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अंतर्राष्ट्रीय भाषा के सिंघासन पर पहले नंबर पर आरूढ़ होने को अग्रसर हिंदी

हिंदी जानती है की गुलामी की दौड़ में फ़ारसी और उर्दू उसे हराने के लिए लपकती रहीं , उसे पता था कि आज़ादी के बाद वह विदेशी भाषाओं की प्रतिस्पर्धा से स्वयं मुक्त हो जाएगी पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ।

KP Mishra
Written By KP MishraPublished By Monika
Published on: 23 Sept 2021 4:27 PM IST
International Language Hindi
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अंतर्राष्ट्रीय भाषा हिंदी (फोटो : सौ. से सोशल मीडिया )

देश में मुख्यतः सोशल मीडिया (Social Media) में बड़े बुझे मन से हिंदी दिवस (Hindi diwas) मनाया गया। वस्तुतः हिंदी की व्यापकता और इसके वैश्विक उत्थान को देखते हुए भारत में हिंदी के नाम पर दिवस, सप्ताह या पखवाड़ा मनाना, इस निमत्त करोड़ों रुपए का व्यय पूर्णतः औचित्यहीन हो चुका है। पिछले 30 वर्षों से ऐसा लगता है कि स्वयं राष्ट्रभाषा (national language) के वास्तविक रूप में अपनी महती सिद्धि प्राप्त करने के अभियान पर हिंदी निकल चुकी है। हिंदी आज अपने देश और महाद्वीप से भी बाहर निकल कर विश्व में अपना लोहा मनवा रही है। कोई भी विज्ञान और तकनीक का क्षेत्र हो या न्यायालय और सरकारों के कामकाज, हिंदी निरंतर सबको समृद्ध करती हुई अग्रसर है । हालाँकि दक्षिणी राज्यों में उसके अंध विरोधियों को आज़ादी से अब तक यह नहीं समझाया जा सका कि राष्ट्रीय फलक पर अहिन्दी प्रांतीय भाषाओं (Non-Hindi Provincial Languages) के मोह में हिंदी का विरोध करना केवल अंग्रेजी को मज़बूत कर सकता है ।इस देश की अन्य भाषाएं न तो कभी इस दौड़ में शामिल थीं। न ही कभी उनसे किसी पड़ाव पर पहुंचने की अपेक्षा की जा सकती है । हमारे देश की कोई और भाषा राष्ट्रभाषा बनने के लिए उपयुक्त ही नहीं होगी, अतः राष्ट्र का कल्याण तो हिंदी ही करेगी।

हिंदी जानती है की गुलामी की दौड़ में फ़ारसी (Persian) और उर्दू (Urdu) उसे हराने के लिए लपकती रहीं , उसे पता था कि आज़ादी के बाद वह विदेशी भाषाओं की प्रतिस्पर्धा से स्वयं मुक्त हो जाएगी पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। नया संविधान (new constitution) बना , देश का ध्वज (flag) बना , राष्ट्रगान (national anthem) बना , संसद बनी और न जाने क्या क्या बना दिया गया परन्तु वैश्विक स्तर पर अपनी सक्षमता और अधिकार रखने के बावजूद हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया। अर्धशती बीत गयी, नए अवसरों की तलाश करके हर समय हिंदी को सरकार ने लगड़ी मार कर गिराया। सरकारें बदलीं । नयी सरकार, एक देश एक भाषा की माला निरंतर जपती हुई आ गयी। केंद्र में एक बार हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल भी शुरू हुई पर फिर से दक्षिण का छाती पीटना भारी पड़ गया । ऊँचे प्लेटफार्म से विवशता में कहना ही पड़ा कि हिंदी किसी पर थोपी नहीं जाएगी।

हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया

किसी सम्प्रभुतासंपन्न राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण पहचान उसकी राष्ट्रभाषा होती है। स्वतंत्रता के उपरान्त 1949 में अनुच्छेद 343 जोड़कर जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि विश्व के किसी भी देश की राष्ट्रभाषा संविधान से अधिकृत नहीं हुई है ,देवनागरी में लिखने की घोषणा के साथ हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा का दर्जा दे दिया गया। इस प्रकार हिंदी का न्याय संगत अधिकार नकारने का षड्यंत्र सदैव के लिए प्रभावी हो गया , जबकि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने 1917 में भरुच गुजरात में सार्वजनिक कार्यक्रम में हिंदी को राष्ट्र भाषा मान लिया था। भारत के अधिसंख्य लोग हिंदी को देश की सबसे सशक्त भाषा और राष्ट्रभाषा मानते हैं।

2001 की जनगणना के अनुसार मध्य भारतीय आर्यभाषा हिंदी 25.79 करोड़ भारतीयों की मातृभाषा थी , इस आधार पर हिंदी विश्व में तीसरे नंबर पर आने वाली भाषा है। जन जन की विचार विनिमय की भाषा के रूप में इस देश की कोई भाषा या बोली हिंदी की तुलना में 10 फ़ीसद महत्व भी नहीं रखती है।

