TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Hindi Diwas 2022: विदेश में नाम, देश में बदनाम, हिंदी पर ये नासमझी की नीति...

Hindi Diwas 14 September 2022: दुनिया में भारत इकलौता ऐसा देश है जो अपनी मातृभाषा में नहीं दूसरे की मातृभाषा में पढ़ता है। यहां बच्चे गणित और विज्ञान जैसे विषय अंग्रेजी भाषा में पढ़ते हैं, अगर ये सारे विषय हिन्दी भाषा में, हिन्दी माध्यम से पढ़ें तो निश्चित रूप से वे अंग्रेजी भाषा की तुलना में इन्हें अच्छी तरह समझ सकते हैं, यह प्रमाणित हो चुका है। अपनी भाषा में समझ तेज और जल्दी विकसित होती है

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 14 Sept 2022 7:48 AM IST (Updated on: 14 Sept 2022 7:48 AM IST)
Hindi Diwas 2022: विदेश में नाम, देश में बदनाम, हिंदी पर ये नासमझी की नीति...
X

Hindi Diwas 14 September 2022:


बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य

सुना, रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य

है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-

बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा

कह 'काका ' , जो ऐश कर रहे रजधानी में

नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में।


पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस

हिंदी पढऩी होये तो, जाओ बेटे रूस

जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी

इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी

कहँ 'काका ' कविराय, ध्येय को भेजो लानत

अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत.


लगभग ढाई लाख बच्चों ने क्यों छोड़ दी हिन्दी

काका हाथरसी की ये लाइनें मुझे सहसा उस समय बहुत दिनों बाद याद हो उठीं जब उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा के पहले दिन ही 2.39 लाख बच्चे इम्तिहान देने के लिए परीक्षा केन्द्र पहुंचे ही नहीं। इसमें सबसे अहम बात यह है कि परीक्षा शुरू होने के इस दिन मातृ भाषा हिंदी का अनिवार्य प्रश्नपत्र था।

एक ओर इतने विद्यार्थियों का एक साथ परीक्षा छोड़ना और दूसरी ओर उसी राज्य में सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से कुछ को चुनकर अंग्रेजी की शिक्षा देने का फैसला करना यह बताता है कि इन दोनों दिशाओं में से किसी एक दिशा में सरकार गलत चल रही है। जिस राज्य में बच्चे मातृभाषा की परीक्षा छोड़ रहे हों, वहां अंग्रेजी पढ़ाने से ज्यादा यह अनिवार्य हो जाता है कि हिन्दी पढ़ने-पढ़ाने को ही मजबूत किया जाए। हालांकि यह करते समय सरकार को इस सवाल से दो चार होना पड़ सकता है कि हिन्दी रोजगार की भाषा नहीं है।

हिन्दी पढ़ने-पढ़ाने से रोजगार मिलने वाला नहीं है। सरकार भी चाहे तो 2.39 लाख बच्चों के हिन्दी परीक्षा छोडऩे को लेकर इस तर्क की आड़ में खड़ी हो सकती है। बावजूद इसके बच्चों द्वारा मातृ भाषा की परीक्षा छोड़ने पर चिंतन-मनन करना जरूरी हो जाता है। क्योंकि हिन्दी देश की सम्पर्क भाषा। 9 राज्यों में इसका उपयोग होता है। दुनिया के पैमाने पर हिन्दी का बोलबाला बढ़ रहा है। हिन्दी ऐसी 7 भाषाओं में एक है। जिसका उपयोग वेब एड्रेस बनाने में किया जा सकता है।

विदेशों में हिन्दी का बोलबाला

2018 में संयुक्त राष्ट्र ने साप्ताहिक हिन्दी समाचार बुलेटिन शुरू किया। संयुक्त राष्ट्र रेडियो ने हिन्दी में अपना प्रसारण शुरू कर दिया है। 2008 में विश्व हिन्दी साचिवालय की स्थापना हो चुकी है। गूगल पर 21 फीसदी लोग हिन्दी में मैटर सर्च करते हैं। दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी चौथे स्थान पर है। पहले स्थान पर चीन की मंडारिन, स्पेनिश, अंग्रेजी और फिर हिन्दी है।

ऐसे में भी बच्चे अगर हिन्दी से किनारा कस रहे हों तो लगता है कि बच्चों पर अंग्रेजी का दबाव ज्यादा है। बच्चे अंग्रेजी और गणित के दबाव में इतना ज्यादा पड़ गये हैं कि उन्हें दूसरे विषयों को पढ़ने का समय ही नहीं मिल रहा है। हिन्दी के बारे में तो वह यह सोचते हैं कि यह घर की भाषा है। आमतौर पर हिन्दी की क्लास में वह नहीं जाते। हिन्दी की क्लास से वह कन्नी काटते हैं। शायद यही वजह है कि हिन्दी की परीक्षा छोड़ने वालों से कम तादाद हिन्दी की परीक्षा में फेल होने वालों की नहीं होती है।

