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India China Trade: चीन पर घटानी ही होगी भारत की आत्मनिर्भरता

India China Trade: भारतीय सैनिकों ने चीनियों की कसकर भरपूर धुनाई की। लेकिन तवांग में चीन ने जो कुछ देखा वो तो महज एक झांकी है।

R.K. Singh
Report R.K. Singh
Published on: 17 Dec 2022 2:20 PM IST
India-China
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India-China (Pic: Social Media)

India China Trade: भारत के जाबांज सैनिकों ने पिछली 9 दिसंबर को चीन के गले में अंगूठा डाल दिया था। बात-बात पर धौंस जमाने वाले चीन को गलवान के बाद भारत ने तवांग में उसकी कायदे से अपनी औकात समझा दी। भारतीय सैनिकों ने चीनियों की कसकर भरपूर धुनाई की। लेकिन तवांग में चीन ने जो कुछ देखा वो तो महज एक झांकी है। जरूरत पड़ी तो भारत कसकर चीन को कसने के लिये तैयार है। पर यह कहना होगा कि भारत और चीन के बीच की जंग दुनिया की सबसे कठिन जंग होगी।

दोनों देशों ने आपस में समझौता कर रखा है कि बंदूक़ तो बंदूक़ कोई तलवार तक नहीं निकालेगा म्यान से। हाँ गदा युद्ध हो सकता है। मल्ल युद्ध हो सकता है। 1967 में नाथूला की जंग में चीन के चार सौ से अधिक सैनिक मारे गए थे । तब से चीन बंदूकबाज़ी से डरता है। भारत तो हमेशा से उदारमना है ही। गौतम बुद्ध और गांधी का देश भारत तो किसी से खुद तो पंगा लेता ही नहीं है। दूसरी तरफ़ मैकमोहन रेखा को चीन स्वीकार नहीं करता है। वैसे भी 1962 के बाद से चीन मैकमोहन रेखा के इस पार ही डटा हुआ है। अब तक लाइन आफ कंट्रोल (एलएसी), जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा भी कहते हैं, पर भी सहमति नहीं बन पाई है। एलएसी का मतलब ही है वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी जो जब जहाँ नियंत्रण कर ले।

अब भारत क्या करे? भारत ने भी गलवान की घटना के बाद नुकीली गदा बना लीं हैं। चीनी कँटीले तार वाले डंडे लेकर आते है और भारतीय लंबी गदा। दुर्योधन और भीम की तरह युद्ध होता है। फिर बाक़ायदा फ़्रीस्टाइल कुश्ती भी होती है। भारत ने अपने लंबे तगड़े जाट, सिख और राजपूत लगा रखे हैं, जो मल्ल युद्ध में चीनियों को फुटबॉल बना देते हैं। कभी-कभी पत्थरबाज़ी भी होती है। यह पाषाणकालीन युद्ध का एक आधुनिक नमूना है। अब मीडिया तमाम मिसाइलें और राफ़ेल की एक्सरसाइज़ दिखा रहा है, जिनका कोई मतलब नहीं है सिवाय नागरिकों का मनोबल ऊँचा करने के। जब गोली नहीं चला सकते तो मिसाइल कौन चलाएगा।

तो मानकर चलिए अभी भारत-चीन के बीच सरहद पर शांति की उम्मीद तो एक दूर की ही संभावना है। इसी तरह से सीमा विवाद भी हल होने में न जाने कितने साल या दशक लग जाएं। चीन हमारी डिप्लोमेसी की परीक्षा लेता ही रहेगा। हमें धैर्य से चलना होगा और हौल-हौले कदम बढ़ाने होंगे, एक दम वैसे ही जंगल में बाघ चलता है। लेकिन, जब ज़रूरत पड़े तो बाघ वाली छलांग भी लगनी होगी।

चीन भारत के लिए किसी असाध्य रोग से कम नहीं है। हमारी सुरक्षा के लिहाज से सबसे बड़ा खतरा है चीन। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने एक बार कहा था, 'भारत के लिए चीन सुरक्षा के लिहाज से बड़ा खतरा बन गया है और हजारों की संख्या में सैनिक और हथियार, जो देश ने हिमालय की सीमा को सुरक्षित करने के लिए भेजे थे, लंबे समय तक बेस पर वापस नहीं लौट सकेंगे। जनरल रावत ने चीन को लेकर कुछ ऐसा कहा कि चीन को बहुत कष्ट हुआ। तिलमिलाए चीन ने रावत के बयान पर कहा, 'भारत बिना किसी कारण के तथाकथित चीनी सैन्य खतरे पर अटकलें लगाते हैं, जो दोनों देशों के नेताओं के रणनीतिक मार्गदर्शन का गंभीर उल्लंघन है।'

