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भगत सिंह फिर जन्मे, मगर पड़ोस के घर में!

देश बनता है राष्ट्रनायकों के उत्सर्ग से। संघर्षशील इस्राइल इस तथ्य का जीवंत प्रमाण है।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 24 May 2021 2:54 PM GMT
Israel
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इस्राइल की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

देश बनता है राष्ट्रनायकों के उत्सर्ग से। संघर्षशील इस्राइल इस तथ्य का जीवंत प्रमाण है। आठ अरब देशों, सभी शत्रु, की 42 करोड़ आबादी का मुकाबला सात दशकों से 90 लाख जनसंख्या वाला इस्राइल अकेला कर रहा है। तीन युद्ध लड़ा और सभी जीता भी।

इस्राइल में हर 18 वर्ष से ऊपर का किशोर अनिवार्य तौर पर दो वर्षों तक सेना में​ शिक्षण पाता है। सिवाय दिव्यांग और धर्म कार्य में रत लोगों के। युवतियों के लिये भी सैन्य सेवा अनिवार्य है। प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू तो सेना में प्रशिक्षित रहे और युद्धरत भी। उनके दो बेटे हैं। बड़ा तीस—वर्षीय येयर नेतन्याहू फौजी सेवा कर, अब अंतरराष्ट्रीय विषय पढ़ा रहा है। अब उसका अनुज छब्बीस—वर्षीय एवरिल भी सेना में भर्ती हुआ। वह सेना कम्बेट विंग (लड़ाकू बटालियन) में भर्ती हुआ। हालांकि प्रधानमंत्री के पुत्र को कम खतरनाक टुकड़ी में रखने की पेशकश हुई थी। मगर ए​वरिल ने स्पष्ट किया कि वह अपने पिता तथा अग्रज की भांति सार्वजनिक जीवन में नहीं जाएगा। राजनीति से उसे घृणा है। वह इसे भ्रष्टाचार और तुरंत अमीर बन जाने का सुलभतम राह बताता है। उनके पिता पर जब राजपद के दुरुपयोग और गबन का मुकदमा चला था तो उसने न्यायिक प्रक्रिया समुचित चलाने पर जोर दिया था। अर्थात यदि पिता दोषी पाया गया तो जेल जाये। कुछ समय पूर्व जब उसके माता—पिता उसे सैन्य प्रशिक्षण हेतु भेज रहे थे तभी से एविरल ने संघर्ष को ही जीवन का लक्ष्य बनाया।

शायद यही कारण है कि आज सारे शत्रु राष्ट्रों से घिरे रहने के बावजूद इस्राइल जीत रहा है। अरब आतंकियों के प्रदेश गाजापट्टी को गत सप्ताह तबाह कर उसने अपनी अपराजेय स्थिति को सिद्ध कर दिया।

अब भारत से इस्राइल की तुलना कर लें। करीब 135 करोड़ जनसंख्या वाला यह गणराज्य है जिसकी भूमि का दायरा करोड़ों वर्ग किलोमीटर का है। मगर अपनी सेना का विस्तार अधिक नहीं कर पा रहा है। मसलन गुजरात राज्य से सेना में कोई भर्ती होता ही नहीं। सभी व्यापार पसंद करते है। मुझे याद है जब 15 अगस्त, 1968 के दिन आजाद भारत के युवजन 21 वर्ष की आयु पूरा करते ही गणतंत्र के नागरिक और वोटर बने थे। तब गुजरात के राज्यपाल गांधीवादी अर्थशास्त्री श्रीमन नारायण अग्रवाल की पत्नी मदालसा नारायण ने सुझाया था कि 'टाइम्स आफ इंडिया', अहमदाबाद, एक सर्वेक्षण कराये कि ये नये बने वोटर क्या बनना चाहते है और राष्ट्रनिर्माण में कैसा योगदान करना चाहेंगे? मदालसाजी उद्योगपति बजाज परिवार की थीं। सेवाग्राम में बापू के सान्निध्य में प्रेरित हुयीं थीं।

हमारे चीफ रिपोर्टर आरवी रामन ने मुझे सर्वेक्षण की जिम्मेदारी सौंपी। जितने युवाओं का मैंने साक्षात्कार किया था एक ने भी सैन्यसेवा को अपनी पसंद नहीं बताया। गुजरात विश्वविद्यालय के प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण एक छात्र ने बताया कि वह न तो आईएएस (सिविल) प्रतियोगिता में जायेगा, न प्रबंधन (अहमदाबाद में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट) का ही छात्र बनेगा। उसकी केवल हसरत थी कि वह अपने व्यापारी पिता की पेढ़ी पर बैठकर वंशानुगत व्यापार का अधिक विस्तार करे।

अब इस्राइल की तुलना गुजरात से करें। भूभाग में गुजरात दोगुना है, दो लाख वर्ग किलोमीटर का है। जनसंख्या भी सवा छह करोड़ है, इस्राइल का छह गुना है। दोनों सीमावर्ती इलाके हैं। मगर गुजरात—पाकिस्तान सीमा की रक्षा में कोई गुजरात रेजिमेन्ट नहीं है।

इसी परिवेश में गौर करें जरा ब्रिटेन के युद्धकालीन अनिवार्य सैनिक प्रशिक्षण पर। प्रथम विश्वयुद्ध में प्रधानमंत्री हर्बर्ट एस्क्विथ थे। हर घर से एक बालिग के लिये नियम था (conscrption) सेना में भर्ती होने का। जर्मनी से जंग (28 जुलाई, 1914 से 11 नवम्बर, 1918) करने के लिए प्रधानमंत्री का इकलौता पुत्र रेमण्ड फ्रांस के मोर्च पर तैनात हुआ। वहां वह जर्मन सेना की गोली लगने से शहीद हो गया। तब ब्रिटिश हाउस आफ कामंस (लोकसभा) में शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ''रेमंड मेरा इकलौता बेटा था। प्रतिष्ठित आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का प्रोफेसर रहा। बैरिस्टरी पढ़ा। राजनीति में जाता तो देश का प्रधानमंत्री हो सकता था। मगर देश सेवा में शहीद हुआ।'' फिर ब्रिटिश नेता ने कहा, ''हमें सीखना होगा हमारे साम्राज्य के प्राचीनतम उपनिवेश भारत से। वहां युद्ध होते रहते हैं। पर क्षत्रिय लोग सेना संभालते हैं। वणिक अर्थ व्यवस्था संभालते हैं। बौद्धिक धरोहर विप्रवर्ग बचाता रहता है। भारत में कर्तव्यों का परिसीमन है। समाज निर्बाध प्रगति करता रहता है।''

भारत सत्याग्रह और जेल के बल पर आजाद हुआ था। किन्तु अब उसके बारे में जन—अवधारणा बदली है। हर राजनेता अपनी संतान को चुनाव लड़ाता है, पार्टी का पद देता है। सारे पुत्र—पुत्री संपन्न सियासत में जाते हैं। सेना के कॅरियर को शायद ही ये ''जननायक'' लोग आत्मजों हेतु चयनित करेंगे। अर्थात भगत सिंह फिर जन्मे, मगर पड़ोसी के घर में। इस्राइल और भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोणों में यही विशिष्ट अन्तर है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Raghvendra Prasad Mishra

Raghvendra Prasad Mishra

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