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Khel Ratna Award: नाम परिवर्तन की नीति बनाने का समय

राजनीति में बड़े खेल होते हैं, लेकिन जब खेल में राजनीति हो तो निश्चित रूप से जनमानस सोचता है कि टोक्यो ओलंपिक में जहाँ छोटे-छोटे देश 30-35 मेडल लेकर अपने देश का नाम विश्व पटल चमका रहे हैं। वहीं भारत जैसे विश्व गुरु देश को मेडल के टोटे पड़ रहे हैं।

rajeev gupta janasnehi
Written By rajeev gupta janasnehiPublished By Ashiki
Published on: 8 Aug 2021 10:02 AM GMT
Khel Ratna Award
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कांसेप्ट इमेज (फोटो- सोशल मीडिया)

Khel Ratna Award: राजनीति में बड़े खेल होते हैं, लेकिन जब खेल में राजनीति हो तो निश्चित रूप से जनमानस सोचता है कि टोक्यो ओलंपिक में जहाँ छोटे-छोटे देश 30-35 मेडल लेकर अपने देश का नाम विश्व पटल चमका रहे हैं। वहीं भारत जैसे विश्व गुरु देश को मेडल के टोटे पड़ रहे हैं। आज अगर नारी शक्ति नहीं होती तो शायद हम जिन मेडलों को लेकर खुशी जाहिर करने के साथ, खिलाड़ियों की हौसला अफजाई भी कर पा रहे हैं, एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं शायद उससे मेहरूम होते।

किसी ने सच कहा है जीवन में बहुत से आयामों में पैसे से ज्यादा सम्मान और हौसला अफजाई जब मिलती है तो वह हिमालय जैसे पर्वत की चोटी पर भी झंडा फेरा देता है एक दिव्यांग। जब एक खिलाड़ी मैदान में उतरता है तो उसको व उसकी टीम को उसका कोच और स्पॉन्सर करने वाली संस्था यही बताती है कि तुम्हें अपने लिए कम टीम के लिए ज्यादा और टीम से ज्यादा अपने शहर और प्रदेश के लिए खेलना है। इसी प्रकार जब एक खिलाड़ी भारत से बाहर जाकर खेलता है तो वह किसी राज्य का किसी धर्म का खिलाड़ी नहीं कहलाता है वह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला भारतीय कहलाता है।

खिलाड़ियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे कौन स्पॉन्सर कर रहा है या उसे किस नाम से पुरस्कार दिया जा रहा है। उसके मन में तो खेल भावना भरी जाती है, और पुरस्कार पाकर अपनी टीम को विजेता बनाने की जुनून को जहन में भरा जाता है। यह बात दीगर आज ओलम्पिक में भारत को मेडल उम्मीद से कम मिल रहे है पर लगभग 125 खिलाड़ियों का प्रदर्शन स्तर किसी मेडल से कम नही है।

जी जान लगाने वाले खिलाड़ियों के साथ जब देश की सभी सरकारें राजनीत करे तो खिलाड़ियों का मनोबल टूटना स्वाभिक है। जबकि स्व मेजर ध्यान चंद जी जिनकी स्टिक से बॉल मैग्नेट की तरह चिपकी रहती थी, हॉकी में भारत को 3 स्वर्ण पदक दिलाने वाले और अपने खेल जीवन में 1000 गोल दागने वाले जिन्होंने देश का नाम विश्व में चमकाया जो भारत के लिए खेले भारत के लिए जिये उन्हें भारत रतन के लिए आज तक भारतीयों की माँग के बाद भी मशक्कत करनी पड़ रही है।

आज पाँच दशक हो गए स्व मेजर ध्यानचंद हर भारतीय के दिल में ना सिर्फ जीवंत है, बल्कि वे हर भारतीय को व खिलाड़ियों को मरणोपरांत गर्व का अनुभव भी कराते रहे हैं। आज भी स्व मेजर ध्यानचंद जी भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने से वंचित जबकि सम्पूर्ण भारतीय हर बार उनके नाम की घोषणा सुनने को बेताब रहता है।

