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जल शक्ति अभियान-2: तकनीकी हस्तक्षेप और सामुदायिक भागीदारी का संयोजन
किसी बच्चे के लिए, मॉनसून की शुरुआत शुष्क और उलझन भरी गर्मी के मौसम में बड़ी राहत लेकर आती है।
किसी बच्चे के लिए, मॉनसून की शुरुआत शुष्क और उलझन भरी गर्मी के मौसम में बड़ी राहत लेकर आती है। लेकिन मॉनसून से पहले अत्यधिक तापमान वाले दिनों में बाहर खेलना किसी गर्म मिट्टी के चूल्हे पर चलने से कम नहीं होता- अक्सर पैरों में फफोले पड़ जाते हैं। गांव के तालाब सूख जाते हैं और इस कारण बच्चे अपने साथी मवेशियों के साथ पानी में गोता लगाने के अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं।
हालांकि मॉनसून आते ही पूरा परिदृश्य बदल जाता है। पहली बारिश अपने साथ फसलों, गांव के तालाबों, कुओं के लिए पानी और सबसे महत्वपूर्ण- किसानों के लिए एक उम्मीद लेकर आती है। वर्षा के महत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि हमारे देश के 60 प्रतिशत किसान (कुल फसली क्षेत्र का 55 प्रतिशत) सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं। इसके अलावा, वर्षा आधारित क्षेत्र देश में 64 प्रतिशत मवेशियों, 74 प्रतिशत भेड़ों और 78 प्रतिशत बकरी आबादी का भरण-पोषण करते हैं। इस तरह से, मॉनसून की तैयारी पूरे गांव के लिए एक पवित्र अनुष्ठान होता है। सामूहिक प्रयासों से तालाबों से गाद निकालकर साफ किया जाता है। खेतों की ठीक तरह से मेड़बंदी की जाती है। लेकिन बच्चों के लिए, हथेलियों पर बारिश के पानी की बौछारें और उसमें 'बारिश को पकड़ना' महसूस करना एक अद्भुत आनंद दे जाता है।
हम अपने समृद्ध इतिहास में गोता लगाएं तो पानी के भंडारण और सिंचाई के लिए जलाशयों की अद्भुत संरचनाओं की जानकारी मिलती है, जिसे मुख्य रूप से पानी की उपलब्धता में मौसमी उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए बनाया जाता था। उन्हें बावरी, बावड़ी, वाव (गुजराती) पुष्करणी (कन्नड़), बारव (मराठी) आदि जैसे अलग-अलग स्थानीय नामों से पुकारा जाता था। ऐसी संरचनाओं की सबसे पहली जानकारी 2500 ईसा पूर्व में मिलती हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के तहत मोहनजोदड़ो स्थल पर बेलनाकार ईंटों से बने कुओं और स्नानागार का पता चलता है। सबसे पहले घाट उत्तर भारत में 100 ईसवी के आसपास बनाए गए थे। इनमें से कई संरचनाओं से जटिल इंजीनियरिंग कौशल का पता चलता है और कुछ तो भूकंप में भी सुरक्षित रहे। इनमें से कुछ जलाशय हमारे पौराणिक महाकाव्यों से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं। मेरे संसदीय क्षेत्र में मौजूद कालका की बावड़ियों और मोरनी हिल्स के तालों का इस्तेमाल कथित तौर पर निर्वासन काल के दौरान पांडवों द्वारा किया गया था।
अब हम अलग युग में रह रहे हैं। हमें अपनी व्यक्तिगत और विकासात्मक दोनों जरूरतों के लिए पानी की आवश्यकता है। बढ़ती आबादी के साथ, हमारी पानी की जरूरत भी कई गुना बढ़ गई है। इस जरूरत का अधिकांश भाग भूजल से पूरा किया जाता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत किसी भी अन्य देश की तुलना में भूजल पर अधिक निर्भर है- यह भूजल की वैश्विक मांग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। आम तौर पर भारत के 1.35 अरब लोगों में से लगभग 80 प्रतिशत लोग पीने के पानी और सिंचाई दोनों के लिए भूजल पर निर्भर हैं। इसके चलते भूजल स्तर में खतरनाक स्तर पर गिरावट आई है।
हमारा देश 18 प्रतिशत वैश्विक मानव आबादी का घर है लेकिन इसके पास केवल 2 प्रतिशत भूमि और 4 प्रतिशत वैश्विक मीठे पानी के संसाधन हैं। भारत में सालाना औसतन करीब 1170 मिमी वर्षा होती है। इसका 80-90 प्रतिशत हिस्सा मॉनसून के दौरान प्राप्त होता है। ऐसे में वर्षा के पानी का दोहन बिल्कुल आवश्यक है।
एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, अगर बारिश के आधे पानी को भी बचा लिया जाए, तो भारत का हर गांव अपनी घरेलू पानी की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा (आर अग्रवाल और अन्य, 2001)। एक अन्य अध्ययन (यूएन-हैबिटेट एंड गवर्नमेंट ऑफ एमपी) में बताया गया है कि 250 वर्गमीटर के भूखंड में छत पर गिरने वाले वर्षा के पानी को संरक्षित किया जाए तो सालभर 5 लोगों के एक परिवार का काम (50 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन) चल सकता है।
बारिश के पानी को बचाने की आवश्यकता को महसूस करते हुए, मोदी सरकार ने साल 2019 में देश के 256 जल संकटग्रस्त जिलों को कवर करते हुए जल शक्ति अभियान (जेएसए) शुरू किया। यह अपनी तरह का पहला अभियान था जिसमें सीडब्लूसी और सीजीडब्लूबी के तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम ने संयुक्त सचिव रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में स्थानीय अधिकारियों को बारिश के पानी के दोहन के बारे में जागरूक करने के लिए क्षेत्र का दौरा किया। नतीजे काफी अच्छे रहे। छत के ऊपर गिरने वाली बारिश की बूंदों के संचयन और जल निकायों के कायाकल्प के लिए सफलतापूर्वक हस्तक्षेप किए गए।
