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International Minority Rights Day : अल्पसंख्यक के नाम पर राजनीति ज्यादा खतरनाक

International Minority Rights Day : भारत ‘लोकतंत्र की जननी’ कहलाता है, यहां के लोकतंत्र को खुबसूरती प्रदान करने के लिये भारत का संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है और भाषाई, जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई उपक्रम एवं प्रयोग करता है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 17 Dec 2024 4:02 PM IST
International Minority Rights Day : अल्पसंख्यक के नाम पर राजनीति ज्यादा खतरनाक
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International Minority Rights Day : अल्पसंख्यक अधिकार दिवस पहली बार 18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा, राष्ट्र निर्माण में योगदान के रूप में चिन्हित कर अल्पसंख्यकों के क्षेत्र विशेष में ही उनकी भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति, परंपरा आदि की सुरक्षा को सुनिश्चित करने एवं समाज को जागृत करने हेतु मनाया जाता है। इस साल थीम ‘विविधता और समावेश का जश्न मनाना’ है। इसका उद्देश्य भारत के अल्पसंख्यकों की समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देना है। यह थीम इस बात पर ज़ोर देती है कि अल्पसंख्यक के अधिकार सिर्फ़ आकांक्षाएं नहीं हैं, बल्कि बेहतर भविष्य के लिए लोगों और समुदायों को सशक्त बनाने का एक व्यावहारिक तरीका भी हैं। संयुक्त राष्ट्र ने अल्पसंख्यकों की परिभाषा दी है कि ऐसा समुदाय जिसका सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव न हो और जिसकी आबादी नगण्य हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाएगा। भारत में, इस दिन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। यह दिवस राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा को जीवंतता प्रदान करने का दिवस है। भारत में केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों के गैर-भेदभाव और समानता के अधिकारों की गारंटी के प्रयास सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है। इस दिन, देश के अल्पसंख्यक समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों और मुद्दों पर ध्यान खींचा जाता है। लोग धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने की बात करते हैं।

भारत ‘लोकतंत्र की जननी’ कहलाता है, यहां के लोकतंत्र को खुबसूरती प्रदान करने के लिये भारत का संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है और भाषाई, जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई उपक्रम एवं प्रयोग करता है। सरकार उन लोगों का गंभीरता एवं समानता से ख्याल रखती है जो अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लोगों सहित उनकी जाति, संस्कृति और समुदाय के बावजूद आर्थिक या सामाजिक रूप से वंचित लोग हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रत्येक राष्ट्र में अलग-अलग जातीय, भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक समूह होते हैं। भारत में अनेक अल्पसंख्यक समुदाय है। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने राज्यों में राज्य अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की, जो संविधान और संसद और राज्य विधानमंडलों द्वारा अधिनियमित कानूनों में दिए गए अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा और संरक्षण करते हैं। अल्पसंख्यक अधिकार दिवस अल्पसंख्यकों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को खत्म करने के मकसद से मनाया जाता है। हालांकि, कानूनी रूप से भारत के संविधान में अल्पसंख्यक की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है लेकिन अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए संविधान के कई प्रावधान अनुच्छेद 29, 30 आदि हैं। अल्पसंख्यक शब्द अल्प और संख्यक दो शब्दों से बना है। जिसका मतलब दूसरों की तुलना में कम संख्या होना है। भारत में अल्पसंख्यकों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी शामिल हैं। जरूरत है कि अल्पसंख्यकों को नहीं बांटें और सत्य को नहीं ढकें।

लोकतंत्र भारत की आत्मा है और उसकी रगों में लोकतंत्र रचा-बसा है। यहां सभी को समानता से जीने का अधिकार है, जाति, पंथ एवं धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के कल्याण एवं अधिकारों पर बल दिया है तभी उनकी सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास के सिद्धांत पर चलती है। अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव के आरोप पर मोदी ने कहा कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों में धर्म, जाति, उम्र या भू-भाग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। हमारी सरकार लोकतंत्र के मूल्यों के आधार पर बने संविधान के आधार पर चलती है तो पक्षपात का कोई सवाल ही नहीं उठता है। ‘सबका’ शब्द में सभी अल्पसंख्यक वर्ग को सम्मिलित करने का भाव है, मोदी सरकार ने अपने नए नारे के साथ ये एहसास दिलाने का प्रयास किया है कि अल्पसंख्यक समुदाय का भी विश्वास अर्जित करने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। तीन तलाक के विरुद्ध कानून लाकर अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को बहुसंख्यक समाज के महिला के बराबर बताने की कोशिश ऐसा ही प्रयास है।