अंग्रेजी वालों के लिए हिन्दी जीरो

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के पाठयक्रम में तो हिन्दी कुछ कठिन होती है। लेकिन सीबीएसई और आईसीएसई के पाठयक्रम में हिन्दी का स्तर इतना कमजोर रखा गया है कि इनकी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वाले छात्र सामान्य हिन्दी से ऊपर पहुंच ही नहीं पाते हैं। उनके लिए साहित्यिक हिन्दी दूर की कौड़ी होती है।

अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के लिए हिन्दी का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि हमारे देश से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी के अखबारों के लिए हिन्दी दिवस की खबर का कोई मतलब नहीं होता। हिन्दी की कविता, कहानी, उपन्यास अथवा अन्य किसी भी विधा पर चाहे कितनी बड़ी संगोष्ठी,परिचर्चा और जमावड़ा हो तो अंग्रेजी अखबार उसे खबर समझते ही नहीं है।

मातृभाषा छोड़कर उन्नति की मिसाल नहीं

यह सब करते कराते हम शायद यह भूल जाते हैं कि दुनिया में एक भी ऐसा मुल्क नहीं है। जो दूसरे की भाषा पढ़कर महाशक्ति बना हो। जापान की तकरीबन साढ़े बारह करोड़ की आबादी है। 13 फीसदी हिस्सा ही ऐसा है जहां खेती हो सकती है। हम बुलट ट्रेन वहीं से ले आ रहे हैं। बुलेट ट्रेन का पुर्जा बनाने की स्थिति में भी हम नहीं हैं। इस देश की महत्तर उपलब्धि ही कही जायेगी कि सिर्फ भौतिक विज्ञान में यहां के 12 वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। इसकी वजह है कि जापान अपनी भाषा जापानी में ही पढ़ता है।

इसे भी पढ़ें

हिंदी हमारी पहचान, पर 'राष्ट्रभाषा' नहीं, जानें आखिर क्यों?

इस्राइल की बात करते हैं। यहां की आबाद मात्र 80 लाख है। 11 नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक यह देश दुनिया को दे चुका है। इस देश ने पढऩे पढ़ाने के लिए अपनी हिब्रू भाषा को चुना। रूस जब सोवियत संघ था। तब भी और आज जब वह रूस है तब भी। उसने रशियन भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाया। सोवियत संघ के समय वह अमेरिका के समानातंर शक्ति था। आज जब पुतिन हैं, तब भी अमेरिका उसकी अनदेखी कर ही नहीं सकता। फ्रांस फ्रेंच भाषा में पढ़ता है।

इसे भी पढ़ें

हिंदी भाषा बना रोजगार का बहुत बड़ा माध्यम: योगी आदित्यनाथ

दुनिया में भारत इकलौता ऐसा देश है जो अपनी मातृभाषा में नहीं दूसरे की मातृभाषा में पढ़ता है। यहां बच्चे गणित और विज्ञान जैसे विषय अंग्रेजी भाषा में पढ़ते हैं, अगर ये सारे विषय हिन्दी भाषा में, हिन्दी माध्यम से पढ़ें तो निश्चित रूप से वे अंग्रेजी भाषा की तुलना में इन्हें अच्छी तरह समझ सकते हैं, यह प्रमाणित हो चुका है। अपनी भाषा में समझ तेज और जल्दी विकसित होती है।

अंग्रेजी आने से पहले उपलब्धियों का भारत था

अपनी भाषा की उपेक्षा सबसे ज्यादा खतरनाक है। जब हम अपनी भाषा में पढ़ते थे। तब हम विश्व गुरू थे। तब हमने ताजमहल बनाया था। जब हमने ताजमहल बनाया था तब अंग्रेज नहीं आये थे। उस समय हमारी टेक्नोलॉजी थी, जिसने ताजमहल खड़ा किया। इस ताजमहल को देखने दुनिया का हर बड़ा आदमी आता है। आना चाहता है। सुश्रुत को दुनिया का पहला सर्जन कहा जा सकता है। चरक को पहला फीजिशियन कह सकते हैं। पतंजलि योग के शिक्षक थे। इसी योग की मार्केटिंग करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया में नाम कमाया लिया। रामदेव समेत तमाम लोग इसी योग का व्यापार कर रहे हैं। यह सब तब था जब हम अपनी मौलिक भाषा में सोचते विचारते, पढ़ते पढ़ाते थे। मौलिक चिंतन या चीजें दूसरे की भाषा में संभव नही है।

