×

Indian Economy: मंद पड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था के बीच शिखर पर विदेशी मुद्रा भंडार!

भारत दुनिया की एक मजबूत और टिकाऊ अर्थव्यवस्था के रूप में मौजूद है। वर्तमान में भारत के पास रिकॉर्ड 600 अरब डालर से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है।

Vikrant Nirmala Singh
Published on: 16 Jun 2021 1:02 PM GMT
Foreign exchange reserves at peak amid slowing Indian economy!
X

आरबीआई और भारत की विदेशी मुद्रा भंडार: डिजाईन फोटो- सोशल मीडिया 

Indian Economy: सन 1991 का वर्ष था। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार महज़ इतना बचा था कि अगले कुछ दिनों तक ही बाह्य भुगतान किया जा सकता था। डॉ मनमोहन सिंह और डाॅ मोंटेक सिंह अहलूवालिया तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ मंत्रणा कर रहे थे। भारतीय अर्थव्यवस्था एक ऐसे जाल में फंस चुकी थी जहां से आगे अभी सिर्फ अंधेरा ही दिखाई पड़ रहा था। हालत इतने बुरे हो गए थे कि भारत को उस समय आयात करने के लिए बैंकों में मौजूद सोने को गिरवी रखना पड़ा था। सन 1990-91 के दौरान भारत के पास महज 11 अरब डालर ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जो कि अगले 3 हफ्ते का आयात पूरा कर सकता था। तब आरबीआई ने 47 टन सोना गिरवी रखकर कर्ज लेने का निर्णय लिया था। गंभीर होती परिस्थितियों के बीच यह निर्णय लिया गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था के बंद दरवाजे खोल जाएंगे। लाइसेंस परमिट राज की व्यवस्था को न्यूनतम किया जाएगा और निजी क्षेत्र को बाजार में खुलकर काम करने दिया जाएगा।

आज इस घटना के 30 वर्ष बीत चुके हैं। भारत दुनिया की एक मजबूत और टिकाऊ अर्थव्यवस्था के रूप में मौजूद है। वर्तमान में भारत के पास रिकॉर्ड 600 अरब डालर से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है। कोविड-19 के इस कठिन दौर में ऐसे आंकड़े अप्रत्याशित है क्योंकि पूरी दुनिया वैश्विक महामारी के संक्रमण से जूझ रही है। जब दुनिया की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ी हुई है तब भी भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार हो रही वृद्धि अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत दे रहे हैं। विदेशी मुद्रा भंडार की देखरेख देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के जरिए की जाती है।

पिछले 1 साल में भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 100 बिलियन डालर से अधिक की वृद्धि हुई है। पिछले साल जून महीने में विदेशी मुद्रा भंडार 500 बिलियन डॉलर था। स्वर्ण भंडार में थोड़ी कमी आयी है। वर्तमान में 50.2 करोड डालर की गिरावट के बाद 37.6 बिलियन डालर का स्वर्ण भंडार मौजूद है। विदेशी मुद्रा भंडार की मामले में भारत से आगे अब रूस, स्विट्जरलैंड, जापान और चीन है। वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार वृद्धि दर को देखते हुए यह उम्मीद लगाई जा रही है कि आने वाले वक्त में पांचवें स्थान पर काबिज भारत रूस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में विदेशी मुद्रा भंडार रखने के मामले में चौथे स्थान पर पहुंच जाएगा।

लेकिन इसके बाद स्विट्जरलैंड, जापान और चीन को पीछे छोड़ने के लिए एक दशक से भी अधिक वक्त लग सकता है। वर्तमान में पहले स्थान पर काबिज चीन के पास 3330 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। दूसरे स्थान पर काबिज जापान के पास 1378 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है और तीसरे स्थान पर काबिज स्विट्जरलैंड के पास 1070 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में सर्वाधिक हिस्सा डॉलर का है। यह 62.7 फ़ीसदी के आसपास बनता है। इसके बाद यूरो 20.2 फ़ीसदी और येन का 4.9 फ़ीसदी हिस्सा है।

विदेशी मुद्रा भंडार किसे कहते हैं?

