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Janmashtami 2024 : भारतीयता की अनुभूति है कृष्ण जन्माष्टमी

Janmashtami 2024 : त्योहारों का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूर्ण विधि विधान से भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस त्योहार का न केवल धार्मिक महत्व है, अपितु इसका सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक महत्व भी है।

Richa Singh
Written By Richa Singh
Published on: 24 Aug 2024 5:01 PM IST
Janmashtami 2024 : भारतीयता की अनुभूति है कृष्ण जन्माष्टमी
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Pic - Social Media)

ऋचा सिंह

त्योहार किसी भी देश एवं उसकी संस्कृति के संवाहक होते हैं। त्योहारों के कारण ही हमें अपनी प्राचीन गौरवशाली संस्कृति को जानने एवं समझने का अवसर प्राप्त होता है। यदि त्योहार नहीं होते, तो हमें अपने देवी-देवताओं एवं महापुरुषों तथा उनके जीवन के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। त्योहारों का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूर्ण विधि विधान से भारत सहित विश्व के विभिन्न भागों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस त्योहार का न केवल धार्मिक महत्व है, अपितु इसका सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक महत्व भी है।

धार्मिक महत्व

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। भगवान विष्णु ने भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को देवकी एवं वासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। मान्यताओं के अनुसार, मथुरा नरेश कंस बहुत अत्याचारी था। वह प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था। उसका नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने मथुरा में जन्म लिया था। कहा जाता है कि कंस अपनी बहन देवकी से अत्यधिक स्नेह करता था। एक दिन वह अपनी बहन को लेकर कहीं जा रहा था, तब आकाशवाणी हुई कि जिस बहन से तू इतना स्नेह करता है उसी के आठवें पुत्र के हाथों तेरा वध होगा। इस भविष्यवाणी को सुनकर कंस बहुत भयभीत हो गया तथा उसने अपनी बहन एवं उसके पति को कारागार में बंद कर दिया। मृत्यु के भय के कारण उसने अपनी बहन के सात नवजात शिशुओं का वध कर दिया। देवकी के आठवें पुत्र के जन्म के समय मूसलाधार वर्षा हो रही थी तथा अंधकार व्याप्त था।

श्रीकृष्ण का जन्म होते ही देवकी एवं वासुदेव की बेड़ियां खुल गईं। कारागार के द्वार भी स्वयं ही खुल गए तथा पहरेदार सो गए। वासुदेव उफनती हुई यमुना पार करके अपने पुत्र को गोकुल ग्राम में अपने मित्र नन्द के घर ले गए। वहां नन्द की पत्नी यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया था। नन्द ने श्रीकृष्ण को अपनी पत्नी के पास लिटा दिया और अपनी पुत्री वासुदेव को सौंप दी। जब वासुदेव कारागार आ गए तो सब कुछ पूर्व की भांति हो गया। शिशु के जन्म का समाचार प्राप्त होते ही कंस वहां आया तथा उसने कन्या को पटक कर मारना चाहा, किन्तु वह यह कहते हुए आकाश की ओर चली गई कि तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Pic - Social Media)

इसके पश्चात कंस ने अपने राज्य के सभी नवजात बालकों की हत्या करने का आदेश दे दिया। उसके सैनिक घर-घर जाकर नवजात शिशुओं को खोजते तथा उन्हें मौत के घात उतार देते। कंस के अत्याचारों से तंग आकर बहुत से लोग राज्य छोड़कर जाने लगे, परन्तु सभी ऐसा नहीं कर सकते थे। दिन-प्रतिदिन कंस के अत्याचार बढ़ते ही जा रहे थे। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के भी अनेक प्रयास किए, किन्तु बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने कंस द्वारा भेजे गए सभी राक्षसों को मार दिया। युवा होने पर उन्होंने कंस को मारकर मथुरा को उसके अत्याचारों से मुक्त करवाया। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण गोकुल में नन्द बाबा के घर में हुआ। श्रीकृष्ण की अनेक लीलाएं हैं, जो उल्लेखनीय हैं। इन पर असंख्य साहित्यिक ग्रंथ लिखे गए हैं।

हिन्दुओं का प्रमुख ग्रंथ भगवद गीता श्रीकृष्ण की वाणी है। उन्होंने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को कुरुक्षेत्र में जो उपदेश दिए थे, वे इसमें संकलित हैं। इसमें धर्म, कर्म, भक्ति, प्रेम, वैराग्य एवं मोक्ष आदि का उल्लेख मिलता है। इसमें जीवन दर्शन है तथा जीवन का सार भी है।