अब, प्रधानमंत्री ने 22 मार्च 2021 को एक राष्ट्रव्यापी अभियान जल शक्ति अभियान 2 (जेएसए-2) शुरू किया है, जिसका शीर्षक है- बारिश की बूंदें बचाइए : जहां भी गिरे, जब भी गिरे। हमारा मकसद सभी बड़े सार्वजनिक और निजी उद्यमों को इस दिशा में अपने कार्यों को समन्वित कर लाभ उठाना है। हमारे मंत्रालय ने 'कैचिंग द रेन' के लिए हाथ मिलाने के लिए रक्षा, ग्रामीण विकास, पर्यावरण और वन मंत्रालय, कृषि, शहरी विकास, रेलवे, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, विश्वविद्यालयों आदि के साथ समन्वय किया है।
कोविड-19 की दूसरी गंभीर लहर के बावजूद, इस अभियान ने साधारण लेकिन महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 1.12 लाख जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन (आरडब्लूएच) संरचनाओं के निर्माण की जानकारी दी है, जिस पर 3,671 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं जबकि 1.35 लाख अतिरिक्त संरचनाओं पर कार्य प्रगति पर है। 1660 करोड़ रुपये की लागत से अब तक 24,332 पारंपरिक संरचनाओं और मौजूदा जलाशयों का नवीनीकरण किया गया है और जल्द ही 30,969 अतिरिक्त संरचनाओं का कायाकल्प होने की उम्मीद है। शहरी विकास मंत्रालय ने 897 आरडब्लूएच संरचनाओं का नवीनीकरण किया है जबकि 1.01 लाख नई आरडब्लूएच संरचनाएं बनाई गईं। संरचनाओं के निर्माण तक ही सीमित न होकर, इस अभियान ने फसल विविधीकरण, वनीकरण और जल उपयोग दक्षता (डब्लूयूई) पर सूचना के प्रसार को अपने शासनादेश के तहत आगे बढ़ाया है। कृषि विभाग ने केवीके के माध्यम से 315 प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए हैं जिसमें लगभग 10 हजार किसानों को उपयुक्त फसल और डब्लूयूई पर प्रशिक्षण दिया गया है। किसानों से उपयुक्त फसल लगाने के आग्रह के साथ लगभग 3,604 बीज पैकेट और 44,952 पौधे बांटे गए।
यह सब कोई नया खर्च किए बगैर, केवल विभिन्न विभागों के बीच तालमेल को बढ़ावा देकर और उनके आवंटित बजट का उपयोग करके हमारी सरकार के सिद्धांत- 'न्यूनतम सरकार-अधिकतम शासन' के अनुरूप किया गया है। तर्कसंगत और आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि- ये विभाग, बजट और अधिकारी पिछली सरकारों के लिए भी उपलब्ध थे फिर भी किसी ने इस पैमाने पर जल संरक्षण के महत्वपूर्ण मुद्दे पर परवाह क्यों नहीं की? किसी ने भी ऐसा विजन या मंशा क्यों नहीं दिखाई? मैं इसे आपके विचार के लिए छोड़ता हूं।
इस स्तर का कोई अभियान युवाओं की ऊर्जा को साथ लिए बना सफल नहीं हो सकता था। उन्हें एक महत्वपूर्ण हितधारक बनाने के लिए, नेहरू युवा केंद्र के समर्पित कैडर को 623 जिलों में सशक्त जागरूकता कार्यक्रम चलाने के लिए शामिल किया गया। 700 राज्य/जिला स्तर के एनवाईकेएस समन्वयकों को पहले ही प्रशिक्षण दिया जा चुका है और लगभग 2.27 करोड़ लोग अब तक उनके माध्यम से आयोजित करीब 16 लाख गतिविधियों में हिस्सा ले चुके हैं।
ऐसा कहा जाता है कि नेतृत्व में विजन को हकीकत में बदलने की क्षमता होती है। मोदी सरकार 2.0 में जल संरक्षण के मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखना श्री नरेन्द्र मोदी का विजन था। लगातार दूसरे कार्यकाल में शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना की गई और जेएसए-1 का शुभारंभ किया गया। प्रधानमंत्री मोर्चे पर नेतृत्व कर रहे हैं। इस अभियान की सफलता के लिए उन्होंने सभी ग्राम सरपंचों के साथ-साथ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सक्रिय रूप से भाग लेने और योगदान करने को कहा है। उनके प्रयास जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने के दृढ़ संकल्प को व्यक्त करते हैं। मुझे विश्वास है कि ईमानदार प्रयासों और जनभागीदारी से हम जल्द ही 'जल' आंदोलन को 'जन' आंदोलन में बदलने में सक्षम होंगे।
ऋग्वेद का एक श्लोक है जिसमें स्वर्ग के पुत्र 'परजन्य' (बादल) को पृथ्वी पर बारिश करने वाले देवता के रूप में बताया गया है जिसके चलते इस ग्रह पर जीवन का बीज अंकुरित होता है।
जेएसए-2 के साथ, जीवन और आजीविका को बनाए रखने के लिए आइए सामूहिक रूप से बारिश की बूंदों को बचाएं। वास्तव में, बचपन के दिनों में हमने अपने हाथों से जो कोशिश की थी, उसे तकनीकी हस्तक्षेप और जनभागीदारी की मदद से व्यापक रूप से बढ़ाने की जरूरत है।
(लेखक जल शक्ति राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)