विदेशी मुद्रा भंडार को विदेशी मुद्रा एवं आरक्षित निधियों के भंडार के रूप में जाना जाता है। सामान्यतः विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी रुपए, विदेशी बैंकों की जमा पूंजी, विदेशी ट्रेजरी बिल, अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक सरकारी परिसंपत्तियों, सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भंडार स्थिति आदि को शामिल किया जाता है। विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना किसी भी देश की अंतरराष्ट्रीय निवेश स्थिति के लिए बेहद मजबूत पैमाना होता है। यह किसी अर्थव्यवस्था के स्वस्थ होने का संकेत देता है। तेजी से मजबूत होते विदेशी मुद्रा भंडार की वजह से देश बाहरी निवेश को आकर्षित करते हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार में चार पहलू शामिल होते हैं। पहला विदेशी परिसंपत्तियां यानी कि विदेशी कंपनियों के शेयर, डिवेंचर इत्यादि जो विदेशी मुद्रा के रूप में मौजूद हैं। दूसरा स्वर्ण भंडार होता है जो किसी देश के केंद्रीय बैंक के पास मौजूद होता है। तीसरा आईएमएफ के पास रिजर्व ट्रेंच और चौथा विशेष आहरण अधिकार ( स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स) होता है। आईएमएफ की रिजर्व ट्रेंच वह मुद्रा होती है जिसे हर सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को प्रदान करता और इसका उपयोग सदस्य देश किसी आपातकाल की स्थिति में करता है।

विदेशी मुद्रा भंडार: फोटो- सोशल मीडिया

रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार के पीछे क्या कारण है?

भारत की विदेशी मुद्रा भंडार की वृद्धि के पीछे का प्रमुख कारण भारतीय शेयर बाजार में विदेशी कंपनियों एवं विदेशी निवेशकों के जरिए किए जा रहे पोर्टफोलियो निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में हो रही वृद्धि है। हाल के वर्षों में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में तकरीबन 3 बिलियन डालर से अधिक के शेयर खरीदे हैं। विदेशी निवेशकों द्वारा पिछले वर्ष रिलायंस इंडस्ट्री की सहायक कंपनी जिओ में अकेले लगभग ₹97000 करोड़ का निवेश किया गया है।

विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूदा स्थिरता और बढ़ोतरी की एक और वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में आ रही भारी कमी भी है। हाल के वर्षों में खाड़ी देशों के बीच तेल आपूर्ति के संदर्भ में छिड़ी जंग ने कच्चे तेल के दामों में भारी कमी लाई है। कोविड-19 के दौरान ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था की वजह से कच्चे तेलों की मांग में भी गिरावट आई जिसके चलते आयात भी काफी कम हुआ है, इस वजह से भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में कम खर्च हुआ है। भारत सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार कच्चे तेल के आयात में खर्च करता है। कच्चे तेल के आयात पर भारत 1 वर्ष में तकरीबन 100 बिलियन डालर से अधिक खर्च करता है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयात करने वाला देश है।

विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के क्या है फायदे?

विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही यह अप्रत्याशित वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के नजरिए से बहुत फायदेमंद साबित होने वाली है। पहला फायदा तो यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को भारत के आंतरिक एवं बाहरी वित्तीय जरूरतों के प्रबंधन में एक बड़ी मदद मिल रही है। दूसरा फायदा है कि तेजी से बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार की वजह से विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपए में स्थिरता बनाए रखने में मदद करेगा। इसका तीसरा फ़ायदा यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार की वृद्धि की वजह से अब भारत आने वाले 2 साल तक के आयात बिल का भुगतान करने में सक्षम हो गया है।

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चारों तरफ से घिरी मोदी सरकार के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही वृद्धि एक राहत के रूप में दिखाई पड़ता है। वर्ष 2014 की तुलना में आज वर्ष 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार ठीक दो गुना हो चुका है। वर्ष 2014 में कुल विदेशी मुद्रा भंडार 316 बिलियन डॉलर का था जो कि वर्तमान में बढ़कर 605 बिलियन डालर हो चुका है। निश्चित ही कोविड-19 की महामारी के आगे विदेशी मुद्रा भंडार का एक सुनहरा सूर्य है। जैसे-जैसे विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति मजबूत होती जाएगी, ठीक वैसे ही भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक पटल पर उभरती जाएगी।

(लेखक: संस्थापक एवं अध्यक्ष फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल)

Shashi kant gautam

Shashi kant gautam

Next Story