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फिर चारा चर गया लालू को !

जानबूझकर झुठला रहा है। वे बोले कि अगड़ी जाति के लोगों ने तथा उनके शत्रुओं ने उन्हें साजिशन फंसाया है। पटना के एक पत्रकार साथी ने याद दिलाया कि लालू के विरुद्ध सीबीआई की सर्वप्रथम जांच की मांग करने वाले शिवानन्द तिवारी लालू की राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष हैं।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Divyanshu Rao
Published on: 22 Feb 2022 5:21 PM IST
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लालू प्रसाद यादव, इंदर कुमार गुजराल, मुलायम सिंह यादव 

K Vikram Rao: पांचवीं दफा अरबों रुपये के चारा घोटाले में जेल और जुर्माने की सजा पाये, लालू प्रसाद यादव ने कल (21 फरवरी 2022) ट्वीट किया कि : ''सामाजिक न्याय वाला उनका संघर्ष चालू रहेगा।'' अभी तो छठे चारा मुकदमें की सुनवाई 25 फरवरी को भागलपुर में तय है। गोमाता का आहार निर्लज्जता से हजम करने वाला यह गोपालक लालू अपने जघन्य पाप को बूझ नहीं पा रहा है।

जानबूझकर झुठला रहा है। वे बोले कि अगड़ी जाति के लोगों ने तथा उनके शत्रुओं ने उन्हें साजिशन फंसाया है। पटना के एक पत्रकार साथी ने याद दिलाया कि लालू के विरुद्ध सीबीआई की सर्वप्रथम जांच की मांग करने वाले शिवानन्द तिवारी लालू की राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष हैं। दूसरे वृषिन पटेल है जो राजद के साथ हैं।

पूरे चारा काण्ड को उजागर करने वालों में उमेश प्रसाद सिंह थे। घनघोर लोहियावादी जिनकी कसमें लालू खाते रहते हैं। पत्रकारी योगदान दिया उत्तम सेनगुप्त ने जो ''टाइम्स आफ इंडिया'' के पटना तथा लखनऊ के संपादक रहे। वे वामपंथी (नक्सलवादी) रहे। सीबीआई के निदेशक थे सरदार जोगिन्दर सिंह जो कर्नाटक काडर के आईपीएस थे, जिन्हें कन्नड़ गडरिया पीएम देवेगौड़ा ने नामित किया था। इन्दर कुमार गुजराल ने प्रधानमंत्री के नाते लालू को बचाना चाहा और उन्हीं के परामर्श पर अपने सगे संबंधी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। मगर लालू ने अपनी बेपढ़ी, अंगूठा छाप बीबी राबड़ी को रसोई से लाकर सीधे सीएम की कुर्सी पर बिठाया। पूछा गया कि योग्य राजनेता और राबड़ी के अनुज साधु यादव को उत्तराधिकारी बनाते। मगर लालू को याद रहा कि शाहजहां ने ताजमहल का नायाब उपहार मुमताज को दिया था।

लालू का आरोप था कि अगड़ो ने इस पिछड़े वर्ग के ''जननायक'' के खिलाफ साजिश की। तो फिर उन्होंने प्रधानमंत्री पद के तयशुदा व्यक्ति मुलायम सिंह यादव का नाम आधी रात में कटवाकर एक सवर्ण पंजाबी खत्री जाति के व्यापारी इन्दर कुमार गुजराल को बनवा दिया। यह गिला रही मुलायम सिंह यादव की, जो उन्होंने (शनिवार, 7 जुलाई 2001 को ) पटना में अपनी समाजवादी पार्टी की बैठक में व्य​क्त की। एक यादव ने दूसरे यादव के साथ ऐसा आघात—प्रतिघात, बल्कि साजिश की। भले ही आज लालू और मुलायम सिंह दोनों आपसी रिश्तेदार हो गये, शादी के मार्फत ! यहां क्षोभ होता है कि जब नीतीश कुमार ने पटना में कल पत्रकारों के समक्ष कहा कि लालू के विरुद्ध चारा घोटाला वाले प्रकरण में उनका योगदान नहीं है।


एक कुर्मी नेता एक अहीर के साथ गठजोड़ कर पिछड़ा जाति का स्तंभ बनेगा ? यह उचित न्याय है क्या ? इसीलिये नीतीश अब जाति आधारित जनगणना के पैरोकार हो गये ? नीतीश के पार्टी पुरोधा लल्लन सिंह भूमिहार भी तो लालू को चारा घोटाले में सजा दिलवाने के हरावल दस्ते में रहे। लालू के पापों के भागीदारों में सोनिया गांधी थीं, जिन्होंने रामविलास पासवान को काटकर लालू को रेलमंत्री बनवाया, जहां लूट के असीमित संसाधन उपलब्ध थे। अपराधी लालू को राष्ट्रनायक गढ़नेवालों में मराठी विप्र पत्रकार राजदीप सरदेसाई भी थे जो आज मोदी—विरोधी मुहिम के सिरमौर हैं।

अब जब लालू यादव का भाग्य भी उन्हें दगा दे गया तो पूरी तस्वीर साफ उभर रही है। गत 25—वर्षों पूर्व जब चायबासा कोषागार से हरे—हरे नोट अलमारी से निकले थे, तो पूरा चारा घोटाला फूटा था। जानकारी मिली तब से पटना हाईकोर्ट, उच्चतम न्यायालय, केन्द्रीय गृह मंत्रालय, सांसदों पर जोर डाला गया कि यह पिछड़ी जाति का अद्वितीय अपराधी पकड़ा न जाये। सजा न मिले। मगर लोकतंत्र जीवित था, लिच्छवी काल से भी अधिक मजबूत। आखिर जनवादी निर्णय आ ही गया।

