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International Human Unity Day : समर्थ लोग निर्बल लोगों को स्नेह-सहयोग दें

International Human Unity Day : संयुक्त राष्ट्र ने 22 दिसंबर 2005 को यह दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को विश्व एकजुटता कोष और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जो दुनियाभर में गरीबी उन्मूलन के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने पर केंद्रित हैं।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 18 Dec 2024 5:08 PM IST
International Human Unity Day : समर्थ लोग निर्बल लोगों को स्नेह-सहयोग दें
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International Human Unity Day : लोगों के बीच एकजुटता के महत्व को बताने, गरीबी पर अंकुश लगाने, दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए नए रास्तों की तलाश करने, विकासशील देशों में मानव और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने, शांति एवं सौहार्दपूर्ण जीवन को संभव बनाने, सरकारों को अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने की याद दिलाने एवं पूरी दुनिया में, विशेष रूप से विकासशील देशों में सहयोग, शांति, सह-जीवन, समानता और सामाजिक न्याय की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र ने 22 दिसंबर 2005 को यह दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को विश्व एकजुटता कोष और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जो दुनियाभर में गरीबी उन्मूलन के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने पर केंद्रित हैं। इस दिवस को मनाते हुए हर व्यक्ति शिक्षा में योगदान देकर, गरीबों या शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम लोगों की मदद करके अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस दिवस के माध्यम से सरकारों को सतत विकास लक्ष्य के गरीबी और अन्य सामाजिक बाधाओं का जवाब देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। विविधता में एकता दर्शाने, सतत विकास के लिए लोगों, सरकारों को प्रेरित करने, लोगों को गरीबी, भुखमरी, बीमारियों से बाहर निकालने के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। इसमें भारत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस जिम्मेदारी को संभालने का अर्थ है भारत को सशक्त करने के साथ-साथ दुनिया को मानव एकता की दृष्टि से एक नया चिन्तन, नया आर्थिक धरातल, शांति एवं सह-जीवन की संभावनाओं को बल देना।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, “संयुक्त राष्ट्र के निर्माण ने विश्व के लोगों और राष्ट्रों को एक साथ शांति, मानवाधिकारों और सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आकर्षित किया। संगठन की स्थापना अपने सदस्यों के बीच एकता और सद्भाव के मूल आधार पर की गई थी, जो सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा में व्यक्त की गई थी, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए अपने सदस्यों की एकजुटता पर निर्भर करती है।” अंतरराष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस सतत विकास एवं समतामूलक विकास के एजेंडा पर आधारित है, जो अपने आप में गरीबी, भूख और बीमारी जैसे कई दुर्बल पहलुओं से लोगों को बाहर निकालने के लिए केंद्रित है। ‘मिलेनियम डिक्लेरेशन’ को ध्यान में रखते हुए, एकजुटता को 21वीं सदी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूलभूत मूल्यों में से एक माना जाता है, जिसके तहत कम से कम लाभ उठाने वाले और सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करने वाले लोग उन लोगों की मदद के योग्य होते हैं जिन्हें सबसे अधिक लाभ मिलता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा भी है कि एक व्यक्ति तब तक जीना शुरू नहीं करता जब तक वह अपनी व्यक्तिगत चिंताओं के संकीर्ण दायरे से ऊपर उठकर समस्त मानवता की व्यापक चिंताओं तक नहीं पहुंच जाता।


आज समूची दुनिया में मानवीय एकता एवं चेतना के साथ खिलवाड़ करने वाली त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण परिस्थितियां सर्वत्र परिव्याप्त हैं-जिनमें आतंकवाद सबसे प्रमुख है। जातिवाद, अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता, महंगाई, गरीबी, भिखमंगी, विलासिता, अमीरी, अनुशासनहीनता, पदलिप्सा, महत्वाकांक्षा, उत्पीड़न और चरित्रहीनता आदि अनेक परिस्थितियों से मानवता पीड़ित एवं प्रभावित है। उक्त समस्याएं किसी युग में अलग-अलग समय में प्रभावशाली रहीं होंगी, इस युग में इनका आक्रमण समग्रता से हो रहा है। आक्रमण जब समग्रता से होता है तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। हिंसक परिस्थितियां जिस समय प्रबल हों, अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है। महात्मा गांधी ने कहा है कि आपको मानवता में विश्वास खोना नहीं चाहिए। मानवता एक महासागर है। यदि महासागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो भी महासागर गंदा नहीं होता है।’ ऐसे ही विश्वास को जागृत करने के लिये ही विश्व मानव एकता दिवस की आयोजना की गई है।

