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ये संकट कितना झेल पाएगी दिल्ली !
क्या पंजाब, पश्चिम यूपी और हरियाणा के आंशिक भूभाग के समृद्ध भूस्वामी विशाल राष्ट्र की निर्वाचित संसद के निर्णय को उलट सकतें हैं?
के. विक्रम राव
आंदोलनरत किसानों ने आगरा और जयपुर से दिल्ली का प्रवेश मार्ग बंद करने का ऐलान कर दिया है। उधर प्रधानमंत्री ने 971 करोड़ रुपये की लागत वाले नये संसद भवन की नींव आज रख दी। इसी संदर्भ में कल (9 दिसंबर 2020) मैंने राष्ट्रीय राजधानी को देश के अन्य सुरक्षित स्थल पर ले जाने का उल्लेख किया था। आधारभूत सरोकार व चिंता यही थी कि दिल्ली अपाहिज हुई तो समूचे देश का संचालन ही ठप हो जायेगा। दो करोड़ दिल्लीवासियों पर विपदा तो गंभीर पड़ेगी ही। विदेशी आक्रमणकारी सर्वप्रथम ऐसा ही करता रहा। पहले दिल्ली ठप, किले का घेराव और फिर लूटपाट।
सर्वोच्च न्यायालय चौदह दिनों से मौन क्यों है?
दुखद आश्चर्य तो इस बात पर है कि नागरिक अधिकारों की रक्षा का सजग प्रहरी सर्वोच्च न्यायालय चौदह दिनों से मौन क्यों है? शाहीनबाग वाले घेराव पर देर सबेर न्यायिक निर्देश दिया था कि नागरिक के आवाजाही के मूलाधिकार को अक्षुण्ण रखा जाये। इस बार?
इतना तो स्पष्ट है कि राष्ट्रीय राजधानी को पंगु बनाने की साजिश भारतप्रेमियों द्वारा नहीं हो सकती। खबरें भी साया हो रहीं हैं कि कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन आदि के प्रवासी इस विघटन प्रक्रिया से हर्षित हैं।
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किन्तु राष्ट्रीय राजधानी से आम हिन्दुस्तानी का संबंध तोड़ने और सरोकार काटने का पाप उन सब पर होगा जो दशकों से आजाद भारत पर दिल्ली से राज करते रहे। राष्ट्रीय सुरक्षा को गौण ही रखा। प्रथम प्रधानमंत्री अपने अठारह वर्षों के राज में हिमालय की भूमि खोते रहे। दिल्ली में नेहरु कर ही क्या पाते? उनके उत्तराधिकारियों की प्राथमिकता में दिल्ली की हिफाजत कभी थी ही नहीं।
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इस परिवेश में कुरुवंशी युवराज दुर्योधन की दूरदर्शिता प्रभावी लगती है। जब पाण्डव वनवास से लौटे और अपना हक मांगा, तो कौरवों ने शस्त्र उठाने की चुनौती दी थी। तब पाण्डव—दूत श्रीकृष्ण ने केवल पांच गांवों के लिए अनुनय किया था। इनमें थे इन्द्रप्रस्थ, बागपत, सोनीपत, पानीपत और तिलपत। ये गांव कुरु राजधानी हस्तिनापुर के ईर्दगिर्द थे। मगर धूर्त और चालाक दुर्योधन ने साफ इंकार कर दिया था। ''सुई की नोक के बराबर भी भूभाग नहीं दूंगा।'' इन पांच ग्रामों को मांगने के आधार में पार्थसारथी की एक तयशुदा योजना रही थी। ये पांचों गांव राजधानी हस्तिनापुर पर आक्रमण के मार्ग और प्रयास को सरल करते हैं। आज का कुशल फौजी कमांडर भली भांति समझ जायेगा कि श्रीकृष्ण का मंतव्य क्या रहा होगा? इस पटु सारथी का यह निजी सुझाव था, जिसपर पांचाली द्रौपदी ने रोष व्यक्त किया था। वह दुशासन का लहू चाहती थी।
अगर हुआ किसानों का दिल्ली पर कब्जा...
इन पांच गांवों को इस किसान आंदोलन से जोड़ कर देखें। आज आगरा, जयपुर, नोयडा, गुरुग्राम आदि राजधानी के प्रवेश मार्ग है जिनपर इन किसानों का यदि कब्जा हो गया तो राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास, 7 लोककल्याण मार्ग ( पूर्व में 7 रेसकोर्स रोड) का रिट केवल चान्दनी चौक तक कारगर रहेगा। अर्थात नौंवें मुगल सम्राट और सैय्यद ब्रदर्स के कैदी बादशाह फर्रुखसियार के सदृश्य होगा, जिसका हुक्म बस लाल किले की चहारदीवारी के भीतर ही चलता था।
कृषि कानून- निजी हित बनाम राष्ट्रहित का मुद्दा?
अत: मसला यहां उठता है कि क्या पंजाब, पश्चिम यूपी और हरियाणा के आंशिक भूभाग के समृद्ध भूस्वामी विशाल राष्ट्र की निर्वाचित संसद के निर्णय को उलट सकतें हैं? वे किसका तथा कितनों का प्रतिनिधित्व करते हैं? निजी हित बनाम राष्ट्रहित का मुद्दा है यहां? क्या ये किसान नेता भूमिहीन, बटाईदार, खेतिहर श्रमिक, छियासी फीसदी लघु कृषक और सीमांत हलधर के समर्थन का दावा कर सकते हैं? पंजाब में ही 32 प्रतिशत दलित किसान है। वे इस संघर्ष में कहां दिखते हैं?
कृषक सरदार प्रकाश सिंह बादल का जिक्र जरुरी
दलहन, तिलहन, धान—गेंहू की जगह ये सम्पन्न किसान ईख उगाते हैं, क्योंकि लाभ त्वरित और अधिक मिलता है। इस सिलसिले में महान कृषक सरदार प्रकाश सिंह बादल का जिक्र जरुरी है। वे पंजाब और हरियाणा में ही नहीं उत्तराखण्ड के तराई क्षेत्र में कौड़ियों के भाव खरीदे उपजाउ खेतों के मालिक है। प्रधानमंत्री स्वयं सरदार बादल के पैर छूते है। उनकी बहू वर्षों तक मोदी काबीना में मंत्री रही थी। उनके साथ हैं भारतीय किसान यूनियन, जिसकी चौधरायी में यह आंदोलन चल रहा है। वह सात गुटों में बंटा हैं। गंभीर विभाजन है। कुल बावन संगठन है। किसकी बात सुनी जाये?
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