राष्ट्रीय एकता और अस्मिता के हर पड़ाव पर हिंदी ने हमें सहारा दिया है। हिंदी स्वतंत्रता संग्राम की भाषा थी, जिसने अंग्रेज़ों के क्षेत्रीय विरोधों की कथा को धीरे धीरे बृहत्तर राष्ट्रव्यापी आंदोलन में बदल दिया। भारतीय जनमानस को संस्कार और संस्कृति की समृद्धता देकर सभ्यता और संस्कृति की मेरुदंड हिंदी बनी रही । पहले की लगभग सभी भाषाओँ और बोलियों की अच्छाइयों को सहजता से हिंदी ने आत्मसात कर लिया। हिंदी भारत में सबसे पुष्ट और व्यापक आधार वाली संपर्क भाषा है , जिसके कारण मनीषी ग्रियर्सन ने इसे, "आम बोल चाल की महाभाषा" कहा हैं। एनी बेसेंट ने हिंदी को सभी स्कूलों में अनिवार्य करने का अभियान छेड़ा था। प्रार्थना समाज और रामकृष्ण मिशन ने इसका अप्रतिम प्रचार प्रसार किया। लोकमान्य तिलक केवल हिंदी को ही राष्ट्रभाषा के योग्य मानते थे । महात्मा गाँधी ने कहा हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। स्वतंत्रता संग्राम के साथ तीसरी सदी के प्रारम्भ में ही हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में आम सहमति प्राप्त कर चुकी थी।

हिंदी संस्कृत की अनुजा और उर्दू की अग्रजा

भारतीय राष्ट्रीयता के प्रबल होने का इतिहास हिंदी के विकास और सार्वभौमिक सामर्थ्य प्राप्त करने का इतिहास है, देश के हर पड़ाव पर दोनों साथ साथ ही पले बढ़े हैं। डॉ राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) हिंदी भाषा को भारत माता के ललाट की बिंदी मानते हैं। हिंदी संस्कृत की अनुजा और उर्दू की अग्रजा है तथा प्राचीन भाषाओँ यथा प्राकृत , पाली, अपभ्रंश , ब्रज और अवधी की निकट सम्बन्धी रही है।

हिंदी के प्रचार प्रसार में बाधाएँ थीं, जिनको लाँघ कर हिंदी आगे बढ़ चुकी है, केंद्र और राज्य सरकारों की अनेक योजनाएं हिंदी के विकास में सहायक हैं। अनेक बड़े राज्यों में हिंदी प्रशासनिक कार्य की भाषा बन चुकी है। अनेक अकादमियों और संस्थाओं के पुरस्कार और संवर्धन हिंदी को प्राप्त हैं। अनेक भाषाओं का महत्वपूर्ण साहित्य हिंदी में नित्य अनूदित हो रहा है। अपने बल पर हिंदी दूरदर्शन, आकाशवाणी, मीडिया और जन सन्देश की भाषा बनी हुई है। यह सब देख कर हिंदी का भविष्य अत्यन्त उज्जवल प्रतीत होता है।

हिंदी का इतिहास 1000 से अधिक वर्षों का गरिमामय इतिहास है , इसकी सरलता , उदारता , लिखने बोलने की समानता , बोधगम्यता और वैज्ञानिकता इसे लोक मैत्री की भाषा बनाती है। भारत के अतिरिक्त विश्व में हिंदी मॉरिशस , फिजी , गियाना , सूरीनाम , संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका , यमन, उगांडा ,सिंगापुर , नेपाल,न्यूज़ीलैण्ड और जर्मनी जैसे देशों के बहुत बड़े वर्गों में प्रचलित है। हिंदी की लिपि देवनागरी विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। इसकी वर्णमाला सबसे व्यवस्थित है, जिसमें स्वर और व्यंजन अलग अलग मुद्रित हैं। हिंदी की 5 उपभाषाएँ और 16!बोलियाँ, इसे निरंतर समृद्ध करती रहती हैं। इस वर्ष 14 सितम्बर को राष्ट्र भाषा हिंदी दिवस को जिस अनिच्छा के साथ मनाया गया है , उसमे हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के स्वर प्रस्फुटित होते हुए प्रतीत हो रहे हैं इससे स्पष्ट है कि हिंदी ने अपने मुकुट की एक एक कणिका को स्वयं प्रकाशित होने का वरदान दे दिया है, जिसके आगे किसी संवैधानिक अनुमोदन की संभवतः आवश्यकता नहीं रह जाती है।

(लेखक सेवा निवृत्त अपर आयुक्त एवं उद्योग निदेशक रहे हैं। )



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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