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इस्मत चुगताईः एक विद्रोही लेखिका जिसने लेखन की बोल्डनेस को जिया

Ismat Chughtai: कल्पना करना मुश्किल है कि 20वीं सदी के प्रारंभ में यूनाइटेड प्राविंस अब उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में मुस्लिम परिवार में एक ऐसी बालिका का जन्म हुआ जिसने अपने विद्रोही तेवर से अच्छे अच्छों के होश उड़ा दिये।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shweta
Published on: 19 Aug 2021 8:36 PM IST
इस्मत चुगताई
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इस्मत चुगताई ( फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

Ismat Chughtai: कल्पना करना मुश्किल है कि 20वीं सदी के प्रारंभ में यूनाइटेड प्राविंस अब उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में मुस्लिम परिवार में एक ऐसी बालिका का जन्म हुआ जिसने अपने विद्रोही तेवर से अच्छे अच्छों के होश उड़ा दिये। इससे यह भी लगता है कि उस समय कट्टरता ज्यादा थी कि आज कट्टरता बढ़ गई है। इस महिला में समलैंगिकता जैसे विषय पर उस दौर में कहानी लिखकर आग लगा दी जिस पर आज भी लोग खुलकर बात करते डरते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि इस्मत चुगताई वह औरत थीं जिसने यह बता दिया कि महिला सशक्तिकरण क्या होता है। अपनी कहानियों के जरिये उन्होंने यह बताया कि एक मजबूत औरत क्या होती है।

इस्मत चुगताई का जन्म 21 अगस्त 1915 को बदायूं में नुसरत खानम और मिर्जा कासीम बेग चुगताई के घर हुआ था; वह दस बच्चों में से नौवीं थीं उनके छह भाई और चार बहनें थीं। इस्मत के पिता एक सिविल सेवक थे; उन्होंने अपना बचपन जोधपुर, आगरा और अलीगढ़ आदि शहरों में बिताया। उनकी ज्यादातर अपने भाइयों की संगति रही क्योंकि उसकी बहनों की शादी हो गई थी, जबकि वह अभी भी बहुत छोटी थी। चुगताई ने अपने भाइयों के प्रभाव को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में वर्णित किया जिसने उनके व्यक्तित्व को उनके प्रारंभिक वर्षों में प्रभावित किया। उसने अपने दूसरे सबसे बड़े भाई, मिर्जा अजीम बेग चुगताई (एक उपन्यासकार भी) को एक संरक्षक के रूप में सोचा। चुगताई के पिता के भारतीय सिविल सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद, अंततः आगरा में बसे।

चुगताई ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के महिला कॉलेज में प्राप्त की और 1940 में इसाबेला थोबर्न कॉलेज लखनऊ से कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। अपने परिवार के कड़े प्रतिरोध के बावजूद, उन्होंने अगले वर्ष अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा स्नातक की डिग्री पूरी की। इस अवधि के दौरान चुगताई प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ीं, 1936 में अपनी पहली बैठक में भाग लेने के बाद, जहां वह राशिद जहान से मिलीं, जो आंदोलन से जुड़ी प्रमुख महिला लेखकों में से एक थीं, जिन्होंने बाद में चुगताई को लिखने के लिए प्रेरित किया। चुगताई ने लगभग उसी समय निजी तौर पर लिखना शुरू किया, लेकिन बहुत बाद तक अपने काम के लिए प्रकाशन की मांग नहीं की। चुगताई ने शुरुआत में कई लेख लिखे लेकिन उससे उन्हें पहचान नहीं मिली। उसी दौरान उन्होंने समलैंगिक संबंधों पर लिहाफ कहानी लिखी जिस पर जलजला सा आ गया।

इस्मत चुगताई मूलतः कहानी लेखिका रहीं। लेकिन इसके अलावा फिल्मों में उनका योगदान कम नहीं। उन्होंने 1948 में शिकायत, जिद्दी (1948), आरजू (1950), बुजदिल (1951), शीशा (1952) फिल्मों के डायलाग लिखे। 1953 में बनी फिल्म फरेब की वह को डायरेक्टर भी रहीं। इसके बाद 1954 में दरवाजा, 1955 में सोसाइटी फिल्में कीं। 1958 में फिल्म सोने की चिड़िया की वह प्रोड्यूसर रहीं। इसी साल फिल्म लाल रुख आई जिसकी वह प्रोड्यूसर और को डायरेक्टर रहीं। 1973 में उनकी फिल्म गरम हवा को फिल्मफेयर बेस्ट स्टोरी अवार्ड मिला। 1978 में जुनून उनकी आखिरी फिल्म थी जिसमें वह नजर आईं। इस्मत चुगताई को बेस्ट उर्दू ड्रामा टेढ़ी लकीर के लिए गालिब अवार्ड, गरम हवा के लिए फिल्म फेयर अवार्ड व नेशनल फिल्म अवार्ड, 1976 में पद्मश्री सम्मान। 1982 में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड और 1990 में राजस्थान उर्दू अकादमी अवार्ड मिला। उनके चाहने वालों का कहना है कि इस्मत चुगताई ने बुर्का अक्ल पर नहीं पड़ने दिया और भारतीय समाज खासकर मुस्लिम समाज की महिलाओं की जिंदगी को अपनी कहानी के किरदारों के रूप में सजीव किया। 24 अक्टूबर 1991 को इस महान शख्सियत ने मुंबई में आखिरी सांस ली।



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