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Israel–Hamas Conflict: इस्लामिस्टों से कब मुक्त होंगी कांग्रेस की विदेश नीति ?

Israel–Hamas Conflict: अरब राष्ट्र हैं जो इस्राइल पर वीभत्स आक्रमण कर चुके हैं, वे सभी निजी तौर पर इस्राइल से तकनीकी और व्यापारी संबंध कायम कर रहे है। इन कट्टर इस्लामी देशों की लिस्ट में हैं मोरक्को, बहरेइन, जोर्डन, अबू ढाबी, संयुक्त अरब अमीरात, सूडान इत्यादि।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 11 Oct 2023 1:27 PM GMT (Updated on: 11 Oct 2023 1:29 PM GMT)
Israel–Hamas Conflict
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Israel–Hamas Conflict (Photo: Social Media)

Israel–Hamas Conflict: छः दशक बीते। लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. जीएन धवन और प्रोफेसर पीएन मसालदान ने मुझे एम.ए. में पढ़ाया था कि हर गणराज्य की विदेश नीति सार्वभौम और स्वतंत्र होनी चाहिए। फिर ‘टाइम्स आफ इंडिया’ में सात प्रदेशों में संवाददाता का काम करते मैंने पाया कि आंचलिक सियासी स्वार्थ बहुधा राष्ट्रनीति निर्धारित करते हैं। मसलन श्रीलंका के प्रति विदेशनीति को द्रमुक दल तय करते रहे। सरकारें गिरा दी थीं। एम. करुणानिधि और जे. जयललिता ने। उत्तर अमेरिका और कनाडा पर नजरिया भारत के खालिस्तान-समर्थक प्रभावित करते रहे। देश के मुसलमान तो अरब देशों के प्रति नीति पर दबाव डालते रहते हैं।

अतः शायद वोटरों को लुभाना ही यकीनन कांग्रेस की प्राथमिकता रही है। वर्ना पार्टी ने परसों यानी 8 अक्टूबर, 2023 को अपनी कार्यकारिणी के प्रस्ताव में आतंकी इस्लामी गिरोह हमास द्वारा इजराइली जनता पर अंधरे में पांच हजार राकेट दागने की निंदा की होती। अर्थात वह भारत के मुसलमानों को नाराज नहीं करना चाहती। हालांकि नरेंद्र मोदी ने राजधानी तेल अवीव में मई 2001 में जाहिर कर दिया था कि वे मुस्लिम वोट बैंक के कैदी नहीं हो सकते। यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत की विदेश नीति का कोई भी आतंकी गुट भयादोहन नहीं कर सकता।

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याद कर लें। संयुक्त राष्ट्र संघ में 1949 में इस्राइल को सदस्य बनाने का प्रस्ताव आया था। जवाहरलाल नेहरु के आदेश पर भारत ने इस्राइल के विरुद्ध वोट दिया। सारे इस्लामी राष्ट्र गदगद थे। मगर इन्हीं इस्लामी राष्ट्रों ने कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया था। एक दकियानूसी मजहबी जमात है ''आर्गेनिजेशन आफ इस्लामी कंट्रीज।'' जब मुस्लिम फिलीस्तीन का विभाजन कर नये राष्ट्र इस्राइल का गठन हो रहा था, तो इन सारे मुस्लिम देशों ने जमकर मुखालफत की थी। मगर जब ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा विशाल भारत का विभाजन कर पाकिस्तान बन रहा था, तो इन्हीं इस्लामी राष्ट्रों ने उस बटवारे का स्वागत किया था। आज तक कश्मीर को ये इस्लामी राष्ट्र-समूह पाकिस्तानी ही मानते हैं।

मुस्लिम राष्ट्रों ने ठुकराया, इजरायल को भारत से कर दिया था दूर (फोटो - सोशल मीडिया)

एक खास बात। जितने भी अरब राष्ट्र हैं जो इस्राइल पर वीभत्स आक्रमण कर चुके हैं, वे सभी निजी तौर पर इस्राइल से तकनीकी और व्यापारी संबंध कायम कर रहे है। इन कट्टर इस्लामी देशों की लिस्ट में हैं मोरक्को, बहरेइन, जोर्डन, अबू ढाबी, संयुक्त अरब अमीरात, सूडान इत्यादि। प्रथम है मिस्र् जिसके नेता कर्नल जमाल अब्दुल नासिर। उन्होंने सबसे पहले 7 जून,1967 को संयुक्त अरब देशों की ओर से इस्राइल पर हमला बोला था। पराजित हुये थे। सभी अचरज में हैं कि कम्युनिस्ट चीन जो आज इस्लामी देशों का भाई बनता है, उसने भारत द्वारा 29 जनवरी, 1992 को मान्यता देने के माह भर पूर्व ही इस यहूदी देश को मान्यता दे दी थी।

