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Kalyan Singh: बिरले ही होते हैं जिसके जीवन की सभी इच्छाएँ पूरी हों, इनमें थे कल्याण सिंह

Kalyan Singh: कल्याण सिंह ईमानदारी को अपना बेहद अचूक हथियार मानते थे। ईमानदारी के क़ायल थे। समूह की भर्ती में वह चाहते थे ईमानदारी से भर्ती की जाये।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 12 Sep 2022 7:02 AM GMT
Kalyan Singh
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Kalyan Singh (photo: social media )

Kalyan Singh: मेरा कल्याण सिंह जी के साथ तक़रीबन बाइस चौबीस साल का साथ रहा। ये साल कल्याण सिंह जी के जीवन के सबसे उतार चढ़ाव भरे थे।उन्होंने फ़र्श से अर्श और फिर अर्श से फ़र्श , फिर फ़र्श से अर्श तक की यात्रा की। हर तरह की बातें हम लोगों ने आपस में साझा की। बहुत से बदलाव का मैं गवाह रहा। समझ में नहीं आ रहा है कि किसे बताऊँ , किसे न बताऊँ। यह परेशानी भी मेरे सामने है कि कहीं कोई महत्वपूर्ण प्रसंग छूट न जाये। पर क्या करूँ। समय की अपनी सीमा होती है। ऐसे में उनसे मेरी मुलाक़ात से लेकर इनके निधन के कुछ दिन पहले तक के कुछ प्रसंग आपसे साझा कर रहा हूँ।

मेरी कल्याण सिंह से मुलाक़ात एक संयोग ही कही जायेगी। मैं एक समाचार पत्र में डेस्क पर काम करता था। डेस्क के पत्रकारों को पत्रकारिता के किसी भी तरह के ग्लैमर का न तो लोभ होता है। और न ही राजनेताओें से रिश्ते बनाने का मोह। यह सब रिपोर्टस के खाते में होता है, जाता है। उनकी दुनिया अलग होती है। मैं उस अख़बार में साहित्य का एक पन्ना 'सृजन' के नाम से निकालता था, जब मैं पत्रकार बना तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तमाम साथी जो नौकरशाही में छोटे से लेकर बड़े पोस्ट तक पहुँच गये थे, अधिकांश के संपर्क में आ गया। इसकी भी वजह यह थी कि मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ का पदाधिकारी रहा था।

कल्याण सिंह जी के सचिवालय में मेरे कई दोस्त व शुभ चिंतक थे। मसलन, डी के कोटिया, हरिकृष्ण पालिवाल, अजय शंकर पांडेय , गिरीश चतुर्वेदी आदि। इन लोगों में से किसी ने कल्याण सिंह जी की कविताएँ हमें दीं, कहा अपने 'सृजन' पन्ने पर इसे आप अपनी टिप्पणी के साथ छाप दें। मैंने इन कविताओं को 14.02.1998 को प्रकाशित किया। शीर्षक था- "जनतंत्र का निहारती कविताएँ।" कविता के कुछ अंश थे-

