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Indians Settled Abroad: भारत का खजाना भरते सात समंदर पार बसे भारतीय

Indians Settled Abroad: अपने वतन से सात समंदर दूर कामकाज के लिए गए भारतीयों ने देश के खजाने को लबालब भर दिया है। उन्होंने चालू साल 125 बिलियन डॉलर यानी करीब 136 अरब रुपये भारत में भेजे। विश्व बैंक की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत से बाहर रहने वाले लाखों भारतीयों ने साल 2022 की तुलना में 11 फीसद अधिक धन चालू साल में स्वदेश भेजकर अपने देश से प्रेम का सशक्त परिचय़ दिया।

RK Sinha
Report RK Sinha
Published on: 23 Dec 2023 4:36 PM IST
Indians settled across the seven seas filling Indias treasury Foreign Currency
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भारत का खजाना भरते सात समंदर पार बसे भारतीय विदेशी करेंसी: Photo- Social Media

Indians Settled Abroad: अपने वतन से सात समंदर दूर कामकाज के लिए गए भारतीयों ने देश के खजाने को लबालब भर दिया है। उन्होंने चालू साल 125 बिलियन डॉलर यानी करीब 136 अरब रुपये भारत में भेजे। विश्व बैंक की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत से बाहर रहने वाले लाखों भारतीयों ने साल 2022 की तुलना में 11 फीसद अधिक धन चालू साल में स्वदेश भेजकर अपने देश से प्रेम का सशक्त परिचय़ दिया।

भारत के बाद मेक्सिको और चीन को अपने देशवासियों से पैसा मिला। हालांकि, भारत की तुलना में इन दोनों देशों को अपनी आबादी के अनुपात में बहुत कम धन मिला। मेक्सिकों को 67 बिलियन और चीन को मात्र 50 बिलियन डॉलर मिले। बात बहुत साफ है कि संसार के कोने-कोने में रहने वाले भारतीयों ने अपने देश के खजाने को अपने धन से लबालब भर दिया है। यह उनकी अपनी मातृभूमि के प्रति अद्भुत प्रेम दर्शाता है। भारतीय संसार के किसी भी भाग में चल जाएं पर उनकी पहचान भारतीय के रूप में ही होती है। उन्हें भारत से बाहर बसने के सालों, दशकों तो छोड़िए, कई पीढ़ियों के बाद भी भारतीय ही माना जाता है। भारतीय अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन त्रिनिदाद, गुआना, मारीशस,फिजी आदि देशों में बसने के बाद भी अपने को भारत से कभी दूर नहीं कर पाते। भारतीय अपने खानपान तथा वेशभूषा के स्तर पर भी सदा भारतीय ही बने रहते हैं। दिवाली और होली, रक्षा बंधन, छठ, करवा चौथ, नवरात्र, शादी समारोह आदि अवसरों पर भारतीय महिलाएं आमतौर पर साड़ी ही पहनती हैं। इनके घरों में ज्यादातर भारतीय व्यंजन ही पकते हैं। लेकिन, ये जिस देश में भी जाकर बसे वहां की भाषा, खानपान और वेशभूषा को भी आसानी से अपना लेते हैं। आप रविवार को किसी भी चर्च में जाकर देख लें। वहां पर आपको साड़ी पहन कर आईं मसीही स्त्रियां मिलेंगी। यही दृश्य मंदिरों में भी मिलेगा। यानी वेश-भूषा हरेक भारतीय की एक जैसी ही है।

विदेशी भारतीयों के पैसे से देश की आर्थिक स्थिति हुई मजबूत

आपको भारतीय खाड़ी के देशों के कठिन हालातों से लेकर अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोप के तमाम देशों में आई टी सेक्टर से लेकर तमाम दूसरे कामों को करते हुए मिलेंगे। चूंकि आमतौर पर भारतीय मितव्ययी होते हैं, इसलिए वे कमाकर पैसा अपने देश भेज देते हैं। जाहिर है, उनके भेजे धन से देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। तो कहना होगा कि भारत की मजबूत आर्थिक सेहत के लिए हमारे उन अनाम भारतीयों का भी कम बड़ा योगदान नहीं है जो हर साल भारत में पैसा भेजते हैं। हालांकि आमतौर पर मीडिया में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा या केन्या के हॉकी के महान खिलाड़ी अवतार सिंह सोहल जैसों की ही चर्चा होती है।

