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International Tiger Day: जब घटने लगी थी बाघों की संख्या, 1973 में हुई टाइगर रिजर्व की घोषणा
International Tiger Day: 1973 में टाइगर प्रोजेक्ट के नाम से भारत में उपलब्ध बाघों की संख्या को बचाने का काम करना शुरू किया । इसके अंतर्गत अब तक 50 टाइगर रिजर्व बनाई जा चुकी है । जिनमें से पांच मध्यप्रदेश में है ।
समय के साथ विलुप्त होती हुई वन्य प्राणियो में अपना राष्ट्रीय पशु बाघ भी ऐसा प्राणी है । जिसको कुछ शिकारियों या कहिए व्यापारी लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उन्हें हानि पहुंचा कर इस स्थिति में पहुंचा दिया कि दिन प्रतिदिन देश में इनकी संख्या घटती जा रही थी । तब इसके संरक्षण को लेकर पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी जी ने 1973 में टाइगर रिजर्व की घोषणा की और इसे टाइगर प्रोजेक्ट के नाम से भारत में उपलब्ध बाघों की संख्या को बचाने का काम करना शुरू किया । इसके अंतर्गत अब तक 50 टाइगर रिजर्व बनाई जा चुकी है । जिनमें से पांच मध्यप्रदेश में है ।
बाघ की घटती आबादी के कई कारण हैं । वन क्षेत्र घटा है , रिहाइशी शहरीकरण फ़ैक्टरी लगना , चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन जैसी भी चुनौतियां शामिल हैं । बाघ की घटती हुई संख्या से भारत ही नहीं पूरा विश्व बहुत ही चिंतित था क्योंकि पशु पक्षियों का जलवायु संरक्षण में एक बहुत बड़ी भागीदारी निभाते हैं । इसलिए विश्व में बाघों की घटती हुई संख्या और इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है ।
विश्व भर में बाघों की कई प्रजातियां
हम सभी जानते हैं भारत अपने राष्ट्रीय पशु बाघ के दृष्टिकोण से एक समय बहुत थी समृध्दशाली था इस वक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाघ पूरे देश में पाया जाता है । विश्व भर में बाघों की कई प्रजातियां देखने को मिलती हैं इनमें से अनेक प्रजातियां भारत में भी पाई जाती है । भारत ने भी हर तरीके से अपने बाघों को संरक्षण देने के लिए अनेक चिंतन व उपाय किए हैं ।
मेहनत का रंग देखने को मिला जब भारत के नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के मुताबिक 2014 मैं बाघों की संख्या 2226 थी नए आंकड़ों के हिसाब से आज देश में बाघों की संख्या 2967 पहुंच गई है ।
सन 2014 के मुकाबले में 741 बाघों की संख्या बढ़ना निश्चित रूप से एक बहुत बड़ा सफल आयोजन है । नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी हर 4 साल में देश में बाघों की गणना करता है । पहली गणना वर्ष 2006 में हुई थी वर्ष 2018 में अंतिम और चौथी गणना में सकुन और खुशी देने वाली खबर पिछले साल अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर मिली थी । चोथी आंकलन रिपोर्ट में बताया गया कि देशों में बाघ की संख्या के मामले में मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर कर्नाटक दूसरे पर और 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है।निश्चित रूप से सरकार के साथ आम आदमियों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है । अब क़ानून के तहत इसके शिकार को ना केवल अवैध के साथ दंडनीय अपराध है।
जब प्रधानमंत्री ने किया था इस बात का ज़िक्र
आपको याद होगा वर्ष 2019 ,29 जुलाई को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक था टाइगर से टाइगर अभी जिंदा की है की कहानी सुनाते हुए गर्व के साथ देश में बाघों की बढ़ती हुई संख्या का जिक्र किया था । उन्होंने कहा मध्यप्रदेश के लिए भी यह ऐतिहासिक उपलब्धि एक ही आया है क्योंकि राज्य में सर्वाधिक 526 बाघों की संख्या के साथ करीब एक दशक बाद टाइगर स्टेट का अपना खोया हुआ दर्जा कर्नाटक से हासिल किया था लेकिन पिछले डेढ़ साल में करीब 41 बाघों की मौत सामने आने के बाद राजगढ़ टाइगर स्टेट के खिताब पर खतरा एक बार फिर मंडराता दिख रहा है ।
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाने का फैसला साल 2010 में सेंट पिट्सबर्ग बाघ समिट में लिया गया था क्योंकि तब जंगली बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे ।इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि साल 2022 तक वे बाघों की आबादी दुगुनी कर देंगे । ऊपर आपने देखा लक्ष्य की ओर अग्रसर है ।
सरकार के साथ हमारी भी अपने देश के पशु बाघ को बचाने की होनी चाहिए आज सरकारी गैलरी में इस बात का चिंतन होना चाहिए । अपने काम की डफली बजाने वाले और सियासत में मैं में करते रहने वाले नेता और सरकार अपने गिरेबान में झांक कर देखें मैं टाइगर हूं या टाइगर अभी जिंदा है जैसे जुमले ही देते रहेंगे या बाघ को बचाने के लिए धरातल पर कोई काम करेंगे । एक बात और इनके संरक्षण और जागरूकता के पीछे हमारे फ़ॉरेस्ट कर्मचारियों का बड़ा योग दान है । जो पशु के हमले के साथ पशु तस्करों से सीधे सीधे निपटते है अपनी जान पर खेल कर तभी हम बाघ कि जनसंख्या बढ़ाने में विश्व में भारत आदर्श बनता जा रहा है ।