फूटे घर-घरौंदे तेरे टूटी छान छपरिया रे।

सुराख़ों से पानी टपके भीगे तेरी खटिया रे ।

अंधियारे में कटे जिंदगी बिना दीया बिन डिबिया रे ।

तेरी घरवाली के तन पर फटी फ़टाई अँगिया रे ।

इस संडांध में आग लगा दें क्रांति भरे अंगारों से ।

सरकारी अजगर बैठे हैं।

तुझ पर कसा शिकंजा है।

दबा रहा तेरी गर्दन को उनका खूनी पंजा है ।

रहबर तेरे बने लुटेरे रक्षक तेरे भक्षक हैं

कदम-कदम पर डसे जा रहे

यह ज़हरीले तक्षक हैं।

लातों के भूत न मानें बातों से मुहारों से।

देश की ख़ुशहाली का रास्ता गाँव गली गलियारों से

जिस तारीख़ के अख़बार में यह कविता व उस पर मेरी टिप्पणी छपी, उसी दिन मेरे घर अवधेश जी का फ़ोन आया । मेरी पत्नी ने फ़ोन उठाया। अवधेश जी ने कहा,"बाबूजी बात करना चाहते हैं।" मेरी पत्नी को कुछ भी पता नहीं था। उन्होंने मेरे मोबाइल का नंबर दे दिया। उन दिनों मेरे पास उषा का एक मोटरोला मोबाइल था। उस पर फिर अवधेश जी का फ़ोन आया- मेरा नाम पूछने के बाद अवधेश जी ने कहा,"बाबूजी बात करना चाहते हैं। मैं कनेक्ट कर दूँ।" डेस्क के किसी पत्रकार के लिए तो यह बड़ी उपलब्धि थी। लाइन के कनेक्ट होने के बाद कल्याण सिंह जी ने कहा" योगेश जी में आपकी उम्र तो नहीं जानता पर आपका लेख पढ़ा। आपका शत शत वंदन अभिनंदन। आपका लेख पढ़ कर बहुत रोया। सोचा कोई आदमी हमें इतने दूर से इतने क़रीब से जानता है।" मैंने कहा, "यदि प्रजा के किसी कर्म से राजा को रोना आ जाये तो प्रजा दंड की भागी होती है। मेरा दंड क्या है, बता दें?" उन्होंने मेरी उम्र पूछी। कहा मैं आपको दोस्त बनाना चाहता हूँ।उसके बाद से तो मैं उनके तमाम निर्णयों का सहभागी बन गया।

पहली मुलाक़ात तीन घंटे तक चली उनने अपने बारे में बहुत कुछ बताया मेरे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि वह सुबह की चाय खुद बनाते थे। वह मट्ठा छौंकना भी जानते थे। गाँव की एक घटना बताई की वह छोटे थे तो गाँव में एक पंडित आये थे। उनकी माँ कल्याण सिंह जी को पंडित के पास ले गयीं। पंडित ने कहा कि यह लड़का गाँव में जहाज़ से उतरेगा।

कल्याण सिंह जी ने पहली साइकिल सेकेंड हैंड ख़रीदी थी। अलीगढ से उस साइकिल से वह अपने गाँव गये। । गाँव में वह बहुत तेज गति से साइकिल चलाते थे, तो गाँव के लोग उनके पिता से शिकायत करते थे कि तुम्हारा बेटा जहाज़ चला रहा है। उन्होंने बताया कि जब मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पहली बार सरकारी हेलिकॉप्टर से अपने गाँव पहुँचे तब उस पंडित की बहुत याद आई।

वह बताते थे कि कैसे शहर की पार्टी को गाँव में पहुँचाया। जब वह पार्टी के अध्यक्ष बने तब उन्होंने एक नारा गढ़ा-

गाँव , गरीब , किसान

महिला का सम्मान

युवकों का उत्थान ।

पूरे प्रदेश की यात्रा की। 89 आते आते भाजपा गाँव की पार्टी भी हो गयी।

एक बार उनके एक दोस्त बार बार किसी शर्मा इंजीनियर के तबादले की सिफ़ारिश कर रहे थे। वह बचपन में कल्याण सिंह जी के साथ पढ़े थे। सजातीय थे। मुँह लगे थे। कल्याण सिंह ने जानना चाहा कि उनके बाल सखा शर्मा इंजीनियर के ट्रांसफ़र की पैरवी क्यों कर रहे हैं? उनके साथी ने कहा कि उसकी बेटी की शादी में शर्मा इंजीनियर ने लाख रुपये की मदद की थी। कल्याण सिंह जी उठे। घर के अंदर गये। लौटे तो उन्होंने अपने साथी के हाथ में रूपये देते हुए कहा,"शर्मा को ये रूपये वापस दे देना।"उनके साथी ने पैसे अपने पॉकेट में रखते हुए पूछा,"तुम तो ईमानदार हो, तुम कहाँ से इत्ते पैसे लाये।" कल्याण सिंह जी ने बिना नाराज़गी जताये अपने दोस्त को अपने वेतन व भत्तों के बारे में पूरा विस्तार से बताया।" दो तीन दिन बाद जब उनके साथी ने बताया कि उसने शर्मा के पैसे वापस कर दिये। तब शर्मा जी का तबादला भी हो गया।

वह राजनीति भले जनसंघ व भाजपा की करते रहे हों पर उन्हें प्रदेश की सभी पार्टियों के बारे में जानकारी रहती थी । कौन पार्टी किसको टिकट देगी यह वह पहले जान लेते थे ।तब वह अपनी पार्टी का उम्मीदवार तय करते थे। तब इसका भी ख़्याल रखते थे। उनके साथ हेलिकॉप्टर से उत्तर प्रदेश में उड़ने का अवसर जब भी मिला तो हमने पाया कि वह ऊपर से ही बता देते थे कि किस इलाक़े, शहर या तहसील से गुजर रहे हैं।

