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भूमि सुधार: वैश्विक परिदृश्य, इतिहास और वर्तमान पर चिंतन

Land Reforms News: इस लेख में, हम भूमि सुधारों के वैश्विक परिदृश्य, इसके ऐतिहासिक विकास, भारत में इंदिरा गांधी द्वारा किए गए सुधारों, और वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे।

Ankit Awasthi
Published on: 22 Jan 2025 10:44 PM IST
Land Reforms Reflections on Global Perspective History and Present
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Land Reforms Reflections on Global Perspective History and Present ( Pic- Social- Media) 

Land Reforms News: भूमि सुधार एक ऐसा विषय है, जो न केवल सामाजिक और आर्थिक समानता से जुड़ा है, बल्कि यह किसी भी राष्ट्र की प्रगति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐतिहासिक रूप से, भूमि सुधार का उद्देश्य भूमि के असमान वितरण को समाप्त करना और संसाधनों की न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करना रहा है। इस लेख में, हम भूमि सुधारों के वैश्विक परिदृश्य, इसके ऐतिहासिक विकास, भारत में इंदिरा गांधी द्वारा किए गए सुधारों, और वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे।

वैश्विक परिदृश्य और ऐतिहासिक संदर्भ

भूमि सुधारों का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है, जब भूमि को मुख्य संपत्ति और शक्ति का स्रोत माना जाता था। फ्रांस की क्रांति (1789) और रूस की बोल्शेविक क्रांति (1917) ने भूमि सुधार के महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किए, जहां भूमि का पुनर्वितरण किया गया ताकि गरीब किसानों को उनकी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हो सके।

एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में भूमि सुधार एक राजनीतिक और सामाजिक क्रांति का आधार बने। जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी प्रभाव में भूमि सुधार लागू किए, जिसने ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ावा दिया। वहीं, चीन में माओत्से तुंग के नेतृत्व में भूमि सुधारों ने साम्यवादी व्यवस्था को मजबूती दी।भारत में भूमि सुधार स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में एक प्रमुख मुद्दा रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान जमींदारी प्रथा ने किसानों को उनकी भूमि से वंचित कर दिया था। इसे समाप्त करने के लिए आज़ादी के बाद कई कदम उठाए गए, लेकिन इंदिरा गांधी के शासनकाल (1966-1977) में भूमि सुधारों को नई दिशा मिली।

सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स: इंदिरा गांधी सरकार ने भूमि पर अधिकतम स्वामित्व सीमा तय की, जिससे बड़ी भूमि-धारकों की अतिरिक्त जमीन गरीबों में वितरित हो सके।

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम: इंदिरा गांधी ने भूमि सुधारों को 'गरीबी हटाओ' नारे के तहत जोड़ा और इसे ग्रामीण विकास की धुरी बनाया।

हरित क्रांति का प्रभाव: इंदिरा के कार्यकाल में हरित क्रांति ने भूमि सुधारों के आर्थिक पक्ष को मजबूती दी। हालांकि, इसका लाभ अधिकतर बड़े किसानों को ही मिला।

भूमि सुधार और वक्फ बोर्ड की जमीन का मुद्दा

भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में वक्फ बोर्ड के पास मौजूद जमीन एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद विषय है। वक्फ बोर्ड, जो मुख्य रूप से धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए जमीन का प्रबंधन करता है, के पास बड़ी मात्रा में जमीन है, लेकिन इसके उपयोग को लेकर अक्सर विवाद होते हैं। पक्ष में तर्क यह दिया जाता है कि वक्फ संपत्तियां सामुदायिक कल्याण, धार्मिक स्थलों के संरक्षण और गरीबों की मदद के लिए आरक्षित हैं। इसे किसी भी व्यावसायिक उपयोग में लाना या निजी स्वामित्व में देना बोर्ड के मूल उद्देश्यों के खिलाफ है। वहीं, विपक्ष में तर्क यह है कि इन जमीनों का बड़ा हिस्सा अनुपयोगी या अतिक्रमण की स्थिति में है। यदि इन्हें व्यावसायिक या विकास कार्यों में लाया जाए, तो इससे आर्थिक विकास और रोजगार को बढ़ावा मिल सकता है। वक्फ बोर्ड की जमीन का मुद्दा भूमि सुधारों के व्यापक परिदृश्य में एक उदाहरण है, जहां सामुदायिक अधिकारों और विकास के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है।

वर्तमान परिदृश्य और वैश्विक दृष्टिकोण

आज, भूमि सुधार एक नई चुनौती का सामना कर रहा है। भारत में भूमि का बंटवारा और कृषि पर निर्भरता अभी भी एक बड़ी समस्या है।

भारत में स्थिति:किसान आंदोलन और कृषि कानूनों ने भूमि के स्वामित्व और उपयोग की नई बहस छेड़ दी है।

शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण भूमि पर दबाव बढ़ रहा है।

भू-स्वामित्व और पट्टेदारी से जुड़ी समस्याएं, विशेष रूप से छोटे और भूमिहीन किसानों के लिए, एक बड़ी चुनौती हैं।

वैश्विक परिदृश्य:

लैटिन अमेरिका में भूमि सुधार का उद्देश्य अभी भी सामंती ढांचे को समाप्त करना है।

अफ्रीका में भूमि सुधार प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित है।

चीन और वियतनाम जैसे देशों ने भूमि उपयोग की नीतियों में सुधार कर कृषि और औद्योगिक संतुलन बनाने का प्रयास किया है।

आगे की राह

भूमि सुधार केवल भूमि के पुनर्वितरण तक सीमित नहीं होना चाहिए। आज आवश्यकता है:

डिजिटल भूमि रिकॉर्ड्स की, जिससे पारदर्शिता और स्वामित्व विवाद कम हों।

छोटे और सीमांत किसानों को कृषि तकनीक और वित्तीय सहायता प्रदान करने की।

भूमि उपयोग नीतियों को पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास से जोड़ने की।

निष्कर्ष

भूमि सुधार केवल आर्थिक नीतियों का हिस्सा नहीं है; यह समाज में समानता और न्याय की स्थापना का एक माध्यम भी है। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किए गए सुधार आज भी प्रेरणा देते हैं, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इन नीतियों को अद्यतन करने की आवश्यकता है। वैश्विक दृष्टिकोण अपनाकर, हम भूमि सुधारों को अधिक प्रभावी और टिकाऊ बना सकते हैं।

"भूमि सुधार समाज के हर वर्ग को सशक्त बनाने का माध्यम है, और यह सशक्तिकरण ही किसी राष्ट्र की असली प्रगति है।"



Shalini Rai

Shalini Rai

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