×

Kerala News: माकपा सीएम द्वारा उच्चतम न्यायालय का परिहास!

Kerala News: न्यायाधीश-द्वय मुकेशकुमार रसिकभाई शाह (गुजरात के) तथा चुडलाटी थेवन रवि कुमार (केरलवासी) ने अपने आदेश में कहा कि केरल शासन का निर्णय त्रुटिपूर्ण है।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 15 Nov 2022 1:37 PM GMT
K Vikram Rao
X

माकपा सीएम द्वारा उच्चतम न्यायालय का परिहास !

Kerala News: जिस दृष्टता, निर्लज्जता तथा उद्रेक से केरल के मार्क्सवादी मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने सर्वोच्च न्यायालय के खरे, बेलौस और स्पष्ट आदेश की अवमानना तथा निरादर किया है, वह अत्यंत गंभीर, संवैधानिक गलती है। केरल उच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने (21 अक्टूबर 2022) को राज्य शासन द्वारा नामित एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्ति डॉ. श्रीमती एम. एस. राजश्री अवैध करार दिया था।

''केरल शासन का निर्णय त्रुटिपूर्ण है''

न्यायाधीश-द्वय मुकेशकुमार रसिकभाई शाह (गुजरात के) तथा चुडलाटी थेवन रवि कुमार (केरलवासी) ने अपने आदेश में कहा कि केरल शासन का निर्णय त्रुटिपूर्ण है। वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मान्य नियमो का उल्लंघन करता है। आयोग के अनुसार कुलपति के चयन हेतु खोज समिति बनती है जो कुछ नामों को अग्रेसर करती हैं। मगर डॉ. राजश्री का केवल एक अकेला नाम सूची में था। कोई अन्य वैकल्पिक नामांकन नहीं था। अतः वह रद्द कर दिया गया। मगर माकपा शासन ने इस आदेश को क्रियान्वित नहीं किया। ठीक इसी भांति राज्य उच्च न्यायालय ने केरल मत्स्य पालन और महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय (केयूएफओएस) के कुलपति की नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उनकी नियुक्ति भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानदंडों के खिलाफ है।

कुलाधिपति को तीन या उससे अधिक दावेदारों की सूची भेजना अनिवार: मुख्य न्यायधीश

मुख्य न्यायधीश एस. मणिकुमार और शाजी पाल चाली की खण्ड पीठ ने कहा कि डॉ. के. रीजि जॉन को केयूएफओएस का कुलपति नियुक्त करने के दौरान यूजीसी के उस नियम का पालन नहीं किया गया, जिसके तहत कुलाधिपति को तीन या उससे अधिक दावेदारों की सूची भेजना अनिवार्य है। पीठ ने कहा कि नए कुलपति के लिए कुलाधिपति एक चयन कमेटी गठित कर सकते हैं। यह स्पष्ट किया कि कुलपति के चयन में यूजीसी के मानदंडों को सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने जॉन का इस्तीफा मांगा

उच्च न्यायालय का यह फैसला डॉ. जॉन की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है। यह फैसला राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा जॉन का इस्तीफा मांगे जाने के कदम को जायज ठहराता है। खान ने इस आधार पर जॉन का इस्तीफा मांगा था कि उच्चतम न्यायालय ने ऐसे ही एक अन्य मामले में कहा था कि यूजीसी के मानदंडों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा गठित चयन कमेटी को कम से कम तीन उपयुक्त दावेदारों के नामों की सिफारिश करनी चाहिए थी। उन्होंने कारण बताओ नोटिस भेजकर डॉ. जॉन से पूछा था कि एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को खारिज किए जाने के मद्देनजर उन्हें कुलपति के पद पर बने रहने की अनुमति क्यों दी जाये ?

नियुक्तियों के कारण माकपा सरकार और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान में ठनी

इन्हीं नियुक्तियों के कारण माकपा सरकार और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान में ठन गई। राज्यपाल चाहते हैं कि कुलपति का नामांकन आयोग की नियमावली के मुताबिक हो। पिनरायी विजयन अपने चहेतों को पदासीन कराना चाहते हैं। यही मूलभूत मसला है कि शासन नियमों पर चलेगा या पार्टी हित में ? आरिफ मोहम्मद खान के विरूद्ध अभियान की वजह क्या है ? माकपा मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के निजी सचिव हैं केके रागेश। उनकी धर्मपत्नी हैं श्रीमती प्रिया वर्गीज। उन्हें कन्नूर विश्वविद्यालय कुलपति तथा माकपा हमदर्द गोपीनाथ रवीन्द्रन को मलयालम भाषा विभाग में एसोसिएटेड प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया है। चयन समिति के समक्ष छ प्रत्याशी पेश हुये थे।

डॉ. प्रिया का शोध स्कोर मात्र 156 था

सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार डॉ. प्रिया का शोध स्कोर मात्र 156 था। द्वितीय स्थान पर नामित हुये प्रत्याशी को 651 अंक मिले थे। इन्टर्व्यू में द्वितीय आये उम्मीदवार को कुल 50 में से 32 अंक मिले। जबकि प्रिया को पचास में से मात्र 30 अंक। राज्यपाल आरिफ को सूचना मिली कि प्रिया के पति रागेश माकपा के छात्र संगठन एसएफआई के प्रमुख थे और माकपा के पूर्व सांसद। इसी बीच केरल हाईकोर्ट ने प्रिया की नियुक्ति पर रोक भी लगा दी। विश्वविद्यालय अनुदान (यूजीसी) को नोटिस भी जारी कर दी।

संगठन व सरकार के बीच जुड़ाव सुनिश्चित करने में मदद मिलती

एक जानकार ने इस पूरे प्रकरण पर टिप्पणी की (दैनिक हिन्दुस्तान: 30 अगस्त 2022, पृष्ठ-10 में) कि: ''काडर-आधारित राजनीतिक दल महत्वपूर्ण पदों पर अपने समर्थकों की नियुक्ति को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि इससे संगठन व सरकार के बीच जुड़ाव सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।" मगर इसे परिवार के सदस्यों तक ले आना निश्चित ही तनातनी को बढ़ाता है, और इससे भाई-भजीजावाद की बू भी आती है। इस तरह की परम्परा का अंततः निस्संदेह राष्ट्र और राज्य, दोनों के लिए हानिप्रद है।"

केरल में एक और शासकीय कुप्रथा

इसके अतिरिक्त केरल में एक और शासकीय कुप्रथा है। इससे राज्यकोष पर अनावश्यक बोझ पड़ता है। आरिफ मोहम्मद खान ने इस प्रणाली पर भी रोष व्यक्त किया। केरल के मंत्रियों को अधिकार है कि वे बीस-बीस व्यक्तियों को अपने निजी स्टाफ में नियुक्त कर सकते हैं। स्वाभाविक है कि सभी माकपा के युवा काडर के राजनीतिक कार्यकर्ता होंगे। ढाई साल की नौकरी के बाद सभी कर्मचारियों को कानूनन आजीवन पेंशन भी मिलती है। क्या पार्टीबाजी है ? भारत सरकार के मंत्रियों को भी ऐसा महत्वपूर्ण और लाभकारी अधिकार नहीं है। राज्यपाल ने इस पर ऐतराज जताया तो माकपा मुख्यमंत्री नाराज हो गये। माकपा ने राज्यपाल के पद ही को खत्म करने की मांग कर दी। अगली मांग माकपा की शायद होगी कि केरल को गणराज्य घोषित हो जाये। संयुक्त राष्ट्र संघ का स्वतंत्र सदस्य नामित हो जाये।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story