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काका कालेलकरः पिछड़ों का पहला मसीहा, जिसे किसी ने नहीं समझा
काका कालेलकरः आज की युवा पीढ़ी ने शायद ये नाम नहीं सुना होगा।
काका कालेलकरः आज की युवा पीढ़ी ने शायद ये नाम नहीं सुना होगा। अगर नाम सुना भी होगा तो ये पता नहीं होगा कि इस शख्सियत ने क्या काम किया। कौन थी ये काया। जो मोक्ष की खोज पैदल ही हिमालय के लिए निकल पड़ी थी। जिसने तीन साल तक अनवरत पद यात्रा कर 2500 मील की दूरी तय की। और फिर यह समझा कि देश की स्वतंत्रता के लिए जुटना ही मोक्ष से बढ़कर सबसे उत्तम मार्ग है। इसी बीच महात्मा गांधी के संपर्क में आए और उनके सच्चे अनुयायी बन गए। राष्ट्रभाषा के प्रचार के लिए काका कालेलकर का काम उल्लेखनीय है। लेकिन इस सब से बढ़कर एक काम सब पर भारी है हालांकि पंडित जवाहर लाल नेहरू के दबाव में उनका काम अंजाम तक नहीं पहुंच पाया। लेकिन काम बहुत बड़ा था।
आप सब ये बखूबी जानते हैं कि पिछड़ों को आरक्षण दिलाने के लिए बीपी मंडल आयोग ने सिफारिशें की थीं जो कि बिहार के यादव थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सनातनी ब्राह्मण परिवार में जन्म काका कालेलकर पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे। उस आयोग की सिफारिशें आज भी नजीर हैं। दरअसल देश आजाद हुआ, तो सबके विकास के लिए संविधान में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में प्रावधान किया गया। पर यह प्रावधान स्पष्ट न होकर अनुच्छेद 340 में किया गया था। उसी के तहत जनवरी, 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग गठित हुआ। इस आयोग ने सामाजिक और शैक्षिक आधार पर पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए चार मानक बनाए थे। आयोग द्वारा 2,399 पिछड़ी जातियों की सूची बनाई गई, जिनमें 837 जातियां अति पिछड़ी थीं।
काका कालेलकर आयोग की कुछ सिफारिशें गौरतलब हैं- 1961 की जनगणना में जातिवार गणना, सभी महिलाओं को पिछड़ी श्रेणी में रखना, पिछड़े वर्गों के योग्य छात्रों के लिए 'टेक्निकल' एवं 'प्रोफेशनल' संस्थाओं में 70 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी एवं स्थानीय निकायों की नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए श्रेणी 'एक' में 25 प्रतिशत, श्रेणी 'दो' में 33 प्रतिशत एवं श्रेणी 'तीन' व 'चार' में 40 प्रतिशत आरक्षण देना। लेकिन इस आयोग में नेहरू के इशारे पर फूट पड़ गई या राय अलग अलग हो गईं। आयोग के ग्यारह में से पांच सदस्यों ने सिफारिशों के खिलाफ असहमति 'नोट' पेश कर दिया। नेहरू के दबाव से कालेलकर भी न बच सके। स्वयं आयोग के अध्यक्ष के रूप में कालेलकर ने पिछड़ेपन का आधार जाति हो, इस पर एतराज जताते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिख दिया। इस पर गृह मंत्रालय ने कहा कि पिछड़ी जातियों का चयन राज्य सरकारों की मर्जी है, पर केंद्र की राय में उचित यह होगा कि जाति के बजाय आर्थिक आधार को माना जाए। जबकि अनुच्छेद 340 कहता है कि सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े चुने जाएंगे।
सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ों को संविधान के अनुच्छेद 340 में यह अधिकार दिया गया कि उनको चिन्हित कर विभिन्न क्षेत्रों में विशेष अवसर दिया जाय। 29 जनवरी 1953 को प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन हुआ था। महान साहित्यकार काका कालेलकर ने अपनी रिपोर्ट 30 मार्च 1955 को केंदीय सरकार को सौंपी थी। ब्राह्मण जाति के इस महान साहित्यकार ने अपनी अनुशंसाओं में 1961 की जनगणना जातिगत आधार पर कराने, सम्पूर्ण स्त्री को पिछड़ा मानते हुए मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में 70%, सभी सरकारी व स्वायत्तशासी संस्थाओं में प्रथम श्रेणी में 25%, द्वितीय श्रेणी में 33.33% तथा तृतीय व चतुर्थ श्रेणी में 40% आरक्षण की सिफारिश की थी।
लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने पंडित कालेलकर की सिफारिशें ख़ारिज कर दी थी और रिपोर्ट पर कालेलकर से जबरन लिखवा दिया कि इसे लागू करने से सामाजिक सद्भाव बिगड़ जायेगा अतः इसे लागू न किया जाय। कांग्रेस सरकार इस रिपोर्ट को दबाए रही। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर समाजवादियों के दबाव पर कालेलकर आयोग की रिपोर्ट लागू करने के बजाय दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (यादव) के नेतृत्व में 1 जनवरी 1979 को बना दियया गया, जिसे मंडल आयोग कहा गया। लेकिन इस आयोग की सिफारिशों को भी इंदिरा गाँधी एवं राजीव गाँधी की सरकारों ने लागू नहीं किया। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की सारी सिफारिशों को दरकिनार करते हुए इस रिपोर्ट की मात्र एक सिफारिश नौकरियों में आरक्षण को आंशिक रूप में लागू किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज कर दिया गया और अंत में लम्बी लड़ाई के बाद 16 नवम्बर 1992 को क्रीमी लेयर की बाधा के साथ मंडल आयोग की सिफारिशों को आंशिक रूप से लागू करने का फैसला हुआ। लेकिन कालेलकर आयोग की सिफारिशों को कालातीत मान लिया गया। आचार्य काका कालेलकर का 21 अगस्त, 1981 को नई दिल्ली में उनके 'संनिधि' आश्रम में निधन हो गया।