TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

सामाजिक समरसता के प्रेरक और राष्ट्र पुरुष डॉ. अम्बेडकर

सामाजिक समता, न्याय, सामाजिक अभिसरण जैसे समाज परिवर्तन के मुद्दों को प्रधानता दिलाने वाले विचारवान नेता थे डा. अंबेडकर।

Mrityunjay Dixit
Written By Mrityunjay DixitPublished By Ashiki
Published on: 12 April 2021 5:37 PM IST (Updated on: 12 April 2021 6:15 PM IST)
Dr. Bhimrao Ambedkar
X

बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर (फाइल फोटो )

भारतीय संविधान के निर्माता, सामाजिक समरसता के प्रेरक व भारत में सामाजिक क्रांति के संवाहक भारतरत्न डा. भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू मध्यप्रदेश में हुआ था। इनके पिता रामजी सकपाल व माता भीमाबाई धर्मप्रेमी दम्पति थे। आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था। जो उस समय अस्पृश्य मानी जाती थी। इस कारण उन्हें कदम - कदम पर असमानता और अपमान सहना पड़ता था।

सामाजिक समता, सामाजिक न्याय, सामाजिक अभिसरण जैसे समाज परिवर्तन के मुद्दों को प्रधानता दिलाने वाले विचारवान नेता थे डा. आम्बेडकर। जिस समय उनका जन्म हुआ तथा उनकी शिक्षा दीक्षा का प्रारम्भ हुआ। उस समय समाज में इतनी भयंकर असमानता थी कि जिस विद्यालय में वे पढ़ने जाते थे वहां पर अस्पृश्य बच्चों को एकदम अलग बैठाया जाता था तथा उन पर विद्यालयों के अध्यापक भी कतई ध्यान नहीं देते थे। नहीं उन्हें कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अंदर बैठने तक की अनुमति नहीं होती थी साथ ही प्यास लगने पर कोई ऊंची जाति का व्यक्ति ऊंचाई से उनके हाथों पर पानी डालता था क्योंकि उस समय मान्यता थी कि ऐसा करने से पानी और पात्र दोनों अपवित्र हो जाते थे।

एक बार वे बैलगाड़ी में बैठ गये तो उन्हें धक्का देकर उतार दिया गया। वह संस्कृत पढ़ना चाहते थे लेकिन कोई पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। एक बार वर्षा में वे एक घर की दीवार से लांधकर बौछार से स्वयं को बचाने लगे तो मकान मालिक ने उन्हें कीचड़ में धकेल दिया था।

इतनी महान कठिनाईयों को झेलने के बाद डा. आम्बेडकर ने अपनी शिक्षा पूरी की। गरीबी के कारण उनकी अधिकांश पढ़ाई मिटटी के तेल की ढिबरी में हुई। 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास करके बंबई विवि मेें प्रवेश लिया जिसके बाद उनके समाज में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। 1923 में वे लंदन से बैरिस्टर की उपाधि लेकर भारत वापस आये और वकालत शुरू की। वे पहले ऐसे अस्पृश्य व्यक्ति बन गये जिन्होनें भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सफलता प्राप्त की। उस समय वे भारत के सबसे अधिक पढ़े - लिखे तथा विद्वान नेता थे। डा. अम्बडेकर संस्कृत भाषा के प्रबल समर्थक थे।

इसी साल वे बंबई विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हुए वहां पर भी छुआछूत की बीमारी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। 1924 में भीमराव ने निर्धन और निर्बलों के उत्थान हेतु बहिष्कृत हितकारिणी सभा बनायी और संघर्ष का रास्ता अपनाया। 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की और 1937 में उनकी पार्टी ने केंन्द्रीय विधानसभा के चुनावों में 15 सीटें प्राप्त की। इसी वर्ष उन्होनें अपनी पुस्तक जाति का विनाश भी प्रकाशित की जो न्यूयार्क में लिखे एक शोध पर आधारित थी। इस पुस्तक मेें उन्होनें हिंदू र्धािर्मक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होनें अस्पृश्य समुदाय के लोगोें को गांधी द्वारा रचित शब्द हरिजन की पुरजोर निंदा की।

