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चीन के चंगुल से बचा भारत: डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और वह चीन के चंगुल से बच निकला। पूर्वी एशिया के 16 देशों के संगठन (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) में यदि भारत हां में हां मिलाता रहता तो उसकी अर्थ व्यवस्था चौपट हो जाती।
नई दिल्ली: भारत ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और वह चीन के चंगुल से बच निकला। पूर्वी एशिया के 16 देशों के संगठन (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) में यदि भारत हां में हां मिलाता रहता तो उसकी अर्थ व्यवस्था चौपट हो जाती।
एसियान के 10 देशों और चीन, जापान, द.कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने बैंकाक में मिलकर फैसला किया है कि वे भारत समेत इन 16 देशों का मुक्त व्यापार का एक साझा बाजार बनाएंगे यानि यह दुनिया का सबसे बड़ा साझा बाजार होगा। विश्व व्यापार का एक-तिहाई हिस्सा इसी बाजार में होगा।
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चीन में मजदूरी सस्ती है: वैदिक
लगभग साढ़े तीन अरब लोग इन्हीं देशों में रहते हैं। इन देशों के बीच अब जो भी व्यापार होगा, उसमें से 90 प्रतिशत तक चीज़ें ऐसी होंगी, जिन पर कोई तटकर नहीं लगेगा।
वे एक-दूसरे से चीजें मंगाकर तीसरे देशों को भी निर्यात कर सकेंगे। भारत ने इस संगठन का बहिष्कार कर दिया, क्योंकि वह भारतीय बाजारों पर चीन का कब्जा नहीं होने देना चाहता है।
चीन में मजदूरी सस्ती है और उत्पादन पर सरकारी नियंत्रण है। वह अपने माल को खपाने के खातिर इतना सस्ता कर देगा कि उसके मुकाबले भारत के उद्योग-धंधों और व्यापार का भट्ठा बैठ जाएगा।
चीन का व्यापार अमेरिका से घट गया है: वैदिक
अभी तो चीन भारत को 60 अरब डाॅलर का निर्यात ज्यादा कर रहा है, यदि भारत इस समझौते को मान लेता तो यह घाटा 200-300 अरब तक चला जा सकता था।
चीन का व्यापार अमेरिका से आजकल बहुत घट गया है। अब उसके निशाने पर भारत ही है। भारत ने इस समझौते से हाथ धो लिये, इससे उसे ज्यादा नुकसान नहीं होगा, क्योंकि एसियान के कई देशों के साथ उसके द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते पहले से हैं और चीन से भी हैं।
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भारत के इस साहसिक कदम पर विपक्षी दल इसलिए आक्षेप कर रहे हैं कि कुछ मंत्रियों ने इस समझौते पर जरुरत से ज्यादा आशावादिता दिखा दी थी।
इस सारे मामले में अब भी आशा की किरण दिखाई पड़ रही है। वह यह है कि इन सभी देशों ने जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया है, उसमें भारत को समझाने-पटाने के दरवाजे खुले रखे हैं।
यहां मुझे यही कहना है कि भारत का उक्त कदम तात्कालिक दृष्टि से तो ठीक है लेकिन क्या हमारी सरकारें कभी अपनी शिथिलताओं पर भी गौर करेंगी ? क्या यह शर्म की बात नहीं है कि आजादी के 72 साल बाद भी हम इतने पिछड़े हुए हैं कि हम चीन के आर्थिक हमले से डरे रहते हैं ?
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