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Gender Gap Report 2022: जेंडर गैप इंडेक्स और हम

Gender Gap Report 2022: हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप 2022 रिपोर्ट आई है जिसमें भारत 146 देशों की सूची में 135वें स्थान पर है।

Dr. Neelam Mahendra
Published on: 18 July 2022 5:23 PM IST
Gender Gap
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Gender Gap। (Social Media)

Gender Gap Report 2022: हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप 2022 रिपोर्ट (Gender Gap Report 2022) आई है जिसमें भारत 146 देशों की सूची में 135वें स्थान पर है। यानी लैंगिक समानता के मुद्दे पर भारत मात्र ग्यारह देशों से ऊपर है। हमारे पड़ोसी देशों की बात करें तो हम नेपाल (98), भूटान (126) और बांग्लादेश (143) से भी पीछे हैं। बता दिया जाए कि ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में मुख्य तौर पर महिलाओं से जुड़े चार आयामों के आधार पर किसी देश का स्थान तय किया जाता है, उनकी शिक्षा एवं उसके अवसर, उनकी आर्थिक भागीदारी, उनका स्वास्थ्य और उनकी राजनीतिक अधिकारिता।

संयोग से यह रिपोर्ट उस समय आई है जब देश सावन माह में शिव जी की भक्ति से सरोबार है। देखा जाए तो यह परिदृश्य बड़ा विचित्र सा है कि यह देश शिवजी को तो पूजता है लेकिन उनके द्वारा दिए संदेश को आत्मसात नहीं कर पाता। क्योंकि महादेव वो देव हैं जो अर्धनारीश्वर के रूप में पूजे जाते हैं और यह बताते हैं कि स्त्री एवं पुरूष मिलकर ही पूर्ण होते हैं।

मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य

दरअसल, ऐसा माना जाता है कि ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य की बात होती है। और जब वो जन्म एक स्त्री के रूप में मिलता है तो वो परमसौभाग्य का विषय होता है। क्योंकि स्त्री ईश्वर की सबसे खूबसूरत वो कलाकृति है जिसे उसने सृजन करने की पात्रता दी है। सनातन संस्कृति के अनुसार संसार के हर जीव की भांति स्त्री और पुरुष दोनों में ही ईश्वर का अंश होता है लेकिन स्त्री को उसने कुछ विशेष गुणों से नवाजा है। यह गुण उसमें नैसर्गिक रूप से पाए जाते हैं जैसे सहनशीलता, कोमलता, प्रेम,त्याग, बलिदान ममता। यह स्त्री में पाए जाने वाले गुणों की ही महिमा होती है कि अगर किसी पुरुष में स्त्री के गुण प्रवेश करते हैं तो वो देवत्व को प्राप्त होता है लेकिन अगर किसी स्त्री में पुरुषों के गुण प्रवेश करते हैं तो वो दुर्गा का अवतार चंडी का रूप धर लेती है जो विध्वंसकारी होता है। किंतु वही स्त्री अपने स्त्रियोचित नैसर्गिक गुणों के साथ एक गृहलक्ष्मी के रूप में आनपूर्णा और एक माँ के रूप में ईश्वर स्वरूपा बन जाती है। हमारी सनातन संस्कृति में स्त्री और पुरूष को एक दूसरे का पूरक माना जाता है।

भारत में महिलाओं की स्थिति दुनिया के अन्य देशों की तुलना में काफी कमजोर ही नहीं बल्कि दयनीय