लेकिन गौरवमयी परम्परा जानने के लिये मगध पर रामधारी सिंह दिनकर को दोबारा पढ़ना होगा : ''रे मगध कहां मेरे अशोक, वह चन्द्रगुप्त बलधाम कहां ?'' इसी इतिहास की कड़ी थी कि यूनान की राजपुत्री हेलन चन्द्रगुप्त मौर्य की पटरानी और मलिका नहीं बनायी गयी, पर मगध के लालू ने इटली की महिला को भारत का प्रधानमंत्री बनाने में ओवरटाइम किया था। भला हो नेक यादव जननायक मुलायम सिंह यादव का कि लंगड़ी लगा दी और कांग्रेसी योजना मटियामेट हो गयी। मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रपति केआर नारायणन को लिख दिया कि सोनिया का कथन झूठा है कि उनकी समाजवादी पार्टी के सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद हेतु चाहती है। कितना अंतर रहा दो यादवों के दरम्यान ?

यही लालू थे जो मुलायम सिंह यादव को नीचा दिखाने हेतु बोले थे (22 अगस्त 2003 : राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ) कि ''मैं प्रधानमंत्री बना होता तो मस्जिद पर हमला करने वालों के पांव तोड़ देता।''

अब लालू यादव का शेष जीवन कैसे गुजरेगा ? चौथे (74 वर्ष के वृद्ध है) आश्रम में भी सत्ता का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे है। फिलवक्त न्यायतंत्र के लचीलेपन का फायदा उठा कर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील कर स्वास्थ्य के बहाने महंगे अस्पताल में भर्ती होकर, वहीं ठाट से दरबार लगा कर राजनीतिक पैंतरे लगायेंगे। यह नौ संतानों का पिता, फूलवरिया के दूध वाले के बेटा लालू यादव अभी भी सत्ता पाने की हसरतें पाले है। अब बिहार की शोषित और वंचित जनता को लालू के अपराधों का हिसाब मांगना होगा।

मुझे लालू प्रसाद से निजी ईर्ष्या रही। जेल नियमावलि को तोड़कर, बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागार के इस कैदी नंबर 3312 लालू प्रसाद यादव को अतिविशिष्ट व्यक्ति की सुविधायें दीं गयीं। रसोइया, मनपसंद भोजन (मछली, गोश्त, मुर्गा, घी, ताजा भाजी और फल) के अलावा बाहरी होटलों से भी स्वादिष्ट खाना, पत्र—पत्रिकायें,टीवी आदि। कई घंटों तक असीमित मुलाकाती इत्यादि मुहय्या थे। रिम्स (रांची) में कीमती औषधि और चिकित्सा सुविधा दी गयी।

बड़ौदा में अपने कठोर जेलवास के दौर की याद कर मेरा दुख कई गुना बढ़ गया । दस वर्ग फिट की काल कोठरी में, दो तालों तले रातभर बंद, बारह घंटे कैद। नाश्ते में भुने चले और गुड़। दोनों चिड़िया और चीटीं को मैं खिला देता था। कोर्ट की पेशी पर हथकड़ी—बेड़ी में रस्सी से बांधकर चार सिपाही बख्तरबंद गाड़ी में ले जाते थे। क्या नैसर्गिक न्याय था? आरामभोगी लालू एक सजायाफ्ता चोर। पीड़ित मैं विचाराधीन राज्यद्रोही (आपातकाल का)।

मगर चारा काण्ड के कारण लालू यादव के तीन सपने अधूरे ही रह गये थे। उनका ख्याल था कि यदि वे बल्ला संभालते तो भारत के श्रेष्ठतम क्रिकेटर होते। पहला प्यार था खेल। राबड़ी के बाद। हालांकि बैट पा गया पुत्ररत्न तेजस्वी।

लालू को फिल्म अभिनेता बनने की चाहत रही। बालीवुड में ''ड्रीमगर्ल'' के नाम से मशहूर हेमा मालिनी से फिल्मों में काम भी मांगा था।

लालू यादव का नाता हमारे इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्यूजे) से भी रहा। उन्होंने मेरे प्रतिनिधि मंडल से वादा किया था कि बिहार के पत्रकारों हेतु दुघर्टना बीमा तथा पेंशन योजना लागू करायेंगे। दो दशकों तक हम आस लगायें रहे। हमारा (आईएफडब्ल्यूजे) प्रतिनिधि अधिवेशन राजगृह (राजगीर) में (18—20 फरवरी 2010) में हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उद्घाटन किया था। विपक्ष से लालू यादव ने 16 फरवरी को बिहार बंद की घोषणा की थी।

राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते मुझे सम्मेलन के लिये घोर चिंता लगी थी। इसलिये कि 29 प्रदेशों से हमारे 1680 प्रतिनिधि, विशेषकर गुवाहाटी, कोचीन, अहमदाबाद, गोवा, जम्मू, मैसूर, सिक्किम आदि से बिहार कैसे पहुंच पायेंगे? पटना जंक्शन उतर का सड़क मार्ग से राजगीर आना था। नीतीश कुमार के सचिव रामचन्द्र प्रसाद सिंह, (आज केन्द्रीय इस्पात मंत्री) ने वाहनों की सम्यक व्यवस्था की। बंद का मजाक उड़ाते, नीतीश बोले, ''इन यादव दम्पति ने पन्द्रह साल तक लगातार बिहार बंद रखा था। एक दिन और सही।'' इस आश्वासन पर मेरी चिंता का निवारण हुआ।

Divyanshu Rao

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