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जम्मू-कश्मीर में उठता अलगाववाद देश के लिए घातक, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा

भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि समाज और राष्ट्र की सुरक्षा शस्त्र और शास्त्र (विचार) दोनों के बल पर होती है। शस्त्र सैन्य

tiwarishalini
Published on: 9 Jun 2017 1:34 PM IST
जम्मू-कश्मीर में उठता अलगाववाद देश के लिए घातक, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा
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प्रो.राजेंद्र प्रसाद

भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि समाज और राष्ट्र की सुरक्षा शस्त्र और शास्त्र (विचार) दोनों के बल पर होती है। शस्त्र सैन्य शक्ति के साधन हैं और भारतीय संविधान में विहित व्यवस्था के तहत सेनाओं को उनके प्रयोग का अधिकार है, जिससे आंतरिक और बाह्य आक्रमण के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

जल, थल और नभ सेनाओं की सीमावर्ती चौकसी और जान की बाजी लगाकर अनिवार्य फायरिंग और हिंसात्मक प्रतिरोध के कारण सीमापार से प्रायोजित अलगाववाद और आतंकवाद पर अंकुश लगाने में सफलता हासिल हुई है। यदि देश आंतरिक और बाह्य रूप से सुरक्षित है, पत्थरबाजी, अलगाववादी और आतंकवादी हिंसा से कश्मीर को मुक्त करने के लिए सेना और अन्य सुरक्षाबल और पुलिसकर्मी संघर्षरत हैं, तभी पार्थो जैसे इतिहासकार और विचारधाराओं की खिचड़ी पकाने वाले कई राजनीतिक लोग अपने घर में, सडक़ पर, दफ्तर में और देश के तनावग्रस्त परिवेश में सुरक्षित हैं।

इन्हें आतंकवादी परिवेश में निवार्य और अनिवार्य हिंसा का अन्तर समझ नहीं आता... कारण साफ यह है कि सुरक्षा के विचार पर विचारधारा की जलकुंभी इनके मन को प्रदूषित कर रही है।जम्मू-कश्मीर में उठता अलगाववाद और जड़ जमाता आतंकवाद प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तानी प्रॉक्सी युद्ध की शह में अत्यंत घातक रूप ले लिया है।इससे भारतीय क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता के लिए खुली चुनौती मिल रही है।राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।

ऐसी दशा में कश्मीर के अंदर विप्लव की चिनगारी बुझाने के लिए कठोर विकल्प अपनाने की जरूरत है।आगे कश्मीरी अवाम और खासतौर पर युवाओं को अलगाववादियों के चंगुल में फंसने से बचाना भी केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।आखिरकार, कश्मीर घाटी में बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं से कश्मीरी लोगों को बचाने वाली सेना के ऊपर गुमराह होकर पत्थर फेंकने वालों का मनफेर कब और कैसे होगा?

दुनिया की बेहतरीन और सर्वाधिक अराजनीतिक भारतीय सेना राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर जोखिम भरा बुरा दिन कैसे देख सकती है? यह भी काबिलेगौर है मानवाधिकारों के नाम पर राष्ट्रीय हितों के साथ खिलवाड़ करने वाले दंड के भागी क्यों न हों? धरती पर स्वर्ग कश्मीर और कश्मीरियों का अमन-चैन कौन छिन्न-भिन्न कर रहा है ? इसे अमन की संस्कृति या फिर अमन के लिए संस्कृति का नया दौर कहें या कुछ और?

वस्तुत: समकालीन परिवेश में भारत द्वारा आक्रामक नीतिगत पहल करके राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अवसरानुकूल साम, दाम, दण्ड, भेद सभी तरह के उपायों के ऊपर विचार करके, कारगर रणनीति अपनाते हुए, आईएसआई, पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों को सबक सिखाने का वक्त आ गया है।

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। ऐसी दशा में अलगाववादियों या पाकिस्तानपरस्त तत्वों के बहकावे में आकर गुमराह कश्मीरी युवाओं और निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा की जाने वाली पत्थरबाजी क्रूर, अनैतिक, अमानवीय और दंडनीय है। हालात को देखते हुए, क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा हेतु हरसंभव कदम उठाना आवश्यक है। देश के नीतिनिर्धारकों को सेना का मनोबल किसी भी दशा में गिरने नहीं देना चाहिए और उसे आम्र्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट के प्राविधानों के अनुसार कश्मीर में अलगाववादियों/आतंकवादियों और उनके समर्थकों के विरूद्ध पैलट गन सहित अन्य प्रतिक्रियात्मक बल प्रयोग करने की पूर्ण अनुमति व स्वतंत्रता चाहिए।

आखिरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता क्यों? साथ ही राष्ट्रीय हित में सभी स्टाक होल्डर्स से लोकतांत्रिक संवाद या बातचीत का विकल्प खुला रखना चाहिए।

भारत सरकार को निर्णायक समय का गुणानुवाद करके कश्मीरी अलगाववादियों को भी राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने का विकल्प खुला रखना चाहिए। पूर्वोत्तर राज्यों के ऐतिहासिक उदाहरणों से वार्ता संबंधी सबक/लाभ लेने में कोताही नहीं करनी चाहिए, वशर्ते संविधान की विहित व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय हितों की बलि चढऩे का कोई जोखिम न हो।

बार-बार नियंत्रण रेखा के पार से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों और उत्तरी कश्मीर में, खासतौर से उरी और कुपवाड़ा जैसी घटनाओं, भारतीय सेना के शिविरों पर होने वाले अप्रत्याशित हमलों से सबक लेते हुए अभेद्य रक्षात्मक और तकनीकी सुरक्षा प्रबंध अपरिहार्य है।

कश्मीर में आंतरिक और बाह्य सुरक्षा और संरक्षा में पुख्ता संतुलन बनाना केंद्र और राज्य दोनों का कर्तव्य है। पूर्ण संकल्प-विकल्प चाहिए, शिक्षा सर्व-गुनसम्पन्न युवा जनशक्ति का साधन और साध्य है। कश्मीर घाटी में गुमराह हो रहे छात्रों/छात्राओं द्वारा सुरक्षाबलों के ऊपर पत्थरबाजी अलगाववादी राजनीतिक घात-चाल का कुत्सित नमूना है। इससे पहले कि स्थिति बद से बदतर हो, सम्हल जाने की आवश्यकता है।

इसके लिए सरकार, कश्मीरी अवाम, गुमराह हो रहे युवाओं के परिवार वालों, स्थानीय प्रशासन, शिक्षण संस्थानों/कश्मीर विश्वविद्यालय इत्यादि सभी द्वारा शांत मन से विचार करने की आवश्यकता है।युवाओं के मनोवैज्ञानिक विपथन को रोकना होगा, वरना बढ़ती अस्थिरता और कलह से कश्मीर में अमन और विकास का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कश्मीरी लोगों की निशि-वासर मदद करने वाले सुरक्षाबलों/सैन्य बलों के जवानों पर पत्थरबाजी क्रूर, अमानवीय और दंडनीय अपराध है।

लोग कब समझेंगे, सुधरेंगे? कश्मीर का अधिकांश युवा, सामान्य नागरिक सुख चैन की जिंदगी जीना चाहता है। लेकिन पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी भारतीय मीडिया एक वर्ग की मदद से पूरे कश्मीर को आतंकवादी एवं सेना द्वारा प्रताडि़त प्रचारित कर रहे हैं? क्या यह भारतीय पत्रकारिता के इस शाल वाले झूठे स्वरूप की विद्रूपता प्रकट नहीं करता? सेना झूठी और पत्थरबाज सच्चा, यह दुर्भाग्यजनक वातावरण बनाना न तो भारत के हित में है और न ही सेना का मनोबल बढ़ाने वाला। इससे केवल पाकिस्तान समर्थक चन्द्र लोगों का ही हौसला बढ़ेगा।

आखिर यह बात उन्हें कौन बताएगा कि श्रीनगर की बाढ़ में किसने मदद की? उस समय क्या गिलानी के पत्थरबाजों ने संकट में फंसे अपने ही भाई-बहन की मदद के लिए सामने आने की बहादुरी दिखायी थी? कश्मीर में सेना के 40 से ज्यादा प्रथम श्रेणी के सद्भावना विद्यालय चल रहे हैं।

जहां 14 हजार से ज्यादा कश्मीरी प्राय: शत प्रतिशत मुस्लिम बच्चे-बच्चियां पढ़ रहे हैं। इनमें से दस विद्यालयों में मैं स्वयं जाकर आया हूं, शोपियां जैसे आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र में भी सद्भावना विद्यालय हैं। इतना श्रेष्ठ स्तर है इन विद्यालयों का कि वहां के अस्पताल और डॉक्टर ग्रामीण कश्मीरियों की नि:शुल्क चिकित्सा करते हैं, उनकी आपातकालीन मदद करते हैं जो शायद शेष देश के ग्रामीणों को उपलब्ध नहीं है। हजारों कश्मीरी युवा युवतियों को गृह मंत्रालय तथा सेना द्वारा मुफ्त में दिल्ली, बंगलौर, हैदराबाद, उत्तराखंड घुमाकर उनमें अखिल भारतीय दृष्टि पैदा करने का प्रयास किया जाता है।

लेखक (प्रो. राजेंद्र प्रसाद) इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति और रक्षा विशेषज्ञ हैं।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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