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Indian Agriculture : भारतीय कृषि में एमएसपी का बढ़ता प्रभाव

Indian Agriculture : कुल 23 फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य से आच्छादित हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल की बुआई के पहले कर दिया जाता है। ताकि किसान उचित निर्णय ले सके।

Prof M K Agarwal
Written By Prof M K AgarwalPublished By Shraddha
Published on: 14 Sep 2021 12:22 PM GMT
भारतीय कृषि में एमएसपी का बढ़ता प्रभाव
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भारतीय कृषि में एमएसपी का बढ़ता प्रभाव (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Indian Agriculture : भारत स्वतन्त्रता के पश्चात् से खाद्यान्न संकट से घिरता चला आया। इससे उबरने के लिए 1965 में जहां कृषि मूल्य आयोग का गठन किया गया। अगले वर्ष ही हरित क्रान्ति की शुरूआत की गई। किन्तु इस समय तक भारत में कृषि उत्पादन विशेष रूप से खाद्यान्न, तिलहन आदि फसलों की बाजार कीमतों में व्यापक अनिश्चितता के कारण किसानों को हानि उठानी पड़ती थी। इस कारण कृषि मूल्य आयोग ने कुछ चयनित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करना प्रारम्भ किया। इसका उददेश्य यह था कि यदि बाजार में कृषि उत्पादों की कीमतें बहुत कम हो जाती हैं तो सरकार चयनित फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य( एमएसपी ) पर खरीद लेगी। यद्यपि यह निश्चित नही था कि कितनी खरीद होगी। फिर भी इससे किसानों में अनिश्चितता का धुंध कम हुआ क्योंकि अब वे कमोवेश आश्वस्त थे कि उनकी उपज की लागत तो मिल ही जाएगी।

धीरे-धीरे कृषि उत्पादन बढ़ने लगा और कुछ अन्य फसलें भी एमएसपी के दायरे में आ गई। वर्तमान में कुल 23 फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य से आच्छादित हैं। इन सभी का न्यूनतम समर्थन मूल्य अब फसल की बुआई के पहले कर दिया जाता है। ताकि किसान उचित निर्णय ले सके। पहले प्रायः एमएसपी का निर्धारण फसलों की बुआई के बाद किया जाता था, जिस पर किसानों को आपत्ति रहती थी। यह विगत कुछ वर्षो की एक अहम पहल है जिसे बेहतर कृषि सुशासन व रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है।

गेंहूं की फसलें हुई खराब (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)


कृषि लागत तथा मूल्य आयोग


अब परिवर्तित नामद्ध कृषि मूल्य को निर्धारित करते समय अब उसके उत्पादन पर होने वाली लागत को भी ध्यान में रखता है। आज कुल 23 फसलें ऐसी हैं जिन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है। इसमें प्रमुख रूप से गेहूं और धान या चावल है। हालांकि सूची में मोटे अनाज, दालें, तिलहनी फसलें आदि भी शामिल हैं। लेकिन मुख्य संघर्ष व चिन्ता गेहूं व धान को लेकर है क्योकिं इनका ही उत्पादन सर्वाधिक है । इनकी कीमतें ही निम्न स्तर पर बनी रहती हैं। हरित क्रान्ति का सही इस्तेमाल न होने से भारतीय कृषि कुष्ठा व हानि का विषय बन गया है । वह चाहे आधारभूत संरचना का विकास हो या फिर गैर कृषि क्षेत्रों द्वारा कृषि को सहयोग की बात हो। इससे भी ज्यादा चिन्ता की बात यह है कि कृषि लागतों में लगातार तेजी से वृद्धि हो रही है। ऐसा शायद इस लिए भी हो रहा है क्योकि हमने कोई ठोस कृषि नीति ही नहीं बनाई। अब वर्तमान सरकार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रही है।

कृषि हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने के लिए तीन प्रकार की लागतों को शामिल किया जाता है। इनमें शामिल है कृषि उत्पादन में आवश्यक अंगों जैसे बीज, खाद, पानी, बिजली आदि। इसके अतिरिक्त घरेलू श्रम की कीमत भी शामिल की जाती है। तीसरी लागत पूंजीगत लागत व किराया इत्यादि है। अभी तक केवल इन्हीं को आच्छादित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाता था। ऐसे में किसान को लाभ तो दूर की बात, उसको लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता था। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति जर्जर होने लगी। कम उत्पादन करें या अधिक उत्पादन करें, दोनों ही स्थितियों में घाटा होता था। यद्यपि पहली स्थिति में कम उत्पादन के कारण तथा दूसरी स्थिति में अधिक उत्पादन के कारण कृषि मूल्यों में गिरावट के कारण।

कृषि तथा कृषकों की आर्थिक खुशहाली के लिए वर्तमान सरकार ने कई महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ किए हैं । इनमें से अनेकों धरातल पर भी दिखने लगे हैं। इनमें से एक महत्वाकाक्षी परियोजना है किसानों की आय को दोगुना करना। इसके लिए एक वृहत् कार्य योजना पर कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है। इसी में से एक है न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना करना। मोदी सरकार ने अपने 2018-19 के बजट में कृषि उत्पादन लागत के सापेक्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना करने की घोषणा की है। इसी के अनुरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य से आच्छादित फसलों की खरीद कीमत में तेजी से वृद्धि हुयी है। एक बानगी के तौर पर यदि हम देखते हैं तो पता चलता है कि एमएसपी में तीव्र वृद्धि के कारण खरीफ 2020-21 की लगभग सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उनके उत्पादन लागत की तुलना में 50 प्रतिशत या अधिक बढ़ाकर निर्धारित किया गया है। उदाहरण के तौर पर धान (सामान्य), ज्वार, मूंगफली, रागी, सोयाबीन का मूल्य लागत का डेढ गुना तय किया गया था। जबकि बाजरा में 83 प्रतिशत अतिरिक्त व उड़द में 64 प्रतिशत अधिक बढ़त से कीमत तय किया गया था।

कई फसलों को लेकर किसान को नुकसान का सामना करना पड़ा (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)


वर्ष 2.017-18 में सामान्य धान का एमएसपी 1550 रूपये प्रति किन्टल था, जो 2020-21 में 1868 रूपये हो गया। इसी प्रकार गेहू का एमएसपी 2017-18 में 1735 रूपये था जो 2020-21 में बढ़कर 1975 रूपये प्रति किन्टल हो गया। सभी फसलों में इसी प्रकार से या इससे भी ज्यादा की वृद्धि करके किसानों को लाभान्वित करने का प्रयास किया जा रहा है। आज के दिन भारत में गेहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गेहू के मूल्य से ज्यादा है। मोदी सरकार ने 2020-21 के एमएसपी की घोषणा करके किसानों में निश्चितता का वातावरण बनाने का प्रयास किया है। यही नही सरकार ने अपने इरादों व घोषणाओं के अनुरूप एमएसपी के अन्तर्गत खरीद में भी व्यापक वृद्धि विगत कुछ वर्षों में करके किसानों के हितों को मजबूत करने का कार्य किया है।

कुल मिलाकर विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान सरकार ने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के तमामों प्रयास प्रारम्भ किए हैं। इसके अन्तर्गत न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत के सापेक्ष डेढ़ गुना करने का अपना आश्वासन पूरा किया है। साथ ही एमएसपी के अन्तर्गत खरीद को भी काफी बढ़ा दिया है। अब एमएसपी का मूल आधार एक प्रकार से बदलकर लाभकारी मूल्य के रूप में सामने आ रहा है।

(लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।)

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