उतने ही हैं या कम हो रहे हैं। 2011 की गिनती के मुताबिक हिन्दू 79.80 फीसदी हैं, जबकि मुस्लिम 14.23 फीसदी हैं। यानी कोई 97 करोड़ हिंदू और 18 करोड़ मुस्लिम। देश में ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन की आबादी कुल आबादी की 6 फीसदी है। चूंकि 1951 में मुस्लिम 9.8 फीसदी ही थे, सो उनकी बढ़ती हुई आबादी चिंता पैदा करती है। यही वजह है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए मांग का निशाना मुस्लिम आबादी है। चूँकि लोकतंत्र का रिश्ता केवल संख्या से हैं। गण से है। गणतंत्र से है। इसलिए भी जनसंख्या जेरे बहस है।

चीन के बाद जनसंख्या के हिसाब से भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। अनुमान है कि भारत इस दशक के दौरान चीन से आगे निकल सकता है। पर चीन अपनी आबादी घटने की रफ्तार से चिंतित है और उसने हाल ही में अपने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को कम कर दिया है।


जनसंख्या पर राष्ट्रीय आयोग का अनुमान है कि 1991-92 में लगभग 2 फीसदी की तुलना में वर्तमान में जनसंख्या प्रति वर्ष लगभग 1 फीसदी बढ़ रही है। 1991 से हर साल आबादी में औसतन लगभग 17 मिलियन लोग जुड़ रहे हैं। यह नीदरलैंड की मौजूदा आबादी के बराबर है। पर पिछले कुछ वर्षों में, यह लगभग 14 मिलियन तक गिर गया है।

भारत के रजिस्ट्रार जनरल की नमूना पंजीकरण प्रणाली द्वारा 2018 में प्रजनन दर 2.2 अनुमानित की गई। 1990 में यह 4 थी। जनसंख्या संतुलन के लिए प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए। पिछले तीन दशक से भारत में जनसंख्या वृद्धि लगातार नीचे आ रही है। स्वतंत्रता के पहले दशक में, जनसंख्या में लगभग 21 फीसदी की वृद्धि हुई। 1961 और 1971 के बीच यह 24.8 फीसदी रही। 1971 और 1981 के बीच समान रही। लेकिन उसके बाद इसमें उत्तरोत्तर गिरावट आई। जबकि 1981 और 1991 के बीच जनसंख्या में 23.87 फीसदी की वृद्धि हुई। 1991-2001 में घटकर 21.54 फीसदी हो गई। पिछली जनगणना का अनुमान है कि जनसंख्या 2001 और 2011 के बीच 17.7 फीसदी बढ़ी है।

वर्ष 2019-21 के फैमिली हेल्थ सर्वे-5 में हिंदू महिलाओं की प्रजनन दर 2.29 मिली है। जबकि, मुस्लिम की 2.66, सिख की 1.45 तथा अन्य की 2.83 हो गई। अर्थात, वर्ष 2015-16 के मुकाबले वर्ष 2019-21 में हिंदू महिलाओं की प्रजनन दर में 0.38 और मुस्लिम की 0.44 की गिरावट हुई। जबकि सिख महिलाओं की प्रजनन दर में 0.07 और अन्य में 1.08 की बढ़ोतरी हुई है।

जातीय आधार पर स्थिति देखें तो अनुसूचित जाति में प्रजनन दर 3.09 से घटकर 2.57 रह गई है। इसी तरह, अनुसूचित जनजाति की 3.61 से घटकर 2.72, ओबीसी की 2.76 से 2.35 और सामान्य की 2.28 से घटकर 2.03 पर आ गई है। इस तरह सर्वाधिक 0.59 की गिरावट अनुसूचित जनजाति में हुई है। जबकि, सबसे कम 0.25 की सामान्य वर्ग में हुई है।

जनसंख्या वृद्धि गिरने का नतीजा यूरोप में सामने है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक इटली, स्पेन, पोलैंड और जर्मनी सहित यूरोप के 52 देशों में से आधे से अधिक में जनसंख्या में काफ़ी कमी आएगी। पांच देशों - बुल्गारिया, लातविया, लिथुआनिया, सर्बिया और यूक्रेन - में 20 फीसदी से अधिक की गिरावट का अनुमान है। लातविया जैसे देश में तो अभी से मूल लातवियाई लोग कम पड़ गए हैं।

एक बड़ी आबादी देश की सबसे बड़ी संपत्ति

इंसान अपने आप में अमूल्य निधि हैं। इसीलिए एक बड़ी आबादी देश की सबसे बड़ी संपत्ति साबित हो सकती है। एक बड़े राष्ट्र की चौतरफा प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि इसके सभी लोग विविध क्षेत्रों और अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों और कृषि, सेवा उद्योग, निर्माण और अन्य उद्योगों जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दें। एक देश बड़े पैमाने पर अपने प्रतिभाशाली, शिक्षित और उद्यमी जनशक्ति की ताकत पर आगे बढ़ता है। चीन, जापान और इज़राइल जैसे कई देशों ने इसे बार -बार साबित किया है।जापान और इज़रायल प्राकृतिक संसाधनों में गरीब हैं। पर इन देशों ने दिखाया है कि सामान्य आबादी को एक मूल्यवान मानव संसाधन में बदला जा सकता है। लेकिन यदि इसे बेकार जाने दिया तो किसी भी संपत्ति की तरह मानव संसाधन भी बर्बाद हो कर किसी काम नहीं आता।


इन हालातों में जनसंख्या को लेकर के जिस तरह संघ और बदरूद्दीन दो पक्ष रखते हैं। आमजन में भी जनसंख्या को लेकर वरदान या अभिशाप का मिथ चलता आ रहा हो, तब सरकार का भी इस विभ्रम का शिकार होना लाज़िमी है। तभी तो नरेंद्र मोदी के मंत्री प्रह्लाद पटेल जनसंख्या नियंत्रण क़ानून जल्द लाये जाने की मुनादी पीटते हैं, तो कभी इस क़ानून से किनाराकसी जैसा भी मंजर दिखता है। इंग्लैंड के महान अर्थशास्त्री थामे रॉबर्ट माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण का एक सिद्धांत दिया था। आज जब यह सिद्धांत फेल होता दिख रहा है, तब सरकार की दोहरी ज़िम्मेदारी हो जाती है कि वह गण की संख्या को न केवल नियंत्रित करे बल्कि गण में गुण का इस कदर रोपण करे कि हमारा गणतंत्र गुण तंत्र में तब्दील हो सके। लेकिन सब कुछ सरकारें ही नहीं कर सकतीं, ये बात यहां भी लागू होती है। सो बड़ी आबादी को कोसने वालों की भी यही समान जिम्मेदारी बनती है। नरेंद्र मोदी, लोगों के लिए जिन कर्तव्यों की बात करते हैं उनमें इस कर्तव्य को स्वयं ही शामिल कर लेना चाहिए और जितना जल्द हो उतना ही बेहतर।

( लेखक पत्रकार हैं।दैनिक पूर्वोदय से साभार)

Shreya

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