हिन्दी वर्णमाला या गिनती नहीं आती

बावजूद इसके आज स्कूलों में अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई नर्सरी से ही शुरू हो जाती है। बड़े-बड़े डिग्रीधारकों और स्नातकों को भी हिंदी की वर्णमाला और हिंदी में गिनती नहीं आती। गाँव-कस्बों में इंग्लिश मीडियम स्कूल हैं क्योंकि लोग अपने बच्चे को वहीं पढ़ाना चाहते हैं। आदमी चाहे कितनी भी भाषाएं सीख ले। पर सोचता वह अपनी ही भाषा में ही है। हमारे बच्चों के जीवन का आधा हिस्सा दूसरे की भाषा सीखने में चला जाता है। नतीजतन हम नकलची पैदा करने से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मातृभाषा की परीक्षा नहीं दे रहे हैं इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई नहीं हो सकता।

सब जगह अंग्रेजी का बोलबाला

इंजीनियर, डाक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट हिंदी मीडियम से पढ़कर नहीं बना जा सकता। इंग्लिश लिख-पढ़-बोल नहीं सकते तो अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती। अदालत में तो अंग्रेजी का शत-प्रतिशत आरक्षण है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में तो अंग्रेजी ही चलती है। यही वजह है कि हिंदी दोयम स्थान पर चली जाती है। नतीजतन टीवी, अखबार और इन्टरनेट पर ऊटपटांग हिंदी या हिन्गिल्श का ही बोलबाला रहता है। मीडिया के क्षेत्र में हिंदी पत्रकारिता करने वाले युवा ढंग से हिंदी लिखना तक नहीं जानते। डिजिटल युग में देवनागरी लिपि में लिखी जाने हिन्दी के समक्ष सबसे बड़ा संकट लिपि का है। लोगों के बीच रोमन में हिन्दी में लिखने की लोकप्रियता बढ़ रही है। यह तब है कि 1805 में लल्लू लाल ने हिन्दी की पहली किताब प्रेमसागर लिख दी थी। जिसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।

दस साल में दस करोड़ बढ़े हिन्दी भाषी

2001 की जनगणना के अनुसार 42 करोड़ 20 लाख लोगों की मूल भाषा हिन्दी थी। 2011 की जनगणना में यह आंकड़ा बढ़कर 52 करोड़ 83लाख हो गया है। लेकिन इसी में हिन्दी की परीक्षा छोड़ने वाले भी हैं। इसलिए हिन्दी बोलने और पढ़ने वालों की संख्या के बढ़ने पर इतराया जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि हमारे हिन्दी के अंक गायब ही हो गये हैं। ऐसे में हमारे लिए जरूरी और अनिवार्य है कि हिन्दी भाषा और साहित्य की समझ कितने लोगों को है। हिन्दी के साहित्यकारों के प्रति सम्मान कितनों में है। हिन्दी दुनिया के पैमाने पर अपनी भूमिका अन्य शक्तिशाली भाषाओं की तुलना में किस तरह रखने में कामयाब होती है। पर जब बच्चे हिन्दी की परीक्षा छोड़ रहे हों तब इसे उपेक्षा और सरकारी तंत्र की नासमझी की शिक्षा नीति ही कहेंगे।

(लेखक न्यूज ट्रैक/ अपना भारत से जुड़े हैं)

Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

Founder & Editor in Chief - Newstrack.com & Apnabharat.org

Journalism for Yogesh Mishra is not a profession but a mission. In his career, spanning over 26 years, he has served just not as journalist but an educationist and literary as well. Looking at journalism as an instrument of change, he has also highlighted corruption and problems faced in various sectors like education, health, water, sanitation and agriculture. The exposes to his credit which deserve mention include largest tax evasion in the country by Hasan Ali and the fraud committed by 25 Indians, while he was working for the Outlook magazine as the UP Bureau Head. The amount involved was whopping Rs 18,000 crores. He was the first to report the PMO’s involvement in the ‘2G Spectrum Scam’, during the UPA regime. Another commendable work by him is exposing the Commonwealth Games Scam along with the video footage of a meeting before the beginning of the tournament. The issue of banning the video is sub judice. His news item, “Uttar Pradesh ke sau gaon bhi Nirmal Gram Pusaraskar ke layak nahi” exposed how the state government wrongly claimed prizes for 1,269 villages. It led to the cancellation of the prizes. Even UNICEF research testified and led to discontinuation of the NIRMAL GRAM AWARDS. He is, presently Member of Fee Review committee set up by the government of Uttar Pradesh to fight menace of arbitrary fee structure in private schools across the state. Many of his suggestions concerning electoral reforms have been adopted and implemented by the Election Commission of India. He was a member of the ‘Navoday Vidyalaya Samiti’, review committee constituted by Govt. of India for the implementation of Sarv Siksha Abhiyaan in UP. Besides writing in national and international newspapers and magazines, he has taken up teaching assignments and served as a visiting faculty in about a dozen universities. Author of ten books, he has also received prestigious Madhu Limaye and Yash Bharti awards. His new goal is to set up a new media house. A beginning has been already made as he has launched a multi-lingual news portal and a weekly magazine, Apna Bharat.

Next Story