चीन को लेकर भारत के दो रक्षामंत्री भी देश को आगाह कर चुके हैं। जॉर्ज फर्नांडिस ने चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था। पोखरण-2 परमाणु परीक्षण के बाद तत्कालीन एनडीए सरकार के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने दावा किया था कि भारत का चीन दुश्मन नंबर वन है। उनके अलावा पूर्व रक्षा मंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव भी मानते थे कि भारत का पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन है।

मुलायम सिंह यादव ने साल 2017 में डोकलाम विवाद के बाद लोकसभा में कहा था कि भारत के लिए सबसे बड़ा मसला पाकिस्तान नहीं, बल्कि चीन है। भारत की चीन से अपने सभी मसलों को प्रेम से सुलझाने की कोशिशें के बावजूद चीन सुधरने का नाम ही नहीं लेता। सच में बहुत ही बड़ा धूर्त देश है चीन। दुनिया को कोरोना से तबाह करने वाले देश से आप कोई मानवीय सोच की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।

तो भारत क्या करें? भारत को चीन पर से अपनी निर्भरता खत्म करनी होगी। केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार कहा था कि ''हमलोगों ने यह सख़्त स्टैंड लिया है कि अगर चीनी कंपनियां किसी ज्वाइंट वेंचर्स के ज़रिए भी हमारे देश में आना चाहती हैं तो हम इसकी इजाज़त नहीं देंगें।"

इस बीच, भारत की फार्मा कंपनियों की चीन पर निर्भरता सच कहें तो घोर शर्मनाक है। भारत का फार्मा सेक्टर हर साल देश-विदेश में अपने माल को बेचकर अरबों रुपए कमाता है, पर ये भी सच है कि हमारी सभी सरकारी और निजी क्षेत्र की फार्मा कंपनियां अपनी जेनेरिक दवाओं को बनाने के लिए क़रीब 85 फ़ीसदी एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (एपीआई) चीन से ही आयात करती है। एपीआई यानी कच्चा माल।

भारत में एपीआई का उत्पादन बेहद कम है और जो एपीआई भारत में बनाया जाता है उसके फ़ाइनल प्रोडक्ट बनने के लिए भी कुछ चीज़ें चीन से ही मांगानी पड़ती है। यानी भारतीय कंपनियां एपीआई के उत्पादन के लिए भी चीन पर निर्भर हैं। भारतीय फार्मा कंपनियों को अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा। क्या सिर्फ मुनाफा कमाने से ही कोई कंपनी महान हो जाती है? ये तो सिर्फ एक सेक्टर की बात है। कई अन्य सेक्टरों में हम चीन से मिलने वाले कच्चे माल पर ही निर्भर है। 135 करोड़ की आबादी वाले भारत को जगना ही होगा। भारत सिर्फ अपनी सेना के भरोसे ही चीन से नहीं लड़ सकता है। सारे भारत को, भारत के सभी नागरिकों को चीन से मिलकर लड़ना होगा। एक बार हम संकल्प ले लेंगे तो फिर बात बन ही जाएगी।

इस बीच, भारत-चीन संबंधों को लेकर दिया गया नेहरु-चाऊ हन लाई का पंचशील का सिद्दांत अब पूरी तरह निरर्थक लगता है। चीन ने पंचशील के सिद्धांत पर कभी अमल नहीं किया। हमने तो भारत की राजधानी नई दिल्ली में एक सड़क का नाम भी हमने पंचशील मार्ग रखा हुआ है। पंचशील शब्द मूलतः बौद्ध साहित्य व दर्शन से जुड़ा शब्द है। चौथी-पाँचवी शताब्दी के बौद्ध दार्शनिक बुद्धघोष की पुस्तक "विशुद्धमाग्गो" में "पंच शील" मतलब, पाँच व्यवहार की विस्तृत चर्चा है, जिस पर बौद्ध उपासकों को अनुसरण करने की हिदायत दी गई है। पंचशील में शामिल सिद्धांत थे राष्ट्रवाद, मानवतावाद, स्वाधीनता, सामाजिक न्याय और ईश्वरआस्था की स्वतंत्रता। इतना महत्वपूर्ण शब्द और सिद्दांत अब चीन के द्वारा बेमानी हो चुका है।

Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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