बेशक, भारत के बाहर बसे सारे भारतीय ही सही माने में हमारे ब्रांड एंबेसेडर भी हैं। इनकी वजह से ही विदेशी मूल के परिवारों में भारत के प्रति और भारतीय रस्म रिवाजों के प्रति झुकाव बढ़ता चला जा रहा है। कल रात मैं दिल्ली में छतरपुर के पास एक विवाह समारोह में गया। लड़का बंगाली है और लड़की आयरिश। लेकिन जब वर-वधु मेरा पैर छूने आये तो साड़ी-गहनों में सजी सिंदूर से मांग भरी लडकी को देखता ही रह गया। मजे की बात तो यह रही की आयरिश दुल्हन को आयरलैंड से आये हुये उनके पिता और लड़की के दो बड़े भाई मुझसे मिलवाने को ले आये। इसी तरह पिछले माह मुझे एक बिहारी लड़के की शादी में आमंत्रित किया गया था जो कि एक आस्ट्रिया की लड़की से शादी कर रहा था। ये सब भारतीयों के प्रति आकर्षण दर्शाती हैं। इन प्रवासी भारतवंशियों के हितों को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों को भी हमेशा नई-नई योजनाओं को लाते रहना चाहिए। उन्हें उनके निवेश पर बेहतर रिटर्न भी दिया जाये, ताकि वे अधिक से अधिक धन देश में भेजते रहें। जिस मुल्क का विदेशी मुद्रा भंडार भरा होता है, वह उतनी ही तेजी से प्रगति की राह पर बढ़ता है।

असली बात यह है कि देश में पैसा आना चाहिए। पैसा चाहे अमेरिका की सिलिकॉन वैली में काम करने वाले भारतीय आई टी इंजीनियर भेज रहे हों या फिर दुबई या खाड़ी के किसी भाग में काम करने वाले कुशल- अकुशल मजदूर। भारत में धन की आवक अमेरिका से लेकर खाड़ी देशों में बसे हुए भारतीयों की मार्फत खूब हो रही है। यह तो सबको पता ही है कि भारत के बाहर से पैसा आने से देश में इंफ्रास्ट्रक्चर को और बेहतर करना संभव हो पाता है और देश का इंफ्रास्ट्रक्चर जितना मजबूत होगा, उतने ही ज्यादा उद्योग-धंधे लगेंगे और रोजगार के अवसर बढेंगें ।

भारत सिखों के लिए एक पवित्र भूमि

एक बात समझने की है कि यह भी ध्यान रखा जाए कि भारतवंशियों या प्रवासी भारतीयों (एनआईआई) के लिए भारत एक भौगोलिक वास्तविकता मात्र नहीं है। अगर बात सिखों की करें तो उके लिए भारत तो उनका गुरुघर है। यही स्थिति बौद्धों और जैन धर्मावलम्बियों के साथ भी है। सनातनी हिंदुओं तो भारत के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता है। इसलिए इनकी भारत के प्रति निष्ठा सदैव बनी रहती ही है। भारत सिखों के लिए एक पवित्र भूमि है। शेष भारतवंशियों के संबंध में और भारत में जन्में धर्म मानने वालों के बारे में भी कमोबेश यही कहा जा सकता है।

एक बात पर गौर करें कि भारतवंशी विदेशों में बसे चीनियों की तुलना में उन देशों में सियासत भी करते हैं, जहां पर जाकर भारतवंशी बस जाते हैं। यह नए देश की सियासत में आसानी से सक्रिय हो जाते हैं। इधर कुछ सालों में यह भी देखा जा रहा है कि अन्य देशों में बस गए भारतीय किसी एक दल या नेता के साथ नहीं होते। वे लगभग सभी दलों में होते हैं। इसका उदाहरण मारीशस से ले सकते हैं। वहां तो सभी प्रमुख दलों के नेता भी भारतवंशी ही हैं।

सूरीनाम में भारतवंशी चंद्रिका प्रसाद संतोखी राष्ट्रपति हैं

लघु भारत कहे जाने वाले सूरीनाम में भारतवंशी चंद्रिका प्रसाद संतोखी राष्ट्रपति हैं। संतोखी ने पूर्व सैन्य तानाशाह देसी बॉउटर्स की जगह ली है। संतोखी देश के न्यायमंत्री व प्रोग्रेसिव रिफॉर्म पार्टी (पीआरपी) के नेता रहे हैं। अगर बात ब्रिटेन की मौजूदा संसद की कर लें तो वहां प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के अलावा 15 भारतवंशी सांसद हैं। इनमें से सात कंजरवेटिव पार्टी से और इतने ही लेबर पार्टी से हैं। कनाडा की संसद में भी भारतीय भरे हुए हैं।

कनाडा में कुछ हद तक स्थिति अलग है। वहां पर चंद खालिस्तानी तत्व भी भारत को बदनाम करने की लगातार चेष्टा करते रहते हैं। पर भारत को शक्ति मिलती है उन अनाम भारतीयों से जो देश के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम का परिचय देते रहते हैं मोटा धन अपने वतन में भेजकर। कहना न होगा कि इन भारतीयों पर गर्व है पूरे भारत को और भारतवासियों को ।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Shashi kant gautam

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