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K Vikram Rao: पाकर शादीशुदा दुःखी ! कुंवारा न पाकर !!

K Vikram Rao: फिर भी नोएडा के आवासीय परिसरों से उन्हें खाली करने का निर्देश मिला है। एमेराल्ड कोर्ट सोसाइटी ने इब्तिदा कर दी है।

K Vikram Rao
Published on: 6 Dec 2022 8:41 PM IST
K Vikram Rao Married sad after getting it By not getting single
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K Vikram Rao Married sad after getting it By not getting single (Newstrack)

K Vikram Rao: कुंवारों को किससे, कैसा, कितना, कब और क्यों खतरा आशंकित है ? जवाब नहीं है। फिर भी नोएडा के आवासीय परिसरों से उन्हें खाली करने का निर्देश मिला है। एमेराल्ड कोर्ट सोसाइटी ने इब्तिदा कर दी है। आधार यह है कि नियमानुसार पेइंग गेस्ट, कुंवारा छात्र आदि को उपपट्टेदार बनाना निषिद्ध है। हालांकि संविधान की धारा 14 (समानता) के अनुसार हर किस्म (खासकर लिंगभेद) की विषमता गैरकानूनी हैं। यह एमेराल्ड परिसर वाले ही थे जिनकी याचिका पर नोएडा में बत्तीस-मंजिला "ट्विन टावर्स" को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया था। यहां इस संदर्भ में नोट करें कि किरायेदारी नियमावली, जो बहुधा मालिक-मकान की मर्जी का मुखर स्वर होता है, पक्षपातपूर्ण ही होती है। मसलन गुजरात में। लिखित करार में वहां उल्लिखित रहता है कि आप गोश्त-अंडा आदि नहीं पकाएंगे, कुत्ता नहीं पालेंगे, शोरजनक संगीत नहीं सुनेंगे।

मद्यपान का उल्लेख अमूमन नहीं होता क्योंकि गुजरात अकेला प्रदेश है जहां शराबबंदी शुरू से कानून है, अभी भी। मगर हमारे एक पत्रकार साथी को नए, अलबेले किस्म की पाबंदी का एकदा सामना करना पड़ा था।

वे अहमदाबाद संस्करण (टाइम्स ऑफ इंडिया) में चीफ सबएडिटर थे। अखबार के सभी 16 पृष्ठ बनाते उन्हे आधी रात के दो बज जाते थे। अतः घर पहुंचते भोर हो जाती थी। वे अविवाहित थे। उनका वृध्दा मकान-मालकिन ने टोकना शुरू कर दिया कि "कुंवारे हो, देर रात तक घर के बाहर रहना संदेहास्पद माना जाता हैं।" वे परेशान हो गए।

रिपोर्टर के नाते मैंने समझाया कि मकान-मालकिन को "टाइम्स ऑफ इंडिया" प्रिंटिंग प्रेस लाकर दिखा दो। वह स्वयं समझ जाएंगी कि पत्रकार निशाचर क्यों होते हैं ?" खैर, अब तो सभी शहरवासी जान गए कि प्रेस कर्मचारी रात्रिकर्मी होते हैं। निशा जागरण उनका धर्म है।

लेकिन नोएडा परिसर के निर्णय से कुंवारों का त्रासदपूर्ण मसला अधिक उजागर होता है। क्या आधुनिक समय में अविवाहित रहना पाप है ? यूं कहावत है कि साठ साल की आयुवाला अविवाहित पुरुष ही प्रमाणित कुंवारा माना जाता है।

यूं भी चालीस के बाद महिला तो कम ही पाणिग्रहण करती हैं। तेलुगू में एक कहावत भी, बड़ी कड़वी, कि उमरपार महिला और मुरझायी भिण्डी का लेनदार कोई नहीं होता।इसी संदर्भ में शब्द "ब्रह्मचारी" पर भी गौर कर लें। ब्रह्मचर्य दो शब्दों : 'ब्रह्म' और 'चर्य' से बना है।

ब्रह्म का अर्थ परमात्मा;चर्य का अर्थ विचरना, अर्थात परमात्मा मे विचरना, सदा उसी का ध्यान करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है। महाभारत के रचयिता व्यासजी ने विषयेन्द्रिय द्वारा प्राप्त होने वाले सुख के संयमपूर्वक त्याग करने को ब्रह्मचर्य कहा है।

शतपथ ब्राह्मण में ब्रह्मचारी की चार प्रकार की शक्तियों का उल्लेख आता है: अग्नि के समान तेजस्वी, मृत्यु के समान दोष और दुर्गुणों को मारने की शक्ति, आचार्य के समान दूसरों को शिक्षा देने की क्षमता तथा संसार के किसी भी स्थान, वस्तु, व्यक्ति आदि की अपेक्षा रखे बिना आत्मासात होकर रहना। मगर यह किताबी गुण हैं। आधुनिक युग में नहीं।

