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आपदा में अवसर : जिसने पाया, सबने भुनाया
कोरोना के पहले राउंड में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से ताली व थाली बजवायी थी।
कोरोना के पहले राउंड में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से ताली व थाली बजवायी थी। तब अपने संबोधन में एक नया वाक्य भी उनने गढ़ा था- "आपदा में अवसर।" उन्हें क्या पता था कि यह आपदा में अवसर वाला उनका मुहावरा कोविड के साथ पॉज़िटिव शब्द जुड़ने जैसे ही अपना अर्थ खो बैठेगा। आज पूरी दुनिया में पॉज़िटिव शब्द बोलना, इसका ज़िक्र किया जाना सकारात्मक नहीं वरन बड़े नकारात्मक अंदेशों को जन्म देता है। अब ऑप्टीमिस्टिक शब्द ने पाजिटिव की जगह ले ली है।
नरेंद्र मोदी कोरोना काल के आपदा में अवसर तलाश करके आगे बढ़ने, चुनौतियों से लड़ने व कोरोना पर विजय प्राप्त करने की बात कर रहे थे। पर लोगों ने अपने स्वहितपोषी अर्थ निकाले। उस पर अमल शुरू कर दिया।
आपदा में अवसर की तलाश सिर्फ़ राजनेताओं व सरकारी हुक्कमरानों में ही नहीं दिखता है। बल्कि समाज के हर तबके में यह भावना दिख रही है। हमारे एक साथी आशुतोष त्रिपाठी हैं। कल वह बता रहे थे कि उनकी महिला मित्र के पिताजी कोविड के शिकार होकर स्वर्ग सिधार गये। पर उनके केवल दो बेटियां ही थीं। कंधा देना ज़रूरी होता है। दो लड़कों को वे कंधा देने के लिए हज़ार हज़ार रुपये पर लायीं। बाद में पता चला कि बहुत से लोग यह काम कर रहे हैं। दिन में पाँच से दस हज़ार तक बन जाते हैं। घाट का डोम भी पंडित का काम करने लगा है। ओम नम: सुहाय बोलने की उसने फ़ीस बढ़ा दी है। बड़ी—बड़ी गाड़ियों में ऑक्सीजन सिलेंडर बेचने और पैसा कमाने का दृश्य आम है। हमारे कई परिचितों ने मंहगे दामों पर ऑक्सीजन सिलिंडर ख़रीदने की हृदय विदारक बात बतायी। रेमडिसीवर इंजेक्शन के ब्लैक होने की बात भी आम है। हालाँकि बाद में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड मरीज़ के लिए इस इंजेक्शन की ज़रूरत को ख़ारिज कर दिया। दवाओं, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर, स्टीमर आदि यंत्रों की कमी व कालाबाज़ारी में भी अवसर लोगों ने नहीं गंवाये।
बाबा रामदेव ने कोरोना की दवा के नाम पर अपनी कोरोनिल बेच कर ढाई सौ करोड़ रुपये कमाये। दवा के लांचिंग के समय देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी उनके साथ थे। यह बात दीगर है कि बाद में सेठ रामदेव को अपना स्टैंड बदलना पड़ा कि यह एम्युनिटी की दवा है। स्वयंसेवी संस्था ऑक्सफेम के 'द पीपुल्स वैक्सीन अलायंस' का कहना है कि कोरोना वैक्सीन से हुए मुनाफे से नौ लोग खरबपति बन चुके हैं। इन नौ लोगों की संपत्ति में 19.3 अरब डॉलर यानी करीब 14 खरब रुपये का इजाफा हुआ है। वैक्सीन के चलते नए बने खरबपतियों के अलावा आठ मौजूदा खरबपतियों की संपत्ति में कुल 32.2 अरब डॉलर यानी करीब 25 खरब रुपये की वृद्धि हुई है। नए खरबपतियों की सूची में टॉप पर अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना के स्टीफन बैंसल और जर्मनी की बायोएनटेक के उगुर साहीन का नाम है। तीन अन्य नए खरबपति चीन की वैक्सीन कंपनी कैनसीनो बायोलॉजिक्स के संस्थापक हैं।
आपदा में अवसर का सकारात्मक उदाहरण न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिन्दा आर्दर्न का हैं। वह दुनिया के महानतम नेताओं में टॉप पर हैं। फार्च्यून ने लिखा है कि कोरोना महामारी के दौरान जेसिन्दा ने जिस तरह अपना काम किया वह अद्भुत है। उन्होंने न सिर्फ वायरस को कंट्रोल किया बल्कि अपने देश में उसका पूरी तरह खात्मा कर दिया। करीब 50 लाख की आबादी वाले न्यूजीलैंड में 2700 से भी कम केस आये और सिर्फ 26 मौतें हुईं।
