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King Charles III: चार्ल्स ने शहीदों से माफी मांगी ! भगत सिंह पर अभी भी हिचक !!

King Charles III Apologized: बादशाह चार्ल्स तृतीय ने गत दिनों नैरोबी (कीन्या) यात्रा पर अश्वेत शहीद ददान किमाथी वासिउरी को अंग्रेजी राज द्वारा फांसी देने पर माफी मांगी। छाछ्ठ वर्षों बाद। इस क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी की रहस्यात्मक फांसी 18 फरवरी, 1957 की याद दिलाती है ।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 25 Nov 2023 6:48 PM IST
Charles apologized to the martyrs! Still hesitant on Bhagat Singh!!
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अश्वेत शहीद ददान किमाथी वासिउरी- पत्नी मुकामी: Photo- Newstrack

King Charles III Apologized: बादशाह चार्ल्स तृतीय ने गत दिनों नैरोबी (कीन्या) यात्रा पर अश्वेत शहीद ददान किमाथी वासिउरी को अंग्रेजी राज द्वारा फांसी देने पर माफी मांगी। छाछ्ठ वर्षों बाद। इस क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी की रहस्यात्मक फांसी 18 फरवरी, 1957 की याद दिलाती है । शहीद भगत सिंह की भी । जिन्हें रात के अंधेरे में लाहौर जेल में एक दिन पूर्व गुपचुप फांसी दे दी गई थी। मगर आज तक भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की हत्या पर ब्रिटिश राज ने माफी नहीं मांगी। भारत हर 23 मार्च को शहीद दिवस मनाता है। यही तारीख डॉ. राममनोहर लोहिया की जयंती भी है। लोहिया ने मनाने से मना कर दिया था।

कीन्या भारत का अनन्य मित्र-राष्ट्र रहा। सदियों पूर्व गुजरातियों ने यहां व्यापार बढ़ाया था। ददान किमाथी माउ माउ हथियारबंद इंकलाबियों के पुरोधा रहे। उनकी सशस्त्र क्रांति के फलस्वरूप श्वेत साम्राज्यवादी तंग रहते थे। उनके सर पर इनाम भी रखा था। माउ माउ स्वाधीनता सेनानियों की जंग थी कि उनकी उपजाऊ जमीन और वनसंपदा पर से गोरे कब्जेदार हट जायें। जमीन उसके राष्ट्रीय मालिक को लौटाई जाए। मगर अंग्रेजी पुलिस और सेना उनका दमन करती रही। किमाथी ने कीन्या अफ्रीकी संघ के सदस्य बनकर उग्र आंदोलन चलाया था।

माउ माउ आंदोलन

माउ माउ आंदोलन की शुरुआत स्वतंत्रता सेना के रूप में हुई, जो कि एक किकुयू, एम्बु और मेरु सेना थी। वे भूमि को पुनः प्राप्त करने की मांग कर रहे थे। मऊ मऊ की शपथ लेने के बाद, किमाथी 1951 में फोर्टी ग्रुप में शामिल हो गए, जो किकुयू सेंट्रल एसोसिएशन की उग्रवादी शाखा थी। सचिव के रूप में किमाथी ने स्वतंत्रता आंदोलन में एकजुटता लाने के लिए कसम ली। स्वतंत्र केन्या के लिए किमाथी की लड़ाई 1956 में समाप्त हो गई। उसी वर्ष 21 अक्टूबर को, एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी इयान हेंडरसन ने जो किमाथी को पैर में गोली मार दी गई थी।

मुख्य न्यायाधीश ओ'कॉनर वाली केन्याई अदालत ने उसे जनरल अस्पताल न्येरी के अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए मौत की सजा सुनाई। अपनी फाँसी से एक दिन पहले, उन्होंने अपने पिता मेरिनो को एक पत्र लिखा अपने बेटे को शिक्षा दिलाने के लिए। उन्होंने अपनी पत्नी मुकामी के बारे में भी लिखा : "वह कामिती जेल में बंद है। मेरा सुझाव है कि उसे कुछ समय के लिए रिहा कर दिया जाए।”