सांस्कृतिक महत्व

भारत सहित विश्वभर के हिन्दू बहुल देशों में जन्माष्टमी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार पर मंदिरों की साज-सज्जा की जाती है। उनमें रंगोलियां भी बनाई जाती हैं। श्रद्धालु उपवास रखते हैं। वे पूजा-अर्चना करते हैं। सत्संग एवं कीर्तन भी किए जाते हैं। बहुत से मंदिरों में 'भागवत पुराण' एवं 'भगवद गीता' का पाठ होता है। नाट्य मंडलियों द्वारा कृष्ण लीला का आयोजन किया जाता है। नाट्य मंचन में गीत एवं नृत्य भी सम्मिलित रहता है। नगर में शोभायात्रा भी निकाली जाती है। इन सब आयोजनों से श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन एवं उनके कार्यों की जानकारी प्राप्त होती है। इस प्रकार बालक बाल्यकाल से ही अपने देवी-देवताओं के संबंध में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। समय का चक्र घूमता रहता है। तदुपरांत यही बच्चे अपने त्योहारों पर विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन करके ये ज्ञान अपने बच्चों को देते हैं। इसी प्रकार ये ज्ञान निरंतर आगे बढ़ता रहता है।

इन आयोजनों के कारण रंगोली, भजन-कीर्तन, नाटक, नृत्य आदि कलाओं का भी विकास होता है। त्योहार हमारी शास्त्रीय एवं लोक कलाओं के भी संवाहक हैं। इनके कारण ही अनेक कलाएं फलफूल रही हैं, वरन ये कब की लुप्त हो चुकी होतीं। विदेशों में जन्माष्टमी मनाए जाने के कारण भारतीय संस्कृति विश्व के कोने-कोने में पहुंच रही है। जिस समय विश्व के अनेक देश अज्ञान के अंधकार में डूबे हुए थे, उस समय भी हमारी संस्कृति अपने शिखर पर थी।

सामाजिक महत्व

त्योहारों का सामाजिक महत्व भी है। श्रीकृष्ण ने विश्व को प्रेम, करुणा, न्याय एवं सद्भाव का संदेश दिया। सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए इन्हीं गुणों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। जन्माष्टमी भी इसी सद्भाव को बनाए रखने का संदेश देती है। वास्तव में जब एक परंपरा के लोग आपस में मिलकर कोई त्योहार मनाते हैं तो उनमें प्रेम एवं भाईचारे का संचार होता है। इसके अतिरिक्त यदि अन्य धर्म एवं पंथ के लोग इसमें सम्मिलित होते हैं, तो इससे सामाजिक सद्भाव, प्रेम एवं भाईचारा बढ़ता है। भारतीय संस्कृति भी ऐसी ही अर्थात सबको अपनाने वाली। हमारा आदर्श वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ है अर्थात पूरा विश्व एक परिवार है। यह वाक्य सदैव से ही प्रासंगिक रहा है, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर सामूहिक कल्याण को प्राथमिकता देता है। यही भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है, जो इसकी महानता का प्रतीक है।

अन्य त्योहारों की भांति जन्माष्टमी पर भी भंडारे किए जाते हैं, जिनमें प्रसाद वितरित किया जाता है तथा सामूहिक भोजन ग्रहण किया जाता है। मंदिरों के अतिरिक्त बाजारों में भी भंडारों का आयोजन किया जाता है। लोग चंदा एकत्रित करके भी भंडारे करते हैं। अनेक स्थानों पर क्षेत्र के लोग ही आपस में सब्जियां, अनाज व अन्य खाद्य वस्तुएं एकत्रित करके भोजन बनाते हैं। इस कार्य में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं। भोजन बनाने से लेकर भोजन परोसने तक में उनका योगदान सम्मिलित रहता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Pic - Social Media)

इसके अतिरिक्त इन भंडारों के कारण उन लोगों को भी भरपेट स्वादिष्ट भोजन मिल जाता है, जो अभाववश स्वादिष्ट भोजन ग्रहण नहीं कर पाते हैं। भंडारे में सब लोग मिलजुल कर भोजन ग्रहण करते हैं। यहां किसी प्रकार का भेदभाव अथवा ऊंच-नीच का भाव नहीं होता। यह सामजिक समरसता को बढ़ावा देता है। आज के समय में इसकी अत्यधिक आवश्यकता है।

आर्थिक महत्व

त्योहार आर्थिक गतिविधियों के भी केंद्र होते हैं। जन्माष्टमी से पूर्व ही इसकी तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं। मंदिरों को सजाया जाता है। इसके लिए बहुत से सजावटी सामान की आवश्यकता होती है, जिनमें बिजली की झालरें एवं पुष्प आदि भी सम्मिलत हैं। पुष्पों का एक बड़ा बाजार हैं, जिनमें असंख्य लोग लगे हुए हैं। पुष्प की खेती से लेकर फूल मालाएं बनाने वाले लोगों तक को रोजगार प्राप्त होता है। इसके साथ-साथ मिष्ठान वालों एवं हलवाइयों का कार्य भी बढ़ जाता है। बाजारों में जन्माष्टमी से संबंधित सामान की भरमार देखने को मिलती है। इस सामान को बनाने वालों से लेकर बाजार में इन्हें विक्रय करने वालों को भी रोजगार प्राप्त होता है। जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति के विविध आयामों को मजबूत करता है एवं जीवन मूल्य तथा संबंध मूल्य को स्थापित करता है। नि:संदेह जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम है।

(लेखिका - बेसिक शिक्षा परिषद - कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में शिक्षिका हैं।)

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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