लेकिन जब ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स की रिपोर्ट आती है तो यह तथ्य सामने आता है कि इस देश में महिलाओं की स्थिति दुनिया के अन्य देशों की तुलना में काफी कमजोर ही नहीं बल्कि दयनीय है। क्योंकि इस देश में हम महिलाओं के अधिकारों और लैंगिग समानता की बात करते हैं तो हम मुद्दा तो सही उठाते हैं लेकिन विषय से भटक जाते हैं। मुद्दे की अगर बात करें, तो आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपने कदम रख रही हैं। धरती हो या आकाश आईटी सेक्टर (IT Sector) हो या मेकैनिकल समाजसेवा हो या राजनीति महिलाएं आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। और अपनी कार्यकुशलता के दम पर अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवा रही हैं। लेकिन यह तस्वीर का एक रुख है। तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि 2021 की एक सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आती है कि 37 प्रतिशत महिलाओं को उसी काम के लिए पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है। 85 फीसद महिलाओं का कहना है कि उन्हें पदोन्नति और वेतन के मामले में नौकरी में पुरुषों के समान अवसर नहीं मिलते। लिंक्डइन की इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार आज भी कार्य स्थल पर कामकाजी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। महिलाओं को काम करने के समान अवसर उपलब्ध कराने के मामले में 55 देशों की सूची में भारत 52 वें नम्बर पर है। इसे क्या कहा जाए कि हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस जैसे आयोजन करते हैं। ऐसे कार्यक्रमों में हम महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की बातें करते हैं लेकिन जब तनख्वाह, पदोन्नति, समान अवसर प्रदान करने जैसे विषय आते हैं तो हम 55 देशों की सूची में अंतिम पायदानों पर होते हैं।

जाहिर है कि जब इस मुद्दे पर चर्चा होती है तो अनेक तर्क वितर्कों के माध्यमों से महिला सशक्तिकरण से लेकर नारी मुक्ति औऱ स्त्री उदारवाद से लेकर लैंगिक समानता जैसे भारी भरकम शब्द भी सामने आते हैं। और यहीं हम विषय से भटक जाते हैं। क्योंकि उपरोक्त विमर्शों के साथ शुरू होता है पितृसत्तात्मक समाज का विरोध। यह विरोध शुरू होता है पुरुषों से बराबरी के आचरण के साथ। पुरुषों जैसे कपड़ों से लेकर पुरुषों जैसा आहार विहार जिसमें मदिरा पान सिगरेट सेवन तक शामिल होता है। जाहिर है कि तथाकथित उदारवादियों का स्त्री विमर्श का यह आंदोलन उदारवाद के नाम पर फूहड़ता के साथ शुरू होता है और समानता के नाम पर मानसिक दिवालियेपन पर खत्म हो जाता है।

हमें यह समझना चाहिए कि जब हम महिलाओं के लिए लैंगिग समानता की बात करते हैं तो हम उनके साथ होने वाले लैंगिग भेदभाव की बात कर रहे होते हैं। इस क्रम में समझने वाला विषय यह है कि अगर यह लैंगिग भेदभाव केवल महिलाओं द्वारा पुरुषों के समान कपड़े पहनने या फिर आचरण रखने जैसे सतही आचरण से खत्म होना होता तो अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे तथाकथित विकसित और आधुनिक देशों में यह कब का खत्म हो गया होता। लेकिन सच्चाई तो यह है कि इन देशों की महिलाएं भी अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं। दरअसल महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब हम महिला अधिकारों के लिए लैंगिग समानता की बात करते हैं तो उसके मूल में एक वैचारिक चिंतन होता है कि एक सभ्य और विकसित समाज अथवा परिवार अथवा एक व्यक्ति के रूप में महिलाओं के प्रति हमारा व्यवहार समान,हमारी सोच समान, हमारा दृष्टिकोण समान, समान कार्य के लिए उन्हें दिया जाने वाला वेतन पुरुष के समान और जीवन में आगे जाने के लिए उन्हें मिलने वाले अवसर समान रूप से उपलब्ध हों। जिस दिन किसी भी क्षेत्र में आवेदक अथवा कर्मचारी को उसकी योग्यता के दम पर आंका जाएगा ना कि उसके महिला या पुरुष होने के आधार पर, तभी सही मायनों में हम जेंडर गैप को कम ही नहीं बल्कि खत्म कर देंगे।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

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