आपदा में अवसर तलाश कर ही कोविड शील्ड वैक्सीन बनाने वाले आदर पूनावाला व उनके पिता भारत छोड़ ब्रिटेन चले गये। अपनी कंपनी के शेयर भी सौ से अधिक करोड़ में बेच दिया। आपदा में अवसर का ही नतीजा कहेंगे कि कभी पाइप बनाने की फ़ैक्ट्री चलाने वाले गौतम अड़ानी एशिया के दूसरे नंबर के कुबेर बन बैठे। आपदा में अवसर का नतीजा है कि वैक्सीन बनाने का काम भारत से कोरिया को शिफ़्ट कर रहा है। तभी तो अमेरिका की मॉडर्ना कम्पनी कोरिया के इन्चेन द्वीप में प्रोडक्शन प्लांट लगाने पर विचार कर रही है। ये द्वीप बायो कम्पनियों के लिए मुफीद लोकेशन है। यहां के 9 लाख 20 हजार वर्ग मीटर के सोंग्दो इंटरनेशनल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट में 60 कोरियन और विदेशी बायो कंपनियां और रिसर्च सेंटर स्थित हैं। इनमें सैमसंग बायोलॉजिक्स, सेलट्रियान और मर्क जैसी दिग्गज कम्पनियां शामिल हैं।
सैमसंग बायोलॉजिक्स और सेलट्रियान, प्रोडक्शन सुविधाएं और रिसर्च व डेवलपमेंट सेंटर स्थापित करने के लिए करीब पौने दो खरब रुपये लगा रही हैं। इन दोनों कम्पनियों के दूसरे और चौथे प्लांट्स का निर्माण जारी है। इन कंपनियों का लक्ष्य इस क्षेत्र को बायो मेडिकल प्रोडक्ट्स के लिए विश्व का सबसे बड़ा हब बनाना है।
पहले जनता को आरटीपीसीआर टेस्ट की जगह एंटीजन टेस्ट करके एक ओर कोरोना के मरीज़ों की संख्या घटाई गयी। दूसरी ओर यह दावा किया गया कि सरकार ने बहुत बड़ी संख्या में टेस्ट कर दिये हैं। यह तब किया गया जब आम धारणा यह है कि एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट सटीक नहीं होती है। यही नहीं, दूसरी लहर में आरटीपीसीआर टेस्ट पर सवाल उठे, क्योंकि बहुत लोगों में कोरोना के कई गंभीर लक्षण होने के बावजूद उनकी आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई।
तब सरकार ने कहा है कि आरटीपीसीआर टेस्ट ब्रिटेन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और डबल-म्युटेंट वेरिएंट्स को पकड़ने से नहीं चूकता, क्योंकि भारत में हो रहे टेस्ट दो से अधिक जीन को निशाना बनाते हैं।
इससे निपटने के लिए जब फेफड़े के सीटी स्कैन की ओर जनता ने रूख किया तो एम्स के निदेशक गुलेरिया यह ज्ञान देने लगे कि सीटी स्कैन कितना खतरनाक है। मत करायें। आख़िर फ़ाल्स निगेटिव के लिए जनता जाये तो जाये कहाँ? एक हॉस्पिटल दूसरे हॉस्पिटल के कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट मानने को तैयार नहीं है। सब अपना—अपना टेस्ट करा रहे है।
यह आपदा में अवसर का ही नतीजा है कि गुजरात में 1 मार्च से 10 मई के बीच कोरोना से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 4218 का है, जबकि इसी अवधि में राज्य में 1 लाख 23 हजार डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए। पिछले साल 1 मार्च से 10 मई के बीच 58 हजार डेथ सर्टिफिकेट जारी हुए थे। यानी इस साल 65 हजार से ज्यादा मौतें हुईं हैं। मौत के आँकड़ों को छिपाये जाने के लिए करतब व कसरत के साथ नौकरशाही को निर्देश दिया जाना तो रस्मी बात है।
गार्जियन अखबार आपदा में सरकार के कामकाज की निंदा करता है तो डेली गार्जियन में तारीफ़ छपवाकर अवसर तलाश लिये जाते हैं। जबकि "द गार्जियन" लंदन का प्रतिष्ठित अख़बार व वेब साइट है।
"द डेली गार्जियन" पूर्व भाजपा मंत्री व पत्रकार एमजे अकबर द्वारा स्थापित "संडे गार्जियन" अखबार का दैनिक ई संस्करण है। अब ये अखबार आईटीवी नेटवर्क के पास है। इस ग्रुप के पास इंडिया न्यूज और न्यूज़ एक्स समेत 12 न्यूज़ चैनल और अखबार हैं। इस ग्रुप के मालिक पूर्व कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा के बेटे कार्तिकेय शर्मा है।
भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने कोरोना से बचने के लिए ऐसे—ऐसे ज्ञान बांटे जिसे सुनकर विश्वास करने की जगह लोगों को हैरानी हुई। किसी ने शरीर पर मिट्टी का लेपन करके दावा किया कि इससे कोरोना नहीं होगा, तो कुछ लोग हवन करके कोरोना को भगाने में लग गए। इतना ही नहीं, बलिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने दावा कर डाला कि गौ मूत्र पीने से कोरोना नहीं होगा। तो वहीं भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने एक कदम और बढ़ते हुए कहा कि वह गौ मूत्र का सेवन कर रही हैं। इससे उन्हें कोरोना नहीं होगा। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि महामारी के प्रति हम कितने जिम्मेदार हैं।