भारत की माटी ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का उद्घोष करके सभी प्राणियों के सुखी एवं समृद्ध होने की कामना की है। यहां अल्पसंख्यकों के साथ इसी उद्घोष की भांति उदात्तता बरती जाती है। महात्मा गांधी ने कहा भी है कि किसी राष्ट्र की महानता इस बात से मापी जाती है कि वह अपने सबसे कमजोर नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है।’ इस दृष्टि से आजादी के बाद की सभी सरकारों ने अल्पसंख्यकों के साथ उदात्त एवं कल्याणकारी दृष्टिकोण अपनाया है। लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थों के लिये अल्पसंख्यकों को गुमराह किया है, साम्प्रदायिक उन्माद पैदा किया है। जिससे भारत के लोकतंत्र पर लाल और काले धब्बे लगते गये हैं। इन्हीं संकीर्ण एवं साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वाले दलों ने अल्पसंख्यकों के कल्याण की बजाय उनको वोट बैंक मानकर उनके वास्तविक अधिकारों की अनदेखी की है। ऐसे राजनेताओं ने अल्पसंख्यकों का जीवन खतरे में है, कहकर उन्हें उकसाया है, राष्ट्र की मूलधारा से अलग-थलग करने की कोशिश की है, लेकिन मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण की अनेक बहुआयामी योजनाओं एवं नीतियों को लागू कर इन तथाकथित नेताओं की जुबान पर ताला लगा दिया है। सच कहा जाये तो देश में अल्पसंख्यक खतरे में नहीं हैं, अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीति करने वाले खतरे में हैं।

भारत विविध संस्कृतियों और समुदायों का देश है, यही इसका सौन्दर्य है। एक या अधिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव और जबरन आत्मसात करने से समृद्ध और ऐतिहासिक संस्कृतियों, भाषाओं और धर्मों का नुकसान हो सकता है जिन्होंने सदियों से भारत में अपनी विरासत संभाली है। विशिष्ट भारतीय समुदायों की सांस्कृतिक रूप से विविध पहचान को केवल अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करके ही बरकरार रखा जा सकता है। भारतीय सामाजिक प्रथाओं में प्रत्येक संस्कृति और धर्म के प्रति सहिष्णु और सर्व-समावेशी रवैया शामिल है। भेदभाव, जबरन आत्मसातीकरण एवं धर्म-परिवर्तन समुदायों को खतरे में डालता है और भारतीय समाज के समग्र सार एवं उसके मूल स्वरूप को प्रभावित करता है। भेदभाव नफरत का सबसे खराब एवं वीभत्स रूप है। लोगों के एक समूह के खिलाफ उनकी भाषाई या सांस्कृतिक मान्यताओं के आधार पर हिंसक कार्रवाई करना किसी व्यक्ति के विवेक के लिए हानिकारक है।


खतरा मन्दिरों, मस्जिदों, गिरजों और गुरुद्वारों को नहीं है। खतरा हमारी संस्कृति को है, हमारी सांस्कृतिक एकता को है, जो हमारी हजारों वर्षों से सिद्ध चरित्र की प्रतीक है। जो युगों और परिवर्तनों के कई दौरों की कसौटी पर खरा उतरा है। कोई बहुसंख्यक और कोई अल्पसंख्यक है, तो इस सच्चाई को स्वीकार करके रहना, अब तक हम क्यों नहीं सीख पाए? देश में अनेक धर्म के सम्प्रदाय हैं और उनमें सभी अल्पमत में हैं। वे भी तो जी रहे हैं। उन सबको वैधानिक अधिकार हैं तो नैतिक दायित्व भी हैं। देश, सरकार संविधान से चलते हैं, आस्था से नहीं। धर्म को सम्प्रदाय से ऊपर नहीं रख सके तो धर्म का सदैव गलत अर्थ निकलता रहेगा। धर्म तो संजीवनी है, जिसे विष के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। वोटों के लिए जिस प्रकार की धर्म की एवं अल्पसंख्यकवाद की राजनीति चलाई जा रही है और हिंसा को जिस प्रकार समाज में प्रतिष्ठापित किया जा रहा है, क्या इसको कोई थामने का प्रयास करेगा? राजनीति का व्यापार करना छोड़ दीजिए, भाईचारा अपने आप जगह बना लेगा, अल्पसंख्यक अपने आप ऊपर उठ जायेगा।



Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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