गरीबी का कारण हिंसा, आतंक, अप्रामाणिकता, संग्रह, स्वार्थ, शोषण और क्रूरता आदि हैं, इनके दंश मानवता को मूर्च्छित कर रहे हैं एवं मानव एकता की सबसे बड़ी बाधाएं हैं। इस मूर्च्छा को तोड़ने के लिए अहिंसा, सह-जीवन, सौहार्द, शांति और सह-अस्तित्व का मूल्य बढ़ाना होगा तथा सहयोग एवं संवेदना की पृष्ठभूमि पर स्वस्थ समाज-संरचना की परिकल्पना को आकार देना होगा। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता मानव एकता का आधार तत्व है। जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व की तरह दूसरे के अस्तित्व को अपनी सहमति नहीं देगा, तब तक वह उसके प्रति संवेदनशील नहीं बन पाएगा। जिस देश और संस्कृति में संवेदनशीलता का स्रोत सूख जाता है, वहाँ मानवीय रिश्तों में लिजलिजापन आने लगता है। अपने अंग-प्रत्यंग पर कहीं प्रहार होता है तो आत्मा आहत होती है। किंतु दूसरों के साथ ऐसी घटना घटित होने पर मन का एक कोना भी प्रभावित नहीं होता। यह संवेदनहीनता की निष्पत्ति है। इस संवेदनहीन मन की एक वजह सह-अस्तित्व का अभाव भी है। नेल्सन मंडेला ने कहा है कि हमारी मानवीय करुणा हमें एक दूसरे से जोड़ती है-दया या संरक्षण के भाव से नहीं, बल्कि ऐसे मानव के रूप में जिसने सीख लिया है कि कैसे अपने साझा दुख को भविष्य के लिए आशा में बदला जाए।

आज हम इतने संवेदनशून्य हो गये हैं कि औरों का दुःख-दर्द, अभाव, पीड़ा, औरों की आहें हमें कहीं भी पिघलाती नहीं। देश और दुनिया में निर्दाेष लोगों की हत्याएं, युद्ध की विभीषिकाएं, हिंसक वारदातें, आतंकी हमले, अपहरण, जिन्दा जला देने की रक्तरंजित सूचनाएं, महिलाओं के साथ व्यभिचार-बलात्कार की वारदातें पढ़ते-देखते हैं पर मन इतना आदती बन गया कि यूं लगता है कि यह सब तो रोजमर्रा का काम है। न आंखों में आंसू छलकते हैं, न पीड़ित मानवता के साथ सहानुभूति जुड़ती है। न सहयोग की भावना जागती है और न नृशंस क्रूरता पर खून खौलता हैं। हमें सिर्फ स्वयं को बचाने की चिन्ता है। तभी औरों का शोषण करते हुए नहीं सकुचाते। हमें संवेदना को जगाना होगा। तभी जे.के. राउलिंग ने कहा भी है कि हमें दुनिया को बदलने के लिये जादू की आवश्यकता नहीं है। हम बस मानव की सेवा करके ऐसा आसानी से कर सकते हैं।’ इसी मानव-सेवा की मूल भावना मानव एकता दिवस का हार्द है। है। यह दिन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में दुनिया भर के लोगों की एकता, सहयोग और साझा जिम्मेदारी के महत्व पर जोर देता है। इस दिन को मनाकर मानव को एकजुटता में रखकर एक साथ काम करने और सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने का संदेश दिया जाता है।


सामाजिक मूल्य-परिवर्तन और मानदंडों की प्रस्थापना से लोकचेतना में परिष्कार हो सकता है। इस दृष्टि से विश्व मानव एकता दिवस की उपयोगिता बढ़-चढ़ कर सामने आ रही है। जब तक दुनिया अस्तित्व में है, अन्याय और अत्याचार होने की संभावनाओं से नकारा नहीं जा सकता। लेकिन जो लोग सक्षम और समर्थ हैं, उनकी जिम्मेदारी अधिक है कि वे लोग अपने से निर्बल लोगों को भी स्नेह दें। हर साल, आपदाओं एवं मानव-भूलों से लाखों लोगों विशेषतः दुनिया के सबसे गरीब, सबसे हाशिए पर आ गये लोग और कमजोर व्यक्तियों को अपार दुःख का सामना करना पड़ता है। मानवतावादी सहायताकर्मी इन आपदा प्रभावित समुदायों एवं लोगों को राष्ट्रीयता, सामाजिक समूह, धर्म, लिंग, जाति या किसी अन्य कारक के आधार पर भेदभाव के बिना जीवन बचाने में सहायता और दीर्घकालिक पुनर्वास प्रदान करने का प्रयास करते हैं।

वे सभी संस्कृतियों, विचारधाराओं और पृष्ठभूमि को प्रतिबिंबित करते हैं और मानवतावाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से वे एकजुट हो जाते हैं। इस तरह की मानवतावादी सहायता मानवता, निष्पक्षता, तटस्थता और स्वतंत्रता सहित कई संस्थापक सिद्धांतों पर आधारित है। आज अनुभव किया जा रहा है कि देश एवं दुनिया विकृतियों की शूली पर चढ़ा है। नैतिक मूल्यों के आधार पर ही मनुष्य उच्चता का अनुभव कर सकता है और मानवीय प्रकाश पा सकता है। मानव एकता का प्रकाश सार्वकालिक, सार्वदेशिक, और सार्वजनिक है। इस प्रकाश का जितनी व्यापकता से विस्तार होगा, मानव समाज का उतना ही भला होगा। इसके लिए तात्कालिक और बहुकालिक योजनाओं का निर्माण कर उनकी क्रियान्विति से प्रतिबद्ध रहना जरूरी है। यही विश्व मानव एकता दिवस मनाने को सार्थक बना सकता है।



Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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