आपदा में अवसर का ही नतीजा कहा जायेगा कि 2020 में जब कोरोना की वैक्सीनों पर काम शुरू हुआ तब भारत सरकार ने कोई पहल नहीं की। वैक्सीन डेवलपमेंट में पैसा नहीं लगाया। इसके अलावा वैक्सीन के लिए एक भी एडवांस आर्डर नहीं दिया। वैक्सीन के लिए सहयोग के नाम पर सिर्फ आईसीएमआर ने भारत बायोटेक को इनक्टिवेटेड कोरोना वायरस दिया है। 2021 में वैक्सीनेशन शुरू किया गया। लेकिन कम्पनियों को वैक्सीनों के पर्याप्त ऑडर ही नहीं दिए गए। देश में प्रियॉरिटी ग्रुप के लोगों का पूरा वैक्सीनेशन भी नहीं हुआ तब भी 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीनेशन खोल दिया गया।
दूसरी लहर की तबाही झेलने के बाद भी अभी तक वैक्सीन इम्पोर्ट करने के आर्डर नहीं दिए गए। 2020 बीतते बीतते जब कोरोना की पहली लहर शांत हो रही थी तब अगली लहर के लिए कोई तैयारी नहीं की गई। जो अस्थायी अस्पताल बनाये गए थे, उनको भी हटा दिया गया। नतीजा 2021 के अप्रैल में दिखाई पड़ गया। 2021 की शुरुआत में ही ढेरों वैज्ञानिकों ने दूसरी लहर की चेतावनी दी थी। लेकिन उस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और ब्यूरोक्रेट्स ने जल्दबाजी में बिना किसी वैज्ञानिक आधार के कोरोना पर जीत का एलान कर दिया। सरकार ने जिस तरह पूर्ण अनलॉक किया और सब कुछ नॉर्मल होने का संदेश दिया गया, उससे जनता पूरी तरह लापरवाह हो गई।
2021 मार्च अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर जब सुनामी बन गई तब पता चला कि देश में न तो पर्याप्त ऑक्सीजन है और न रेमेडीसीवीर का स्टॉक। केंद्र सरकार ने 2020 में खुले हाथ ऑक्सीजन एक्सपोर्ट की। लेकिन अपने देश के लिए कोई इंतजाम नहीं किये। पूरे कोरोना काल में अभी तक ज्यादा से ज्यादा आरटीपीसीआर टेस्टिंग नहीं की गई है। और तो और, दूसरी लहर जब चरम पर थी तब आईसीएमआर ने लैब पर ज्यादा दबाव होने का तर्क देते हुए रैपिड एंटीजन टेस्ट ज्यादा करने पर जोर दिया। जबकि ये टेस्ट बहुत विश्वसनीय नहीं है। ये पता होते हुए कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या हालत है, कोरोना बीमारों के लिए कोई इंतजाम नहीं किये गए। कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी के बावजूद कुम्भ का आयोजन करने की इजाजत दी गई। पांच राज्यों में चुनाव कराए गए।
प्रधानमंत्री ने जनता को सचेत करने की बजाय खुद बड़ी बड़ी रैलियां कीं।कोरोना के मरीजों में फंगस की गंभीर बीमारी फैली हुई है। डॉक्टर अलग अलग बातें कह रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य मंत्री, मंत्रालय के अधिकारियों की तरफ से कोई आधिकारिक सफाई, चेतावनी या बीमारी के कारण नहीं बताए गए हैं। सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को गंभीरता से नहीं किया। सरकार अपने बनाये कोरोना प्रोटोकॉल को बार बार बदलती रही। 2020 में बनाये गए प्रोटोकॉल अब तक पूरी तरह बदल चुके हैं। कोरोना से जुड़े आर्थिक मोर्चे पर सरकार बिल्कुल फेल रही। अति गरीबों को अनाज बांटने के अलावा अन्य जरूरतमंद लोगों, संस्थानों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों को कोई डायरेक्ट सहायता नहीं दी गई। कोरोना बीमारी, और इससे जुड़े बाकी सभी पहलुओं पर सरकार बिल्कुल ट्रांसपेरेंट नहीं रही। सिर्फ सरकार को बचाने की कवायद रही है। कोरोना से निपटने, लोगों को जानकारी देने में स्वास्थ्य मंत्रालय, आईसीएमआर, नीति आयोग, टास्क फोर्स वगैरह तमाम ग्रुप्स अलग अलग बातें बोलते रहे हैं। जो भी गलतियां हुईं हैं उनको स्वीकारा नहीं गया। अब गलती न हो इसके लिए क्या किया गया है, ये भी नहीं बताया गया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)