यह उन्हीं का प्रयास है कि आज यह शब्द पूरी तरह से प्रतिबंधित हो चुका है। उन्होनेें अनेक पुस्तकें लिखीं तथा मूकनायक नामक एक पत्र भी निकाला। 1930 में नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश को लेकर उन्होंने सत्याग्रह और संधर्ष किया। उन्होंने पूछा कि यदि भगवान सबके हैं तो उनके मंदिर में कुछ ही लोगों को प्रवेश क्यों दिया जाता है। अछूत वर्गों के अधिकारों के लिये उन्होनें कई बार कांग्रेस तथा ब्रिटिश शासन से संघर्ष किया।

1941 से 1945 के बीच उन्होंनेे अत्यधिक संख्या में विवादास्पद पुस्तकें लिखीं और पर्चे प्रकाशित किये। जिसमें थाट आफ पाकिस्तान भी शामिल है। यह डा. अम्बेडकर ही थे जिन्होनें मुस्लिम लीग द्वारा की जा रही अलग पाकिस्तान की मांग की कड़ी आलोचना व विरोध किया। उन्होनें मुस्लिम महिला समाज में व्याप्त दमनकारी पर्दा प्रथा की भी निंदा की। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद के लिए श्रममंत्री के रूप में भी कार्यरत रहे। भीमराव को विधिमंत्री भी बनाया गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होनें संविधान निर्माण में महती भूमिका अदा की। 2 अगस्त 1947 को आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नये संविधान की रचना के लिये बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया । संविधान निर्माण के कार्य को कड़ी मेहनत व लगन के साथ पूरा किया और सहयोगियों से सम्मान प्राप्त किया। उन्हीं के प्रयासों के चलते समाज के पिछड़ें व कमजोर तबकों के लिये आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी लेकिन कुछ शर्तो के साथ। लेकिन आज के तथाकथित राजनैतिक दल इसका लाभ उठाकर अपनी राजनीति को गलत तरीके से चमकाने में लगे हैं। संविधान में छुआछूत को दण्डनीय अपराध घोषित होने के बाद भी उसकी बुराई समाज में बहुत गहराई तक जमी हुई थी। जिससे दुखी होकर उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने और बौद्धधर्म को ग्रहण करने का निर्णय लिया। लेकिन आज के दलितवादी राजनेता उनकी बात को गलत ढंग से समाज के सामने पेश कर रहे हैं।

यह जानकारी होते ही अनेक मुस्लिम और ईसाई नेता तरह- तरह के प्रलोभनों के साथ उनके पास पहुंचने लगे। लेकिन उन्हें लगा कि इन लोगों के पास जाने का मतलब देशद्रोह है। अतः विजयदशमी (14 अक्टूबर 1956) को नागपुर में अपनी पत्नी तथा हजारों अनुयायियों के साथ भारत में जन्में बौद्धमत को स्वीकार कर लिया। वह भारत तथा हिंदू समाज पर उनका एक महान उपकार है। एक प्रकार से डा. अंबेडकर एक महान भारतीय विधिवेत्ता बहुजन राजनैतिक नेता बौद्ध पुनरूत्थानवादी होने के साथ- साथ भारतीय संविधन के प्रमुख वास्तुकार भी थे। उन्हें बाबा साहेब के लोकप्रिय नाम से भी जाना जाता है।

बाबा जी का पूरा जीवन हिंदू धर्म की चतुवर्ण प्रणाली और भारतीय समाज में सर्वव्याप्त जाति व्यवस्था के विरूद्ध संधर्ष में बीता। बाबासाहेब को उनके महान कार्यो कें लिए भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया। समाज में सामाजिक समरसता के लिए पूरा जीवन लगाने वाले बाबा साहेब का छह दिसम्बर 1956 को देहावसान हो गया। डा. अम्बेडकर को अनेकानेक विभूतियों से नवाजा गया। डा. अम्बेडकर आधुनिक भारत के निर्माता कहे गये। उन्हें संविधान का निर्माता, शोषित, मजदूर, महिलाओं का मसीहा बताया गया। एक प्रकार से वे महान मानवाधिकारी क्रांतिकारी नेता भी थे। पिछड़ों व वंचित समाज के सबसे प्रतिभाशाली मानव थे ।