केन्याई क्रांतिकारी ददान किमाथी वासिउरी

उसे अपनी पत्नी मुकामी से मिलने की अनुमति दी गई। उन्होंने बताया : "मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि अंग्रेज मुझे फाँसी देने पर आमादा हैं। मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मेरा एकमात्र अपराध यह है कि मैं एक केन्याई क्रांतिकारी हूँ जिसने एक मुक्ति सेना का नेतृत्व किया था। अब अगर मुझे छोड़ना होगा मुझे आपके और मेरे परिवार के बारे में अफसोस करने की कोई बात नहीं है। मेरा खून आजादी के पेड़ को सींचेगा।"

उन्हें कामिति अधिकतम सुरक्षा जेल में 18 फरवरी 1957 की सुबह फाँसी दे दी गई। एक अनजान कब्र में दफनाया गया था। दफन स्थल 62 वर्षों तक अज्ञात रहा। जब डेडान किमाथी फाउंडेशन ने रिपोर्ट दी कि कब्र-स्थल की पहचान कामिटी जेल के मैदान में की गई थी। सरकार ने मध्य नैरोबी में एक ग्रेफाइट चबूतरे पर स्वतंत्रता सेनानी डेडान किमाथी की 2.1 मीटर कांस्य प्रतिमा बनवाई। यह प्रतिमा किमाथी स्ट्रीट और मामा नगीना स्ट्रीट के जंक्शन पर है। सैन्य राजचिह्न पहने हुए किमाथी के दाहिने हाथ में एक राइफल और बाएं हाथ में एक खंजर है, जो उनके संघर्ष में उनके पास आखिरी हथियार थे। प्रतिमा का अनावरण राष्ट्रपति किबाकी द्वारा 18 फरवरी, 2007 को उस दिन की 50वीं वर्षगांठ के अवसर था, जिस दिन उन्हें फाँसी दी गई थी। ब्रिटिश सरकार ने 12 सितंबर, 2015 को नैरोबी के उहुरू पार्क में एक माउ माउ स्मारक प्रतिमा का अनावरण भी किया। इसे "ब्रिटिश सरकार द्वारा माउ माउ और उन सभी पीड़ित लोगों के बीच सुलह के प्रतीक के रूप में बनाया था"।

ददान की पत्नी मुकामी ने भी पोत के साथी के रोल में 1950 के दशक में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ रक्तिम प्रतिरोध आंदोलन का नेतृत्व किया था। केन्या के न्यांदरुआ काउंटी में उनके शहर नजाबिनी में दफनाया गया। राष्ट्रपति विलियम रुटो ने मुकामी को "महान सेनानी" बताया है। रुतो के पूर्ववर्ती उहुरू केन्याटा - जिनके पिता जोमो केन्याटा केन्या के संस्थापक राष्ट्रपति थे - ने मुकामी को "एक सच्चा देशभक्त (जो) एक मार्गदर्शक और अनुकरणीय नेता के रूप में अपनी भूमिका निभाने की प्रशंसा की।"

कीन्या- भारत

किमाथी दंपति के भारतीय प्रशंसकों की संख्या बड़ी है। महात्मा गांधी के अफ्रीकी महाद्वीप के स्वाधीनता संघर्ष से वे सब करीबी से जुड़े रहे। भारत से इस अफ्रीकी गणराज्य से आत्मीय संबंध गढ़ने में प्रथम उच्चायुक्त स्व. प्रेम भाटिया का योगदान रहा। वे पत्रकार थे। “दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया” और “ट्रिब्यून” के संपादक रहे। उनके साथ मैं भी भारतीय प्रेस काउंसिल का सदस्य रहा। नैरोबी में उनके साथ उच्चायुक्त कार्यालय में मेरे अग्रज स्व. के. प्रताप प्रेस सचिव रहे, जो बाद में ट्यूनीशिया में भारतीय राजदूत नियुक्त हुये थे। केन्या में वर्तमान में प्रमुख भारतीय मूल के नागरिकों में हैं श्रीमती कोटमराजु सुजाता जो वित्तीय निष्णात हैं। कीनिया तेलुगू संघ की अध्यक्षा हैं। राष्ट्रीय पर्यावरण सुधार समिति की सदस्य हैं। यह हिंद महासागर से सटा राष्ट्र कीन्या भारत का संयुक्त राष्ट्र संघ में पूर्ण समर्थक रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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Shashi kant gautam

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