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गत सप्ताह कुछ मीडिया-चैनलों ने दर्शाया कि अटल बिहारी वाजपेई सदैव इजरायल के खुले समर्थक रहे। तब 1977 मोरारजी देसाई वाली जनता पार्टी की सरकार थी। वाजपेयी विदेश मंत्री थे। इसराइल के विदेश मंत्री मोशे दयान दिल्ली आये थे। अगस्त माह में लुकते छिपते, छद्म वेश में। उनकी मशहूर कानी आंख जो सदा ढकी रहती थी, निजी पहचान बन गई थी। निशा के अंधेरे में मोशे दयान की अटल बिहारी वाजपेयी से गुप्त स्थान पर भेंट हुई। मोरारजी देसाई से भी मोशे दयान अनजानी जगह वार्ता हेतु मिले। पर जनता पार्टी के इस प्रधानमंत्री के कड़े निर्देश थे कि मोशे दयान से भेंट की बात पूरी तरह से रहस्य रहे। “वर्ना मेरी सरकार ही गिर सकती है।”

जब 2003 में भारत आए थे इजरायली पीएम (फोटो- सोशल मीडिया)

दो गणराज्यों के इन प्रधानमंत्रियों की काया-भाषा (बाडी लेंगुयेज) संकेत देती है। गत वर्षों में नरेंद्र मोदी और नेतनयाहू ने बेनगुरियन विमान स्थल पर स्नेह की प्रगाढता पेश की। समूची काबीना बैठक छोड़कर एयर इंडिया के विमान की बाट जोहे ? राष्ट्रपति रेवेलिन से किसी ने पूछा कि सारे नियमों को तोड़कर ऐसा क्यों ? उन्होंने कहा : “शिष्टता महज़ एक औपचारिक रीति है। दोस्तों से औपचारिकता कैसी ? मोदी मित्र हैं।” मोदी ने ”श्लोम“ उच्चारण किया, जिसके हीब्रयु भाषा में अर्थ है ”शुभम“ और भारत में सलाम। श्लेषालंकार का मोदी ने नमूना पेश किया यह कहकर कि ”ई“ माने इण्डिया और ”ई“ माने इसराइल। नेतनयाहू ने कह भी दिया कि भारत तथा इसराइल विश्व का जुगराफिया बदल सकते है। यह गठजोड़ जन्नत में रचा गया है।” हीब्रयू में नेतनयाहू के अर्थ है जबरदस्त जीत। संस्कृत में पुरूषों में श्रेष्ठ को नरेंद्र कहा जाता है।

पीएम मोदी जब इजरीयली पीएम से मिले (फोटो- सोशल मीडिया)


हालांकि सोनिया गांधी 9 दिसंबर ,1946 के पूर्व का भारतीय इतिहास से अनभिज्ञ थीं क्योंकि तब वे जन्मी नहीं थीं। उनके पति के नाना जवाहरलाल नेहरू ने 1950 में इसराइल को एक गणराज्य के रूप में मान्यता दे दी थी। इस भारतीय प्रधानमंत्री ने बांदुग (हिंदेशिया) सम्मेलन में इजरायल को आमंत्रित किया था। हालांकि दौत्य संबंध कांग्रेसी प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने स्थापित किया था।

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राजीव गांधी 1985 में संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक आम सभा में इसराइली प्रधानमंत्री से मिले। किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की इसराइली प्रधानमंत्री से यह पहली मुलाक़ात थी। कहा जाता है कि उस वक़्त पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से भारत चिंतित था। इसलिए इसराइल के साथ जाने में संकोच को छोड़ना ठीक समझा।

इसराइली प्रधानमंत्री से मिलने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी (फोटो- सोशल मीडिया)


कांग्रेस पार्टी की एक त्रासदी रही कि वह प्रदेशीय दलों के दबाव में अपनी विदेश नीति बनाती-बदलती रही। मसलन उत्तरी श्रीलंका के हिंसक विद्रोह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ने राजीव गांधी की दक्षिण एशियाई नीति पर बहुत दबाव डाला था। सोनियापति राजीव ने इसका खामियाजा भुगता। लिट्टे ने उनकी हत्या कर दी थी। अचरज होता है कि कांग्रेस पार्टी 75 साल बाद भी इस्लाम के चंगुल से निकल न सकी। वोट बैंक जो ठहरा !

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Started career with Jagran Prakashan and then joined Hindustan and Rajasthan Patrika Group. During her career in journalism, worked in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi.

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