वह जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने नृपेंद्र मिश्र जी को अपने सचिवालय में महत्वपूर्ण हैसियत में रखा। तब भाजपा के लोग बहुत नाराज़ हुए। क्योंकि नृपेंद्र मिश्र जी मुलायम सिंह यादव जी के सचिवालय में उसी हैसियत में थे। नाराज़ जनों ने यहाँ तक कहा कि इनके आदेश से ही कार सेवकों पर गोली चली थी। इनने गली चलाने का आदेश दिया था। कल्याण सिंह जी ने बस इतना कहा कि घोड़े से नहीं घुड़सवार से पता चलता है वह कैसे काम करेगा। आज नृपेंद्र मिश्र जी राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सचिवालय में भी निकटता से काम कर चुके हैं।

ईमानदारी बेहद अचूक हथियार

कल्याण सिंह ईमानदारी को अपना बेहद अचूक हथियार मानते थे। ईमानदारी के क़ायल थे। समूह ग की भर्ती में वह चाहते थे ईमानदारी से भर्ती हो जाये। इसके लिए बातचीत में एक आइडिया निकल कर आयी कि आंसरशीट की दो प्रतियाँ हों, एक आंसरशीट परीक्षार्थियों को दे दी जाये। ताकि वे अपने उत्तर खुद मिलाकर देख सकें कि उसने कितने सवाल सही किये हैं। आज तक़रीबन सभी परीक्षाओं में यह सिस्टम चलन में है। इंटर व्यू में पक्षपात किये जाने को रोकने के लिए इंटरव्यू केवल दस नंबर का कर दिया। जिसमें पाँच नंबर देना ज़रूरी था।

एक बार हम लोग रात को बात कर रहे थे उन्होंने तंबाकू खाया था, उन्हें हिचकी आ रही थी, हमने कहा कि पानी पी लें हिचकी बंद हो जायेगी। वह बोले इस तंबाकू का आनंद यही है कि हिचकी आती रहे। जब जोड़ तोड़ की सरकार बनी तब कल्याण सिंह चुनाव में जाना चाहते थे, पर उनकी सुनी नहीं गई।

मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने का उनमें मलाल नहीं था। मलाल यह था कि उसी समय बिठूर में संघ की चल रही बैठक में उन्हें डिसओन किया गया। हालाँकि उस समय कल्याण सिंह जी के पास सरकार तोड़ कर सरकार बनाने के विकल्प थे, पर भाजपा और संघ का कोई नुक़सान वह मन से नहीं चाहते थे।

वह बार बार कहते थे कि मेरी इच्छा भाजपा के झंडे में लिपट कर जाने की रही है। उन्हें यह दुख ज़रूर सालता था कि उनकी यह इच्छा पूरी नहीँ होने दी जा रही थी।

जब वह पहली बार भाजपा में आये तो पार्टी ऑफिस में उनकी जो नेम प्लेट लगी थी वह एकदम सादी थी । हमने शैतानी में खबर लिख दी। हमें बुलाया और डॉट लगाई।यह तुम मुझसे कह सकते थे। तुमने खबर क्यों लिखी। कल्याण सिंह जी ने लाल टोपी जब आगरा में पहनी तो मैं वहीं या। रात को हमने कहा कि यह टोपी आप पर शोभा नहीं देती, कहने लगे भाजपा वाले अपनी टोपी पहनने ही नहीं दे रहे हैं। वह भाजपा से बाहर रहे पर दुखी रहे।

कल्याण सिंह जा का जन्मदिन और डॉ मुरली मनोहर का जन्म दिन एक दिन पड़ता था। मैं सुबह डॉ जोशी जी को साथ रहता था। रात को कल्याण सिंह जी के साथ। एकाध बार मेरे पहुँचने में ग्यारह बज गये तब भी वह बैठे रहे। मेरे पहुँचते ही बोल उठे आइये। मैं आपका इंतज़ार कर रहा था।

गांधीनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का मौक़ा

आज के हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जब उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बनाने को सोचा तो कई लोगों से बात की। मुझे भी 28 jan 2014 को पहली बार गांधीनगर में उनसे मिलने का मौक़ा मिला। मेरी बात सुबह घंटों तक चली। बातचीत में कल्याण सिंह जी पर काफी बात हुई। मोदी जी ने अमित शाह जी को कहा कि टिकट फ़ाइनल करने से पहले कल्याण सिंह जी से ज़रूर बात कर लेना। अमित शाह जी अलीगढ़ उनके घर गये। पाँच टिकट बदलवाकर सांसदों की संख्या कल्याण सिंह जी ने बढ़वा दी। वह राज्यपाल थे तब जब जब भी जयपुर में उनसे मुलाक़ात हुई तब खूब खिलाते। और उत्तर प्रदेश के विकास, भाजपा की स्थिति के बारे में घंटों बात करते। रहते वह जयपुर में थे । पर मन उत्तर प्रदेश में रमता था। कई बार बात करने के लिए अपने राजवीर सिंह जी के दिल्ली स्थित घर पर बुलवाते। जब वह राष्ट्रीय क्रांति पार्टी चला रहे थे, तब भी उनके हौसले कम नहीं थे। वह हमेशा यह साबित करने का ताना बाना बुनते रहते ताकि भाजपा को लगे कि उसने कल्याण सिंह के साथ अन्याय किया।अपनी जाति व पिछड़ों की सियासत या बात उनने केवल राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के दौर में ही की। भाजपा में रहते हुए उनके मुँह से ओबीसी या जाति राजनीति की बात हमने कभी नहीं सुनी। हमने प्रदेश के बाहर की उनकी यात्राओं में यह भी देखा है कि जब वह गुजर जाते थे तो महिलाएँ मिट्टी उठाकर सिर से लगाती थीं। जय श्री राम को उन्होंने एक नई पहचान दी। वह प्रकृति से बहुत ज़िद्दी थे। जिस बात पर ज़िद करना होता था, अंजना होता था। उसे तीन बार कहते थे। उनकी ज़िद करने की प्रवृत्ति ने उन्हें बहुत कुछ दिया। बहुत कुछ लिया भी।ज़िद के नाते ही कुशाभाऊ ठाकरे जी का फ़ोन तक कई बार नहीं उठाते थे। ठाकरे जी को रमापति राम त्रिपाठी के मार्फ़त बात करना पड़ता था। अटल बिहारी वाजपेयी से एक दौर में उनके रिश्ते बहुत ख़राब हो गये थे। उसकी सीमा यहाँ तक गई कि प्रमोद महाजन जी को बुलाकर अटल बिहारी वाजपेयी जी ने यहाँ तक कह दिया कि चौबीस घंटे में कल्याण सिंह इस्तीफ़ा नहीं देते हैं तो मैं अपनी ही सरकार को भंग कर दूँगा। कल्याण सिंह जी अडे थे कि उनके हटने के बाद राजनाथ सिंह जी उनके उत्तराधिकारी नहीं होंगे। नतीजतन मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा राम प्रकाश गुप्ता जी को मिल गया। राम प्रकाश जी डॉ मुरली मनोहर जोशी की खोज थे। अटल जी ने एक कैबिनेट की बैठक में डॉ जोशी से कहा कि मैं चाहता हूँ कि तुमको उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना कर भेदिया जाये। डॉ जोशी का जवाब था, क्या मैं आपको आपके कैबिनेट में अच्छी नहीं लग रहा हूँ। पर अटल जी ने कहा कि कल्याण सिंह राजनाथ सिंह बनाने पर कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं। लिहाज़ा डॉ जोशी को मुख्यमंत्री तलाशने का काम सौंपा गया। उन्होंने ने अपने सहपाठी और पूर्व उप मुख्यमंत्री रहे राम प्रकाश जी का नाम सुझाया, जो स्वीकार हो गया। अटल जी कल्याण सिंह की ताक़त भी जानते थे तभी तो कल्याण सिंह जी के लिए भाजपा का संविधान बदल कर उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाने और केंद्रीय कृषि मंत्री तक का प्रस्ताव दिया गया था। पर कल्याण सिंह दिल्ली जाने को तैयार नहीं हुए।

कल्याण सिंह ने जय श्रीराम के नारा भी बनाया। मेरे पास उनकी अनगिनत यादें है? उन पर एक किताब लिखूँ तो कम पड़ जायेगी। बिरले ही होते हैं जिनके जीवन की इच्छाएँ पूरी हो जायें। कल्याण सिंह जी की केवल दो इच्छा थी। दोनों पूरी हुई। एक राम मंदिर को बनते हुए देखना। दूसरा भाजपा के झंडे में लिपट कर जाना। ऐसे बिरले होते हैं जिसके जीवन की सभी इच्छाएँ पूरी हो जायें।कल्याण सिंह जी को श्रद्धा पूर्वक विनम्र श्रद्धांजलि ।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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