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Janmashtami : उस समय तो छोटी-छोटी बातों पर प्रकट हो जाते थे, अब क्यों नहीं आते कान्हा ?

उस समय तो छोटी-छोटी बातों पर प्रकट हो जाते थे कहीं भी, किसी की भी मदद करने को, किसी को भी उबारने के लिए। तो अब क्या हो गया है? कोई नाराजगी है तो बताओ ना!

DR CP Rai
Written By DR CP RaiPublished By Ashiki
Published on: 30 Aug 2021 10:27 AM GMT
Janmashtami
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Photo Newstrack) 

उस समय तो छोटी-छोटी बातों पर प्रकट हो जाते थे कहीं भी, किसी की भी मदद करने को, किसी को भी उबारने के लिए। तो अब क्या हो गया है? कोई नाराजगी है तो बताओ ना! देखो सब अधीर है तुम्हारे लिए की तुम कब आओगे, कब उबारोगे भारत को इन ना ख़त्म होने वाली महाभारतो से। तब तो एक दो मौको पर ही झूठ और छल का सहारा लिया गया था, अब तो केवल झूठ और छल से ही सब हो रहा है।

ऐसा लगता है कि तुम्हारे बारे में नई दृष्टि से देखने तथा नए ढंग से सोचने की जरूरत है, क्योकि कृष्ण तुम्हारा मतलब तो था कि वो जो सदैव दूसरो का था, दूसरो के लिए था, जिसकी जन्म देने वाली माँ पीछे छूट गयी और पालने वाली बाजी मार ले गई, जिसके दोस्त की चर्चा कही बहुत ज्यादा हुई और भाई पीछे छूट गया था, जिसकी पत्नी या पत्नियों को उनकी दोस्त राधा से बड़ी जलन हुई थी और हो सकता है आज भी हो रही हो, जो एक साथ सोलह हजार को अपना लेने की क्षमता रखता था, जो सत्ता को चुनौती देने की क्षमता रखता था और जिसने उस युग में एक युद्ध छेड़ दिया था की जो खा नही सकता उस भगवान को क्यों खिलाते हो। शायद सूंघ भी नही सकता, इसलिए लाओ मैं खा सकता हूँ। मुझे खिलाओ और उन सब को खिलाओ जिन्हें भूख लगती है।

केवल चुनौती ही नहीं दिया था वरन जब मुसीबत आई थी तों सभी की रक्षा में आगे आकर खड़ा हो गया था यह तुम्ही तो थे कृष्ण। मैं सोचता हूँ की इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए तुमने कैसे अपनी छोटी सी उंगली पर इतना बड़ा पहाड़ उठाया होगा। तुम्हारी उंगली दुखी तों जरूर होगी और शायद आज भी दुख रही है कही इसीलिये तों नही तुम नही आ रहे हो की उंगली पर पट्टी बांध कर बैठे हो, लेकिन ऐसा लगता है की उस पहाड़ के उठाने से ज्यादा तुम्हारे नाम पर किये जा रहे पापों के बोझ से तुम्हारा सर और पूरा शरीर दुख रहा है। कितना पैदल चले थे तुम कृष्ण, नाप दिया पूरब से पश्छिम तक भारत को ओर दो छोरो को जोड़ दिया। परिचय करा दिया इतने बड़े हिस्से का एक दूसरे से।

कभी सोचता हूँ की यदि जूआ नही होता रहा होता तों क्या होता, यदि द्रौपदी उस दिन हंसी नही होती तो क्या हुआ होता, यदि द्रौपदी की साड़ी भरी सभा में नही खींची गई होती तों क्या होता, इतिहास कौन सी करवट लेता। भारत ,महाभारत होता या फिर भी भारत में तब भी महाभारत होता, सवाल बड़ा है जवाब आसान नही है, लेकिन कृष्ण तुम आज मंदिरों में फूल मालाओ ,भारी भारी कपड़ो और बड़े बड़े मुकुटों के नीचे दब कर कराह रहे हो ऐसा लगता है कभी कभी मुझे कृष्ण तुम्हारा मतलब ही था बड़े दिल वाला, दूसरो को अपनाने वाला, हर अन्याय से संघर्ष करने वाला आज अपने अस्तित्व के लिए कही तुम्ही जूझ रहे हो कृष्ण। तुम्हे इस संघर्ष से निकलना ही होगा और आकर फिर से कहना ही होगा; रे दुर्योधन मै जाता हूँ, तुझको संकल्प सुनाता हूँ, याचना नही अब रण होगा। जीवन जय या की मरण होगा।

तुम्ही बताओ की कैसे तुम्हारी दुखती उंगली का दर्द घटे , कैसे तुम्हारे सर और शरीर का बोझ हटे और सम्पूर्ण कलाओं का मालिक कृष्ण ,संघर्ष और न्याय का प्रतीक कृष्ण स्वतंत्र होकर फिर हमारे सामने हो।विराट स्वरुप दिखाता हुआ, आज के सन्दर्भ में गीता का ज्ञान देता हुआ और इस सभी तरह की महाभारतों से निकाल कर फिर से भारत को भारत बनता हुआ। अब तो आ रहे हो ना कृष्ण, कृष्ण तुम आओ ना, देखो सुनो मीरा कही अब भी गा रही है और मीरा क्या उसके स्वर में स्वर मिला कर सब गा रहे है। मेरे तो गिरधर गोपाल दूजो ना कोय।

Ashiki

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