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Adi Shankaracharya Motivational Stories: आदि शंकराचार्य की कही अनकही कहानियाँ

Adi Shankaracharya Motivational Stories: आदि शंकराचार्य की कही अनकही कहानियाँ और जीवनी ।

Prashant Sharma
Published on: 2 July 2023 9:23 AM GMT
Adi Shankaracharya Motivational Stories: आदि शंकराचार्य की कही अनकही कहानियाँ
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Adi Shankaracharya Motivational Stories

Adi Shankaracharya Motivational Stories: आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में केरल के एक गांव में ब्राम्हण कुल में हुआ था। इंसान अपने मन में जो भी तीव्र इच्छा रखता है, उसके अनुसार घटना क्रम बनने लगता है, वैसी व्यवस्था होने लगती है। शंकर को अपना लक्ष्य स्पष्ट था। शंकराचार्य जी ने स्पष्ट संदेश दिया था , जब मन में सत्य जानने की जिज्ञासा पैदा हो जाती है तब दुनिया की बाहरी चीजें अर्थहीन लगती हैं। पुस्तक में कई ऐसे उदाहरण कठोर लगते है । परन्तु कठोरता द्वारा ही ईश्वर व आत्म साक्षात्कार (स्वयं) को पा सकते हैं। बालक होने पर भी शंकर कई शास्त्रों में 8 वर्ष की आयु में पारंगत हो गए थे।

परन्तु माँ के सामने संन्यास लेने के निर्णय को शंकर अपने दिल में पिघला देते थे। संन्यास (लक्ष्य) पाने की जिज्ञासा में प्रार्थना और प्राप्ति के बीच एक समय होता है। महत्वपूर्ण यह है कि आप उस समय को कैसे काटते हैं? डर आशंका, घबराहट या आत्मविश्वास से और शंकर ने युक्ति कर एक दिन आत्मविश्वास से माता से संन्यास लेने की अनुमति ले ही ली। ब्राम्हण का धर्म है विद्यादान और राजा का कर्म है धन दान। पुस्तक में मानसिक कर्म का रहस्य बतलाया गया है की जीवन में कठोर निर्णय लेना आना चाहिए अन्यथा अगर मैं मान लूँ की सामने वाला व्यक्ति अच्छा व्यवहार करेगा तो ही मैं उसका कार्य करुँगा ।

यदि मैं उसका कार्य समय पर कर दूं तो कहीं वह यह न समझे कि मैं खाली बैठा हूँ, मेरे पास कोई कार्य ही नहीं है, इस तरह अगर-मगर के खेल में इंसान एक ओर नहीं चल पाता है। व्यक्ति की प्रार्थनाएँ दोनों ओर से चलती रहती है, सो फल भी व्यक्ति को कच्चे-पक्के मिलते रहते हैं। यह बात इस ओर इशारा करती है कि जो लोग एक दिशा में प्रार्थना करते हैं । उन्हें सकारात्मक के साथ नकारात्मक फल भी मिलते हैं। इससे आपको समझना है कि आपके जीवन में जब कोई नकारात्मक घटना आए तो उसे खरोंच जितनी ही अहमियत देनी है । उस घटना से आगे क्या खुलनेवाला है, इस पर नजर रखनी है।

जैसे की आपका लक्ष्य है, डॉक्टर बनना तो आप उससे मेल खाते विचारों को ही मन में आने दें। वरना इंसान को बनना तो है डॉक्टर और सोच रहा है कि मैं ऐसा होटल खोलूँगा जिसमें बहुत लज़ीज (स्वादिष्ट) भोजन मिलेगा । यहाँ पर देखने लायक बात यह है की ऐसी सोच उसके लक्ष्य से मेल नहीं खाती। इस तरह के बेमेल मानसिक कर्म करने से ही इंसान कंफ्यूज हो जाता है । देखिए सीमा रेखा एक महत्वपूर्ण रेखा होती है, जहाँ से इस पार या उस पार का निर्णय लिया जाता है । जब तक निर्णय न लिया जाए, इंसान बीच में, टँगा रहता है और आगे की सारी संभावनाएं रुकी रहती हैं।

आपके जीवन में यदि ऐसी स्थिति है तो जल्द से जल्द एक साइड होकर, अपनी संभावनाओं को खुलने का अवसर दें। व्यक्ति के विचार व शब्दों में अपार शक्ति होती है और जब हम अपनी सारी ऊर्जा शब्दों पर केंन्द्रित करते हैं तो शब्दों की शक्ति सक्रिय हो उठती है। फिर वही घटने लगता है, जो हम कहते हैं। जीवन में दमदार लक्ष्य हो तो दिशा अपने आप सुनिश्चित हो जाती है । वरना इंसान भ्रमित रहता है कि करूँ या न करूँ । यदि लक्ष्य निश्चित है तो वह लक्ष्य की ओर ले जाने वाले कार्यों का चुनाव आसानी से कर सकता है और जो कार्य उसे लक्ष्य से दूर ले जाते हैं , उन्हें त्याग सकता है । अतः आप भी इस बाबत जागृत रहें। अपना लक्ष्य बनाकर उसे हमेशा आखों के सामने रखें ।

आपका विश्वास ही जीवन को जोड़ता है या तोड़ता है । हमारे जीवन के जो उसूल और आदर्श हैं, क्या उनके प्रति हमें अटूट विश्वास है? या परिस्थिति बदलते ही वे भी बदल जाते हैं? कभी इस पार तो कभी इस पार डोलनेवाले विश्वास से चमत्कारिक परिणाम नहीं आते । जगदगुरू आदिशंकराचार्य ने जो सोचा, वह किया । इस छोटी सी बात से मानवीय गुणों के कई पहलू उजागर होते हैं । जैसे जीवन की दिशा निर्धारित करना ।अपनी काबिलियत पर विश्वास करना। परिश्रम करने से जी न चुराना। कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार रहना। हार से भी कुछ न कुछ सीखना, साहस, धीरज, सबको साथ लेकर चलना , इरादे का पक्का होना चाहिए ।

आचार्य जगद्गुरु शंकराचार्य में ये सभी गुण विद्यमान तो थे। साथ ही अहंकार का न होना , अपने सच्चे स्वरूप को जानना, ईश्वरीय इच्छा को अपनी इच्छा बनाना, ये कुछ असामान्य गुण भी आचार्य में विद्यमान थे। जिसके कारण जगदगुरु शंकराचार्य ने इतना महान लक्ष्य मानव कल्याण के लिये सम्पूर्ण किया । पुस्तक में जगद्‌गुरु शंकराचार्य के अनेक ऐसी उदाहरणों का संग्रह है कि पाठक पढ़ता ही चला जायेगा और ज्ञान के भण्डार में डुबकी लगाने के पश्चात् पाठक अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल कर पायेगा व इसके साथ ही पाठक जनकल्याण का भागीदार भी बनेगा । यह इस पुस्तक की महत्ता है। यह पुस्तक हर घर में रखने योग्य है। यह पुस्तक आदि शंकराचार्य के अद्‌भुत ज्ञान से भरी पड़ी है।

प्रकाशक - वॉव पब्लिशिंग्ज् प्रा.लि. पुणे ।

Prashant Sharma

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