जब देश में भाजपा की सरकार सत्ता पर काबिज हुई तो देश के नागरिकों में उम्मीदों का सागर बहा पर हर उम्मीद हर कोई पूरा करे यह तो ज़रुरी नहीं है, लेकिन राजनीति में खेल होना तो लगभग ज़रुरी है। आज भारतवर्ष में एक खेल पुरस्कार का नाम बदलकर स्व मेजर ध्यान चंद खेल पुरस्कार रख दिया। जिसे देश की भावना बताया जा रहा हैं यह समझ से परे है, प्रश्न उठना स्वाभिक है क्या इससे खिलाड़ी को या खेल को क्या लाभ होगा या टोकियो गए खिलाड़ियों का कितना मनोबल बढेगा यह समझ से परे है? पर इन सब के पीछे देखने में यही लगता है अब राजनीति में खेल नहीं खेल में राजनीति घुस रही है। कारण साफ़ है तमाम ऐसे लोग भारत रत्न पुरस्कार के योग्य हर सरकार द्वारा माने गए जो पैसे के लिए खेले जबकि स्व मेजर ध्यानचंद जी जो देश के लिए खेले। खेल जगत को आज ऑक्सीजन की जरूरत थी उसे हौसला अफजाई की जरूरत थी। भारतीय नागरिकों को सरकार द्वारा लिए गए हर कदम की सराहना करनी चाहिए उसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि कोई भी सरकार होती है। वह जो भी निर्णय लेती है उस निर्णय को देश के नागरिकों को मानना चाहिए परंतु जब आवश्यकता किसी अन्य चीज की हो और मिले कुछ और तो स्वाभाविक रूप से ही बौद्धिक स्तर पर चिंतन का विषय हो जाता है।

आज सरकार द्वारा देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव गाँधी खेल रत्न का नाम बदल कर स्व ध्यानचंद जी के नाम से खेल पुरस्कार का नाम परिवर्तन करके क्या आपको लगता है उससे खेल जगत को बहुत कुछ लाभ होने वाला है ?क्या नाम परिवर्तन परम्परा उचित है क्या जनमानस की भावना का ध्यान नही रखना चाहिए ? हर सरकार द्वारा निर्णय राजनीति से प्रेरित नहीं होने चाहिए अन्यथा इससे हौसले में कमी आ जाती है|अगर हम इतिहास के पन्ने पलट कर देखें शहर के महत्वपूर्ण स्थान, शहर के स्टेशन और विश्वविद्यालय के नाम अमूमन या तो शहर के नाम से होती थी या फिर उस संबंधित चीज पर उस महान व्यक्ति जिसका उसके लिए योगदान होता था| उसका रहता था पर आज के परिवेश में किसी भी संस्था किसी का भी नाम राजनीतिक व्यक्तियों के नाम पर होने लगा है चाहे वह खेल जगत से जुड़ा हो या विश्वविद्यालय से जुड़ा |

इसलिए आज की महती आवशयकता है नाम परिवर्तन की जो परम्परा चल पड़ी है उसे सही दिशा देने की | आज साकार को नाम परिवर्तन की नीति बनाकर और उस नीति को समय रहते हुए लागू करे अन्यथा पद व व्यक्ति की संस्था की ख्याति में कमी आती है|अगर सरकार भारत रतन मेजर ध्यानचंद जी के नाम से देती है तो पूरा देश सरकार का इस्तकबाल करेगा और उसके काम की निश्चित रूप से सराहना की जाएगी क्योंकि वह देश के नागरिकों की भावनाओं का सम्मान होगा |

किसी भी राजनीति से प्रेरित निर्णय नहीं होगा मुझे लगता है सभी खेल जगत से जुड़े हुए लोगों और खेल प्रेमियों को उन्हें एक बार सरकार को आग्रह करना चाहिए कि खेल जगत को नजरअंदाज ना करते हुए उसे पूरा सम्मान दें ताकि हम भी आने वाले अनेक खेल आयोजनों में छोटे-छोटे देशों की तरह से बेहतर प्रदर्शन करके देश का नाम विश्व में विश्व गुरु की श्रेणी में ला सके| खिलाड़ी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि खेल रतन का पुरस्कार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम से हो या मेजर ध्यानचंद के नाम से उसे इस बात से फर्क पड़ता है कि उसकी हौसला अफजाई सरकार द्वारा किस रूप में की जा रही है लेकिन आज नाम बदलने की जो परंपरा राजनीतिक से प्रेरित होने के कारण खेल जगत में एक अच्छा मैसेज नहीं देती है|

Ashiki

Ashiki

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