भीष्म पितामह याद आते हैं, पर लोहिया, अशोक मेहता, अटल बिहारी वाजपेई नहीं। अटलजी तो स्वयं बताते थे कि : "मैं अविवाहित हूँ, ब्रह्मचारी नहीं।" यही परिहास राज नारायणजी अपने साथी जॉर्ज फर्नांडिस के बारे में भी कहते थे। तबतक जॉर्ज की लैला कबीर से शादी नहीं हुई थी।

तो आखिर यह ब्रह्मचारी और कुंवारा शब्दों में विषमता क्या है ? अब चर्चा करें कि आखिर वह अकेला प्राणी इतिहास में दुकेला कब से हुआ ? विभिन्न प्रमाणों के आधार पर इस मत का प्रतिपादन किया जाता रहा कि मानव समाज की आदिम अवस्था में विवाह नामक कोई बंधन नहीं था।

सब नर-नारियों को यथेच्छित कामसुख का अधिकार था। जाबाला का प्रसंग मिलता है। महाभारत में पांडु ने अपनी पत्नी कुंती को नियोग के लिए प्रेरित करते हुए कहा था कि : "पुराने जमाने में विवाह की कोई प्रथा नहीं थी।

स्त्री पुरुषों को यौन संबंध करने की पूरी स्वतंत्रता थी। विवाह की संस्था का प्रादुर्भाव 19वीं शताब्दी में हुआ था।" भारत में श्वेतकेतु ने सर्वप्रथम विवाह की मर्यादा स्थापित की थी। चीन, मिस्र और यूनान के प्राचीन साहित्य में भी कुछ ऐसे उल्लेख मिलते हैं।

इनके आधार पर पश्चिमी विद्वानों ने विवाह की आदिम दशा को कामाचार (प्रामिसकुइटी) की अवस्था मानी। प्रारंभिक कामाचार की दशा के बाद बहुभार्यता (पोलीगैमी) या अनेक पत्नियों को रखने की प्रथा विकसित हुई। इसके बाद अंत में एक ही नारी के साथ पाणिग्रहण करने (मोनोगेमी) का नियम प्रचलित हुआ। अब मुसलमानों पर भी।

अतः नोएडा आवासीय सोसाइटी की समिति ने कुंवारो के प्रति संशय और जुगुप्सा का माहौल बना दिया है। इन पीड़ित वर्ग की तरफदारी में कुछ ब्रह्मवाक्यों को उल्लिखित कर दूँ। उदाहरणार्थ : कुंवारे के पास अंतरात्मा होती है, विवाहित के पास केवल बीबी, परिभाषित किया था शब्दकोश-रचयिता सेमुअल जॉनसन ने।

कुंवारा गलती से भी शादी कभी नहीं करता है, कहा था अमरीकी महिला हास्यकलाकार फिल्लिस डिल्लर ने। हर कुंवारा अपने कार्यस्थल पर प्रातः हर रोज भिन्न दिशाओं से आता है, कहा था अभिनेता टाम हालैंड ने। हॉलीवुड के जासूसी पात्र का अभिनय करने वाले रेमंड बर्र ने कहा कि "कुंवारा वह है जिसने कभी भी शादी नहीं की।

अविवाहित व्यक्ति वह है जिसने अभी शादी नहीं की।" अमरिकी पत्रकार हेलेन राउलैंड ने कहा : "उनके द्वारा झूठ बोलना दोष है, प्रेमी द्वारा कला, कुंवारे द्वारा दक्षता है, विवाहित पुरुष द्वारा स्वभाव है।"

हेलेन ने यह भी कहा कि "पति पर दूर तक भरोसा मत करो। कुंवारों पर नजदीक से भी नहीं।" इसी अमरीकी महिला पत्रकार ने कहा : "महिलाओं के बारे में कुंवारा ज्यादा जानता है। वरना वह भी शादी कर लेता।" ब्रिटेन के गद्यकार फ्रांसिस बेकन के शब्दों में : "एक कुंवारे के जीवन में नाश्ता उम्दा होता है, लंच सपाट और डिनर बेस्वाद।"

और अंत में दुखी दोनों रहते हैं : विवाहिता व्यक्ति संगिनी को पाकर और कुंवारा न पाकर। अतः नोएडा आवास परिसर को कुंवारो के प्रति संवेदना होनी चाहिए, प्रतिशोध वाली भावना कतई नहीं।

Durgesh Sharma

Durgesh Sharma

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