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एक क्लिक के अलावा भी है दुनिया!

इंटरनेट के दौर में एक क्लिक पर दुनिया भर की जानकारी कुछ सेकेंड में आपके मोबाइल स्क्रीन पर आ जाती है...

Apoorva chandel
Published on: 1 April 2021 7:02 AM GMT
एक क्लिक के अलावा भी है दुनिया!
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इंटरनेट (फोटो-सोशल मीडिया)


दक्षम द्विवेदी

सूचना क्रांति ने हम लोगों के जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। इंटरनेट के इस दौर में सबकुछ कितना जल्दी हो जाता है। एक क्लिक पर दुनिया भर की जानकारी महज कुछ सेकेंड के भीतर आपके मोबाइल स्क्रीन पर आ जाती है। हर महीने प्रत्येक उत्पाद के नए मॉडल बाजार में आ रहे। तकनीक हमारी जीवन-शैली का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। लेकिन क्या वाकई में जिस उद्देश्य के लिए तकनीक का विकास हुआ, कहीं हम लोग उससे भटक तो नहीं गए ऐसा कहने के पीछे कई कारण भी हैं। आईये नजर दौड़ाते हैं कुछ व्यवहारिक कारणों पर जो हम सब महसूस करते हैं लेकिन कभी उस पर सोच नहीं पाते या ये वक्त ही ऐसा कि किसी के पास सोचने का वक्त भी नहीं है।

हर चीज के दो पहलू

कई लोग यह भी कह सकते हैं कि हर चीज के दो पहलू होते हैं यह तो उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है। क्या इसको संचालित करने वाले पर भी यह निर्भर नहीं करता कि तकनीक की आड़ में सूचना के नाम पर जो परोसा जा रहा उसकी कड़ी निगरानी की जाए अर्थात एक ऐसी व्यवस्था तो कम से कम होनी ही चाहिए। कि उम्र के हिसाब से ही लोगों को सूचनाएं प्राप्त हों उदाहरण के लिए एक दस वर्षीय बालक अगर कोई हिंसक फिल्म या कार्टून देख रहा है तो उसके दिमाग पर इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है और ये कोई नहीं जानता कि उसको देखकर उस बच्चे के मन में कैसे मनोभाव पनप रहे ये कोई नहीं जानता कि उसकी प्रतिक्रिया किस रूप में हमारे सामने आ सकती है। उदाहरण के तौर पर ब्लू वेल नामक गेम को ही लेते हैं जिसके कारण कई बच्चों ने खुदकुशी कर ली।

एक क्लिक में नई दुनिया

तकनीक ने हमारा जीवन सहज बनाया है इस बिंदु को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता पर हम उस तकनीक के साथ सामंजस्य बैठाने में कहीं विफल तो साबित नहीं हो रहे? इंटरनेट एक ऐसी दुनिया है जो एक क्लिक में आपको एक नई दुनिया की ओर ले जाती है। यहां आभासी और वास्तविकता का भेद करना जरूरी है। अब बात करते हैं कि सूचना क्रांति ने हमारे सामाजिक संबंधों को कितनी चोट पहुंचाई है। इस बिंदु पर भी लोगों का यह विचार होगा कि आज तो वीडियो कॉल है। दूर देश बैठे आदमी से आराम से बात हो जाती है। तमाम तरह की सोशल नेटवर्किंग साइट्स है। हां यह सब है लेकिन उस आभासी दुनिया में कितने ऐसे लोग हैं जिनसे हम और आप स्वाभाविक संवाद कर सकते हैं वो दुनिया लाइक और कमेंट पर टिकी हुई एक दिखावे की दुनिया है।

90 का वो दशक

आप याद करिये 90 का वो दशक जहां त्योहारों में जब मोहल्ले के सारे बच्चे एक दूसरे को जानते थे एक दूसरे के घर आते। साथ में खेलना उसके बाद झगड़ना। ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़ दें तो यह वातावरण तेजी से खत्म हो रहा है। एक स्टेटस लगा दो एक स्टिकर भेजकर विश कर दो हो गया त्योहार। इस तरह से एक तरफ सोशल नेटवर्किंग साइट्स में आपके हजार दोस्त और सुख-दुख बांटने में लोग कम क्यों होते जा रहे हैं। पहले लोग बाहर खेलने जाते थे उनका शारीरिक विकास होता था साथ ही किसी मुद्दे पर चर्चा होती थी तो कई नए नए विचार आते किताब पढ़ी जाती थी जिससे लोगों की एकाग्रता बढ़ती थी। पतंग उड़ाने के बहाने लोग एक दूसरे से छत पर ही खड़े-खड़े घण्टो बातें करते जिससे आत्मीयता और सामाजिकता बढ़ती थी।

शिक्षा व्यवस्था को नुकसान होने की संभावना

आज कोई भी जानकारी चाहिए तो गूगल पर टाइप कर दिया बस। इस क्रिया में आपका अपना कोई दिमाग नहीं लगा ऐसे में कल्पनाशीलता, रचनात्मकता की उम्मीद करना बेईमानी होगी। यह कॉपी-पेस्ट का चलन अगर यूं ही जारी रहा और इसमें लगाम नहीं लगी तो हमारी शिक्षा व्यवस्था को नुकसान होने की प्रबल संभावना है। कई लोगों का ऐसा मानना भी है कि पहले जिस काम को करने में घण्टो लगते थे अब कुछ मिनटों में हो जाता है इसका मतलब हमारा वक्त तो बच रहा है फिर क्यों सब जल्दी -जल्दी उठकर भाग रहे?क्यों मेट्रो में चढ़ने की जल्दी है? जब वक्त बच रहा है तो सबके जीवन में सुकून होना चाहिए था लेकिन हर तरफ गला काट प्रतिस्पर्धा और भागमभाग वाली जिंदगी है।

जिसको आधुनिकता का नाम दे दिया गया और हम सब इसमें ढलने पर विवश है क्योंकि विकल्प फिलहाल तो नजर आ नहीं रहा, शहरीकरण दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। शायद तकनीक के उपयोग और जीवन के बीच सामंजस्य बनाने में कहीं बहुत बड़ी चूक हुई जिसका ज्वलंत उदाहरण खासकर मेट्रो शहर की जीवनशैली में हमें देखने को मिल रहा है।

सूचना क्रांति ने कई सकारात्मक परिवर्तन किए

आज से कई साल पहले जब आज की तुलना में लोगों का जीवन कृषि पर आधारित था तो खाने-पहनने और रहने जैसी बात कोई समस्या नहीं थी। 90 के दशक के बाद सूचना क्रांति ने कई सकारात्मक परिवर्तन किए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन सूचना क्रांति के साथ हम उन पुरानी अच्छी चीजों को लेकर आगे नहीं बढ़ पा रहे जिसमें समरसता का समावेश था। इंटरनेट पर बहुत सारी जानकारियां मिलती हैं लेकिन धीरे-धीरे उसी पर निर्भर होना कहां तक उचित है? यह एक गंभीर प्रश्न है।

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