डा. आम्बेडकर भारत सशक्तीकरण के प्रतीक बने। आजाद भारत में वे भारत के प्रथम कानून मंत्री तो बने लेकिन उनकी तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी से कभी पटारी नहीं बैठ पायी। उनमें सभी प्रकार के गुण विद्यमान हो गये जो किसी बिरले में ही होते हैं। वह विश्व स्तर के विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री,मानवविज्ञानी, संविधानविद, लेखक, दार्शनिक इतिहासकार, आंदोलनकारी थे। अमेरिका में कोलम्बिया विवि के 100 टाप विद्वानो में उनका नाम था।

उन्होनें पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपनी धाक जमा दी थी। बाबा साहेब ने 1920 में मूकनायक, 1927 में बहिष्कृत भारत,1930 में जनता, 1956 में जनता का ही रूपान्तरित प्रबुद्ध भारत जैसे चार समाचार पत्र भी चलाये थे। उन्होंने समाचार पत्रीय लेखन का प्ररम्भ अंग्रेजी में "बाम्बे क्रानिकल" से किया था। 1924 से बाबासहेब ने अस्पृश्य आंदोलन प्रारम्भ किया। उनके आंदोलन को वैचारिक आधार देने वाला समाचारपत्र मूकनायक था। इस समाचारपत्र में उनके 14 लेख प्रकाशित हुुए।

वास्तव में डा. आम्बेडकर किसी वर्ग विशेष के नेता नहीं थे। वे सम्पूर्ण भारतवर्ष के ओैर सारी मानवता के पथ प्रदर्शक थे। सैकड़ों हजारों वर्षों में ऐसा व्यक्ति जन्म लेता है। सम्पूर्ण देश उनके कार्यो का ऋणी है तथा रहेगा। वे करोड़ों दलित हिंदुओं के लिए नहीं अपितु सभी के लिये परम आदरणीय हैं। डा. साहेब के सपने को साकार करना है तो यह आवश्यक है कि उनके इस चिंतन को समाज के समाने लाया जाये जिसमें उन्होंने सम्पूर्ण समाज की एकजुटता और समरसता की बात कही है।

जहां उन्होंने ऊपर उठे लोगों से कहा कि अपने कमजोर भाईयों को स्वयं हाथ पकड़कर ऊपर उठायें। वहीं अभी भी नीचे बैठे लोगों से कहा कि स्व्यं उठने का प्रयास करो। परावलम्बन ठीक नहीं , स्वावलम्बी बनो। स्वयं अपने जीवन में उन्होंने यह करके दिखाया। डा. आंबेडकर राष्ट्र की अखंडता के पुजारी थे। एक आराध्य की तरह भारत माता की प्रतिमा का सदैव चिंतन करते थे। भारत भूमि अखंड रहे यही उनकी सोच रहती थी। उनके अनुसार यह देश कोई अनायास नहीं बन गया है। वरन हजारों वर्षों के अथक प्रयत्नों से बनकर तैयार हुआ है। बाबा साहेब ने धारा 370 का विरोध किया, तिब्बत पर चीनी आक्रमण का भी विरोध किया। वह भाषाई आधार पर राज्यों की रचना के पक्षकार नहीं थे।

बाबा साहेब एक बहुत ही कर्मठ राष्ट्रवादी विचाराधारा वाले व्यक्ति थे। वह कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लेते थे तथा समाज से भी हिंसा से दूर रहने को कहते थे। लेकिन आज आरक्षण के नाम पर हिंसा फैलायी जा रही है तथा उनके नाम पर जातिवाद का जहर बोया जा रहा है। यह गलत व निंदनीय है।



\
Ashiki

Ashiki

Next Story